इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

योजनाबद्ध कार्य

        किसी भी कार्य की सफलता में सबसे पहले संबंधित कार्य की रूपरेखा बनाई जाती है। उसमें कार्य की प्रकृति और लगने वाले समय, धन और सामर्थ्य आदि का आकलन शामिल होता है। इससे कार्य में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। सुदूर अंतरिक्ष से जुड़े कार्यक्रमों से लेकर सड़क, पुल और सिंचाई परियोजना आदि के निर्माण में पहले सभी पहलुओं का विस्तृत आंकलन किया जाता है, जिससे प्रोजेक्ट कहते हैं। प्रोजेक्ट के गहन अध्ययन के बाद इस पर कार्य शुरू होता है, लेकिन बहुत से लोग निजी जीवन में कोई कार्य बिना किसी ठोस योजना के शुरू कर देते हैं और असफल होने पर खुद निराश तो होते हैं, साथ ही भाग्य और भगवान को दोष देते हैं। जबकि शास्त्रों में कहा गया है कि प्रयत्न करने से भी कोई कार्य नहीं पूर्ण हो पाता या सफलता नहीं मिलती तो कहीं ना कहीं स्वयं का दोष है।

        योजनाबद्ध कार्य का उत्कृष्ट उदाहरण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा कदम-कदम पर प्रस्तुत किया गया। लंका पर आक्रमण से पहले वहां की सारी स्थिति का अध्ययन करने के लिए वह हनुमान जी को लंका भेजते हैं। लंका की भौगोलिक, सामाजिक, सामरिक सारी क्षमता का आंकलन कर हनुमान जी विस्तृत जानकारी श्री राम को देते हैं और जब श्रीराम के खुद लंका जाने की बात आती है तथा बीच में समुद्र मार्ग बनाने का प्रश्न उठता है सब उनके अनुज लक्ष्मण जी तत्काल इस कार्य को अंजाम देना चाहते हैं और पुल बनाने का उधम करने लगते हैं, लेकिन श्रीराम ने उन्हें किसी तरह की जल्दबाजी से रोक दिया। रामचरितमानस में उल्लेख है कि स्वयं श्री राम समुद्र पर 3 दिन बैठे रहे।

         किसी कार्य के शुरू करने में जो व्यक्ति एकाग्र मन से इसी कार्य का चिंतन करता है तो चिंतन में अनेक रास्ते निकलते हैं। जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं सब में विज्ञानियों ने पहले गहरा चिंतन किया, तत्पश्चात प्रोजेक्ट बनाया। अध्यात्म के क्षेत्र में भी गहरे चिंतन मनन को महत्व दिया गया है।