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मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

राजभाषा वंदन - सोम ठाकुर

करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का
अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।


यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली
माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली
यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन
यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।


अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें
हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें
इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान
यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का।


यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई
टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई
जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज

यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।

सोमवार, 23 दिसंबर 2019

राजभाषा की त्रैमासिक समीक्षा बैठक

राजभाषा की त्रैमासिक समीक्षा बैठक

दिनांक 19.12.2019 को परिचालन विभाग के आपदा प्रबन्‍धन कक्ष में राजभाषा की त्रैमासिक समीक्षा बैठक  का आयोजन किया गयाा। बैठक की अध्‍यक्षता प्रमुख् मुख्‍य परिचालन प्रबन्‍धक श्री अनिल कुमार  सिंह ने  की। बैठक में मुख्‍य मालभाडा परिवहन प्रबन्‍धक श्री बिजय कुमार के अतिरिक्‍त राजभाषा सम्‍पर्क अधिकारी/परिचालन एवं उप मुख्‍य परिचालन प्रबन्‍धक/माल श्री सुमित कुमार के अतिरिक्‍त अन्‍य अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे ! स्‍वागत सम्‍बोधन उप मुख्‍य परिचालन प्रबन्‍धक/माल श्री सुमित कुमार नेे किया। अपनेे अघ्‍यक्षीय  सम्‍बोधन में श्री अनिल कुमार  सिंह ने कहा कि राजभाषा का शतप्र‍तिशत अनुपालन किया जाय तथा समस्‍त टकंण कार्य यूनिकोड में ही किये जाये। मुख्‍य मालभाडा परिवहन प्रबंधक महोदय ने निर्देश दिया कि बैठक में मंडल के प्रतिनिधियों की उपस्थिति सुनिश्चित किया जाये एवं उनके द्वारा प्रति माह कम से कम तीन पोस्‍ट पत्रिका में अवश्‍य डाले जायें।
      यातायात निरीक्षक श्री भानु प्रकाश नारायण द्वारा हिन्‍दी समीक्षा बैठक पर अत्‍यंत रूचिकर स्‍वरचित कविता का पाठ किया गया जिसकी सभी ने मुक्‍त कंठ से प्रशंसा की।
      वरिष्‍ठ अनुवादक श्री श्‍याम बाबू शर्मा ने बैठक की कार्यवाही का संचालन किया तथा आभार प्रदर्शन सचिव /प्रमुपरिप्र श्री एस केे कन्‍नौजिया ने किया। 
बैठक के आयोजन में राजभाषाि‍लिपिक श्री योगेन्‍द्र का विशेष योगदान रहा।








बुधवार, 18 दिसंबर 2019

असंभव के विरुद्ध



असंभव के विरुद्ध
 जिंदगी की जद्दोजहद पहले भी थी, और आज भी है, आगे भी रहेगी.  परिस्थितियां सदैव
एक समान नहीं होती. कभी मनुष्य के सम्मुख, तो कभी विरोधी होती है.  संघर्ष ही जिंदगी है,
अतः संघर्ष के लिए व्यक्ति को हर समय मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए. 
अस्तित्व एवं वर्चस्व की लड़ाई में विवेकवान व्यक्ति ही सफलता की मंजिल चूम पाते हैं.
लेकिन अक्सर संघर्ष की स्थिति में व्यक्ति का साहस घटने लगता है,   वह इतना
भयभीत होने लगता है कि संघर्ष की चुनौती को स्वीकार करना ही छोड़ देता है.
ऐसे लोगों के लिए भाग्य के दरवाजे भी सदैव बंद ही रहते हैं. जीवन में कुछ किए
बिना ही जय जयकार संभव नहीं है.  व्यक्ति के कर्म ही उसे इस चराचर जगत में
कीर्ति, यश और वैभव के अलंकारों से अलंकृत कर सकते हैं. संघर्ष से मुंह
मोड़ने वालों से जिंदगी की तमाम खुशियां भी मुंह मोड़ लेती है. दुनिया में जितने भी
धनपति हैं उन्होंने अपनी शुरुआत बहुत ही छोटे से पड़ाव से की, और वे परिणाम की
चिंता किए बगैर निरंतर गतिशील रहे.  समय ने भी ऐसे लोगों का बखूबी साथ दिया .
और देखते ही देखते दुनिया के सरताज बन गए . भौतिक परिस्थितियां मजबूत
इच्छाशक्ति के आगे बोनी है. शरीर बीमारियों का घर है. और मृत्यु की बीमारी
हर व्यक्ति के लिए लाइलाज है. लेकिन मन की शक्ति इन बीमारियों से लड़ने का
अद्भुत सामर्थ्य रखती है. स्टीफन हॉकिंस की चिकित्सीय संभाव्यता की भविष्यवाणी
के बाद भी लंबे समय तक जीवित रहे तो , यह उनकी जिजीविषा और इच्छाशक्ति का
ही परिणाम था. 

 इतिहास और वर्तमान ऐसे कई व्यक्तियों की दास्तानो  से भरा पड़ा है .मृत्यु को भी
अपनी अदम्य साहस शक्ति से विचलित कर के उसे एक नए जीवन में रूपांतरित
करने का करिश्मा किया है. इसीलिए जो व्यक्ति किसी कार्य को असंभव मानकर,
मेहनत और उसके लिए साहस जुटाने का प्रयास ही नहीं करता ,उसके समक्ष यह
मिसाले किसी बड़े साक्ष्य से  कमतर नहीं है. अक्सर यूपीएससी और आईआईटी
जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर एक ऐसा माहौल बना दिया जाता है, कि कई
छात्र उसमें सफल होने की कल्पना करना ही छोड़ देते हैं. उन्हें समझना होगा
कि किसी व्यक्ति ने असंभव कार्य को संभव कर दिया है, तो आप क्यों नहीं कर सकते .

जिन्‍दगी - भानु प्रकाश नारायण, मुख्‍य यातायात निरीक्षक



जिन्‍दगी

भानु प्रकाश नारायण
मुख्‍य यातायात निरीक्षक

सजते संवरते शख्सियत का
        नाम है जिन्‍दगी ।
बनते बिगड्ते हालातों का
       हिसाब है जिन्‍दगी ।
कभी तो आस कभी तो विश्वास को
   सहजने का नाम है जिन्‍दगी‍।
  कभी खुशी तो कभी गम को
       रमने का नाम है जिन्‍दगी।
कभी धूप कभी छाया को
आत्‍मसात करने का नाम है जिन्‍दगी।
कभी हंसने कभी रोने को
  हिस्‍सा बनाने का नाम है जिन्‍दगी।
कभी सत्‍य कभी झूठ को
  मनन करने का नाम है जिन्‍दगी।
तो कभी दूसरे के अरमानों को
    सजाने का नाम है जिन्‍दगी।
नफरत की कुंठा को
        हटाने का नाम है जिन्‍दगी ।
सबके लिए पल पल खुशियॉ
  बांटने का नाम है जिन्‍दगी ।
हर आनन्‍द का  लुत्‍फ
उठाने का नाम है जिन्‍दगी। 

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

विचारों का प्रभाव

विचारों का प्रभाव
 आदर्श विचार मनुष्य के जीवन की खराब दशा को सही दिशा देने का कार्य करते हैं. 
मनुष्य अपने जीवन में, विचारों के बंधन से मुक्त नहीं रह सकता. वह किसी ना किसी
विचार के प्रति आकर्षित तो होता ही है.  अब यह इस बात पर निर्भर करता है,
कि उसका आकर्षण सुविचार के प्रति है या कुविचारों के प्रति. सुविचार को व्यवहार
में स्थान देने से   ना सिर्फ व्यक्तित्व निखरता है ,बल्कि मनुष्य उन विचारों के आधार
पर उत्थान के मार्ग पर आगे बढ़ता है. कुविचारों को अपने जीवन में आत्मसात करने
वाले लोग पतन मार्ग के पथिक बन कर रह जाते हैं.  इसीलिए जीवन में विचारों की
भूमिका को तय करना बेहद जरूरी है.

आमतौर पर सूक्तियां बहुत आकर्षित करती हैं. हालांकि वे कथन सिर्फ उन्हीं का
आकर्षण बन पाते हैं जो उनके अर्थ तक पहुंच पाते हैं .  वह केवल अमृत वचन मात्र
नहीं होते बल्कि जीवन का सार होते हैं. उन कथनों को अनुभव की भांति
आत्मसात करने के लिए , एक दृष्ट की आवश्यकता होती है. यदि हम वह  दृष्टि
उपस्थित नहीं कर सकते तो हम उस विचार के मूल तक पहुंचने में सक्षम नहीं होंगे.


 यह सत्य है कि प्रत्येक मनुष्य की बौद्धिक क्षमता होती है , वह अपनी क्षमता के
आधार पर ही विचारों को स्वीकार या अस्वीकार करता है.  बुद्धिमान लोग सदैव
उत्तम विचारों से भरे होते हैं . और मूर्ख व्यक्ति वैचारिक रूप से दरिद्र होते हैं.
लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करते.  जीवन में सफलता और असफलता का निर्धारण
कर्म से होता है. किंतु कर्म में विचारों की बड़ी भूमिका रहती है. विचार ही सही
और गलत कर्मा का भेद कर पाते हैं. यदि सफलता गलत मार्ग पर चलने से प्राप्त
हो रही हो, तब मनुष्य क्या उस मार्ग का अनुसरण करेगा ?  इस प्रश्न का उत्तर
उसकी वैचारिक स्थिति पर निर्भर करता है .आधुनिक जीवनशैली में प्रवेश के
चलते अध्यात्म और आदर्श का स्थान व्यवहारिकता ने ले लिया है. ज्यादा व्यावहारिक
बनने की लालसा में सही और गलत के भी सोचने की क्षमता को समाप्त करने में कोई
कसर नहीं छोड़ी है  . ऐसे मैं विचारों के अनुयायियों के लिए कर्म में सही सही या गलत
महत्वपूर्ण नहीं होता. वे तो सिर्फ परिणाम के अभिलाषी होते हैं .परिणाम की लालसा के
चलते वे सही अथवा गलत में भेद ही नहीं कर पाते .

उम्मीद

उम्मीद 
आप कभी कभार सोचते होंगे कि ,आप इतना दबाव, इतनी परेशानियां ,

इतनी असफलता  बर्दाश्त नहीं कर सकते. आपको लगता है कि, आपने सब कुछ कर लिया,
लेकिन हालात काबू से बाहर है. इसके लिए कतई जरूरी नहीं कि आप तुरंत कुछ करें.
नहीं सूझ रहा है तो रुक जाने में भी कोई बुराई नहीं है.  नई आशा और उम्मीदों की
धूप देर सबेर खुद भी पहुंच जाएगी. ताजी हवा, और रोशनी भीतर आ सके ,
इसके लिए जरूरी है, कि आप अपने दिमाग की खिड़कियों को खुला रखें,
उन पर भय ,आशंका और अशुभता कि कड़वी धूल को जमने ना दे. 



     मन भी छोटा करने की जरूरत नहीं. जीवन तो हर पल नया भी हो रहा है.
और पुराना भी. हम जिस पल में नए हो जाते हैं, उस पल में हमारी जिंदगी  नई
होने लगती है. नई राहों की ओर कदम बढ़ाते समय जो नहीं है, उस पर बेचैन
होने की बजाय जो सामने है ,उस पर केंद्रित होना चाहिए. चुनौतियां रास्ते की
रुकावटें नहीं है, रास्ता ही  है संघर्ष और असफलता केवल निराश ही नहीं करते,
बहुत कुछ सिखाते भी हैं. नाउम्मीद में ही उम्मीद छुपी होती है .बीती बातों से
भागकर नहीं ,उनसे सीख कर ही उबरा जा सकता है. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि
हम इसी जाल में फंस कर रह जाते हैं ,कि या तो सब कुछ चाहिए. या कुछ भी नहीं.
और यह सोच हमारा संतुलन भी बिगाड़ देती है. कई बार कम रोशनी में ही चीजें गहराई
में समझ आती है.   धुंधलापन नई कहानियों को जन्म देता है. दिमाग साफ हो और हम
धुंध का मजा लेने के लिए तैयार हो तो कहानियां अच्छी बनती है. 



    सफलता सिर पर जल्दी चढ़ती है. और असफलता दिल पर. जीत के नशे में झूमते हुए
को हार नहीं दिखती .और हारे हुए को जीत की कोई उम्मीद नजर नहीं आती.  लेकिन
असली जीत उनकी होती है, जो सफलता को सिर नहीं चढ़ने देते ,और हार को दिल से
नहीं लगाते. बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी संधू कहती है की "हार हो    या जीत मैं अपना
100% देने पर ध्यान देती हूं. जो करती हूं पूरे मन से करती हूं ". आपकी सफलता का
दरवाजा खुलेगा जरूर ..आप वांछित पाएंगे जरूर. कभी-कभी दरवाजा जब ज्यादा
मजबूती से बंद होता है  तो उसे खोलने के प्रयत्न उतने ही मजबूती से करने होते हैं .
हैरत और झुंझलाहट क्यों?    

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

महानता का रहस्य

महानता का रहस्य
 शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन के विद्वान स्वामी रामतीर्थ के जीवन से जुड़ा
एक प्रसंग काफी प्रेरणादाई है. कहते हैं कि एक बार स्वामी रामतीर्थ छोटे
बच्चों को पढ़ा रहे थे. पढ़ाने के क्रम में उन्होंने ब्लैक बोर्ड पर एक लाइन 
खींची ,और अपने शिष्यों से पूछा ‘इस रेखा को बिना स्पर्श किए हुए कौन
छात्र से छोटा कर सकता है’ थोड़ी देर के लिए पूरी कक्षा शांत रही. प्रश्न
कठिन था, और इस कारण छात्र विस्मित थे. कुछ देर के बाद एक विद्यार्थी
आगे बढ़ा और ब्लैक बोर्ड पर खींची गई है, एक रेखा के समानांतर एक
बड़ी सी लाइन खींच  दी . परिणामस्वरुप पहले वाली रेखा छोटी हो गई
इसके बड़े निहितार्थ थे.
 इस उपक्रम  की समाप्ति के बाद इसका साथ समझाते हुए स्वामी रामतीर्थ ने
अपने शिष्यों से कहा, ‘जीवन में महानता प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति
के अस्तित्व को खत्म करने की जरूरत नहीं होती है, ना ही उसे अपमानित
और नीचा दिखाने की आवश्यकता है. बल्कि व्यक्ति को अपने जीवन में ऐसे
आध्यात्मिक ,चारित्रिक और नैतिक गुणों का विकास करना चाहिए कि सामने
वाले खुद   को छोटा प्रतीत होने लगे. इस प्रकार से हासिल महानता,
सर्वश्रेष्ठ और ऐसा महान देती कालजई होता है.
 लेकिन दुर्भाग्यवश, हम व्यवहारिक जीवन में ऐसा कर नहीं पाते हैं .
और जीवन की अंतिम सांस तक दूसरों के मुकाबले आगे बढ़ने की कोशिश
में मन को दुखी करते रह जाते हैं . दूसरों के प्रति छल- प्रपंच ईर्ष्या ,और
द्वेष के जहर से खुद के जीवन की शांति का गला घोंट देते हैं. इतना ही
नहीं गला काट प्रतियोगिता के वर्तमान परिवेश में खुद को सफलता के
शीर्ष पर देखने की अंधी चाह में हम पता नहीं कितनी कुछ सिटी योजनाएं
बना बैठते हैं. गहराई से अवलोकन करने पर या सच्चाई  मुखर होकर सामने
आ जाती है, कि इसकी मुख्य वजह एक व्यक्ति का खुद को पहचान नहीं पाने
की असफलता और शीघ्र सफल होने की लालसा होती है .मानवता के प्रति
सद्भाव, प्रेम दया , करुणा , सहानुभूति और अन्य मानवीय गुणों के अभाव में
हम मर्यादित आचरण की सीमा लांग जाते हैं, खुद को निरंतर परिमार्जित
करते रहने ,मानव मात्र के कल्याण के भाव, के साथ धैर्य पूर्वक सात्विक और
संयमित जीवन के जीने में ही महानता का रहस्य छुपा होता है.

ईश्वर की कृपा



ईश्वर की कृपा

 परमात्मा महान परोपकारी एवं दाता है .उसने जीव   रचे, और जीवन योग्य सभी
प्रबंध भी किए .आधार देने के लिए धरती बनाई. जीवित रहने के लिए वायु, जल,
वनस्पतियां और अग्नि की उत्पत्ति की. यह प्रबंध जीवन को सरल और उपयोगी
बनाने के लिए था ,किंतु मनुष्य ने अपने स्वभाव से इन्हें विषमताओं एवं दुख के
स्रोत में बदल दिया. धरती का स्वामी ईश्वर है, किंतु मनुष्य ने उसके अधिकार
को भंग करते हुए धरती पर अपना स्वामित्व जमा लिया. पहले राज्यों ने
धरती पर अपनी सीमाएं निर्धारित कर ली, फिर मनुष्य  ने .
एक तरफ मनुष्य मानता है कि सृष्टि का सृजक ईश्वर है ,
दूसरी ओर उसकी धरती पर अपना अधिकार स्थापित करता है. यह ईश्वर से
द्रोह नहीं तो और क्या है. जब मनुष्य का अपने जीवन पर कोई अधिकार नहीं,
तब धरती पर कैसा दावा. मनुष्य ने धरती पर अनधिकृत स्वामित्व ही नहीं स्थापित किया,
उसका भरपूर दोहन भी किया है. धरती के गर्भ में बहुत कुछ था और है .जिसे मनुष्य ने
निकालकर धरती की गुणवत्ता को नष्ट करने का अपराध भी किया है .धरती की ही तरह
राष्ट्रों ने वायु और जल की सीमाएं भी बना डाली हैं. वायु और जल की ईश्वर प्रदत
गुणवत्ता को भी भरपूर नष्ट किया जा रहा है.
मनुष्य पहले   मूर्खता करता है, और बाद में उन्हें सुधारने के लिए अपनी शक्ति
और बुद्धि का उपयोग करता है. ना मूर्खताए बंद हो रही हैं ,ना बुद्धि का  जल को
मनुष्य ही दूषित कर रहा है फिर उन्हें शुद्ध करने के लिए शोध करता है. कितने
ही रोग जल और वायु प्रदूषण से पैदा हो रहे हैं. संसार के अधिकांश  विवाद
धरती से संबंधित हैं ,जिसने करोड़ों लोगों की जानें ले ली है.

  ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का मोल चुकाना ही पड़ता है. जिस तरह मनुष्य सारे ज्ञान
और बुद्धिमत्ता के बावजूद अपने जीवन के लिए अंततः ईश्वर की कृपा पर ही आश्रित होता है.
उसी भावना से उसे सृष्टि के साथ व्यवहार करना चाहिए. धरती वायु और जल का महत्व
मनुष्य के जीवन काल में उपयोग के लिए होना चाहिए ना कि इसे स्वामित्व की दृष्टि
से देखना चाहिए. मनुष्य धरती जलवायु का उपभोक्ता और संरक्षक तो हो सकता है,
किंतु स्वामी नहीं यही मनुष्य की बहुत सी समस्याओं का हल है. और इससे ईश्वर के
दरबार में स्थान  भी मिल सकेगा. 

महिला की जान बचाने वाले रेल कर्मी को रेलमंंत्री नें सम्‍मानित किया

पूर्वोत्‍तर रेलवे के रेलकर्मी को रेलमंत्री पुरस्‍कार

दिनांक 17 अगस्‍त 2019 को लखनऊ मण्‍डल के करनैलगंज स्‍टेशन पर कांटा वालावाला श्री पेशकार गाडी संख्‍या 11124 प्रोसीड दे रहे थे तभी उन्‍होने देखा कि एक महिला गाडी के आगे कूद गई है, उन्‍होने तत्‍काल अपनी जान पर खेल कर उस महिला को रेलपथ से बाहर खींच लिया। श्री पेशकार की सूझ बूूूझसे उस महिला की जान बच गई। 

श्री पेशकार के इस सराहनीय कार्य की सवर्त्र प्रसंशा हो रही है तथा रेमंत्री श्री पीयूूूूष गोयल  ने दिनांक                     08-12-2019 को उन्‍हें उत्कृष्टता प्रमाणपत्र  से सम्‍मानित किया।


गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

दुखानुभूति एक चुनौती

दुखानुभूति एक चुनौती 

ईश्वर ने जीवन   की , भिन्न-भिन्न रंगों से अभूतपूर्व रचना की है. मनुष्य कितना
भी चाहे कि उसके हिस्से में केवल आनंद ही आनंद रहे, लेकिन ऐसा संभव
नहीं है .जहां सुख की लालसा हो वहां कष्ट झेलने की क्षमता भी होनी चाहिए.
पीड़ा एक सच्चाई है. जहां सुख का सदैव स्वागत होना सर्वथा निश्चित है, वही
दुख और पीड़ा के आने पर अपने भाग्य को धिक्कारना  या दूसरों को उसके
लिए उत्तरदाई ठहराना, कहां तक तर्कसंगत है. 

  दुखानुभूति  को कम-से-कम आत्मसात किया जा सके, यह उसे चुनौती स्वरूप
लेने में ही निहित है. सत्य तो यह है कि टेढ़े- मेढ़े रास्ते पर चलने से ही जीवन के
कठिनतम  पाठ कंठस्थ हो पाते हैं. जो जीवन यापन में अत्यंत उपयोगी सिद्ध
हुआ करते हैं. जिसने इस संघर्ष को चुनौती के रूप में स्वीकारा हो ,उसे झेले
गए कष्टों की पीड़ा कम होगी.
दुखानुभूति तो अपनी मनास्थिति पर निर्भर है. वह  भौतिक ना होकर निराकार
होते हुए भी प्रचंड रूप ले सकती है . यह भ्रांति की समस्त दुख बाहरी  परिस्थितियों
की देन है ,और उसका निराकरण चारों ओर के प्रभा मंडल को बदलने से ही हो
सकता है ,उपयुक्त नहीं है. यदि ऐसा होता तो समस्त सुख सुविधाओं से लैस
व्यक्ति संसार में सबसे सुखी होता.

 हमने तो गरीब की झोपड़ी मैं किलकारीयों को सुना है. छोटे से बच्चे को
सस्ते से खिलौना पाते ही आनंद  विभोर होते, और दूसरी और वैभव संपन्न
व्यक्ति को बिलखते देखा है. हम अपने कष्टों के प्रति जितने संवेदनशील होंगे 
दुख की अनुभूति का आभास उतने ही अनुपात में होना निश्चित है. जीवन है
तो सुख दुख आते जाते रहेंगे. जैसे हम आनंद को स्वीकारते हैं ,उसी तरह पीड़ा
को भी  अदम्य साहस से भोगना आना होगा, वरना उससे पार पाना बेहद
कष्टकारी होगा. यह सही है कि जो व्यक्ति दुख से जूझ रहा है, उसकी पीड़ा
तो वही समझ सकता है. उसका विश्लेषण दूसरा नहीं कर सकता, पर दुख
के प्रति सकारात्मक सोच व्यक्ति को जीवन के सहज मार्ग पर चलने में सहयोगी
अवश्य हो सकती है. हमें हर हाल में  संयम बरतना चाहिए.दुखानुभूति को चुनौती
मान आगे बढ़ने से सफलता प्राप्त फिर एक नई चुनौती को स्वीकार ने के लिए
तैयार कर देती है.