असंतुलित जीवन
हमारे देश में आदि काल से मूल्यों के जतन पर जोर दिया जाता रहा है । हमें बचपन से ही मूल्यों की शिक्षा मिलती रही है , यद्यपि आज कई लोग भौतिक लाभ के लिए अपने मूल्यों का सौदा कर रहे हैं, फिर भी कई ऐसे आदर्श रूप में मौजूद हैं जिन्होंने भौतिक विकास के साथ-साथ अपने भीतर दैवी एवं मानवीय मूल्यों को संजो कर रखा हुआ है ।
इन आदर्शों के कारण ही आज हमारा देश सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंच पाया है ,वरना चरम भौतिकवाद ने तो हमारे मूल्यों एवं संस्कृति को कब का खत्म कर दिया होता ।
समस्त विश्व आज अशांति और भ्रम की स्थिति में है क्योंकि सत्ता के नशे में चूर मानव ने परमात्मा के बदले अपने आप को सर्वोच्च सत्ता की उपाधि दे डाली है । फलस्वरुप निजी स्वार्थों के लिए आज हम छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से लड़ रहे हैं ।हमने "मैं मैं" के पीछे भागते भागते "हम" शब्द को बिल्कुल ही भुला दिया है । संयुक्त परिवार भारत की विशेषता रही है , जिसमें परिवार का हर सदस्य सुख-दुख में एकजुट होकर रहता था ।
परंतु आज शहरीकरण के चलते एकल परिवारों का जमाना आ गया है । जहां बड़े बुजुर्गों की गैर मौजूदगी में एक असंतुलित जीवन का निर्माण हो जाता है ।ऐसी स्थिति में जी रहे लोगों को यह भी नहीं सूझता कि हम अपनी खुशी किससे बांटें और गम किसे सुनाए। बचपन में हमें शिक्षा दी जाती है कि जल्दी सोने और जल्दी उठने की आदत मनुष्य को स्वस्थ बुद्धिमान और समृद्ध बनाती है ,मगर आज हम युवाओं की हालात बिलकुल विपरीत है । आज का जुआ रात भर जागता है और सूर्योदय होते ही विश्राम अवस्था में चला जाता है । इस कारण न वह सूर्योदय का लाभ ले पाता है और न शारीरिक व्यायाम कर पाता है । स्वास्थ्य खराब कर लेता है ।इन हालातों के मद्देनजर हम जितना हो सके उतना मूल्यों को सुदृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । क्योंकि इन्हीं मूल्यों पर हमारे कर्म आधारित है। आता जिनके मुल्यों की बुनियाद मजबूत है, उनका जीवन भी सदैव स्थिर और सुखी रहता है।
संकलन कर्ता
भानु प्रकाश नारायण
उप संपादक