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शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

खेल सम्मान पुरस्कार

 खेल सम्मान 2022





योगा प्रशिक्षण कार्यक्रम

 योगा प्रशिक्षण शिविर

    शांति कुंज, हरिद्वार, उत्तराखंड में स्काउट एण्ड गाइड राष्ट्रीय मुख्यालय,नई दिल्ली के तत्वधान में  नेशनल लेवल योगा प्रशिक्षण कार्यक्रम  का आयोजन दिनांक 17 .09.22 से 21.09.22 तक किया गया । इस नेशनल लेवल योगा कोर्स के लीडर ऑफ कोर्स, भारत स्काउट गाइड के श्री महेंद्र शर्मा, रीजनल ऑर्गनाइजिंग कमिश्नर, नॉर्थन रेलवे  थे ।

     ्उ्क्त नेशनल लेवल योगा प्रशिक्षण कार्यक्रम  में पूरे भारत वर्ष के 18 राज्यों के कुल 93 यूनिट लीडरों ने प्रतिभाग किया। जिसमें पूर्वोत्तर रेलवे की ओर से वाराणसी जिला संघ के स्काउट मास्टर अजित कुमार श्रीवास्तव और गाईड कैप्टन शिवांगी यादव ने सफलता पूर्वक प्रतिभाग कर प्रशस्ति पत्र प्राप्त किया । इस योग शिविर में योग में की विभिन्न विधाओं को विशेष रूप से बताया गया ताकि प्रतिभागी अपने अपने राज्यों के स्काउट गाइड के सदस्यों को प्रशिक्षित  कर सकें। देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के योगाचार्यों  ने विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में जलनेति, रबर नेति, वमन आदि क्रियाओं का अभ्यास कराया। इस अवसर पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति एवं रजिस्ट्रार  आदि कुशल प्रशिक्षकों ने समय समय पर अपना मार्गदर्शन दिया। हरिद्वार जिला के मुख्य शिक्षा अधिकारी ने भी प्रशिक्षण कार्यक्रम में सहयोग प्रदान किया ।





बुधवार, 14 सितंबर 2022

हिंदी

 हमारी हिन्दी

        डा. भानु प्रकाश नारायण 



हिन्दी दिवस पर करें हम हिन्दी का अभिनंदन

आओ सब मिलकर करें राजभाषा का वंदन,

आओ सब हिन्दी का सम्मान बढ़ावे, 

अपनी भाषा को ऊँचाईयों तक पहुँचावें।

हम सब करें हिन्दी में ही सब काज,

 तभी मिल पायेगा हिन्दी को सम्मान,

 अपनी भाषा के प्रति आस्था दर्शावें,

पल-पल नित्य हिंदी का मान बढ़ावे,

हिन्दी तो है जन-जन की बाणी, 

लगती है हमें कितनी सयानी,

हम सब हिन्दी में ही बोलें, 

सबके मन की कुण्ठा खोलें, 

हिंदी हमारी राजभाषा कहलाती, 

सब भाषाओँ का सम्मान बढ़ाती,

हम राष्ट्रगान हिन्दी में गाते, 

अपने तिरंगे की शान बढ़ाते।

यह विकास की ओर ले जाती 

हिन्दी सबका है ज्ञान बढ़ाती।

हम भारतीयों की शक्ति है हिंदी

एक सहज अभिव्यक्ति है हिंदी।

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सोमवार, 12 सितंबर 2022

हृदयतत्व की प्रधानता

हृदयतत्व की प्रधानता

इस जगत में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जिसे प्रकृति से श्रेष्ठता का दर्जा प्राप्त है। इसका कारण उसमें अन्य जीवों की अपेक्षा बुद्धितत्व और हृदयतत्व की प्रधानता है। जीवन में किसको प्रमुखता देनी है, यह मनुष्य पर निर्भर है। बुद्धितत्व तर्क प्रधान है। अतः इसमें स्वार्थ, लोभ, मोह आदि बुराइयों - के साथ चातुर्य का भाव प्रबल रहता है। जब ये बुराइयां मानव मस्तिष्क में आ जाती हैं। तब विवेक नष्ट होने से वह समाज के साथ अपना भी अहित कर बैठता है। निरा बुद्धिपरक जीवन न अपने लिए श्रेष्ठ कहा जा सकता है, न औरों के लिए। आजकल पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में बिखराव का मूल कारण बुद्धितत्व की प्रधानता है। 


दूसरी ओर हृदयतत्व भाव प्रधान है। इसमें प्रेम, त्याग, दया, करुणा, ममता, परोपकार आदि भावनाएं प्रबल होती हैं। इसीलिए हृदय तत्व हमेशा इन्हीं भावनाओं को आगे रखकर जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। जिससे चेतन ही नहीं, जड़ पदार्थों के प्रति भी संवेदनशीलता का भाव जागृत होता है। फिर अंतर्मन में स्वार्थ नहीं, परार्थ की भावना उत्पन्न होती है। जिससे पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते आत्मीयता के बंधन में बंध जाते हैं। परिणामतः अपराध मुक्त समाज का निर्माण होता है और राष्ट्रीय शक्ति बलवती होती है।


आज मनुष्य में बुद्धिपक्ष प्रबल हो गया है। जिससे स्वार्थ और अहंकार के वश में उसने स्वेच्छा से जीने के अनेक मार्ग तलाश लिए हैं। अधिक सुख की चाहत में उसकी उड़ान को इतने पर लग गए कि हृदयपक्ष शून्य हो गया। परिणामतः संवेदनहीन मानव मानवता की राह से भटक गया। उसकी अधिक सुख पाने की कोशिशें कब दुख में परिणत होने लगीं, पता ही नहीं चला। वह भूल गया कि अधिक सुखेषणा ही दुख का कारण बनती है। इसलिए लोकहित में हृदयतत्व को प्रधानता देकर जीने का प्रयास करना चाहिए। स्वभावतः यथासमय बुद्धितत्व का समावेश तो होता ही है।


आदर्श शिक्षक


आदर्श शिक्षक

सम और विषम परिस्थितियों का सामना मनुष्य ही नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम और योगेश्वर श्रीकृष्ण तक को मनुष्य रूप में जन्म लेने पर करना पड़ा था। अयोध्या के महल में सम परिस्थितियां थीं, मगर कैकेयी के चलते चौदह वर्ष का वनवास विषम परिस्थितियों में बदल गया, फिर भी श्रीराम ने मर्यादा का भाव बनाए रखा। बाल्यकाल में विद्याध्ययन के दौरान गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को बहुमुखी ज्ञान, लोकाचार और अंतर्मन में व्याप्त शक्तियों की जानकारियां दी थीं। साथ ही उन्हें आदर्श जीवन के मानदंडों से भी अवगत कराया था। भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान जगह-जगह ज्ञान का ही प्रसार किया। बाली और रावण का वध किया, फिर भी उन्हें सद्ज्ञान ही दिया। श्रीराम का लक्ष्मण, सीता, हनुमान, विभीषण आदि को दिए गए ज्ञान को 'विद्या की पाठशाला' भी मानना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान सम-विषम द्वापरयुग में परिस्थितियों में अर्जुन के मन को सशक्त बनाने का भरपूर ज्ञान दिया, जिसके चलते महासंग्राम के मैदान से अर्जुन का पलायन रुक गया।

 यही स्थिति सभी की होती है। जन्म के बाद बच्चे को विद्याध्ययन के साथ अंतर्जगत की शक्तियों का पता बताने वाला शिक्षक होता है। शिक्षा 'शिक्ष' धातु और 'अ' प्रत्यय से बना है, जिसका अर्थ सीखना और सिखाना होता है। अर्जुन सामान्य परिवार के नहीं थे। विद्याध्ययन की दृष्टि से योग्य भी थे, किंतु विषम परिस्थितियां आने पर विचलितहोने लगे। इसी विचलन को रोकने का काम मनुष्य के जीवन में योग्य शिक्षक करता है। जीवन में भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति और उसके निमित्त होने वाली परीक्षा उत्तीर्ण कराने की दृष्टि से शिक्षा देने वाला शिक्षक है, लेकिन वह अधूरा शिक्षक है। आदर्श शिक्षक का दायित्व है कि पल भर के लिए भी शिष्य सान्निध्य में आए तो खुद के अपने सत् आचरण का प्रत्यारोपण शिष्य में कर दे