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शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

सरदार वल्लभ भाई पटेल

 सरदार वल्लभभाई पटेल

वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (31 अक्टूबर 1874 – 15 दिसंबर 1950), जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे, एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्गदर्शन किया। भारत और अन्य जगहों पर, उन्हें अक्सर हिंदी, उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था, जिसका अर्थ है "प्रमुख"। उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।

       लौहपुरुष' सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले गृहमंत्री थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लौह प्रतिमा का निर्माण किया गया है।

 जीवन परिचय

पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पटेल(पाटीदार) जाति में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया।


खेडा संघर्ष

स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।


बारडोली सत्याग्रह

बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया । उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया।


इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

 आजादी के बाद

यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।


गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद स्टेट के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन १९५० में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।


देसी राज्यों (रियासतों) का एकीकरण

मुख्य लेख: भारत का राजनीतिक एकीकरण

स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देसी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था।पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी। वहाँ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत विलय चाहती थी। नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ भी भारत में मिल गया। फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा। हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा। वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। पटेल चिंतित हो उठे। अन्ततः भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गयी। तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या है। कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या दिनोदिन बढ़ती गयी। 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री मोदीजी और गृहमंत्री अमित शाह जी के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का भारत को अखण्ड बनाने का स्वप्न साकार हुआ। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आये। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन रहेगा और भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे। पटेल जी को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है। [4]


गांधी, नेहरू और पटेल


गांधीजी, पटेल और मौलाना आजाद (1940)

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" पं॰ नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। पं॰ नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।


देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि "क्या मर्जी है?" राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था।


जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"


यद्यपि विदेश विभाग पं॰ नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पं॰ नेहरू सहमत न थे। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा "क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।" नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती।


गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता।


सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे।


लेखन कार्य एवं प्रकाशित पुस्तकें

निरन्तर संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले सरदार पटेल को स्वतंत्र रूप से पुस्तक-रचना का अवकाश नहीं मिला, परंतु उनके लिखे पत्रों, टिप्पणियों एवं उनके द्वारा दिये गये व्याख्यानों के रूप में बृहद् साहित्य उपलब्ध है, जिनका संकलन विविध रूपाकारों में प्रकाशित होते रहा है। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो सरदार पटेल के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दस्तावेज का महत्व रखते हैं। 1945 से 1950 ई० की समयावधि के इन पत्रों का सर्वप्रथम दुर्गा दास के संपादन में (अंग्रेजी में) नवजीवन प्रकाशन मंदिर से 10 खंडों में प्रकाशन हुआ था। इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में भी प्रकाशन हुआ, जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इन संकलनों में केवल सरदार पटेल के पत्र न होकर उन-उन संदर्भों में उन्हें लिखे गये अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी संकलित हैं। विभिन्न विषयों पर केंद्रित उनके विविध रूपेण लिखित साहित्य को संकलित कर अनेक पुस्तकें भी तैयार की गयी हैं। उनके समग्र उपलब्ध साहित्य का विवरण इस प्रकार है:-


हिन्दी में

सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र-व्यवहार (1945-1950) - दो खंडों में, संपादक- वी० शंकर, प्रथम संस्करण-1976, [नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद]

सरदारश्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (1918-1950) - दो खंडों में, संपादक- गणेश मा० नांदुरकर, प्रथम संस्करण-1981 [वितरक- नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद]

भारत विभाजन (प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली)

गांधी, नेहरू, सुभाष (" ")

आर्थिक एवं विदेश नीति (" ")

मुसलमान और शरणार्थी (" ")

कश्मीर और हैदराबाद (" ")

In English

Sardar Patel's correspondence, 1945-50. (In 10 Volumes), Edited by Durga Das [Navajivan Pub. House, Ahmedabad.]

The Collected Works of Sardar Vallabhbhai Patel (In 15 Volumes), Ed. By Dr. P.N. Chopra & Prabha Chopra [Konark Publishers PVT LTD, Delhi]

 पटेल का सम्मान


सरदार पटेल राष्ट्रीय स्मारक का मुख्य कक्ष

अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र रखा गया है।

गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय

सन १९९१ में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

इसकी ऊँचाई 240 मीटर है, जिसमें 58 मीटर का आधार है। मूर्ति की ऊँचाई 182 मीटर है, जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी ऊँची है। 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया। यहाँ लौह से निर्मित सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया, अतः इस स्मारक का नाम 'एकता की मूर्ति' (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है।प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप 'साधू बेट' पर स्थापित किया गया है जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है।


2018 में तैयार इस प्रतिमा को प्रधानमंत्री मोदी जी ने 31 अक्टूबर 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया। यह प्रतिमा 5 वर्षों में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है। 

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है, जो भारतीय राज्य गुजरात में स्थित है।गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर इस विशालकाय मूर्ति के निर्माण का शिलान्यास किया था। यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान पर है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है। यह स्थान भारतीय राज्य गुजरात के भरुच के निकट नर्मदा जिले में स्थित है।

(संकलन)


रविवार, 25 अक्तूबर 2020

प्यारी हिन्दी



"प्यारी हिन्दी"

जन-जन के राह पे

चल पड़ी  है प्यारी 'हिंदी',  

करके सोलह श्रृंगार ,

'गद्य','पद्य' और 'व्याकरण', 

लेकर अपने साथ l

माथे पर 'अनुस्वार' की बिंदी, 

आँखों में सुंदर -सी काजल l

'पूर्ण विराम' सिंदूर लगाकर, 

चल पड़ी है हिन्दी l

कानो में हैं 'विसर्ग 'के छल्ले, 

होठो पर 'कोष्ठक' की लाली l

मुस्कान में देखो झलक रही है, 

'वर्ण'-दन्तो की छटा निराली ll

'छायावादी' यौवन उसका, 

देखो कैसी इठला रही है l

'श्रृंगार-रस' में लिपटा आँचल 

'छंद'-छंद मन में मुस्कुरा रही है ll

हाथों में खनकती 'चौपाई', 

मिश्री कानो में घोल रही है l

'दोहे' छनकाती पाँवो में, 

पल-पल चल पड़ी है हिंदी l

'अलंकारों' से सजी-धजी है 

हे मादक 'हिंदी' सुकुमारी !

'भारत' जैसे प्रियतम से है 

आस लगाये आतुर  हिन्दी  l

                 भानु प्रकाश नारायण

            मुख्य यातायात निरीक्षक

समय पालन में नियंत्रक की भूमिका

 समय पालन सुनिश्चित करने में नियंत्रक की भूमिका

1. रेकलिंक से भलीभांति परिचित होना।

2. आपातकाल में ओवरलैप रेक चलवाना।

3. यदि ओवरलैप रेक नहीं है तो प्रथम आया प्रथम गया पद्धति को अपनाना।

4. गाड़ी सेवा को बनाए रखने के लिए स्क्रैच रेक का प्रयोग।

5.यदि संभव नहीं है तो आने वाला रेक जाने वाले रेक के रूप में कार्य करेगा।

6. गाड़ी परीक्षण  स्टाफ को समय से बताना, जिससे बिलंब को कम किया जा सकता है।

7. गाड़ी के सामान्य भार के बारे में जानकारी रखना।

8.सेक्सन कोचों के जोड़ने व घटाने में मदद करने के लिए विशेष कोचों के संचलन का ज्ञान

9. सेक्सनल कोचों के संचालन की पूरी जानकारी ।

10.यदि सेक्शनल कोच देरी से चल रहे हैं तो अतिरिक्त कोचों को सेक्शनल कोचों के रूप में प्रयोग करना।

11. सिकमार्क कोचेज के बदले में प्रयोग करना ।

12. यदि डाक डिब्बे सिक होते हैं तो अतिरिक्त कोचों की व्यवस्था करना।

13. प्रस्थान समय से कम से कम एक घंटा पहले प्लेटफार्म पर रेक  लगवाना।

14. यात्री गाड़ियों को लेने के संदर्भ में स्टेशनों का मार्गदर्शन।

15. यदि  यात्री गाड़ी 30 मिनट से ज्यादा विलंब से चल रही है स्टेशनों पर अग्रिम रूप से सूचना देना।

16. लोको पायलट को अधिकतम स्वीकृत गति से चलने की सलाह देकर गाड़ी को मेकअप करवाना।

17. क्रॉसिंग के समय अधिकतम लाभ लेना।

18. विभिन्न प्रकार के लोको को उनके नंबर के साथ उनकी कार्यक्षमता को जानना।

19. स्टैबलिंग, लगान ,उतरान के विलंब को कम करने के लिए स्टेशनों को अग्रिम से सूचना।

20. क्रू दल के कार्य के घंटों को जानना।

21. इंजनों में इंधन की मात्रा को जानना।

22.मेन लाइन को बंद नहीं करना चाहिए।

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

अंधकार से संघर्ष

 अंधकार से संघर्ष


सृष्टि में अंधकार और प्रकाश दोनों है। विषमता, कठिन परिस्थितियां अँधेरी रात के समान है तो कर्मठता, सदाचार, विवेकयुक्त ज्ञान, स्नेह, प्रेम, सद्भाव आदि ऐसे दीए हैं कि इनमें से कोई एक भी दीया जलाते ही आसपास रोशनी हो जाती है। यह दो सकते हैं की रात-दिन सृष्टि का एक ऐसा चक्र है जो निरंतर चलता रहता है। रात के सब नुक़सान ही हैं,ऐसा नहीं। उसी प्रकार जीवन में कठिनाइयों का अंधेरा यदि आ ही जाए तो उसका संयत प्रभाव से सामना करने से साहस का भाव पैदा होता है। कठिन परिस्थितियों में बिना विचलित हुए उसमें से निकलने की योजना बनानी चाहिए। प्रायः महापुरुषों ने ऐसा ही काम किया है। जो व्यक्ति नकारात्मकता से सकारात्मकता खोजना चाहेगा तो उसमें से ही आगे बढ़ने के रास्ते निकल आएंगे। 


त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के भक्त हनुमानजी छल-छद्म रूपी अंधकारग्रस्त लंका में माता सीता की खोज के लिए कूद पड़ते हैं। लंका में चारों तरफ़ विपरीत हालात थे, लेकिन वे विचलित नहीं हुए। इसी दृढ़ता के बीच उन्हें सकारात्मकता मिल गई। विभीषण से मुलाक़ात हो गई। उस काल के सर्वाधिक नकारात्मक महल लंका के ध्वस्तीकरण का यह कार्य निर्णयात्मक क़दम साबित हुआ। हमारे ऋषियों ने नवरात्र, दीपावली की रात्रि को जागरण के लिए इसी लिए निर्धारित किया कि हमें जीवन में कठिनाइयों, विषमताओं के अंधेरे में सोना नहीं चाहिए, बल्कि इस समय अवसरों को जागृत करने के उपाय ढूंढने चाहिए। यह सद्गुणों से ही संभव है।

भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का जो प्रकाश युगों बाद भी हमें मिल रहा है, वह उनके अंधेरे से लड़ने के कारण ही मिल रहा है। जब भी किसी व्यक्ति के मन में लोकहित के भाव जागृत होते हैं, तब वह समाज के प्रकाशस्वरूप हो जाता है। फिर वह सिर्फ़ अपने जीवन को ही नहीं, कई पीढ़ियों को आलोकित करता है। हमारे ऋषियों ने इसीलिए 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का महामंत्र दिया है।  


बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

सुख का मार्ग

    सुख का मार्ग

    विधाता कि सृष्टि द्वंद्वात्मक है। यहाँ सूखा है तो दुख भी, लाभ है तो हानि भी, यश है तो अपयश भी और जीवन है दो मरण भी। इस संसार में सुख-दुख धूप-छाँव की तरह हैं ,जो सदैव स्थान बदलते रहते हैं। संसार में कोई ऐसा नहीं जो इनसे बच सका हो। इसलिए इस दुनिया में सुखी वही है जो इन दोनों को सहेज रूप में लेता है और विधाता का दिया हुआ उपहार मानकर स्वीकार करता है। गीता में तो इस चराचर जगत को दुखालय ही कहा गया है। इसलिए इसे मानव-धर्म मानकर जीवन जीने का अभ्यास कर लेना चाहिए। इसके अलावा सुखी रहने का अन्य कोई मार्ग भी नहीं है। अगर दुख न हो तो मानव सुख का वास्तविक आनंद प्राप्त नहीं हो सकेगा। सचमुच सुख का अस्तित्व दुख पर टिका हुआ है। दुख की एक तरह से मनुष्य का उपकारक है।

    यह मानव-जीवन रणभूमि है जहाँ मनुष्य को सुख और दुख दोनों से लड़ना पड़ता है। इस द्वंद्वात्मक युद्ध में हम कई बार हारने लगते हैं। हताश और निराश होकर जीवन के रण में अर्जुन की तरह हथियार डाल देते हैं, जो कर्मवीर दृढ़संकल्पी मनुष्य को शोभा नहीं देता। यह ज़रूरी नहीं कि हर बार भगवान श्रीकृष्ण साक्षात उपस्थित हों। उनका ज्ञान, कर्म और भक्ति का संदेश दुखों से लड़ने में आज भी हमारा सबसे बड़ा संबल है।

    मानव जीवन एक परीक्षा स्थल भी है। जहाँ दुख और कष्ट कदम-कदम पर हमारी परीक्षाएं लेते रहते है। बस ऐसे समय धैर्य और साहस ही कवच बनकर मनुष्य की रक्षा कर सकते हैं। जीवन में हमें या स्मरण रखना चाहिए कि सुबह का मार्ग मार्ग हमेशा दुख से होकर गुज़रता है। जिसने दुख भी हँसकर जीना सीख लिया, वही सच्चे सुख का आनंद ले सकता है। ज़ाडा-गर्मी की तरह      सुख- दुख में भी सम रहने वाला व्यक्ति ही जीवन के सच्चे मर्म को समझता है। जीवन में यही समरसता ज़िंदगी को सच्ची परिभाषा है। यही गीता का संदेश है और यही मनुष्य का धर्म है।


प्रेरणा

 प्रेरणा


मानवीय जीवन अनेकानेक समस्याओं एवं चुनौतियों से भरा हुआ है। कार्य क्षेत्र कोई भी हो, हर जगह बाधा एवं चुनौतियां विद्यमान हैं। इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि जितना बड़ा लक्ष्य होगा, उसकी राह में उतनी ही विकट चुनौतियां भी होंगी। जैसे किसी छोटी पर्वतमाला पर पहुंचना है तो उतनी चुनौतियों का सामना नहीं करना होगा, जितनी चुनौतियों का पर्वतारोहियों को संसार की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट तक पहुंचने में सामना करना पड़ता है । विश्व में तमाम बड़े आविष्कार शुरुआती असफलताओं की चुनौतियों से निपटने के बाद ही सफलता के लक्ष्य तक पहुंच सके हैं।


इसमें कोई संदेह नहीं कि हम सभी जीवन में सफलता और उच्च स्थान चाहते हैं, परंतु सभी उसे प्राप्त नहीं कर पाते। वास्तव में जो व्यक्ति सकारात्मक दृष्टिकोण, उत्साही और धैर्यवान होते हैं, वहीं कुछ बड़ा कर पाते हैं। इसमें प्रेरणा अत्यंत अहम भूमिका निभाती है। सफलता की गाथाओं का हमारे इतिहास स्वयं इसका साक्षी है। मानवीय जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, होश में सफलता के लिए यह तत्व आवश्यक हैं। इनमें भी प्रेरणा बहुत आवश्यक है, जिसके अभाव में लक्ष्यों की प्राप्ति मुश्किल है। जिन्होंने किसी से प्रेरणा को अपने जीवन का आधार बनाया, वे निश्चित ही सफलता प्राप्त करते हैं। सत्य तो यही है की प्रेरणा और उत्साह ही जीवन में सफलता की असल पूंजी है। उत्साह और प्रेरणा से ही बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं। 


सत्य तो यह भी है कि उत्साह से भरा मन एक नई सोच का निर्माण करता है, जिसे हम नवाचार कह सकते हैं। जब हमारा मन-मस्तिष्क हर बाधा से लड़ने को तैयार हो जाता है, तभी राम में आई सभी बाधाओं को दूर करने का मंत्र मिल जाता है। इस प्रकार यदि हम महापुरूषों से प्रेरणा लेकर धैर्य और उत्साह एवं दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़े तो किसी भी चुनौती को पूर्ण कर सकते हैं।


गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

भय का महत्व

 भय का महत्व


    संसार में कोई भी वस्तु या भाव परिस्थिति के अनुरूप ही अच्छा या बुरा होता है ‌। प्रायः भय के भाव को एक नकारात्मक तत्वों के रूप में ही स्वीकार किया जाता है, परंतु यह तथ्य पूर्णरूपेण सत्य नहीं है। भय का नकारात्मक या सकारात्मक होना व्यक्ति विशेष या परिस्थिति के सापेक्ष होता है। जड़, मूढ़ और खल व्यक्ति के मन में भय सामाजिक नियंत्रण और व्यवहार नियंत्रण के लिए आवश्यक है। इसीलिए भगवान श्री राम द्वारा तीन दिनों तक समुद्र की प्रार्थना के बाद भी जब उसने अपनी जड़ता नहीं छोड़ी तो भगवान श्रीराम को बाण का संधान करना पड़ा और उन्होंने कहा कि बिना भय के प्रीति नहीं उपजती। यदि इसी तथ्य को दृष्टिगत रखा जाए तो अपराधी, दुष्ट या रूढ़िग्रस्त व्यक्ति को सही मार्ग पर लाने में भय का बहुत महत्व है। 


    वास्तव में भय वह भाव है जो हमारे अंतःकरण को नियंत्रित करता है। मनुष्य के नियंत्रण के दो साधन होते हैं, बाहृय और आंतरिक। बाहृय साधन में पुलिस या कानून का भय रहता है, जबकि आंतरिक साधनों में धर्म,लोक आदि का भय। ये दोनों ही साधन भय द्वारा सामाजिक नियमन स्थापित करते हैं। इस दृष्टि से भय की महत्ता स्पष्ट होती है । मन से भय का विशरण होते ही व्यक्ति के व्यवहार के उच्चछृंखल होने की संभावना बढ़ जाती है।


    तात्पर्य यह है कि हृदय से भय के मिट जाने पर सांसारिक लोक व्यवहार और लोक प्रेम के नष्ट हो जाने की संभावना रहती है। यदि भगवान श्री राम भय न दिखाते तो क्या आततायी रावण का अंत हो पाता और क्या धरती निशाचर विहीन हो पाती? यदि विद्यार्थी के अंदर परीक्षा में असफल होने का भय ना हो तो समाज में अपराधों की संख्या की गणना भी मुश्किल हो जाएगी। भविष्य के भय से संसार के साधारण जन लोक रीति और नीति का पालन करते हैं। अतः समाज में व्यवस्था बनाए रखने में भय भी महत्व रखता है।


बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

योग और स्वाध्याय

                                                             योग और स्वाध्याय

    महर्षि पतंजलि ने लिए पूर्ण योग की आठ  सीढ़ियाँ बनायी हैं इन्हें अष्टांग योग कहा जाता है।  इनके अनुसरण से मनुष्य जीवन को सार्थक बना लेता है।  इसकी पहली सीढ़ी है यम और दूसरी है नियम।  यम में साधक को सत्य ,अहिंसा ,ब्रह्मचर्य  ,अस्तेय और अपरिग्रह तथा नियम में शौच संतोष ,तप , स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अपनाना होता है। यम और नियम का उद्देश्य से मनुष्य की मानसिक स्थिति को अवगुणों से मुक्त कर उसे ईश्वर साधना के लिए तैयार करना है।  इस पूरे उपक्रम में स्वाध्याय का विशेष स्थान है। स्वाध्याय का तात्पर्य वास्तव में धर्मग्रंथों में वर्णित आध्यात्मिक ज्ञान के संदर्भ में स्वयं का अध्ययन करने से हैं। ऐसे ही प्रमुख ग्रंथों में से एक गीता में इसका मर्म समाया हुआ है। गीता के अनुसार प्रत्येक जीव में ईश्वरीय अंश विद्यमान् है। इसलिए मनुष्य को बाहरी संसार में ईश्वर को खोजने के बजाय अपने भीतर ही वह खोज करनी चाहिए। इसी प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान का अलग अलग धर्म ग्रंथों में भी प्राप्त होता है। 

     स्वाध्याय में मनुष्य उपरोक्त ज्ञान के प्रकाश में स्वयं का अध्ययन करता है कि क्या वह उचित ज्ञान के अनुसार जीवन निर्वाह कर रहा है ?यदि वह अपने व्यवहार में कुछ भिन्नता पाता है तो उसे स्वाध्याय के द्वारा सुधारने का प्रयास करता है। इस प्रकार स्वाध्याय के द्वारा मनुष्य स्वयं मानवी दुर्गुणों से मुक्त होकर ईश्वर से जुड़ने के लिए तैयार होता है। इसके बाद ही वह योग द्वारा इस प्रक्रिया को पूरा करता है। स्वाध्याय का महत्व समझते हुए या परम आवश्यक है कि सादगी आध्यात्मिक ज्ञान में श्रद्धा हो ,क्योंकि श्रद्धा के द्वारा ही वह किसी तथ्य को स्वीकार करता है। और जब वह उसे समझ कर ग्रहण कर लेता है तब वह ज्ञान कहलाता है। इस प्रकार स्वाध्याय योग के लिए बहुत ही ज़रूरी है।  इसलिए प्रत्येक मनुष्य की योग में स्थित होने के लिए स्वाध्याय को अपने जीवन में ज़रूर अपनाना चाहिए। स्वाध्याय के द्वारा वह हर समय योगी है।  


अमूल्य जीवन।

                                                                 अमूल्य जीवन

    कलयुग में मनुष्य बहुत जल्दी हताश और निराश हो जाता ह।  इस भौतिकतावादी युग में मानव हर वस्तु जल्द से जल्द प्राप्त कर लेना चाहता है।  इस चाहत के चलते उसे जब अभीष्ट की प्राप्ति नहीं हो पाती तो वह निराश हो जाता है। जब वह यह देखता है कि उसके सामने अन्य सफल हो गए और होते भी जा रहे हैं, पर ऐसी सफलता उसे नहीं मिल रही तो फिर वह इतना व्यथित हो जाता है कि अपने अमूल्य जीवन तक को ही नष्ट करने की ठान लेता है। 


      ऐसे लोगों को थोड़ा रुककर विचार करने की आवश्यकता है। उन्हें ऐसा विचार करना चाहिए कि यह संसार परिवर्तनशील है। यहां परिस्थितियां बनती और बिगड़ती रहती हैं।  समय एक समान नहीं रहता। कभी जीवन में अनुकूलता आती है तो कभी प्रतिकूलता।  यही संसार का नियम है। यह प्राप्त मानव जीवन प्रकृति  की अमूल्य देन है इसे हमने अपने पूर्व में किए गए कर्मों के प्रसाद के रूप में प्राप्त किया है।  यह मानव जीवन व्यर्थ में गवाने  के लिए नहीं है।  देवता भी मनुष्य शरीर प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं।  ऐसे दुर्लभ एवं उपयोगी मानव जीवन को हम इंद्रिय सुख की लालसा में नष्ट करते चले जाते हैं।  इस प्राप्त मानव शरीर का सदुपयोग परमात्मा की भक्ति करने में है। परमात्मा ही हमें सुख-शांति एवं भवसागर पार करने का मौका प्रदान कर सकते हैं। पूर्ण तत्वदर्शी संत परम सुखदाई परमात्मा से मिला करते हैं। तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर उन्हें अपना गुरु बनाकर, उनके बताए गए मार्ग पर चलने के बाद ही हमें सच्ची भक्ति प्राप्त हो सकती है।  

 हमें आज ही प्राप्त इस अमूल्य मानव जीवन को नष्ट न करने के लिए प्रण करना चाहिए।  देश और समाज के परिदृश्य को देखें तो आज मानव जीवन पर वैसे ही अदृश्य संकट छाया हुआ है। इसीलिए मानव को अनंत ब्रह्मांड के रचयिता की शरण ग्रहण कर अपने आत्मबल को बनाए रखते हुए, स्वयं के जीवन को सुरक्षित रखना चाहिए।  


शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

राजभाषा समीक्षा बैठक- 29.09.2020

दिनांक 29.09.2020 को प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक श्री अनिल कुमार सिंह की अध्यक्षता में परिचालन विभाग की वर्चुअल राजभाषा समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। इस दौरान परिचालन विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लाभार्थ माइक्रोसॉफ्ट टीम्स में अकाउंट बनाने, अपनी टीम बनाने और बैठक निर्धारित करने के संबंध में एक तकनीकी कार्यशाला के तहत लाइव डेमो दिया गया। इस अवसर पर मुख्य मालभाड़ा परिवहन प्रबंधक श्री बिजय कुमार, मुख्य यात्री परिवहन प्रबंधक श्री आलोक कुमार सिंह सहित परिचालन विभाग के सभी अधिकारी एवं पर्यवेक्षकीय कर्मचारी उपस्थित रहे। बैठक में स्वागत संबोधन एवं धन्यवाद ज्ञापन परिचालन विभाग के राजभाषा संपर्क अधिकारी श्री सुमित कुमार ने दिया।

बैठक की रिकार्डिंग देखने के लिए कृपया चित्र पर क्लिक करें। 




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