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सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

परंपरा।

 परंपरा

परंपराओं का प्रत्येक समाज में महत्व होता है। जीवन के विभिन्न पहलुओं के निर्माण में परंपरा का अंतर्निहित योगदान रहता है। सामान्यतः हम परंपरा और रूढ़ियों को एक ही मानकर रूढ़ियों का विरोध करते हैं और समझते हैं कि हम परंपरा का विरोध कर रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं होता। ऐसा इसलिए, क्योंकि परंपरा तो समय के साथ परिवर्तित होती रहती है। यह हमें रूढ़ियों का विरोध करने के लिए प्रेरित करती है। परंपरा, किसी व्यवस्था विशेष का पीढ़ियों से चला आना होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो परंपरा एक व्यक्ति या पीढ़ी ने नहीं बनाई होती, बल्कि यह तो अनवरत समायोजन और संघर्ष से निर्मित होती है। परंपरा को सामान्यतः अतीत की विरासत के अर्थ में समझा जा सकता है। कुछ विद्वान 'सामाजिक विरासत' को ही परंपरा कहते हैं। परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है और इस बदलाव के साथ अपनी परंपराओं का निर्वाह करने में हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।


परंपरा बदलते कालक्रम, बाहरी संपर्क, नवीन ज्ञान- वैज्ञानिक समृद्धि और जीवन संघर्ष के बदलते रूप से प्रमाणित होती रहती है। परिवर्तन ही परंपरा को नया मोड़ देते हैं। परंपरा लोगों को अपनत्व की अनुभूति कराती है। लोगों को एक ही समूह का हिस्सा बनाती है। जब परंपरा के अनुसार समाज के सदस्य समान रूप में व्यवहार करते हैं तो सामाजिक जीवन एवं व्यवहार में एकरूपता आती है। परंपरा व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करती है। परंपराएं और रीति-रिवाज देश की संस्कृति को उसके विविध रंगों को सामने लाते हैं। भारतीय संस्कृति में परंपराओं और रीति-रिवाजों की विरासत को पीढ़ी-दर-पीढ़ी कुशलता से आगे बढ़ाया जाता रहा है। अपनी संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी परंपराओं की थाती नई पीढ़ी को सौंपें। बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करके ही उन्हें इनके प्रति आस्थावान बनाया जा सकता है।

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