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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

ईश्वर की कृपा



ईश्वर की कृपा

 परमात्मा महान परोपकारी एवं दाता है .उसने जीव   रचे, और जीवन योग्य सभी
प्रबंध भी किए .आधार देने के लिए धरती बनाई. जीवित रहने के लिए वायु, जल,
वनस्पतियां और अग्नि की उत्पत्ति की. यह प्रबंध जीवन को सरल और उपयोगी
बनाने के लिए था ,किंतु मनुष्य ने अपने स्वभाव से इन्हें विषमताओं एवं दुख के
स्रोत में बदल दिया. धरती का स्वामी ईश्वर है, किंतु मनुष्य ने उसके अधिकार
को भंग करते हुए धरती पर अपना स्वामित्व जमा लिया. पहले राज्यों ने
धरती पर अपनी सीमाएं निर्धारित कर ली, फिर मनुष्य  ने .
एक तरफ मनुष्य मानता है कि सृष्टि का सृजक ईश्वर है ,
दूसरी ओर उसकी धरती पर अपना अधिकार स्थापित करता है. यह ईश्वर से
द्रोह नहीं तो और क्या है. जब मनुष्य का अपने जीवन पर कोई अधिकार नहीं,
तब धरती पर कैसा दावा. मनुष्य ने धरती पर अनधिकृत स्वामित्व ही नहीं स्थापित किया,
उसका भरपूर दोहन भी किया है. धरती के गर्भ में बहुत कुछ था और है .जिसे मनुष्य ने
निकालकर धरती की गुणवत्ता को नष्ट करने का अपराध भी किया है .धरती की ही तरह
राष्ट्रों ने वायु और जल की सीमाएं भी बना डाली हैं. वायु और जल की ईश्वर प्रदत
गुणवत्ता को भी भरपूर नष्ट किया जा रहा है.
मनुष्य पहले   मूर्खता करता है, और बाद में उन्हें सुधारने के लिए अपनी शक्ति
और बुद्धि का उपयोग करता है. ना मूर्खताए बंद हो रही हैं ,ना बुद्धि का  जल को
मनुष्य ही दूषित कर रहा है फिर उन्हें शुद्ध करने के लिए शोध करता है. कितने
ही रोग जल और वायु प्रदूषण से पैदा हो रहे हैं. संसार के अधिकांश  विवाद
धरती से संबंधित हैं ,जिसने करोड़ों लोगों की जानें ले ली है.

  ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का मोल चुकाना ही पड़ता है. जिस तरह मनुष्य सारे ज्ञान
और बुद्धिमत्ता के बावजूद अपने जीवन के लिए अंततः ईश्वर की कृपा पर ही आश्रित होता है.
उसी भावना से उसे सृष्टि के साथ व्यवहार करना चाहिए. धरती वायु और जल का महत्व
मनुष्य के जीवन काल में उपयोग के लिए होना चाहिए ना कि इसे स्वामित्व की दृष्टि
से देखना चाहिए. मनुष्य धरती जलवायु का उपभोक्ता और संरक्षक तो हो सकता है,
किंतु स्वामी नहीं यही मनुष्य की बहुत सी समस्याओं का हल है. और इससे ईश्वर के
दरबार में स्थान  भी मिल सकेगा. 

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