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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

महानता का रहस्य

महानता का रहस्य
 शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन के विद्वान स्वामी रामतीर्थ के जीवन से जुड़ा
एक प्रसंग काफी प्रेरणादाई है. कहते हैं कि एक बार स्वामी रामतीर्थ छोटे
बच्चों को पढ़ा रहे थे. पढ़ाने के क्रम में उन्होंने ब्लैक बोर्ड पर एक लाइन 
खींची ,और अपने शिष्यों से पूछा ‘इस रेखा को बिना स्पर्श किए हुए कौन
छात्र से छोटा कर सकता है’ थोड़ी देर के लिए पूरी कक्षा शांत रही. प्रश्न
कठिन था, और इस कारण छात्र विस्मित थे. कुछ देर के बाद एक विद्यार्थी
आगे बढ़ा और ब्लैक बोर्ड पर खींची गई है, एक रेखा के समानांतर एक
बड़ी सी लाइन खींच  दी . परिणामस्वरुप पहले वाली रेखा छोटी हो गई
इसके बड़े निहितार्थ थे.
 इस उपक्रम  की समाप्ति के बाद इसका साथ समझाते हुए स्वामी रामतीर्थ ने
अपने शिष्यों से कहा, ‘जीवन में महानता प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति
के अस्तित्व को खत्म करने की जरूरत नहीं होती है, ना ही उसे अपमानित
और नीचा दिखाने की आवश्यकता है. बल्कि व्यक्ति को अपने जीवन में ऐसे
आध्यात्मिक ,चारित्रिक और नैतिक गुणों का विकास करना चाहिए कि सामने
वाले खुद   को छोटा प्रतीत होने लगे. इस प्रकार से हासिल महानता,
सर्वश्रेष्ठ और ऐसा महान देती कालजई होता है.
 लेकिन दुर्भाग्यवश, हम व्यवहारिक जीवन में ऐसा कर नहीं पाते हैं .
और जीवन की अंतिम सांस तक दूसरों के मुकाबले आगे बढ़ने की कोशिश
में मन को दुखी करते रह जाते हैं . दूसरों के प्रति छल- प्रपंच ईर्ष्या ,और
द्वेष के जहर से खुद के जीवन की शांति का गला घोंट देते हैं. इतना ही
नहीं गला काट प्रतियोगिता के वर्तमान परिवेश में खुद को सफलता के
शीर्ष पर देखने की अंधी चाह में हम पता नहीं कितनी कुछ सिटी योजनाएं
बना बैठते हैं. गहराई से अवलोकन करने पर या सच्चाई  मुखर होकर सामने
आ जाती है, कि इसकी मुख्य वजह एक व्यक्ति का खुद को पहचान नहीं पाने
की असफलता और शीघ्र सफल होने की लालसा होती है .मानवता के प्रति
सद्भाव, प्रेम दया , करुणा , सहानुभूति और अन्य मानवीय गुणों के अभाव में
हम मर्यादित आचरण की सीमा लांग जाते हैं, खुद को निरंतर परिमार्जित
करते रहने ,मानव मात्र के कल्याण के भाव, के साथ धैर्य पूर्वक सात्विक और
संयमित जीवन के जीने में ही महानता का रहस्य छुपा होता है.

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