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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

व्यवहार

    स्कूलों में छात्रों के कई समूह होते हैं। वे सभी अपनी रुचि के अनुसार आपस में जुड़ते हैं। वहां कई ऐसे समूह होते हैं, जो आपस में मिलकर किसी की आलोचना करने या किसी के जीवन में मुश्किलें पैदा करने पर ध्यान देते हैं। एक छात्र के रूप में हमें पढ़ाई के अलावा यह भी जानना चाहिए कि हम सब उस परमात्मा की संतान हैं। हममें से प्रत्येक में बुराइयों से ज्यादा अच्छाइयां हैं, इसलिए हमें सिर्फ अच्छे पक्ष पर ही ध्यान देना है। अगर हम यह समझ जाएं तो हमारा व्यवहार लोगों के साथ बेहतर होता चला जाएगा। यदि हमारे समूह में ऐसे लोग हैं, जो दूसरों की आलोचना करते हैं तो हमें उसका हिस्सा नहीं बनना चाहिए। यदि हम ऐसा करेंगे तो सकारात्मक सोच वाले कई बच्चे हमसे मित्रता करना चाहेंगे। ऐसा करने से हमारी जिंदगी शांति से भरी होगी।


    अक्सर हमारे पड़ोस में भी कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो दूसरों को परेशान करते हैं। हमें उनके साथ नम्रता से और एक शांत व्यक्ति के रूप में पेश आना चाहिए, क्योंकि टकराव करने से समाधान नहीं निकलता है। हमें कभी किसी दूसरे व्यक्ति के साथ हिंसक व्यवहार नहीं रखना चाहिए। हमें चाहिए कि सबके साथ प्रेम का व्यवहार करें। दरअसल समय के साथ दूसरे इंसान को भी यह अहसास हो जाता है कि वे जो कर रहे थे, वह गलत था। फिर उनमें भी बदलाव आ जाता है।

    ह उम्मीद करना कि दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति अच्छा ही होगा, संभव ही नहीं है। यहां हर तरह के लोग हैं। कुछ लोग हमें परेशान करते हैं, चाहे वे हमारे स्कूल में, पड़ोस में या हमारे काम करने के स्थान पर हों, लेकिन जब हम खुद को शांत रखेंगे और अपने सिद्धांतों पर कायम रहेंगे तो समय के साथ हम परेशान होने के बजाय खुश रहेंगे। जिसका प्रभाव आस-पास के वातावरण पर भी पड़ेगा। यदि हम अपने मिलने वालों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करेंगे तो अपने चारों ओर एक शांतिमय माहौल पाएंगे। 

संत राजिंदर सिंह जी महाराज

मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

विमोचन

 सामान्य एवं सहायक नियम पुस्तिका का विमोचन

 आज दिनांक 28 दिसंबर 2021 को पूर्वोत्तर रेलवे सामान्य एवं सहायक नियम की पुस्तिका (G & SR Book)संस्करण 2021 द्विभाषी ( हिंदी एवं अंग्रेजी) का विमोचन प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक श्री अनिल कुमार सिंह  सहित प्रमुख विभागाध्यक्षों  एवं अपर महाप्रबंधक की उपस्थिति में  महाप्रबंधक महोदय श्री विनय कुमार त्रिपाठी जी ने किया।






शनिवार, 25 दिसंबर 2021

बनारस स्टेशन का निरीक्षण

 दिनांक 24.12.21 को महाप्रबंधक पूर्वोत्तर रेलवे श्री विनय कुमार त्रिपाठी ने आज मंडल रेल प्रबंधक/वाराणसी श्री रामाश्रय पांडेय एवं प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक श्री अनिल कुमार सिंह सहित प्रमुख विभागाध्यक्षों के साथ बनारस रेलवे स्टेशन का गहन निरीक्षण किया।




शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

प्रमुख मुख्‍य संरक्षा अधिकारी द्वारा संरक्षा आडिट निरीक्षण

 दिनांक 10.12.2021 को प्रमुख मुख्‍य संरक्षा अधिकारी द्वारा इज्‍जतनगर मण्‍डल के कासगंज - फर्रूखाबाद खण्‍ड का संरक्षा आडिट निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान मुख्‍यालय के अन्‍य विभागाध्‍यक्ष एवं मण्‍डल के शाखा अधिकारी उपस्थित रहे।



गार्ड लाइन बाक्‍स के स्‍थान पर ट्रा्ली बैग का विमोचन

 गार्ड लाइन बाक्‍स के स्‍थान पर ट्रा्ली बैग का विमोचन वरिष्‍ठ मण्‍डल परिचालन प्रबन्‍धक/इज्‍जतनगर की उपस्थिति में मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक/इज्‍जतनगर द्वारा अपने कक्ष में किया गया।



गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

हिंदी

                       हिंदी

                            भानु प्रकाश नारायण

                        मुख्य यातायात निरीक्षक

आज तुम पर कोई ग़जल लिखूँ

 या लिखूँ कोई भी गीत रे,

बनकर तुम जन-जन की भाषा,

 बन जाती हो नयी प्रीत रे।

 गढ़ देती हो मन की  अभिलाषा

प्रेम पथिक की जिज्ञासा रे।  

लगती हो कोमल सी एक कली ,

अधरों पर मंद-मंद मुस्कान लिये  । 

पलकों से है शर्म झलकाती जैसे 

आँचल ओढ़े सुनहरी धूप वैसे।

नवल चाँदनी बिखरे पल पल 

कँवल खिले नित नव यौवन-सा।

मधु सी मनभावन मिठास हो तुम ,

 जन-जन की मधुर आस हो तुम।

मैं अंधकार का अंधियारा हिंदी

तुम बना देती दीपक बाती सा।

तेरी भाषा जलकर  नित

 नवल रोशनी फैलाती,

तुम अंतर्मन की अनुभूति हो,

तुम ही परिलक्षित झंकृति हो

तुम ही स्वप्निल नयनों वाली   

  तुम मेरी पूर्ण स्वीकृति हो। 

मैं रचने निकला पथ पर तुम 

प्रति छाया बन जाती हो।

मेरे मन के करुण  रस को हिंदी 

तुम अविरल श्रृंगार बना जाती हो

मेरी कविता के शब्द हो तुम ही ,

तुम ही हो लय और ताल हो,

तुम सावन की  फुहार हो ,

वसंत की खुशमय बहार हो।

पथ की स्मृति को बना सौंदर्यमय, 

अविरल छलकती निर्माण हो।

निकलूँ जब भी कविता रचने,  

मेरा पथ प्रशस्त करती हो हिन्दी।

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कार्यकारी निदेशक, रेलवे बोर्ड का वाराणसी मंडल का निरीक्षण











 

बुधवार, 22 दिसंबर 2021

स्वभाव

            मनुष्य के स्वभाव से ही उसके व्यक्तित्व का निर्धारण होता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव अच्छा होता है वह लगभग सभी का प्रिय बन जाता है। माना "" जाता है कि अच्छे कर्म करने की आदत होने पर स्वभाव में सरलता स्वयं आ आती है। मनुष्य को प्रकृति द्वारा यह शरीर प्राप्त हुआ है और इसी शरीर में मन वास करता है। यही मन मनुष्य के स्वभाव को संचालित करता है। सोचना और भावुक होना इत्यादि मन की विशेषताएं है। कहते हैं कि मन जितना सुंदर होगा, मनुष्य का स्वभाव भी उतना ही आकर्षक होगा। यही मन यदि नियंत्रण में न हो तो स्वभाव में कई प्रकार की विकृतियां आ जाती हैं।

      सूफी संत अबू हसन के पास एक व्यक्ति आया। वह उनसे बोला, 'मैं गृहस्थी के झंझटों से बहुत परेशान हो गया हूं। पत्नी-बच्चों और अन्य जनों से मेरा कोई मेल नहीं खाता। मैं सब कुछ छोड़कर साधू बनना चाहता हूं। कृपया, आप अपने पहने हुए वस्त्र मुझे दे दीजिए। जिससे मैं भी आप की तरह साधु बन सकूं।' उसकी बात सुनकर अबू हसन मुदित होकर बोले, 'क्या किसी पुरुष के वस्त्र पहनकर कोई महिला पुरुष बन सकती है या किसी महिला के वस्त्र पहनकर कोई पुरुष महिला बन सकता है ? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, 'नहीं, ऐसा कदापि संभव नहीं।' संत ने उसे समझाया, 'साधु बनने के लिए वस्त्र नहीं, बल्कि स्वभाव बदलना पड़ता है। अपना स्वभाव बदलो। फिर तुम्हे गृहस्थी भी झंझट नहीं लगेगी। यह बात उस व्यक्ति की समझ में आ गई की उसने अपना स्वभाव बदलने का संकल्प लिया।

      मनुष्य की यह प्रवृत्ति होती है कि अपना स्वभाव बदले बिना ही वह हार मानने लगता है। जबकि स्वयं में थोड़े से परिवर्तन मात्र से ही हम अपने किसी भी उद्देश्य में सफल हो सकते हैं। इसीलिए यदि निरंतर प्रयास के बावजूद असफलता ही हाथ लग रही हो तो हमें अपना स्वभाव बदलने की आवश्यकता है। हार मानकर अपना लक्ष्य या उद्देश्य बदलना कोई हल नहीं, बल्कि पलायन ही कहा जाता है।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

ऊर्जा

     कुटुंब अर्थात परिवार सामाजिक संरचना की लघुतम इकाई है तथा समाज की एक महत्वपूर्ण कोशिका है, जो पुष्ट होकर समाज को सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृढ़ता प्रदान करती है। सामाजिक जीवन में निरंतरता बनाए रखने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जीवन में माधुर्य का संचार और सौंदर्य का निखार परिवार से ही आता है। अतः परिवार दीर्घ और सुखमय जीवन का आधार है। विद्वानों ने इसे विविध रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ रक्त संबंध को परिवार मानते हैं तो कुछ माता-पिता, पत्नी और बच्चों को, पर स्वार्थमय संकुचित दृष्टिकोण के कारण आज केवल पत्नी और बच्चों को ही परिवार माना जाने लगा है। यह मनुष्य के गिरते हुए चिंतन का परिणाम है। वास्तव में परिवार पुष्ट तने और गहरी नींव वाले वृक्ष की उन बलिष्ठ शाखाओं के समान होता है, जो चतुर्दिक फैलकर स्वयं को और समाज को आत्मीयता की शीतल छाया प्रदान कर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

     परिवार के संबंध में भारत का चिंतन हमेशा से बहुत उदार और व्यापक रहा है। ऋषियों ने विश्व कल्याण की कामना से जो 'वसुधैव कुटुंबकम्'. का उद्घोष किया था, वह आज का वैश्विक चिंतन ही था। जो न केवल सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से वरन आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी समस्त भूमंडल के लिए लोक मंगलकारी था। स्वार्थमय चिंतन होने से परिवार की परिभाषाएं बदलती गईं। फलस्वरूप घर से लेकर बाहर तक संपूर्ण वैश्विक परिदृश्य में अशांति का अनुभव किया जा रहा है। सामाजिक एवं वैश्विक शांति के लिए संकीर्णतावादी सोच को छोड़कर परिवार को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। वसुधैव कुटुंबकम् के पवित्र भाव को आत्मसात करने से ही विश्वबंधुत्व का भाव प्रबल होगा। सर्वत्र सुख-शांति स्थापित होगी तथा स्वस्थ वैश्विक पर्यावरण को भी मजबूत आधार मिलेगा।

क्रोध

 

     मनुष्य में पांच भावनाएं प्रमुख रूप से पाई जाती हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या। इनमें क्रोध की भावना बहुत ही प्रबल होती है। क्रोध पूरे जीवन मनुष्य को घेर कर रखता है। न उम्र की मर्यादा करता है, न ज्ञान की। कब, कहां और किस पर उत्पन्न हो जाए, कहा नहीं जा सकता। क्रोध के जन्म लेते ही बुद्धि और विवेक का लोप हो जाता है। बुद्धि पर अंधकार छा जाता है। उचित-अनुचित का बोध नहीं रहता। क्रोध समाप्त होने पर व्यक्ति पश्चाताप करता है, परंतु परिस्थितियों को पूर्व की भांति नहीं कर पाता है। किसी भी कारागार में जाकर देख लीजिए। अधिकांश अपराधी अपने क्षणिक आवेश या क्रोध का परिणाम भुगत रहे हैं।

      वास्तव में किसी भी काम को बार-बार करने से वह हमारी आदत बन जाती है। अगर हम क्रोध भी बार-बार करते रहें तो यह स्थायी रूप से हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाएगा। फिर यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर हमें दुख की और धकेल देगा रामायण में एक प्रसंग है। जब भरत जी भगवान श्रीराम को मनाने के लिए वन में जा रहे होते हैं तो लक्ष्मण जी को मिथ्या भ्रम हो जाता है कि वह भगवान श्रीराम पर आक्रमण करने आ रहे हैं। वह देव पुरुष भरत जी के लिए लोभी और लालची जैसे अनुचित शब्दों का प्रयोग करते हैं, पर जब उन्हें सच्चाई पता लगती है तो उनके पास पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचता है। यह ग्लानि से भर जाते हैं, क्योंकि क्रोधी स्वभाव होने के कारण उन्होंने ऐसा किया। ऐसा नहीं है कि क्रोध हमेशा बुरा ही होता है, लेकिन इस पर नियंत्रण होना चाहिए और उचित-अनुचित का विचार होना चाहिए। महाभारत में भीष्म पितामह ने उचित समय पर क्रोध नहीं किया, जिसकी वजह से उन्हें बाणों की शैया मिली। वहीं जटायु ने उचित समय पर रावण के ऊपर क्रोध किया इसलिए वह भगवान श्रीराम की गोद के अधिकारी बने। अभ्यास के माध्यम से हम भी अपने क्रोध पर नियंत्रण कर सकते हैं।

यादें

संस्मरण

अतित की सुनहरी यादें

बचपन में स्कूल के दिनों में क्लास के दौरान टीचर द्वारा पेन माँगते ही हम बच्चों के बीच राकेट गति से गिरते पड़ते *सबसे पहले उनकी टेबल तक पहुँच कर पेन देने की अघोषित प्रतियोगिता* होती थी। 

जब कभी मैम किसी बच्चे को क्लास में कापी वितरण में अपनी मदद करने पास बुला ले, तो *मैडम की सहायता करने वाला बच्चा अकड़ के साथ "अजीमो शाह शहंशाह" बना क्लास में घूम-घूम* कर कापियाँ बाँटता और *बाकी के बच्चें मुँह उतारे गरीब प्रजा की तरह* अपनी चेयर से न हिलने की बाध्यता लिए बैठे रहते। *टीचर की उपस्थिति* में क्लास के भीतर *चहल कदमी की अनुमति कामयाबी की तरफ पहला कदम* माना जाता था। 

उस मासूम सी उम्र में उपलब्धियों के मायने कितने अलग होते थे 

क) टीचर ने क्लास में सभी बच्चो के बीच गर हमें हमारे नाम से पुकार लिया .....

ख) टीचर ने अपना रजिस्टर स्टाफ रूम में रखकर आने बोल दिया तो समझो कैबिनेट मिनिस्टरी में चयन का गर्व होता था

आज भी याद है जब बहुत छोटे थे, तब बाज़ार या किसी समारोह में हमारी टीचर दिख जाए तो भीड़ की आड़ ले छिप जाते थे। जाने क्यों, किसी भी सार्वजनिक जगह पर टीचर को देख हम छिप जाते है?

कैसे भूल सकते है, अपने उन गणित के टीचर को जिनके खौफ से 17 और 19 का पहाड़ा याद कर पाए थे। 

कैसे भूल सकते है उन हिंदी शिक्षक को जिनके आवेदन पत्रों से ये गूढ़ ज्ञान मिला कि बुखार नही *ज्वर पीड़ित होने के साथ सनम्र निवेदन कहने के बाद ही तीन दिन का अवकाश* मिल सकता है।  

अपने उस कक्षा शिक्षक को कैसे भूले जो शोर मचाते बच्चों से भी ज्यादा ऊँची आवाज़ में गरजते:- *"मछली बाज़ार है क्या?”*.... 

मैंने तो मछली बाज़ार में मछलियों के ऊपर कपड़ा हिलाकर  मक्खी उड़ाते खामोश दुकानदार ही देखे है।

वो टीचर तो आपको भी बहुत अच्छे से याद होंगे जिन्होंने *आपकी क्लास को स्कूल की सबसे शैतान क्लास की उपाधि* से नवाज़ा था।  

उन टीचर को तो कतई नही भुलाया जा सकता जो होमवर्क कापी भूलने पर ये कहकर कि  ... *“कभी खाना खाना भूलते हो?”* ... बेइज़्ज़त करने वाले तकियाकलाम  से हमें शर्मिंदा करते थे।

टीचर के महज़ इतना कहते ही कि  *"एक कोरा पेज़ देना"* पूरी क्लास में फड़फड़ाते 50 पन्ने फट जाते थे। 

क्या आप भूल सकते है गिद्ध सी पैनी नज़र वाले अपने उस टीचर को जो बच्चों की टेबल के नीचे छिपाकर कापी के आखरी पन्नों पर चलती दोस्तों के मध्य लिखित गुप्त वार्ता को ताड़ कर अचानक खड़ा कर पूछते *"तुम बताओ मैंने अभी अभी क्या पढ़ाया?"*

टीचर के टेबल के *पास खड़े रहकर कॉपी चेक कराने* के बदले यदि मुझे *सौ दफा सूली पर लटकना पड़े तो वो ज्यादा आसान* था। 

क्लास में टीचर के प्रश्न पूछने पर उत्तर याद न आने पर कुछ लड़कों के हाव भाव ऐसे होते थे कि *उत्तर तो जुबान पर रखा है बस जरा सा छोर हाथ नही आ रहा*। ये ड्रामेबाज छात्र उत्तर की तलाश में कभी छत ताकते, कभी आँखे तरेरते, कभी हाथ झटकते। देर तक आडम्बर झेलते झेलते आखिर टीचर के सब्र का बांध टूट जाता -- you, yes you, get out from my class ....।  

सुबह की प्रार्थना में जब हम दौड़ते भागते देर से पहुँचते तो हमारे शिक्षकों को रत्तीभर भी अंदाजा न होता था कि हम शातिर छात्रों का ध्यान *प्रार्थना में कम, और आज के सौभाग्य से कौन कौन सी टीचर अनुपस्थित है, के मुआयने में ज्यादा* रहता था। 

आपको भी वो टीचर याद है न, जिन्होंने ज्यादा *बात करने वाले दोस्तों की सीट्स बदल उनकी दोस्ती  कमजोर करने की साजिश* की थी। 

मैं आज भी दावा कर सकता हूँ, कि एक या दो टीचर्स शर्तिया  ऐसे होते है *जिनके सर के पीछे की तरफ़ अदृश्य  नेत्र का वरदान मिलता* है, ये टीचर ब्लैक बोर्ड में लिखने में व्यस्त रहकर भी चीते की फुर्ती से पलटकर कौन बात कर रहा है का सटीक अंदाज़ लगाते थे। 

वो टीचर याद आये या नही जो *चाक का उपयोग लिखने में कम और बात करते बच्चों पर भाला फेक शैली* में ज्यादा लाते थे?   

जब टीचर एग्जाम हाल में प्रश्न पत्र पकड़कर घूमते और पूछते "एनी डाउट्" तब मुझे तो फिजिक्स पेपर में हमेशा एक ही डाउट रहता है कि हमें ये ग्राफ पेपर क्यो मिला है जबकि प्रश्रपत्र में ग्राफ किसमें बनाना है मुझे तो यही नही समझ आ रहा। मैं अपनी मूर्खता जग जाहिर ना करके चारों ओर सर घुमाकर देखते  चुप बैठा रहता। 

हर क्लास में एक ना  एक बच्चा होता ही था, जिसे अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करने में विशेष महारत होती थी, और ये प्रश्नपत्र थामे एक अदा से खड़े होते है... *मैम आई हैव आ डाउट  इन कोश्च्यन नम्बर 11*  ....हमें डेफिनेशन के साथ एग्जाम्पल भी देना है क्या? *उस इंटेलिजेंट की शक्ल देख खून खौलता*।


परीक्षा के बाद जाँची हुई कापियों का बंडल थामे कॉपी बाँटने  क्लास की तरफ आते  शिक्षक साक्षात सुनामी लगते थे। 

ये वो दिन थे, जब कागज़ के एक पन्ने को छूकर खाई  *'विद्या कसम'  के साथ बोली गयी बात, संसार का अकाट्य सत्य*, हुआ करता थी। 

मेरे लिए आज तक एक रहस्य अनसुलझा ही है की *खेल के पीरियड का 40 मिनिट छोटा और इतिहास का पीरियड वही 40 मिनिट लम्बा कैसे* हो जाता था ??

सामने की सीट पर बैठने के नुकसान थे तो कुछ फायदे भी थे। मसलन चाक खत्म हुई तो  मैम के इतना कहते ही कि *"कोई भी जाओ  बाजू वाली क्लास से चाक ले आना"* सामने की सीट में बैठा बच्चा लपक कर क्लास के बाहर, दूसरी क्लास में *"मे आई कम इन" कह सिंघम एंट्री करते।* 

"सरप्राइज़ चेकिंग" पर हम पर कापियाँ जमा करने की बिजली भी गिरती थी, सभी बच्चों को चेकिंग के लिए कापी टेबल पर ले जाकर रखना अनिवार्य होता था। टेबल पर रखे जा रहे कापियों के ऊँचे ढेर में *अपनी कापी सबसे नीचे दबा आने पर तूफ़ान को जरा देर के लिए टाल आने की तसल्ली मिलती थी* 

हर समय एक ही डायलाग सुनते  “तुम लोगो का शोर प्रिंसिपल रूम तक सुनाई दे रहा है।“  अमा  हद है यार ! *अब प्रिंसिपल रूम बाज़ू में है इस बात पे हम बच्चों की लिप्स सर्जरी कर सिलवा दोगे या जीभ कटवा दोगे क्या*?  

हमें भी तो प्रिंसिपल रूम की सारी बातें सुनाई देती है | हमने तो कभी शिकायत नही की।

वो निर्दयी टीचर जो पीरियड खत्म होने के बाद का भी पाँच मिनिट पढ़ाकर हमारे लंच ब्रेक को छोटा कर देते थे। 

चंद होशियार बच्चे हर क्लास में होते है जो मैम के क्लास में घुसते ही याद दिलाने का सेक्रेटरी वाला काम करते थे

 *"मैम कल आपने होमवर्क दिया था।"* जी में आता था इस आइंस्टीन की औलाद को डंडों से धुन के धर दो। 

तमाम शरारतों के बावजूद ये बात सौ आने सही हैं कि बरसों बाद उन टीचर्स के प्रति स्नेह और सम्मान बढ़ जाता है, अब वो किसी मोड़ पर अचानक वो मिल जाए तो बचपन की तरह अब हम छिपेंगे नही।

आज भी जब मैं स्कूल या कालेज की बिल्डिंग के सामने से गुजरता हूँ, तो लगता है कि एक दिन था जब ये बिल्डिंग मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। अब उस बिल्डिंग में न  मेरे दोस्त है, न हमकों पढ़ाने वाले वो टीचर्स। बच्चो को लेट एंट्री से रोकने गेट बंद करते स्टाफ भी नही जिन्हें देखते ही हम दूर से चिल्लाते  थे “गेट बंद मत करो भैय्या प्लीज़”   वो बूढी से बाबा भी नही है जो मैम से सिग्नेचर लेने जब जब  लाल रजिस्टर के साथ हमारी क्लास में घुसते, तो बच्चों में ख़ुशी की लहर छा जाती *“कल छुट्टी है”* 

अब *स्कूल के सामने से निकलने से एक टिस सी उठती* है जैसे मेरी कोई बहुत अजीज चीज़ छीन गयी हो। आज भी जब उस ईमारत के सामने से निकलता हूँ, तो पुरानी यादो में खो जाता हूं।

स्कूल/कालेज की शिक्षा पूरी होते ही व्यवहारिकता के कठोर धरातल में, अपने उत्तरदायित्वों को निभाते , दूसरे शहरो में रोजगार का पीछा करते, दुनियादारी से दो चार होते, जिम्मेदारियों को ढोते हमारा संपर्क उन सबसे टूट जाता है, जिनसे मिले मार्गदर्शन, स्नेह, अनुशासन, ज्ञान, ईमानदारी, परिश्रम की सीख और लगाव की असंख्य कोहिनूरी यादें किताब में दबे मोरपंख सी साथ होती है, जब चाहा खोल कर उस मखमली अहसास को छू लिया। 

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रविवार, 19 दिसंबर 2021

19 दिसम्बर

19 दिसंबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ – 

किंग हेनरी द्वितीय 1154 में इंग्लैंड के सम्राट बने।

अमेरिका में मौसम विज्ञान सोसायटी की 1919 में स्थापना हुयी।

जर्मन सीरियल किलर फ्रिट्ज हार्मैन को हत्या की एक श्रृंखला के लिए 1924 में मौत की सजा सुनाई गई।

उत्तर प्रदेश ऑटोमोबाइल संघ की 1927 में स्थापना हुई।

महान् स्वतन्त्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला ख़ां और रोशन सिंह को 1927 में अंग्रेजों ने फाँसी दे दी।

जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने 1941 में सेना की पूरी कमान अपने हाथ में ले ली।

सन 1961 में गोवा स्वतंत्र हुआ।

ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय सैनिकों ने 1961 में गोवा के बॉर्ड में प्रवेश किया।

ब्राजील के शहर रियो दी जेनेरियो से 1983 में फुटबॉल के फीफा विश्व कप की चोरी हो गई।

चीन एवं ब्रिटेन के मध्य 1984 में 1997 तक हांगकांग चीन के वापस करने संबंघी समझौते पर हस्ताक्षर।

अमर्त्य सेन को 1998 में बांग्लादेश ने मानद नागरिकता से नवाजा, डेनवर (अमेरिका) में

आयोजित विश्व विकलांग स्कीइंग में शील कुमार (भारत) सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित।

443 वर्षों तक पुर्तग़ाली उपनिवेश में रहने के बाद 1999 में मकाऊ का चीन को हस्तांतरण।

ऑस्ट्रेलिया ने 2000 में वेस्टइंडीज को हराकर लगातार 13वां टेस्ट मैच जीता।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2003 में कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के तहत हल करने की पाकिस्तान की मांग छोड़ने का स्वागत किया।

अफ़ग़ानिस्तान में तीन दशक बाद 2005 में लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गयी देश की पहली संसद की पहली बैठक आयोजित।

शैलजा आचार्य को 2006 में नेपाल ने अपना भारत में नया राजदूत नियुक्त किया।

टाइम पत्रिका ने 2007 में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को पर्सन आफ़ द ईयर के ख़िताब से नवाजा।

केनरा बैंक, एचडीएफसी व बैंक ऑफ़ राजस्थान ने 2008 में आवास ऋण सस्ता करने की घोषणा की।

पार्क ग्युन हे 2012 में दक्षिण कोरिया की पहली महिला राष्ट्रपति बनी।

19 दिसंबर को जन्मे व्यक्ति – 

मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले अमेरिकी नेता मार्टिन लूथर किंग सीनियर का जन्म 1897 में हुआ।

भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता ओम प्रकाश का जन्म 1919 में हुआ।

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का जन्म 1934 में हुआ।

पूर्व क्रिकेटर नयन मुंगया का जन्म 1969 में हुआ

ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट खिलाड़ी एवं कप्तान रिकी पोंटिंग का जन्म 1974 में हुआ।

अमरीकन फुटबॉल के खिलाड़ी जेक प्लमर का जन्म 1974 में हुआ।

अमरीकन अभिनेता जेक गाइलनहाल का जन्म 1980 में हुआ।

19 दिसंबर को हुए निधन – 

1848 से 1856 तक भारत के गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी का निधन 1860 में हुआ।

महान् स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद् व साहित्यकार राम प्रसाद बिस्मिल का निधन 1927 में हुआ।

भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का निधन 1927 में हुआ।

भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों में से एक ठाकुर रोशन सिंह का निधन 1927 में हुआ।

ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मानित और प्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार उमाशंकर जोशी का निधन 1988 में हुआ।

लेखक और गाँधीवादी पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का निधन 2016 में हुआ।

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शनिवार, 18 दिसंबर 2021

लोक कलाकार भिखारी ठाकुर

 लोक कलाकार भिखारी ठाकुर 

(18 दिसम्बर 1887 - 10 जुलाई सन 1971) 

     भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक के रूप में भिखारी ठाकुर को जाना जाता है । वे बहु आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने सामाजिक कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वे एक महान लोक कलाकार थे जिन्हें 'भोजपुरी का शेक्शपीयर' कहा जाता है।

विख्यात काव्य नाटक "बिदेसिया" के लेखक भिखारी ठाकुर  बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। 

वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने इसी भाषा में अपने काव्य रचे जो भोजपुरी समाज में लोगों की जुबान पर चढ़े। 


भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। जीविको पार्जन के लिए खड़कपुर गये और खूब पैसे कमाए लेकिन मन नहीं भरा तो गांव की तरफ रवाना हो गये। 

भिखारी ठाकुर ने अपने 'नाच' के माध्यम से न सिर्फ़ लोक रंगमंच को मज़बूती प्रदान की बल्कि समाज को भी दिशा देने का काम किया है.

,     भिखारी ठाकुर का कलाकार मन आखिर जागा कैसे? वाक्या कुछ यूं है- किशोरावस्था में ही उनका विवाह मतुरना के साथ हो गया था। लुक-छिपकर वह नाच देखने चले जाते थे। नृत्य-मंडलियों में छोटी-मोटी भूमिकाएं भी अदा करने लगे थे। लेक‍िन मां-बाप को यह कतई पसंद न था। एक रोज गांव से भागकर वह खड़गपुर जा पहुंचे। इधर-उधर का काम करने लगे। मेदिनीपुर जिले की रामलीला और जगन्नाथपुरी की रथयात्रा देख-देखकर उनके भीतर का सोया कलाकार फिर से जाग उठा।

भ‍िखारी ठाकुर जब गांव लौटे तो कलात्मक प्रतिभा और धार्मिक भावनाओं से पूरी तरह लैस थे। परिवार के विरोध के बावजूद नृत्य मंडली का गठन कर वह शोहरत की बुलंदियों को छूने लगे। तीस वर्ष की उम्र में उन्होंने विदेसिया की रचना की। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। जन-जन की जुबान पर बस एक ही नाम गूंजने लगा- भिखारी ठाकुर!

 बिहार के छपरा शहर से लगभग दस किलोमीटर पूर्व में चिरान नामक स्थान के पास कुतुबपुर गांव में भिखारी ठाकुर का जन्म पौष मास शुक्ल पंचमी संवत् 1944 तद्नुसार 18 दिसंबर, 1887 (सोमवार) को दोपहर बारह बजे शिवकली देवी और दलसिंगार ठाकुर के घर हुआ था। यह गांव कभी भोजपुर (शाहाबाद) जिले में था, पर गंगा की कटान को झेलता सारण (छपरा) जिले में आ गया है। इसी गांव के पूर्वी छोर पर स्थित है भिखारी ठाकुर का पुश्तैनी घर।

मां-बाप की ज्येष्ठ संतान भिखारी ठाकुर ने नौ वर्ष की अवस्था में पढ़ाई शुरू की। एक वर्ष तक तो कुछ भी न सीख सके। साथ में छोटे भाई थे बहोर ठाकुर। बाद में गुरु भगवान से उन्होंने ककहरा सीखा और स्कूली शिक्षा अक्षर-ज्ञान तक ही सीमित रही। बस, किसी तरह रामचरित मानस पढ़ लेते थे। कैथी लिपि में लिखते थे। लेखन की मौलिक प्रतिभा उनमें जन्मजात थी। एक तरह से वह शिक्षा के मामले में कबीर दास की तरह ही थे।

वर्ष 1938 से 1962 के बीच भिखारी ठाकुर की लगभग तीन दर्जन पुस्तिकाएं छपीं। इन क‍िताबों को लोग फुटपाथों से खरीदकर खूब पढ़ते थे। अधिकतर क‍िताबें दूधनाथ प्रेस, सलकिया (हावड़ा) और कचौड़ी गली (वाराणसी) से प्रकाशित हुई थीं। नाटकों व रूपकों में बहरा बहार (विदेसिया), कलियुग प्रेम (पियवा नसइल), गंगा-स्‍नान, बेटी वियोग (बेटी बेचवा), भाई विरोध, पुत्र-वधू, विधवा-विलाप, राधेश्याम बहार, ननद-भौजाई, गबरघिचोर उनकी मुख्य क‍िताबें हैं।

समालोचक महेश्‍वराचार्य ने उन्‍हें 1964 में जनकवि कह कर संबोध‍ित क‍िया था। इसी तर‍ह कथाकार संजीव ने भिखारी ठाकुर की जीवन यात्रा पर 'सूत्रधार' उपन्यास की रचना की है। यह उपन्‍यास पढ़कर कोई भी भ‍िखारी ठाकुर की पूरी ज‍िंंदगी को समझ सकता है। इसमें कई ऐसे प्रसंग की चर्चा है ज‍िन्‍हें पढ़कर आप रो पड़ेंगे।


राहुल सांस्‍कृत्‍यायन ने कहा था भोजपुरी का शेक्‍सप‍ियर।


धोती, कुर्ता, मिरजई, सिर पर साफा और पैर में जूता पहनने के शौकीन भ‍िखारी ठाकुर गुड़ खाने के बहुत शौकीन थे। 10 जुलाई, 1971 (शनिवार) को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन ने भिखारी को भोजपुरी का शेक्सप‍ियर और अनगढ़ हीरा कहा था। जगदीशचंद्र माथुर ने उन्हें भरतमुनि की परंपरा का (प्रथम) लोक नाटककार कहा था।

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सोमवार, 6 दिसंबर 2021

सितम्बर -2021 , माह के सर्वोत्तम कर्मचारी

         पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल,  परिचालन विभाग  

 

     

(श्री विनय कुमार त्रिपाठी /महाप्रबंधक पूर्वोत्तर रेलवे, श्री प्रशांत कुमार तिवारी स्टेशन मास्टर /जहाँगीराबाद राज ,  लखनऊ मंडल को कार्य कुशलता प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए l ) 
 
   

   श्री प्रशांत कुमार तिवारी स्टेशन मास्टर /जहाँगीराबाद राज / लखनऊ मंडल, दिनांक - 30.08.21 को सरयू स्टेशन पर 08.00 से 16.00 बजे की पली में ड्यूटी पर कार्यरत थे l  सरयू स्टेशन से गाड़ी सं०- 09033 डाउन  थ्रू पास होने वाली थी l इन्हें 10.52 बजे सूचना मिली की  स्टेशन से कुछ दूरी  डाउन ट्रैक टेढ़ा हो गया है , जोकि गाड़ी संचलन के लिए असुरक्षित है l इनके द्वारा  तत्काल कार्यवाही करते हुए गाड़ी को 10.55 बजे सरयू स्टेशन पर रोका गया l  ड्यूटी के दौरान इनकी सतर्कता एवं कर्तव्यनिष्ठा के लिए दिनांक - 23.11.21 को महाप्रबंधक /गोरखपुर, महोदय  द्वारा इन्हें कार्यकुशलता प्रमाण पत्र प्रदान  करते हुए  माह के सर्वोत्तम कर्मचारी का पुरस्कार प्रदान किया गया l    

सोमवार, 29 नवंबर 2021

 हिमालयन वुड वैज

भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के उच्च स्तरीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र नेशनल ट्रेनिंग सेंटर पंचमढ़ी (मध्य प्रदेश) में  दिनांक 19 नवंबर से 25 नवंबर 2021 के मध्य आयोजित हिमालयन वुड वैज कोर्स में जिला संघ वाराणसी के राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त स्काउट मास्टर श्री अजीत कुमार श्रीवास्तव एवं स्काउट मास्टर श्री राजकिशोर ने स्काउट एंड गाइड्स के उच्च स्तरीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र नेशनल ट्रेनिंग सेंटर पंचमढ़ी में  सफलतापूर्वक भाग लेकर हिमालय वुड वैज प्राप्त किया । 23 राज्यों के 110 प्रतिभागियों के बीच पूर्वोत्तर रेलवे के 2 प्रतिभागियों ने विभिन्न प्रकार के कठिन टेस्टिंग स्किल में सफल होने पर हिमालय वुड बैज प्राप्त कर पूर्वोत्तर रेलवे का नाम रोशन किया। 






शनिवार, 27 नवंबर 2021

 भारत का संविधान

    दिनांक 26.11.2021 को प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक कार्यालय, पूर्वोत्तर रेलवे/गोरखपुर के गुड्स हाल में मुख्य परिवहन योजना प्रबंधक श्री संजय त्रिपाठी जी ने अधिकारियों एवं कर्मचारियों के समक्ष संविधान दिवस पर "भारत का संविधान" की उद्देशिका का पाठन किया ।सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारियों की शपथ ली।







            


बुधवार, 24 नवंबर 2021

गरीब नाथ मंदिर

 बाबा गरीबनाथ मंदिर, मुजफ्फरपुर

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   बिहार के मुजफ्फरपुर शहर में स्थित 'बाबा गरीबनाथ मंदिर आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है. मान्यता है कि इस मंदिर में भक्ति-भाव से मांगी गई भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस मंदिर में अपनी मुरादें लेकर जाते हैं. यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, इसलिए बाबा गरीबनाथ मंदिर 'मनोकामनालिंग' के नाम से भी मशहूर है.

सावन के महीने में इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. देवघर की तर्ज पर बाबा गरीबनाथ धाम में भी डाक बम गंगा जल लेकर महज 12 घंटे में बाबा का जलाभिषेक करने की परंपरा रही है. 

'बाबा गरीबनाथ मंदिर' ऐतिहासिक मान्यता

           इस मंदिर का इतिहास 300 साल से भी पुराना है. मान्यता है कि इस स्थान पर पहले घना जंगल हुआ करता था. इस जंगल के बीच सात पीपल के पेड़ थे. पेड़ की कटाई के समय अचानक खून जैसा लाल पदार्थ निकलने लगा और जब इस जगह की खुदाई की गई तो यहां से एक विशालकाय शिवलिंग मिला. लोग बताते हैं कि इसके बाद जमीन मालिक को सपने में भगवान शिव ने दर्शन दिए थे. तब से ही यहां पर बाबा भोलेनाथ की पूजा की जाने लगी.

इस तरह पड़ा था 'बाबा गरीबनाथ मंदिर' का नाम: 

          लोगों का मानना है कि एक बेहद ही गरीब व्यक्ति था, उसके एक बेटी थी. बेटी की शादी के लिए घर में कुछ भी नहीं था. एक दिन व्यक्ति को सपने में बाबा के दर्शन हुए. जिसके बाद शादी के सभी सामानों की आपूर्ति अपने आप हो गई. तभी से इस धाम का नाम 'बाबा गरीबनाथ' पड़ गया.

           बाबा गरीबनाथ शिवलिंग का प्राकट्य कब हुआ इसकी सही जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। सन 2006 ई. में बिहार राज्य धार्मिक न्यास पार्षद ने मंदिर का अधिग्रहण किया और मंदिर की व्यवस्था के लिए ग्यारह सदस्यों का एक ट्रस्ट बनवाया गया।

                    मंदिर प्रांगन में जो कल्पवृक्ष जिनकी पूजा होती है वे शिवलिंग के प्राकट्य से भी ज्यादा पुराना है । श्रावण मास में कांवरियों द्वारा सोनपुर से गंगाजल लाकर बाबा पर अर्पित करने की तीव्र शुरुआत सन्1960 के आस-पास से की गई । 

       बाबा गरीबनाथ धाम जाग्रत शिव-स्थल के रूप में निरंतर प्रसिद्द हो रहा है । यहाँ दूर दूर से आनेवाले श्रद्धालु भक्तों की आस्था इनके दर्शनोपरांत और भी गहरी होती चली जाती है। जन-जन का विश्वास देवाधिदेव महादेव में अकारण ही नहीं है।शिव सबके है ।जो भी शुद्ध मन और विश्वास के साथ इनके द्वार पर आता है,उसे दर्शन से केवल कृतार्थ ही नहीं करते बल्कि उसकी मनोकामना भी पूरी करते है। उसके दुखो को दूर करके उसके जीवन में सुख और आनंद का संचार करते है। जीवन के प्रति अटूट विश्वास और आत्मा के प्रति सजगता का निरंतर सन्देश देते हुए शिव समदर्शी भाव में सहज ही विराजते रहते है। उनके यहाँ कोई विभेद नहीं। जिसने भी उनका स्मरण किया,उनकी पूजा-अर्चना की उसी के वे हो गए । विषम परिस्थिति में भी शांतचित और शांतभाव से रहने की प्रेरणा देते हुए शिव चेतना के उस शिखर पर विराजते रहते है जहा से सबकुछ को सहज ढंग से देखा-समझा जा सकता है। संसार को संकटों से मुक्त कर देने वाला ही 'शंकर' होता है। सबके जीवन की रक्षा करने के लिए कालकूट विष का पान कर लेने वाला ही 'शिवशंकर' होता है । ओधर,आशुतोष भोलेदानी ही सही अर्थ में 'गरीबनाथ' होते है। जिसका कोई नहीं ईश्वर उसका सबसे ज्यादा होता है। शिव सबके अंतर्मन को झंकृत करते हुए आनंदमय वातावरण में जीव को खींच कर ले जाते है।

      बाबा गरीबनाथ जन-जन के महानायक है। दूर-सुदूर से पावन गंगाजल कंधे पर कांवर में सहेज कर कठिन डगर को पार करते हुए आस्था और उल्लास से भरे हुए स्त्री-पुरुष भक्त श्रद्धालु यहाँ आ कर गंगाजल से बाबा का अभिषेक करते है ।बाबा उसकी आस्था को स्वीकार करते हुए उसके मन को तृप्त करते है ।

(संकलन)


सोमवार, 8 नवंबर 2021

राष्ट्रीय अखंडता

     राष्ट्रीय अखंडता का भाव भारतीय संस्कृति के मूल में रहा है। इसके लिए हमारे पूर्वजों ने अपना पूरा जीवन खपाया है। उन्होंने इसे बनाए रखने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग तक किया। राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता भारत की शक्ति है। यही शक्ति हमें अद्वितीय एवं अजय बनाती है। वृहद राष्ट्र भारत अपनी राष्ट्रीय अखंडता के बल पर ही विश्व का सिरमौर बनने की दिशा में अग्रसर है। राष्ट्रीय अखंडता का भाव सनातन भाव है। हमारी संस्कृति ने भारत को केवल एक भौगोलिक इकाई भर नहीं माना है। उसमें इसे 'मां' कहा है। एक मां के नाते इसका सम्मान, सत्कार,पूजन व रक्षण किया है। हमारे पूर्वजों ने मातृत्व भाग से ही स्वीकार किया है। साथ ही वे इसकी रक्षा के लिए संकल्पित रहते हैं। राष्ट्रीय एकता ही हमारी उन्नति का कारक है। जब राष्ट्र पूरब से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र में बंधा हुआ है, तभी हम देश को आगे ले जा सकते हैं। राष्ट्रीय अखंडता हमारी निर्भरता का कारण भी है। हम अपनी राष्ट्रीय अखंडता के बल पर ही शत्रुओं के सम्मुख भी अडिग हैं। बांधव भाव से ही राष्ट्र को अखंडता व एकता के सूत्र में पिरोया जा सकता है। इसी बांधव एवं सहोदर भाव को जागृत करने की आवश्यकता है।

    स्वतंत्रता उपरांत के कालखंड में जब हमारे राष्ट्रीय एकता व अखंडता पर प्रश्नचिन्ह लगे हुए थे तब इसकी रक्षा के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल ने है भूमिका का निर्वहन किया। उन्होंने 'एक भारत- श्रेष्ठ भारत'  की महान कल्पना को साकार करने के लिए अपनी पूरी सामर्थ के साथ कार्य किया। उन्होंने मोतियों जैसे विभिन्न के आंसू तो एक माला में पिरो कर राष्ट्र बनाया था। वह कहा करते थे, 'एकता के बिना जनशक्ति, शक्ति नहीं है। जब तक कि उसे उचित प्रकार से सामान्य से मिलाकर एकजुट न किया जाए।' उन्होंने सदैव एकजुटता पर बल दिया। आज हमें इसी एकजुटता के भाव के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।


गुरुवार, 4 नवंबर 2021

 दीपावली पर विशेष-

कब जलेगा मन का दीप

                                --भानु प्रकाश नारायण

 प्रशांत का मन आज अशांत था । क्योंकि आज कार्तिक कृष्ण अमावस्या की पावन तिथि है

। आज दीपों का पावन पर्व दीपावली मनाई जाएगी । तम को नाश करने का एक नाटक रचा जाएगा ।यही सब तो प्रशांत पिछले 30 वर्षों से देखता और न चाहते हुए भी उसमें शरीक होता चला आया था। पर ,आज वह सुबह से ही बेचैन है। सोचता है अपने प्यारे वतन के बारे में। अपने बारे में और कह उठता है - 

कांटे सदा चुभे पांवों में 

झोली में कब फूल मिला 

जलता रहा धूप बत्ती सा

 कभी न मन का सुमन मिला। 

यही सब सोचता हुआ आगे बढ़ता जाता है अपने शिष्यों के घरों की ओर।

सोचता है आज जरूर पैसे मिलेंगे। भला क्यों नहीं मिलेंगे?30 दिनों तक पैरों के तलवे घिसे हैं ।तभी  उसकी नजर सड़क के किनारे पत्थर के टुकड़े करते हुए मजदूर करते हैं प्रशांत देखकर सोचता है क्या आज दीपावली है कहीं भूल तो नहीं क्या सोचता है नहीं नहीं मुझे पूरा याद है आज ही दीपावली है पर मेरे जैसे ही भारत से अलग हो 50 करोड़ जनता को क्या मतलब श्लोक दीप जलाएंगे हम भी जला देंगे उनके बच्चे पटाखे की धमाचौकड़ी करेंगे हम लोग के बच्चे लग जाए आंखों से देख कर मन मसोसकर रह जाएंगे तभी एक पटाखे की आवाज सुनकर जाता है बच्चे उठाकर हंसते हैं उन्हें मजा आता है आगे बढ़ जाता है सामाजिक व्यवस्था के बारे में आज हम अंधकार की कोशिश कर रहे हैं क्या पर क्या हम अंधकार बढ़ा सकेंगे हिंसा लूटपाट व स्थिरता की आग में जलाकर अपनी पावन धरती आज मानवता के मरदह संस्कृति और विरासत मूल्यों के सर्वनाश प्रति घटती जा रही है स्वार्थ भ्रष्टाचार का बोलबाला है हमारे समाज में जो की लंबी कतारें देखें

को मिल रही है फ्रेंड प्रशांत की तो सरकारी नौकरी के चक्कर में कहां-कहां आज मानवता अपनी मर्यादा संस्कृति और विरासत मूल्यों के सर्वनाश पर रोती बिलखती जा रही है आज धन एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला है हमारे समाज में बेरोजगारी रोक लंबी कतारें देखने को मिल रही है स्वयं प्रशांत भी तो सरकारी नौकरी के चक्कर में कहां-कहां नहीं पड़ता दर की ठोकरें खाई पता है सब जगह निराशा ही हाथ लगी प्रशांत सोचता है आज हम प्रकाश पर्व बनाने जा रहे हैं तमसो मा ज्योतिर्गमय कहा जा रहा है हां सही ही तो है अंधकार में तो दीप जलाने का आवश्यकता होती है जब से हम स्वतंत्र हुए हैं हम आलसी और आराम तलबी होते जा रहे हैं आज के सैनिक हो और में तो बोलो के आगे हमारे टिमटिमाते हुए दीपों के बिल साथ ही क्या रह गई है कितने सपने संजोए थे प्रशांत ने लेकिन कभी अपने सभी सपने भीतर के दफन होते जा रहे हैं ना चाहते हुए भी समाज ने उसके साथ नीलिमा का पल्लू बांध दिया था आज भी दो बच्चे भी आ चुके हैं अपने लिए ना सही उन लोगों के लिए कुछ सोचना ही है कुछ करना ही है कैसे समझाएगा उन लोगों को हम लोगों ही नहीं हम स्थिति में हैं फिर भी मारे मारे हमारा हम आप से भी बदतर स्थिति में है पर क्या बच्चे अपने सामने की हवेली से उड़ते हुए संकट को देखते हुए पटाखों की आवाज को सुनकर समझते हैं दीपावली का हमेशा हमारे संस्कार और जीवन से संबंधित है इतना अच्छा होता है यदि आज का जलता हुआ दीपक के साथ हमारी आत्मा को एक नई रोशनी शक्ति देती है दूसरे के दुख दर्द को समझते हमारी पुरानी सभ्यता और संस्कृति का आगमन होता ।

बुधवार, 3 नवंबर 2021

समाधान वृक्ष

समाधान वृक्ष

         अर्चना और रवि परिवार के दो स्तंभ यानि पति और पत्नी के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं।  दोनों सुबह ही काम पर निकल जाते थे। दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था।पत्नी अर्चना भी एक प्राइवेट कम्पनी में जॉब करती थी। वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी। ऐसी ही परेशानियों से जूझकर अर्चना लौटती है। खाना बनाती है। शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं।

थक-हार कर अर्चना अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है। बच्चे विद्रोही हो चले हैं। एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है। उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया। प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स गिर गया...।इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।

काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई और वह उसे गाड़ी में छोड़ने चली गई। प्लंबर ने उसे बहुत आदर से चाय पीने का आग्रह किया। प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया, चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया। घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया, मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा। 

अर्चना यह देखकर हैरान थी। बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया - यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है। मैं सारी समस्याओं का बोझा रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ।चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता। सुबह जब थैला उतारता हूं तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है। इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं। प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है, तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ। उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था...! 

यह घर-घर की हकीकत है। गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है। सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं। प्लंबर का वह ‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है। क्यों न हम सब भी एक-एक वृक्ष ढूँढ लें ताकि घर की दहलीज पार करने से पहले अपनी सारी चिंताएं बाहर ही टाँग आए।

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(संकलन)

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

66 वॉं रेल सप्‍ताह पुरस्‍कार वितरण समारोह (महाप्रबन्‍धक पुरस्‍कार) 2020 - 21

         महाप्रबन्‍धक महोदय द्वारा दिनांक 29-10-2021 को सैयद मोदी रेलवे स्‍टेडियम में खुले समारोह में 66 वॉं रेल सप्‍ताह पुरस्‍कार का वितरण किया गया। 

        महाप्रबन्‍धक महोदय द्वारा इस अवसर पर परिचालन विभाग के 02 अधिकारियों तथा 08 कर्मचारियों को पुरस्‍कृृतकिया गया जिसमें मुख्‍यालय में कार्यरत सचिव/प्रमुख मुख्‍य परिचालन प्रबन्‍धक श्री एस. के.कन्‍नौजिया, मुख्‍य यातायात निरीक्षक श्री भानु प्रकाश नारायण एवं श्री सत्‍य प्रकाश सत्‍संगी सम्मिलित हैं।






सोमवार, 1 नवंबर 2021

निबंध प्रतियोगिता

 केन्द्रीय सतर्कता आयोग,नई दिल्ली के निर्देशानुसार दिनांक 26. 10 .21 से लेकर 01 .11.21 तक सतर्कता विभाग पूर्वोत्तर रेलवे/गोरखपुर में  सतर्कता जागरूकता सप्ताह 2021 के अंतर्गत आयोजित आन लाइन  निबंध प्रतियोगिता ,विषय- स्वतंत्र भारत @ 75: सत्य निष्ठा से आत्मनिर्भरता, में प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक कार्यालय/गोरखपुर के श्री प्रदीप कुमार दुबे , मुख्य यातायात निरीक्षक (माल) को प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।




इसके अलावा

यांत्रिक कारखाना, गोरखपुर के श्री मती ज्योति चौरसिया,सी. से.इंजी./विद्युत,को द्वितीय पुरस्कार एवं श्री सुरेश महतो, वरिष्ठ अनुवादक/ निर्माण, गोरखपुर को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ


परिवर्तन

 परिवर्तन

-         मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन में जिस तरह से छोटा-मोटा परिवर्तन समय-समय पर होता रहा है तथा किसी-किसी समय पर एक बड़ा परिवर्तन भी हो जाता है। इसी तरह मनुष्य के सामाजिक जीवन में भी छोटा-मोटा परिवर्तन होता आ रहा है ।

 जब कोई छोटा-मोटा परिवर्तन आता है तब मनुष्य व्यक्तिगत या सामूहिक प्रयास से उस परिवर्तन (नवीनता) के साथ अपने को मिला लेता है अथवा जरूरत पड़ने पर मनुष्य छोटा-मोटा परिवर्तन खुद ही करता रहता है और आगे बढ़ता जाता है। इन छोटे-मोटे परिवर्तनों की जब जरूरत पड़ती है अथवा परिवर्तित परिस्थिति में स्वयं को मिला लेने की आवश्यकता होती है। तब मनुष्य समाज में नाना प्रकार के नायक आते हैं जो मनुष्य को उसी तरह से कंधे से कंधा मिलाकर चलना सिखाते हैं ऐसे ही अग्रपुरुष प्राचीन काल में ऋषि कहे जाते थे। इन ऋषि मुनियों का युग अतीत में भी था. आज भी है और भविष्य में भी रहेगा। देखा जाए तो अतीत के गणमान्य ऋषियों के नाम से आज भी मनुष्य अपना परिचय देकर गौरवान्वित होते हैं जैसे कोई अपने को भार्गव बताता है तो कोई भारद्वाज, कोई कश्यप बताता है तो कोई गर्ग, कोई वशिष्ठ बताता है तो कोई कुछ और। अतीत के प्रधान पुरुष ऋषि मुनि के रूप में माने जाने वाले की अपेक्षा आज के प्रधान नायक समाज के नेता या पुरोधा कहे जाते हैं ये वही अग्रपुरुष हैं जो समाज की बेहतरी के लिए आगे आते हैं .... कहते हैं .... चलो मैं तुम लोगों के साथ हूँ। तुम लोगों की उन्नति में बाधा-विपद आए तो आए, पहले मेरे ऊपर ही आएगी। यदि आकाश टूट पड़े तो मेरे ऊपर ही पहले टूटेगा, सबका सामना पहले मैं ही करूँगा। ऐसे सामर्थ्य शील व्यक्ति ही 'सदविप्र' हैं।

      मनुष्य का अस्तित्व एक भाववाही प्रवाह है, भाव मुखीन प्रवाह है अर्थात् इसमें एक सामग्रिक गतिशीलता है। जो जड़ है, जो स्थिर है, जो परिवर्तन पसन्द नहीं करते, वे इस गतिशीलता के विरुद्ध चलते हैं, गतिशीलता के विरुद्ध जाकर कोई ठीक नहीं रह सकता, कोई बच नहीं सकता क्योंकि गतिशीलता का विरोध करने का अर्थ है- मृत्यु का वरण करना, मृत्यु का आह्वान करना इसलिए चलना ही होगा लेकिन कहाँ? मानव -धर्म की धूरी पर। अतीत में देखा गया है जो शिथिल हो रुक जाते हैं, भटक जाते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। हालांकि सब समय धर्म की गति एक सी नहीं रहती। कभी कम होती है तो कभी बढ़ती है, जब गति कम होती है तब समाज पंक कुण्ड में जा धंसता है और जब बहुत ही कम हो जाती है तब समाज में गंदगियों का पहाड़ खड़ा हो जाता है। इस कारण दूसरे स्तर पर गति की द्रुति को बहुत बढ़ाना पड़ता है क्योंकि स्वाभाविकता लाना ही यथेष्ट नहीं होता क्योंकि अगति के कारण जो गंदगियां जम गई थी उन्हें भी दूर करना आवश्यक हो जाता है। हर इंसान का यह फर्ज है कि वे जब देखेंगे कि समाज की गति में द्रुति रुक गई है तो गति में द्रुति लाने के लिए धक्का लगाएंगे धक्का लगाने वाले ही सद्विप्र हैं, वही है समाज के वरेण्य, समाज के पूजनीय समाज के पथ प्रदर्शक ।   

           प्राचीन काल के मनुष्य को आग का आविष्कार करने में लाखों वर्ष लग गये, बैलगाड़ी का आविष्कार करने में लाखों वर्ष लगे थे। इसलिए अनेक प्राचीन सभ्यताएं अतीत में इतिहास के पन्नों से अवलुप्त हो गयी हैं। इसका एकमात्र कारण है, वे पहिये का आविष्कार नहीं कर पाये थे। उन्होंने नाव का आविष्कार किया था किन्तु पहिये का आविष्कार न कर सकने के कारण गाड़ी का आविष्कार नहीं कर पाये थे। दक्षिण अमेरिका की 'माया सभ्यता' का पतन इसी तरह से हुआ था ।

   जीव की मृत्यु होती है। मृत्यु भी हुआ एक विशेष परिवर्तन है, वह ऐसा परिवर्तन है कि पूर्व के आदिम रूप के साथ वर्तमान रूप का कोई सामंजस्य नहीं है। एक शिशु की (रूपगत) मृत्यु हो गई- एक परिवर्तन हुआ। किन्तु हम लोग सामान्य रूप से समझते हैं कि यही शिशु बालक हुआ है। वह ही युवक हुआ है, वह ही प्रौढ़ हुआ तथा वह ही वृद्ध हुआ– इसे हम लोग सामान्य रूप से समझ लेते हैं, किन्तु वही वृद्ध जब फिर से शिशु होकर आया, तब पार्थक्य इतना अधिक हो गया है कि हम उस सम्बन्ध को फिर से खोज नहीं पाते। मृत्यु भी एक परिवर्तन है, और जन्म ग्रहण करना भी एक परिवर्तन है ।

-       इतिहास बताता है, ऐसा छोटा मोटा परिवर्तन चलता ही रहता है। किन्तु बीच-बीच में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आता है। जैसे प्राचीन काल के मनुष्य को जब कुछ जरूरत पड़ती, उसे सूर्य के ताप से काम चला लेते अर्थात् धूप में गर्म करके काम चला लेते। तब आग का आविष्कार नहीं हुआ था। परवर्ती काल में मनुष्य ने आग का आविष्कार किया; वह भी विराट परिवर्तन कह कर माना गया। मनुष्य के इतिहास में प्राचीन काल के मनुष्य ने जब बैलगाड़ी का आविष्कार किया, तो वह भी एक विराट परिवर्तन था। यह एक बड़े प्रकार का वैज्ञानिक आविष्कार था ।

    मनुष्य समाज के प्रागैतिहासिक युग के बाद सभ्यता का आगमन कह सकते हैं, आज से पन्द्रह हजार वर्ष पहले अर्थात् ऋगवेद के समय में हुआ। किन्तु ऋगवेद की रचना चल रही थी गत पन्द्रह हजार वर्षों से गत पाँच हजार वर्षों के बीच तक- अर्थात् दस हजार वर्षों तक। ऋक् वेदीय युग के अन्त में सदाशिव के समय अब, बड़ा परिवर्तन आया।

 तो सदाशिव के समय में हम पाते हैं-उन्होंने मनुष्य के जीवन के धारा प्रवाह को, विभिन्न अभिव्यक्तियों को विभिन्न रूप दिया-नृत्य में, गान में, चिकित्सा में, सभ्यता में सभी कुछ में। अतः यह हुआ एक बड़ा परिवर्तन, अतिवृहत् परिवर्तन-जो परिवर्तन इसके पहले कभी नहीं हुआ था।

     एक बड़ा परिवर्तन, विराट विप्लव-यह सब साधारण नेता या साधारण ऋषि के द्वारा सम्भव नहीं है। इस तरह का परिवर्तन जो लाते हैं, मैं उन्हें ही कहता हूँ सदविप्र-जो वास्तविक रूप से इस परिवर्तन के साथ मनुष्य को सम्भाल कर ले चलना जानते हैं, चल सकते हैं तथा पथ निर्देशना देते हैं। किन्तु ऐसा विराट परिवर्तन जब आता है जैसे सदाशिव ने लाया-वह सदविप्र का काम नहीं है। 

  दार्शनिक परिभाषा में  लोग उस नेता को कहते हैं- महासदविप्र, किन्तु शास्त्र की भाषा में उन्हें कहा जाता है तारक ब्रह्म। सदाशिव थे 'तारक ब्रह्म', 'महासदविप्र'-जो मनुष्य जाति के सर्वात्मक नेता हैं।

       फिर इस परिवर्तन के बाद धीरे-धीरे गति में शिथिलता आई, गति का वेग कम हो गया-नाना आविलता, आवर्जना आई। विभिन्न यन्त्रों में जंग पकड़ लिया। तब आवश्यकता पड़ी पुनः महासद्विप्र के आने की-जो फिर से धक्का देकर ठीक ढंग से ठीक पथ पर मनुष्य को चला सकें। 

      आज से अनुमानिक साढ़े तीन हजार वर्ष पहले श्रीकृष्ण आए। उन्होंने भी ठीक ऐसा ही परिवर्तन लाकर मानव समाज में नया एक प्राण स्पन्दन जगा दिया था। कृष्ण के समय भी क्या हुआ ? कृष्ण मानव समाज में विराट परिवर्तन लाए। किन्तु उनके जो सहायक थे वे सभी लोग ज्ञानी गुणी, महामहोपाध्याय पण्डित थे ? ऐसी बात नहीं, वे साधारण मनुष्यों में से ही आए थे। वे थे भक्त, वे मनुष्य के कल्याण करने हेतु कृष्ण का निर्देश चाहते थे। वे ब्रज के गोप बालक थे, व्रज की गोपियाँ थीं। उनकी एकमात्र पूँजी थी इष्ट निष्ठा। कृष्ण के प्रति निष्ठा। वे इसीलिए सार्थक हो उठे थे। विद्या बुद्धि से उतना अधिक कार्य नहीं होता है, जितना कि आन्तरिकता से।

     युग बदल गया है। आज नाना प्रकार की समस्यायें आई हैं। नये-नये प्रकार की प्रस्तुति की आवश्यकता दिखाई पड़ रही है- मानसिक प्रस्तुति, शारीरिक प्रस्तुति-सर्वात्मक प्रस्तुति। समाज के रोम रोम में आविलता अणुप्रविष्ट हो गई है। इनके विरुद्ध में सच्चे मनुष्य को एकजुट होकर परिवर्तन संसाधित करना होगा। इतना ही नहीं परिवर्तन लाने के लिए मनुष्य को सम्पूर्ण रूप से स्वयं को तैयार करना होगा। जिस प्रकार बुरा कार्य करने के लिए भी मनुष्य को तैयार होना पड़ता है, उसी प्रकार अच्छा कार्य करने के लिए भी मनुष्य को तैयार होना पड़ता है। उसका एक प्रस्तुति पर्व होता है। दीर्घ काल से प्रस्तुति पर्व चल रहा है, आज परिवर्तन अवश्यम्भावी हो गया है। और देर करना मानो बर्दास्त नहीं हो रहा है ।

   आज श्री कृष्ण के समय के बाद प्रायः साढे तीन हजार वर्ष हो गये हैं। शिव के समय से प्रायः आज सात हजार वर्ष हो गये हैं। आज के मनुष्य को भी उसी तरह से तैयार होना पड़ेगा। नये आदर्श को लेकर नवतर संग्राम में कूद पड़ना होगा, मनुष्य जाति के सामूहिक कल्याण के लिए। जब ऐसा विराट परिवर्तन अतीत में आया है जिस तरह से शिव के समय में आया था, कृष्ण के समय में आया था तब नये दर्शन, नये जीवनवाद से प्रकाश प्रदीप्त करने की प्रेरणा लेकर मनुष्य प्रस्तुत हुआ था। इसीलिए उन्होंने थोड़े समय में ही अपने कार्य को पूरा कर लिया था। परिवर्तन लाने के लिए संग्राम करना ही होगा। और वह संग्राम कभी अधिक समय लेता है, तो कभी कम समय लेता है। जहाँ पर किसी विराट पुरुष से प्रेरणा लेकर मनुष्य कार्य में लगता है, तब कुछ ही समय में ही वह हो जाता है। तब मनुष्य को सोच-समझ कर देखना पड़ता है कि उनके समक्ष कौन-कौन सी समस्यायें हैं। और उसी के मुताबिक अपनी उन समस्याओं के समाधान के लिए तैयार होना पड़ता है। तैयार हो जाने पर काफी कम समय में ही वह अभीष्ट सिद्धि हो सकती है। तो आज के इस मनुष्य समाज को खण्डित रूप में न देख अखण्ड रूप में देखना होगा तथा जिन बड़े परिवर्तनों की आवश्यकता आई है, आवश्यकता तो आ ही गई है- तथा उनमें कौन कौन अत्यन्त मुख्य हैं और कौन गौण हैं, उन्हें छाँटकर मुख्य समस्याओं के समाधान के लिए तुरन्त ही, इसी मुहूर्त से ही मनुष्य को तैयारी करनी होगी, क्योंकि जितनी देर होती है, की जाती है, मनुष्य जाति के दुःख का दिन उतना ही दीर्घायत, होगा। इसलिए विलम्ब करने से नहीं चलेगा।  मनुष्य जाति के सामूहिक कल्याण के लिए सामाजिक अर्थ नैतिक मानव-दर्शन (Socio Economic Human Philosophy)  लेकर हमें  सत्कर्म में अपना- अपना योगदान सुनिश्चत करना चाहिए। कहावत है 'शुभस्य शीघ्रम्' अशुभस्य कालहरणम् । शुभ कार्य जब करना ही है, तब पोथीपत्रा, तिथि, नक्षत्र देखकर करने की जरूरत नहीं। इसी मुहूर्त से जुट जाने की जरूरत है। और जब अशुभ कार्य करना पड़े, तब जितना हो सके देरी कर दो, जिससे देर करते-करते मनोभाव में परिवर्तन आ जाता है- मन सोचता है- नहीं, यह सब बुरा काम है, वह सब मैं नहीं करूँगा ।तो सत्कार्य में जब हमलोगों को जुटना है, और सत्कार्य जब कर रहे हैं  तब थोड़ा भी विलम्ब नहीं करना चाहिए क्योंकि इस व्यावहारिक जगत् में, इस आपेक्षिक जगत् में सबसे मूल्यवान् आपेक्षिक तत्त्व है 'समय'। समय एक बार बीत जाने पर और फिर वापस नहीं आता। इसलिए समय का अपव्यवहार या अव्यवहार नहीं करना चाहिए।

   #  (संकलन)

शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

रेल सप्ताह पुरस्कार 2021

 66 वां रेल सप्ताह पुरस्कार वितरण समारोह 2021

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        पूर्वोत्तर रेलवे का 66 वां रेल सप्ताह पुरस्कार वितरण समारोह शुक्रवार दिनांक 29 अक्तूबर 2021 को सैयद मोदी रेलवे स्टेडियम , गोरखपुर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। करोना काल में उत्कृष्ट कार्य कर निर्बाध ट्रेन संचालन में अहम योगदान देने वाले मुख्यालय गोरखपुर सहित लखनऊ , वाराणसी एवं इज्जत नगर मंडल के 109 रेलकर्मियों  सम्मानित किया गया ।

        महाप्रबंधक श्री विनय कुमार त्रिपाठी जी ने


रेलकर्मियों को उत्कृष्ट कार्य करने हेतु गोल्ड प्लेटेड मेडल, प्रशस्ति पत्र और नकद पुरस्कार प्रदान किया ।   
  महाप्रबंधक महोदय ने व्यक्तिगत पुरस्कार के अलावा 26 सामूहिक पुरस्कार, 20 अंतर मंडलीय कार्यकुशलता शील्ड, सर्वोत्तम अनुरक्षित गैंग 11 ट्रैक मेंटेनर तथा नौ अन्य  पुरस्कार प्रदान किया । जिसमें अंतरमण्डलीय  सर्वांगीण कार्यकुशलता शील्ड वाराणसी मंडल को दी गई। 

         महाप्रबंधक महोदय ने इस अवसर पर प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक श्री अनिल कुमार सिंह की उपस्थिति में परिचालन विभाग के निम्नलिखित कर्मचारियों को सम्मानित किया -

1.श्री शेख समी उर रहमान,मंडल परिचालन प्रबंधक /संचलन, लखनऊ

 2.श्री संजय कुमार कन्नौजिया ,

सचिव/ प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक, गोरखपुर

 3.श्री आशुतोष सुमन, यातायात निरीक्षक / प्लानिंग मंडल परिचालन कार्यालय ,वाराणसी ।

4.श्री सत्य प्रकाश ,स्टेशन अधीक्षक /हल्दी रोड 

5.श्री सत्य प्रकाश सत्संगी, मुख्य यातायात निरीक्षक ,प्रमुख मुख्य परि. प्रबंधक कार्यालय, गोरखपुर ।

6.श्री अनिल पांडेय ,यातायात निरीक्षक 

मंडल परिचालन कार्यालय, लखनऊ ।

7.श्री नवनीत कुमार, स्टेशन अधीक्षक , सीवान।

8.श्री सरफराज खान .गेट मैन , गेट संख्या 197-सी, रुदायन

9. श्री भानु प्रकाश नारायण ,

मुख्य यातायात निरीक्षक ,  प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक कार्यालय, गोरखपुर

10. श्री चौधरी ललित कुमार ,

फाटक वाला, गेट संख्या 18-सी, तहसील फतेहपुर।

     प्रमुख मुख्य कार्मिक अधिकारी रीता पी हेमराजानी ने इस अवसर पर अतिथियों का स्वागत किया।

 इस मौके पर पूर्वोत्तर रेलवे महिला कल्याण संगठन की अध्यक्षा श्रीमती मीना त्रिपाठी और अपर महाप्रबंधक श्री अमित कुमार अग्रवाल सहित समस्त विभागाध्यक्ष ,मंडल रेल प्रबंधक अधिकारी और कर्मचारी मौजूद थे इस अवसर पर पूर्वोत्तर रेलवे कला समिति के कलाकारों ,रेलवे स्कूल के छात्र -छात्राओं ने मनोभावन सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

    मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री पंकज कुमार सिंह ने संचालन और उप महाप्रबंधक/ सामान्य श्री के. सी. सिंह ने आभार ज्ञापित किया ।