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सोमवार, 28 अगस्त 2023

फ़िराक गोरखपुरी

 जनाब फ़िराक़ गोरखपुरी (मूल नाम रघुपति सहाय) (28 अगस्त 1896 - 3 मार्च 1982) 

            प्रसिद्ध रचनाकार  जनाब फ़िराक़ गोरखपुरी   का जन्म गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में कायस्थ परिवार में हुआ। इनका मूल नाम रघुपति सहाय था। रामकृष्ण की कहानियों से शुरुआत के बाद की शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई। २९ जून, १९१४ को उनका विवाह प्रसिद्ध जमींदार विन्देश्वरी प्रसाद की बेटी किशोरी देवी से हुआ। कला स्नातक में पूरे प्रदेश में चौथा स्थान पाने के बाद आई.सी.एस. में चुने गये। १९२० में नौकरी छोड़ दी तथा स्वराज्य आंदोलन में कूद पड़े तथा डेढ़ वर्ष की जेल की सजा भी काटी।। जेल से छूटने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस के दफ्तर में अवर सचिव की जगह दिला दी। बाद में नेहरू जी के यूरोप चले जाने के बाद अवर सचिव का पद छोड़ दिया। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में १९३० से लेकर १९५९ तक अंग्रेजी के अध्यापक रहे।

            १९७० में उनकी उर्दू काव्यकृति ‘गुले नग्‍़मा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। फिराक जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापक रहे। उन्हें  सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किया गया। बाद में १९७० में इन्हें साहित्य अकादमी का सदस्य भी मनोनीत कर लिया गया था। फिराक गोरखपुरी की शायरी में गुल-ए-नगमा, मश्अल, रूहे-कायनात, नग्म-ए-साज, गजालिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागां, शोअला व साज, हजार दास्तान, बज्मे जिन्दगी रंगे शायरी के साथ हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधीरात, परछाइयाँ और तरान-ए-इश्क जैसी खूबसूरत नज्में और सत्यम् शिवम् सुन्दरम् जैसी रुबाइयों की रचना फिराक साहब ने की है। उन्होंने एक उपन्यास साधु और कुटिया और कई कहानियाँ भी लिखी हैं। उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में दस गद्य कृतियां भी प्रकाशित हुई हैं

           फिराकसाहब    ने परंपरागत भावबोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उनके यहाँ सामाजिक दुख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। दैनिक जीवन के कड़वे सच और आने वाले कल के प्रति उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फिराक ने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया। फारसी, हिंदी, ब्रजभाषा और भारतीय संस्कृति की गहरी समझ के कारण उनकी शायरी में भारत की मूल पहचान रच-बस गई है। फिराक गोरखपुरी को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था।उस दौर में यह सम्मान वास्तविक योग्यता और नि:स्वार्थ सेवा पर मिलता था

बुधवार, 26 जुलाई 2023

अपर महाप्रबंधक

*पूर्वोत्तर रेलवे के अपर महाप्रबंधक*



           पूर्वोत्तर रेलवे के अपर महाप्रबन्धक के रूप में श्री दिनेश कुमार सिंह ने मंगलवार को पदभार ग्रहण किया. इससे पहले वह पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय, गोरखपुर में वरिष्ठ उप महाप्रबन्धक के पद पर कार्यरत थे. श्री सिंह ने मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज, गोरखपुर से 1986 में सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली से वर्ष 1988 में स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने भारतीय रेल इंजीनियरिंग सेवा (आईआरएसई) के बैच 1987 के माध्यम से रेल सेवा में पदार्पण किया. उनकी पहली नियुक्ति पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर मण्डल पर सहायक मण्डल इंजीनियर, काशीपुर के पद पर हुई. 



बुधवार, 12 जुलाई 2023

*वाराणसी मंडल द्वारा पारिवारिक संरक्षा गोष्ठी*

 * *पारिवारिक संरक्षा गोष्ठी

               पूर्वोत्तर रेलवे के लहरतारा स्थित अधिकारी क्लब में क्रू लाबी वाराणसी द्वारा दिनांक 08 जुलाई 2023 को पारिवारिक संरक्षा संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें *संरक्षित ट्रेन संचालन मेंपरिवार   की भूमिका एवं भागीदारी* पर चर्चा की गई। 

          संरक्षा संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि मंडल रेल प्रबंधक(वाराणसी) श्री रामाश्रय पाण्डेय द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर  पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में स्काउट एवं गाइड सदस्य ज्योति मिश्रा एवं शिवांगी यादव द्वारा गायन एवं नृत्य प्रस्तुत किया गया।इस अवसर पर मंडल पर कार्यरत लोको पायलट/सहायक लोको पायलट के परिवार के सदस्यों द्वारा   काम के घंटो,विश्राम एवं छुट्टी जैसी विभिन्न समस्याओं को मंडल के अधिकारीयों के समक्ष  रखा जिसे अधिकारियों द्वारा शीघ्र निस्तारित करने का आश्वासन दिया  गया । इस कार्यक्रम में मंडल रेल प्रबंधक ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि लोको पायलट द्वारा ट्रेन संचालन में उनके परिवार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लोको पायलट ट्रेन संचालन की महत्वपूर्ण कड़ी है जिसे फिट रखने की जिम्मेदारी उनके परिवार की है। प्रायः ड्यूटी में व्यस्तता के कारण लोको पायलट्स अपने परिवार को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। इसके निवारण हेतु यह व्यवस्था की जा रही है कि   यदि पायलटों को किसी प्रकार की पारिवारिक समस्या हो तो प्रशासन उसे दूर करने की कोशिश करेगा। 

इस अवसर पर वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजीनियर (आपरेशन) श्री अनिल कुमार श्रीवास्तव , वरिष्ठ मंडल यांत्रिक इंजीनियर (enhm) श्री आलोक केसरवानी , वरिष्ठ मंडल कार्मिक अधिकारी श्री समीर पॉल ,वरिष्ठ मंडल संरक्षा अधिकारी श्री आशुतोष शुक्ला,मंडल चिकित्सा अधिकारी, मंडल विद्युत अभियंता, मुख्य क्रू नियंत्रक(वाराणसी) बसंत कुमार ,मुख्य लोको निरीक्षक, लोको पायलट एवं उनके परिवार उपस्थित रहे। अंत में मंडल रेल प्रबंधक द्वारा उपस्थित लोको पायलट के परिवारों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्री अजित कुमार श्रीवास्तव द्वारा एवं धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजीनियर(ऑपरेशन) श्री अनिल श्रीवास्तव द्वारा किया गया।






सोमवार, 3 जुलाई 2023

गुरु पूर्णिमा

 गुरु पूर्णिमा

"वन्दे बोधमयं नित्यं गुरूं शंकररूपिणम्" |

      आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।

शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है।

"अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः "

गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

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मंगलवार, 27 जून 2023

 


प्रमुख मुख्‍य परिचालन प्रबन्‍धक महोदय द्वारा इज्‍ज्‍तनगर मण्‍डल में परिचालन कर्मचारियों के साथ संरक्षा संवाद ।

मंगलवार, 13 जून 2023

Dhyan.

 ध्यान अभ्यास


मनुष्य ने अपनी हिम्मत और बुद्धि के आधार पर कई चुनौतियों को पार किया है, किंतु अब तक अपने मन को नियंत्रित करने में असफल रहा है। अधिकांश लोग कहते हैं मन एवं उसमें निरंतर आने वाले विचारों के प्रवाह को रोक पाना उनके लिए असंभव है, परंतु इसको संभव करना बिल्कुल सहज और सरल है। ध्यान अभ्यास द्वारा हम न केवल चंचल मन को काबू में कर सकते हैं, बल्कि विचारों को भी कर सकते हैं


प्रायः लोग वस्तुओं को भूल जाते हैं, सुनी, पढ़ बातों को भूल जाने की घटनाएं भी होती रहती हैं, किंतु ऐसा कदाचित ही होता है कि कोई स्वयं को ही भुला दे। ऐसी विचित्रता मनुष्यों में देखी जा सकती है। 'मैं एक अजर-अमर चैतन्य आत्मा हूं' इस तथ्य को भुलाकर हमने खुद को शरीर मान उसी के स्वार्थों को अपना स्वार्थ, उसी की आवश्यकताओं को अपनी आवश्यकता मानना शुरू कर दिया है। हमें यह किंचित भी याद नहीं रहता कि शरीर और मन आत्मा रूपी सारथी के साधन मात्र हैं। हम आत्मा को दिव्य गुणों से सुसज्जित करने के बजाय शरीर को स्वर्ण आभूषणों से सजा रहे हैं। परमात्म ज्ञान रूपी शक्तिंवर्धक से आत्मा को वंचित करके शरीर रूपी स्थूल साधन को दूध पिला रहे हैं। आज हमारी हालत मेले में खो गए उस बच्चे जैसी हो गई है, जिसका हाथ बीच रास्ते अपनी मां के हाथ से छूट गया और जो अपना नाम, घर का पता और गंतव्य स्थान का नाम तक भूल गया।


गीता में कहा गया है, जो मनुष्य मन को वश में कर लेता है, उसका वह मन ही परम मित्र बन जाता है, लेकिन जो मन को वश में नहीं कर पाता है, उसके लिए वह परम शत्रु के समान हो जाता- है। मन का वशीकरण मंत्र है 'खुद को आत्मा समझना।' मन, बुद्धि और संस्कार ही चैतन्य आत्मा के साधन हैं। इनको यदि कोई नियंत्रित कर सकता है तो वह है उनका स्वामी यानी 'आत्मा'। हम सभी ध्यान साधना द्वारा अपने जीवन को सुखी एवं शांतिमय बनाएं। 

मंगलवार, 23 मई 2023

गीत

 नफरत



                   भानु प्रकाश नारायण 

 लो आ  गया मैं तुमको मनाने चला हूं,

तेरे दिल की दुनिया बसाने चला हूं

हवाओं से कह दो पैग़ाम दिल का 

उमर धड़कनों की बढ़ाने चला हूं।।

याद संग होगी बीते दिनों की 

सुबह का सूरज उगाने चला हूं।।

अंधेरों का क्या बस पल भर के मेहमां

किरणें अब नयी  खिलाने चला हूं।।

कोई मुझसे रूठे क्यूं गुलशन में 

ख़ुदा को ही अब मैं मनाने चला हूं।।

बग़ावत नहीं है मुहब्बत है ये तो

नफ़रत दिलों से मिटाने चला हूं।।

अल्फ़ाज़ों को अब नया अर्थ दे कर

हर ग़म में भी मुस्कुराने चला हूं।।

सरगोशियां जग में होती रहेंगी

इंसानियत का दीपक जलाने चला हूं।।

लौ ज़िंदगी की बुझने से पहले

नया कोई श्रृंगार करने से पहले

जीवन की मधुशाला बेरंग न हो

नया गीत अब गुनगुनाने चला हूं।।

बुधवार, 17 मई 2023

व्यवहार

 व्यवहार


संप्रति संसार में व्यक्ति पर बदले की भावना हावी है। इसका सीधा प्रभाव उसके जीवन में प्रतिबिंबित होता है। प्रायः देखा गया है कि लोग अक्सर खुद को सही साबित करने के लिए सब कुछ गलत कर देते हैं। कभी-कभी तो कुछ लोग प्रतिशोध की भावना में स्वयं को उपहास का पात्र तक बना लेते हैं। उसके बाद लज्जा का शिकार होते हैं और अपने जीवन को अन्य लोगों से दूर करने की कोशिश करने लगते हैं। ऐसे में उचित यही होगा कि स्वयं को प्रतिशोध की अग्नि में झोंकने से पहले अंतस में झांककर यह प्रश्न अवश्य करें कि इससे क्या प्राप्त होने वाला है? इसका उत्तर आपको कई असहज स्थितियों से बचा सकता है। इस स्थिति में एस गिलबर्ट की यह सलाह बहुत उपयोगी प्रतीत होती है कि 'चीजें कभी-कभी ही वैसी होती हैं. जैसी दिखती हैं, मलाई से उतरा दूध मक्खन होने का भ्रम उत्पन्न करता है । '


बदले की भावना से कोई लाभ नहीं होता। उलटे यह व्यक्ति को भीतर ही भीतर घुन की तरह खाने लगती है। प्रतिशोध की इस भावना के वशीभूत होकर हम ऐसे अप्रिय वचन भी बोल जाते हैं, जिनके चलते हमारे अपने भी पराये हो जाते हैं। हमारे कटु वचनों से हमारे ही प्रियजन दुखी और खुद को छोटा महसूस करते हैं। किसी को दुखी करके आप कैसे खुश रह सकते हैं। आखिर हम जो देते हैं, वही तो लौटकर हमारे पास वापस आता हैइसलिए अपने व्यवहार में किसी कृत्रिमता के बजाय वास्तविकता को वरीयता देनी चाहिए।


किसी मनुष्य की पहचान इससे नहीं होती कि वह अपने से बड़ी हैसियत वालों से कैसा व्यवहार करता है, बल्कि इससे होती है कि वह अपने से छोटी हैसियत वालों के साथ कितना अच्छा व्यवहार करता है। साथ ही, यह भी स्मरण रहे कि जीवन में अधिकांश लोग दूसरों के साथ अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का व्यवहार करते हैं, लेकिन एक अच्छा व्यक्ति सदैव अच्छा व्यवहार कर सबका प्रिय बनने में सफल होता है।

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

समीक्षा बैठक

 समीक्षा बैठक

दिनांक 05.04.2023 को परिचालन विभाग की राजभाषा समीक्षा बैठक मुख्य यात्री परिवहन प्रबंधक श्री आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। बैठक में राजभाषा के प्रयोग पर विस्तार से चर्चा हुई। राजभाषा विभाग के श्यामबाबू शर्मा ने पिछली बैठक के कार्यवृत को बताया।मुयापरिप्रबंधक महोदय ने ई पत्रिका में सदस्यों की भागेदारी के लिए प्रोत्साहित किया।अन्त में उप मुख्य माल प्रबंधक सह राजभाषा सम्पर्क अधिकारी श्री सुमित कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

 



शुक्रवार, 31 मार्च 2023

समस्या का मूल।

 समस्या का मूल


आज हर व्यक्ति समस्याओं का रोना रो रहा है। उसने जीने के रास्ते बदल लिए हैं। जिन रास्तों पर वह बढ़ रहा है, वहां एकांकी दृष्टिकोण हावी है। हम देखते हैं तो सिर्फ बाहर और सोचते भी हैं तो सिर्फ औरों के विषय में। महावीर कहते हैं कि बाहर मत झांको। तुम जिसे देखना, पाना और जानना चाहते हो वह तुम्हारे भीतर हैं। उन्हें भीतर खोजो, क्योंकि बाहर ढूंढ़ने वाले हर मोड़ पर एक नई समस्या ढूंढ़ लेते हैं। हमें उन सभी रास्तों को छोड़ना होगा जहां शक्तियां बिखरती हैं, प्रयत्न दुर्बल होते हैं। हमें समस्या के मूल को पकड़ना होगा।


आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा है-मूल को पकड़ो, उसे नष्ट करो। सब समस्याएं सुलझ जाएंगी। जब समस्या की पकड़ ठीक होगी तो समाधान भी ठीक होगा। टालस्टाय के पास एक भिखारी आया। उसने भीख मांगी। टालस्टाय बोले-भीख मांगना उचित नहीं है। श्रम करो और रोटी कमाकर खाओ। भिखारी बोला-श्रम करने का साधन ही नहीं है मेरे पास। क्या करूं? टालस्टाय ने उसे उपकरण दिए। वह भीख मांगना छोड़कर श्रम करने लगा। यह है समस्या का मूल समाधान। टालस्टाय ने उस भिखारी को सहारा भी दिया और भीख मांगना भी छुड़ा दिया। यह है समस्या के प्रति सही दृष्टिकोण। इस प्रक्रिया से आध्यात्मिक समाधान के साथ-साथ, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का भी सही समाधान प्राप्त हो सकता है।


जब व्यक्ति अपने आपको नहीं देख पाता, तब समस्याएं पैदा होती चली जाती हैं। इनका कहीं अंत नहीं होता। गरीबी की समस्या हो या मकान और कपड़े की या अन्याय समस्याएं हों, वे सारी की सारी गौण समस्याएं हैं, मूल समस्या नहीं हैं। ये पत्तों की समस्याएं हैं, जड़ की नहीं हैं। पत्तों का क्या? पतझड़ आता है, सारे पत्ते झड़ जाते हैं। वसंत आता है और सारे पत्ते फिर आ जाते हैं, वृक्ष हरा-भरा हो जाता है। मूल समस्या यह है कि व्यक्ति अपने आपको नहीं देख पा रहा है।

स्वयं की खोज।

 स्वयं की खोज


संसार के समस्त प्राणियों में मनुष्य प्रकृति की सबसे अद्वितीय रचना है । कतिपय कारणों से मनुष्य अपनी इस विशिष्टता को जानने एवं समझने का प्रयास ही नहीं करता। वह अज्ञानता के अंधकार में विचरण करता रहता है। यही अज्ञानता ही मनुष्य के दुखों का कारण बनती है। मनुष्य में जब श्रेष्ठताबोध का भाव घर करता है तो वह अंधकार के पथ पर आरूढ़ होता है। श्रेष्ठताबोध में अहंकार निहित होता है और अहंकार मनुष्य का विनाशक है। सर्वश्रेष्ठ केवल जगतपालक अर्थात ईश्वर है। जीवात्मा एक प्रकार से परमात्मा द्वारा निर्मित है, जो परमात्मा द्वारा निर्मित हो वह भला सर्वश्रेष्ठ कैसे हो सकता है? ऐसे में मनुष्य को विनम्र रहकर स्वयं को साधने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


इस उद्देश्य के लिए मनुष्य बाह्य कारकों से विमुक्त होकर आत्मविश्लेषण करे। बुझे हुए प्रकाश पुंज को उसे स्वयं प्रज्वलित करना चाहिए। मनुष्य को भ्रम, क्रोध, कल्पभावनाओं, मिथ्या, वासना, मोहग्रस्त वस्तु से दूर रहकर एकमार्गी होना चाहिए । हमारा ध्यान दुनिया पर है, परंतु स्वयं के अंदर छिपी विराटता में नहीं। स्वयं को जानने के साधन संयम, सत्य वचन, निश्छल प्रवृत्ति, जगत कल्याण की भावना, आत्मविश्लेषण, प्रियवचन, दयालु प्रवृत्ति है। इन तत्वों से जो व्यक्ति परिपूर्ण होता है, उसका सदैव उस परमशक्ति से जुड़ाव बना रहता है, जिसे हम ईश्वर कहते हैं।


स्मरण रहे कि जगत कल्याण की भावना भी तो ईश्वर का ही एक अंश है। जो मनुष्य स्वयं को नहीं पहचानता, वह अपने जीवन में कभी ईश्वर को नही जान सकता। स्वयं को जान लेना ही ईश्वर को जान लेना है। ईश्वर की खोज को बाहर करना भी मूर्खता ही है, जबकि वह हमारे अंतर्मन में सदैव विराजमान रहता है। आवश्यकता केवल अपने भीतर झांकने और उसे खोजने की है। जो मनुष्य ऐसा कर पाता है, वह स्वयं को स्वयं में खोजकर ईश्वर से साक्षात्कार करने में सक्षम हो जाता है।

मन।

 मन


मनुष्य का मन बहुत बड़ा जादूगर है। वह एक महान चित्रकार भी है। मन ही ब्रह्म शक्ति का तत्व है। वही संकल्प का साधन है, क्योंकि मन के बिना संकल्प नहीं होता और संकल्प के बिना सृष्टि नहीं, होती। इस सबके बावजूद मन को समझना सहज नहीं है, क्योंकि मन क्षण-क्षण बदलता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण, 'चञ्चलं हि मनः कृष्ण... कहकर मन को अतिशय चंचल बताते हैं। वह कहते हैं कि मन मनुष्य को मथ डालता है। यह बहुत ही बलवान है। जैसे वायु को दबाना कठिन है, वैसे ही मन को वश में करना भी कठिन है।


मन का यह स्वभाव विशेष ही कहा जा सकता है कि यह अंतस की वस्तुओं की उपेक्षा कर बार- बार बाहर ताकता रहता है। जैसे चरती हुई बकरियां पर्याप्त घास रहते हुए भी एक खेत से दूसरे खेत में जाती रहती हैं वैसे ही यह मन भी अपने यथार्थ स्वरूप की अवहेलना कर व्यर्थ में इधर-उधर, दौड़ लगाता फिरता है। इसकी गति बहुत ही तीव्र और वेगवान होती है। मन चाहे तो एक क्षण में अनंत योजन की दौड़ लगाकर आ जाए। चाहे तो किसी प्रिय वस्तु को प्राप्त कर दीर्घकाल तक शांत और तूष्णी यानी मौन स्थिति में बैठा रहे वहीं कई अवसरों पर मालूम होता है कि एक ही अवस्था में यह अनेक विषयों पर एक साथ विचार कर लेता है। मन की स्थिति विनिश्चयात्मक नहीं होती, बल्कि संशयात्मक होती है। इसके संशयात्मक स्वरूप का कारण साधक का अज्ञान और अविश्वास है।


ऐसे में मन को वश में करने के लिए जरूरी है कि साधक अपनी आवश्यकताओं को निरंतर कम करता जाए। साथ ही अपनी कल्पनाओं की उड़ान को भी न्यून से न्यूनतर करता जाए। ऐसा करने के लिए निरंतर अभ्यास और वैराग्य की आवश्यकता होती है। अभ्यास और वैराग्य से विषयासक्त और बंधनग्रस्त मन निर्विषयक मुक्त मन बन जाता है। इसीलिए उपनिषद् कहते हैं कि मन को पूर्ण वश में करने में विषय विहीन मन ही समर्थ होता है।

गुरुवार, 30 मार्च 2023

भारत के रेल मंत्री की सूची 1947 से लेकर अब तक

 


भारत के रेल मंत्री की सूची 1947 से लेकर अब तक 

नाम

कार्यकाल

जॉन मथाई

15 अगस्त 1947 से 22 सितंबर 1948

एन गोपाल स्वामी अय्यंगर

22 सितंबर 1948 से 13 मई 1952

लाल बहादुर शास्त्री

13 मई 1952 से 7 दिसंबर 1956

जगजीवन राम

7 दिसंबर 1956 से 10 अप्रैल 1962

स्वर्ण सिंह

10 अप्रैल 1962 से 21 सितंबर 1963

एचसी दसप्पा

21 सितंबर 1963 से 8 जून 1964

एसके पाटिल

9 जून 1964 से 12 मार्च 1967

सी एम पूनचा

13 मार्च 1967 से 14 फरवरी 1969

राम सुभाग सिंह

14 फरवरी 1969 से 4 नवंबर 1969

पी गोविंद मेनन

4 नवंबर 1969 से 18 फरवरी 1970

गुलजारी लाल नंदा

18 फरवरी 1970 से 17 मार्च 1971

के हनुमान थईया

18 मार्च 1971 से 22 जुलाई 1972

टी ए पाई

23 जुलाई 1972 से 4 फरवरी 1973

ललित नारायण मिश्र

5 फरवरी 1973 से 2 जनवरी 1975

कमलापति त्रिपाठी

11 फरवरी 1975 से 23 मार्च 1977

मधु डंडावते

28 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979

टी ए पाई

30 जुलाई 1979 से 13 जनवरी 1980

कमलापति त्रिपाठी

14 जनवरी 1980 से 12 नवंबर 1980

केदार पांडे

12 नवंबर 1980 से 14 जनवरी 1982

प्रकाश चंद्र सेठी

15 जनवरी 1982 से 2 सितंबर 1982

ए बी ए गनी खान चौधरी

2 सितंबर 1982 से 31 दिसंबर 1984

बंसीलाल

31 दिसंबर 1984 से 4 जून 1986


मोहसिना किदवई

24 जून 1986 से 21 अक्टूबर 1986

माधवराव सिंधिया

22 अक्टूबर 1986 से 1 दिसंबर 1989

जॉर्ज फर्नांडीज

5 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990

जनेश्वर मिश्र

21 नवंबर 1990 से 21 जून 1991

सीके जफर शरीफ

21 जून 1999 से 16 अक्टूबर 1995

रामविलास पासवान

1 जून 1996 से 19 मार्च 1998

नीतीश कुमार

19 मार्च 1998 से 5 अगस्त 1999

राम नाईक

6 अगस्त 1999 से 12 अक्टूबर 1999

ममता बनर्जी

13 अक्टूबर 1999 से 15 मार्च 2001           

नीतीश कुमार

20 मार्च 2001 से 22 मई 2004

लालू प्रसाद यादव 

23 मई 2004 से 25 मई 2009

ममता बनर्जी

26 मई 2009 से 19 मई 2011

दिनेश त्रिवेदी

12 जुलाई 2011 से 14 मार्च 2012

मुकुल रॉय

20 मार्च 2012 से 21 सितंबर 2012

सीपी जोशी

22 सितंबर 2012 से 28 अक्टूबर 2012

पवन कुमार बंसल

28 अक्टूबर 2012 से 10 मई 2013

सीपी जोशी

11 मई 2013 से 16 जून 2013

मल्लिका अर्जुन खड़गे

17 जून 2013 से 25 मई 2014

डीवी सदानंदा गौड़ा

26 मई 2014 से 9 नवंबर 2014

सुरेश प्रभु

10 नवंबर 2014 से 3 सितंबर 2017

पीयूष गोयल

3 सितंबर 2017 से 7 जुलाई 2021

अश्विनी वैष्णव

7 जुलाई 2021 से कार्यरत