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बुधवार, 28 जनवरी 2015

आपदा प्रबंधन

- एन. के. सिन्हा

आपदा क्या है?
आपदा अचानक आने वाली ऐसी विपदाजनक परिस्थिति है जो रेल उपयोगकर्ताओं, यात्रियों, कर्मचारियों एवं उनके परिजनों के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है।

आपदाओं का वर्गीकरण
रेलवे के संदर्भ में आपदाओं का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है -
- प्राकृतिक आपदाएं जैसे कि बाढ़, भूकम्प, चक्रवात, भूस्खलन इत्यादि।
- गाड़ी दुर्घटनाओं से संबंधित आपदाएं जैसे कि टक्कर, अवपथन, गाड़ियों में आग लगना, समपार पर दुर्घटनाएं इत्यादि।
- तोड़फोड़ एवं आतंकवादी घटनाओं से संबंधित आपदाएं जैसे कि बम विस्फोट, रेलवे के संचालन तंत्र को विफल करना इत्यादि।

आपदा प्रबंध
इसमें निम्नलिखित चरण हैं-
1. आधारभूत ढांचे को मजबूत करना –
आपदा से निपटने के लिए जरूरी है कि हमारा आधारभूत ढांचा मजबूत हो। रेलपथ, पुल, चल स्टॉक, सिगनलिंग उपस्कर इत्यादि तथा संपूर्ण प्रणाली आपदाओं का सामना करने के लिए सक्षम होनी चाहिए।

2. आपदा प्रबंधन के लिए योजनाएं एवं पूर्व तैयारी –
गाड़ी संचालन में होने वाली आपदाएं सदैव अप्रत्याशित होती हैं। अप्रत्याशित घटनाओं के लिए हमें सदैव तैयार रहना चाहिये तथा आपदा के प्रभाव को न्यूनतम रखने, यातायात को दुबारा जल्दी से जल्दी चालू करने एवं शीघ्र पुनस्र्थापन के लिए उचित योजना होनी चाहिये। प्रभावी आपदा योजना के लिए प्रत्येक संभावित कमजोरियों की पहचान करना और उनसे निपटने के लिए उचित कार्यवाही प्रभावी ढंग से करना जरूरी है। इसके लिए उपलब्ध साधनों के उपयोग की जानकारी तथा विभिन्न पदाधिकारियों को उनके द्वारा की जाने वाली ड्यूटी एवं रणनीति के बारे में पहले से जानकारी होनी चाहिए। संभावित आपदाओं से निपटने के लिए पूरी कार्य योजना पहले से तैयार होनी चाहिए।

3. आपदा के बाद बचाव एवं राहत कार्य -
- दुर्घटना स्थल का भयावह दृश्य - आपदा के बाढ़ प्रभावित स्थल की स्थिति सबसे अधिक भयावह एवं मुश्किल होती है। चारों ओर फैले शव, घायलों की चीखें और करूण क्रंदन दुर्घटना स्थल की स्थिति को भयावह बनाते हैं।

- रात्रि का समय एवं खराब मौसम - अधिकांश दुर्घटनाएं रात्रि में होती हैं एवं कई बार खराब मौसम की परिस्थितियां जैसे कि बरसात, सर्दी, कोहरे आदि के कारण कार्य करने में कठिनाईं होती है।

- पहुंचने में कठिनाई - दुर्घटना अधिकांशतः ब्लॉक सेक्शन में होती है जहां कई बार सड़क सुविधा दूर होने से पहुंचने में कठिनाई होती है।

- संचार सुविधाओं का अभाव - दुर्घटना स्थल मोबाइल कवरेज एरिया से दूर होने एवं आसपास संचार सुविधा न होने से संचार में बाधा उत्पन्न होती है।

रेलकर्मियों का दायित्व - स्वर्णिम प्रहर (Golden Hour)
दुर्घटना के बाद रेलकर्मियों का सबसे पहला दायित्व यह है कि घायलों की जान बचाई जाये। दुर्घटना के बाद अधिकांड मृत्यु अधिक खून बहने, सदमें एवं चिकित्सा सहायता में देरी की वजह से होती हैं। ऐसा देखा गया है कि यदि घायलों को एक घण्टे के अंदर चिकित्सा सहायता मिल जाये तो अधिकांश घायलों की जान बचाई जा सकती है। अतः दुर्घटना स्थल पर उपस्थित रेलकर्मियों एवं सहायता दलों को स्वर्णिम प्रहर (Golden Hour) अर्थात दुर्घटना के बाद पहले घण्टे का उपयोग लोगों की जान बचाने के लिए करना चाहिए।

दुर्घटना राहत उपाय
इसके अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया जा सकता है:-

- दुर्घटना प्रबंध - इसके अंतर्गत दुर्घटना स्थल पर उपस्थित वरिष्ठतम अधिकारी दुर्घटना प्रबंधक के रूप में वहां का कार्यभार संभालेंगे और वहां उपस्थित रेल कर्मचारियों को  से एच तक आठ समूहों में बांटकर उन्हें विशिष्ट कार्य सौंपे जायेंगे।

- सहायता गाड़ियां - दुर्घटना स्थल पर सहायता के लिए दुर्घटना राहत गाड़ी एवं चिकित्सा राहत गाड़ी का संचालन तत्परता से किया जाना चाहिए।

- यातायात को दुबारा चालू करना - दुर्घटना के बाद रेलपथ की मरम्मत, ओ.एच.ई., प्वाइंट और सिगनल आदि की खराबियों को ठीक करना, लाईन पर गिरे हुए डिब्बों को उठाना, संचार सुविधाओं को चालू करना इत्यादि कार्य शीघ्रतापूर्वक करके यातायात को दुबारा जल्दी से जल्दी चालू किया जाना चाहिए। इसके लिए पर्याप्त संसाधनों को दुर्घटना स्थल पर शीघ्र पहुंचाना चाहिए।

दुर्घटना राहत के लिए उपलब्ध संसाधन

1. संसाधन यूनिट-। - प्रभावित गाड़ी में एवं दुर्घटना स्थल के आसपास उपलब्ध रेलवे एवं गैर रेलवे संसाधन -

- रेलवे संसाधन - गाड़ी में उपलब्ध प्राथमिक चिकित्सा उपकरण, पोर्टेबल कंट्रोल टेलीफोन, अग्निशमन यंत्र, वॉकी-टॉकी, रेल कर्मचारी इत्यादि।

- गैर रेलवे संसाधन - गाड़ी में यात्रा कर रहे डॉक्टर, आसपास के गांव, कस्बे आदि से आने वाले स्वयंसेवक, वाहन एवं उनके द्वारा दी जाने वाली सहायता।

- आसपास उपलब्ध रेलवे संसाधन - दुर्घटना स्थल के पास कार्य कर रहे गैंगमेन, ओ.एच.ई स्टॉफ, सिगनल एवं दूर संचार स्टॉफ इत्यादि।

2. संसाधन यूनिट-II - मंडल में एआरएमई/एआरटी डिपो या अन्य स्थानों पर उपलब्ध रेलवे संसाधन।

3. संसाधन यूनिट-III - नजदीकी क्षेत्रीय रेलवे/डिविजन पर एआरएमई/एआरटी डिपो या अन्य स्थानों पर उपलब्ध रेलवे संसाधन।

4. संसाधन यूनिट-IV - डिविजन में या उसके बाहर उपलब्ध गैर रेलवे संसाधन

दुर्घटना स्थल पर UCC एवं CARE की स्थापना

- Unified Command Centre (UCC) - दुर्घटना स्थल पर सहायता, राहत एवं पुनस्र्थापना कार्यों पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए एक यूनिफाइड कमान्ड सेंटर की स्थापना की जाती है।

- Combined Assistance and Relief Enclosure (CARE) - दुर्घटना में प्रभावित यात्रियों के पुनस्र्थापना एवं सहायता, शवों की देखभाल, यात्रियों के सगे संबंधियों को जानकारी एवं सहायता आदि कार्यों के लिए CARE की स्थापना की जाती है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंध अधिनियम
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंध अधिनियम पारित किया गया है, जिसके अंतर्गत किसी भी आपदा के संबंध में सहायता करना एक वैधानिक दायित्व घोषित किया गया है। कोई भी अस्पताल या अन्य एजेंसी ऐसे समय पर सहायता के लिए मना नहीं कर सकते हैं। इसके अंतर्गत एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंध ऑथोरिटी का गठन किया गया है, जिसके चेयरमैन स्वयं प्रधानमंत्री हैं। इसी प्रकार राज्य आपदा प्रबंध ऑथोरिटी एवं जिला आपदा प्रबंध ऑथोरिटी का भी गठन किया गया है। आपदा के समय सहायता के लिए आठ विशेष बटालियनों का गठन किया गया है, जिसमें सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएफ एवं इण्डो तिब्बत बार्डर पुलिस की दो-दो बटालियन शामिल हैं।


रेल कर्मचारियों की गलती से जो दुर्घटनाएं होती हैं, उससे रेलवे की छवि धूमिल होती है। लेकिन दुर्घटना के बाद रेलवे द्वारा यात्रियों को दी जाने वाली सहायता एवं यातायात को दुबारा चालू करने का कार्य जितनी शीघ्रता एवं प्रभावशाली ढंग से किया जायेगा, उतनी ही रेलवे की छवि जनता की नजरों में सुधरेगी। यह हमारा नैतिक दायित्व भी है।

वरिष्ठ परिचालन प्रबंधक/संरक्षा
पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

शंटिंग के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां 

- मनीष कुमार 

 1. शंटिग कार्य का नियंत्रण स्थावर सिगनलहैण्ड सिगनल एवं मौखिक निर्देशों द्वारा होता है।

2. ड्राइवर केवल सिगनलों पर निर्भर न रहकर पूरी तरह चौकस एवं सतर्क रहना चाहिए।

3. शंटिग के दौरान गति 15किमी/घंटा से अधिक नहीं होना चाहिए।

4.जिस लाइन पर शंटिग करना हो या शंटिग के दौरान जाना हो उसके आगमन रोक सिगनल आन स्थिति में होने चाहिए।

5. केवल लाल या हरी बत्ती तथा लाल या हरी झण्डी ही प्रयोग में लाना चाहिए। चालक को अपने इंजन को  नहीं चलाना चाहिए यदि उसे सफेद बत्ती दिखाया जाए।

6. शंटिग के दौरान सिगनल को गाड़ी या इंजन के पास से दिखाया जाना चाहिए न कि सिगनल पेटियों या केबिन से।

7. जब यात्री गाड़ी के यानों को लगाने या काटने के लिए शंटिग करना हो तो शंटिग इंजन को गाड़ी से कम से कम 20 मीटर पहले खड़ा करने के बाद जोड़ना चाहिए। इस तरह गाड़ी के इंजन को भी 20 मीटर पहले खड़ा करने के बाद जोड़ना चाहिए।

8. डिब्बे को चलते समय जोड़ने या काटने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

9. यदि शंटिग के रास्ते में कोई समपार फाटक आये तो उसे बन्द करना सुनिश्चित करना चाहिए।

10. जिस लाइन पर गाड़ी का शंटिग किया जा रहा हो उसके सभी पाइंट्स सही लगे हुए एवं फेसिंग पाइंट्स लाक होने चाहिए।

11. यदि रास्ते में कोई समपार शंटिग सिगनल या स्र्टाटर पड़ता हो तो उसे ऑफ किया जाना चाहिए।

12. शंटिग के पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उस गाड़ी पर इलेक्ट्रक या कैरेज विभाग की लाल झण्डी या बत्ती तो नहीं लगी है।

13. शंटिग का कार्य गाड़ी के दोनो छोर से नहीं किया जाना चाहिए।

14. शंटिग के दौरान गाड़ी के बफर, हैण्ड ब्रेक तथा कपलिंग पर नहीं चढ़ना चाहिए।

15. जब आनेवाली गाड़ी का सिगनल ऑफ किया गया हो तो उस पाइंट्स कि तरफ शंटिग के दौरान नहीं जाना चाहिए जिसपर से गाड़ी को गुजरना हो।

16. शंटिग के दौरान गाड़ी के नीचे से नहीं गुजरना चाहिए।                                                                   

यातायात निरीक्षक/नियोजन                                
पूर्वोत्तर रेलवे/गोरखपुर                                                                                                                   

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

मानवरहित समपारों को मानवित करने के कारण कार्यरत स्टेशन मास्टर के ऊपर बढ़ते दबाव 
धीरेन्द्र कुमार

रेलवे बोर्ड के निर्देशानुसार सभी मानवरहित समपारों (Unmanned Level Crossing Gates) को समाप्त किया जाना है। पूर्वोत्तर रेलवे में वर्तमान में 1094 मानवरहित समपार हैं, जिन्हें समाप्त/मानवित किया जाना है। वर्तमान में इस रेलवे में कुल 1271 मानवित समपार हैं। यदि सभी मानवरहित समपारों को मानवित कर दिया जाय तो कुल मानवित समपारों की संख्या-2365 हो जायेगी, जिसके फलस्वरूप स्टेशन मास्टर के ऊपर कार्य का बोझ बढ़ने के साथ-साथ संरक्षा सुदृढ़ करना भी एक गम्भीर चुनौती होगी, क्योंकि स्टेशनों से अधिक संख्या में समपारों के सम्बद्ध होने पर मानवीय भूल की संभावना बढ़ जाती है। नान-इण्टरलाक समपारों पर गेटमैन से दो-दो बार प्राइवेट नम्बर का आदान-प्रदान करना पड़ता है, जिसमें समय लगता है, जिसके फलस्वरूप गाड़ियों का समय-पालन भी प्रभावित होता है।

यद्यपि कि मानवित किये जाने का मापदण्ड टी.वी.यू. है, किन्तु देखा जा रहा है कि  छपरा-बाराबंकी मेन लाईन में कई समपारों (जैसे-126 सी देवरिया-नूनखार,टी वी यू-4970,रोड वेहकिल यूनिट-47 तथा 124 सी देवरिया-नूनखार, टी वी यू-4060,रोड वेहकिल यूनिट-42,इत्यादि।) के सड़क वाहनों की संख्या बहुत कम होते हुए भी एवं रेलगाड़ियों की संख्या अधिक होने से टी.वी.यू. बढ़ जाता है और आरक्षित किये जाने के मानक के अन्तर्गत आ जाता है। इसलिए सुझाव है कि ऐसे समपार, जिसका रोड वेहकिल यूनिट 50 से कम है, का पुनः समीक्षा कर मानवित करने से पूर्व सभी संभावनाओं पर विचार कर (उदाहरणतः बन्द करना, अन्य समपार से जोड़ना आर.यू.बी./एल.एच.एस. आदि) जिलाधिकारी की अनुमति लेकर यथा संभव बन्द करने का प्रयास किया जाना चाहिए। ऐसा करने से संरक्षा होने के साथ-साथ समय-पालन में भी वृद्धि हो सकेगी तथा रेल राजस्व में भी बचत होगी।

उप मुपरिप्र/नियोजन
पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर


मंगलवार, 20 जनवरी 2015

कोहरे के मौसम में गाड़ियों के संचालन मे अपनायी जाने वाली कुछ विशेष सावधानियां                    

ज्ञान दत्त पाण्डेय

कोहरे के मौसम में सिगनल की दृश्यता बाधित होने के कारण संरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अतिरिक्त सतर्कता की आवश्यकता पड़ती है। इस सम्बन्ध में दिशा निर्देश सामान्य एवं सहायक नियम की शुद्धि पर्ची सं0-10 द्वारा जारी किये जा चुके हैं। रेलगाड़ी के संचालन से जुड़े सभी कर्मचारियों को चाहिये कि वे कोहरे के मौसम में गाड़ियों के संचलन हेतु निर्धारित नियमों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करें। रेलों मे संरक्षा सुनिश्चित करना सभी रेल कर्मचारियों का परम दायित्व है, क्योंकि यह मानव जीवन से सीधे जुड़ा है तथा यह सदैव स्मरण रखें कि मानव जीवन अमूल्य है। कोहरे के मौसम में गाड़ियों के संचलन मे विशेष सतर्कता हेतु निम्नलिखित का अनुपालन सुनिश्चित करें:-

  1. कोहरे के मौसम में जब लोको पायलट यह समझता है कि कोहरे के कारण दृश्यता अवरूद्ध हो रही है, वह अपने गाड़ी को ऐसी गति से चलाये कि वह उसे किसी भी अवरोध से पूर्व रोक सके। यह गति किसी भी दशा में 60 किमी0 प्रतिघंटा से अधिक नहीं होगी।
  2. लाइन क्लियर देने के पश्चात आने वाली गाड़ी के सम्मुख ''अलगाव रहित'' लाइनों पर कोई शंटिंग नहीं करें।
  3. प्रस्थान प्राधिकार के लिए प्रतीक्षारत किसी गाड़ी को स्टार्टर सिगनल से आगे अथवा एडवांस्ड स्टार्टर तक नहीं बढ़ायें।
  4.  सभी सिगनल साइटिंग बोर्ड, सी/फा बोर्ड, पटाखा सिगनल खम्भा तथा व्यस्त एवं दुर्घटना प्रवृत्त समपार फाटकों को काले/पीले चमकीले पेन्ट से रंगें अथवा चमकीली पट्‌टी लगायें।
  5.  सिगनल साइटिंग बोर्ड के निकट रेल पथ के आर-पार चूने का निशान लगायें।
  6. पटाखों की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित करें।
  7. कोहरे के मौसम में कार्य करने वाले फाग सिगलन मैनों को शिक्षित करें एवं उनका आश्वासन, पटाखा सिगनल पंजिका में लें।
  8. रनिंग कोटि के कर्मचारियों का पीएमई, पुनश्चर्या एवं अन्य संरक्षा/प्रोन्नति पाठ्‌यक्रम कोहरे के मौसम के पूर्व करा लें।

संरक्षा, सुरक्षा एवं समयपालन हमारा मूलमंत्र है।


मुख्य परिचालन प्रबंधक
पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर

दुर्घटना के रोकथाम में काण्टीन्यूटी टेस्ट का महत्व 

रमेश चन्द्र श्रीवास्तव

गाड़ी की गति को नियंत्रित करने हेतु ब्रेक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है एवं उसके प्रभाव के परिमाण को जांचने के लिये काण्टीन्यूटी-टेस्ट एक आसान जांच प्रक्रिया है।  ब्रेक के प्रभावी रूप से कार्य नहीं करने के कारण कई बार दुर्घटना हो जाती है।  विगत दिनों दिनांक 16.10.14 को इज्जतनगर मण्डल के कमालगंज स्टेशन से एक डेड-पॉवर एक मालगाड़ी में लगाया गया। डेड-पॉवर लगाने के बाद मालगाड़ी के ड्राइवर ने कण्टीन्यूटी-टेस्ट नहीं किया और सिगनल होने पर गाड़ी लेकर चल दिया। अगला स्टेशन शम्साबाद के डिस्टेण्ट-सिगनल के आस्पेक्ट को देखते हुए ड्राइवर ने गाड़ी की गति नियंत्रित करने के लिये जब ब्रेक लगाया तो ब्रेक नहीं लगा और मालगाड़ी शम्साबाद स्टेशन पर स्टार्टर से आगे बढ़कर सैण्ड-हम्प में घुसते हुए अवपथित हो गई।  यदि ड्राइवर एवं गार्ड ने कमालगंज स्टेशन पर डेड-पावर अटैच करने के बाद कण्टीन्यूटी टेस्ट किया होता तो यह स्थिति नहीं आती। अतः निम्नलिखित परिस्थितियों में कण्टीन्यूटी टेस्ट अवश्य किया जाना चाहियेः

(1) ट्रेन के आगे लोकोमोटिव या अतिरिक्त लोकोमोटिव जोड़े जाने पर;
(2) ट्रेन के पीछे लोकोमोटिव या अतिरिक्त लोकोमोटिव जोड़े जाने पर;
(3) कोई कोच या वैगन ट्रेन में किसी स्थान पर जोडे जाने पर;
(4) अन्तिम कोच या वैगन को छोड़कर कोई कोच या वैगन ट्रेन से अलग किये जाने पर;
(5) कोई ऐसा दोष, जिसे ठीक किये जाने के दौरान ट्रेन पाईप की काण्टीन्यूटी भंग हुई हो।

कण्टीन्यूटी टेस्ट करने के लिये निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनानी चाहियेः

(1) चालक ए-9 के हैण्डल को रनिंग स्थिति में करेगा तथा सुनिश्चित करेगा कि ब्रेक पाईप प्रेशर गेज में 5.0 किग्रा/सेमी² का प्रेशर हो गया है।

(2) चालक गार्ड से बात कर यह भी सुनिश्चित कर लेगा कि ब्रेक पाईप प्रेशर गेज में 4.8 अथवा 4.7 किग्रा/सेमी² प्रेशर आ गया है।

(3) अब चालक ए-9 के हैण्डल को एप्लीकेशन पोजीशन में ले जायेगा तथा ब्रेक पाईप प्रेशर को 1.0 किग्रा/सेमी² कम करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि ब्रेक वान के ब्रेक पाइप प्रेशर गेज में 3.8 या 3.7 किग्रा/सेमी² का प्रेशर हो गया है।

(4) अब चालक गार्ड से बात कर यह सुनिश्चित करेगा कि ब्रेक पाइप प्रेशर गेज में 3.8 अथवा 3.7 किग्रा/सेमी² प्रेशर आ गया है।

(5) लोको के कण्टेल स्टैण्ड पर लगे ब्रेक पाइप प्रेशर गेज में 4.0 किग्रा/सेमी² का प्रेशर स्थिर हो जाने के पश्चात चालक एडिशनल सी-2 रिले वाल्व तथा लोकोमोटिव ब्रेक पाइप के बीच लगा आइसोलेटिंग काक (¾” कट-आउट काक) बन्द कर देगा।

(6) अब गार्ड निम्न प्रकार ब्रेक पाइप प्रेशर शून्य करेगाः

(क) यदि अन्तिम गाड़ी ब्रेकवान है तो गार्ड इमरजेन्सी वाल्व के हैण्डिल द्वारा

(ख) यदि अन्तिम गाड़ी ब्रेकवान नही है तो अन्तिम गाड़ी के पीछे वाला ब्रेक पाईप कट आफ एंगिल काक के हैण्डिल को घुमाकर परन्तु ब्रेक पाइप प्रेशर शून्य हो जाने के पश्चात काक को बन्द कर देगा।

(7) चालक यह सुनिश्चित कर लेगा कि लोको के कण्टेल स्टैण्ड पर लगे प्रेशर गेज में ब्रेक पाइप प्रेशर शून्य हो गया है।

(8) यदि ब्रेक पाइप प्रेशर नही गिरता है तो किसी कोच या वैगन का कोई कट आफ एंगिल काक बन्द हो सकता है, उसे खोल दें।

(9) यदि ब्रेक पाईप प्रेशर शून्य नही होता है तो हो सकता है कि एडिशनल सी-2/रिले वाल्व तथा लोकोमोटिव ब्रेक पाइप के बीच लगा कटआउट काक ठीक से बन्द न हो, उसे ठीक से बन्द कर दें।


उप मुपरिप्र/एफओआईएस
पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर

संरक्षा सर्वोपरि

 - राजेश कुमार श्रीवास्तव

संरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा समपार फाटकों पर दुर्घटना रोकने हेतु रिपीटर सीटी बोर्ड का प्रावधान किया गया है। साथ ही, इंजन के सीटी संकेत में भी परिवर्तन किया गया है।


वर्तमान में समपार फाटक से 600 मीटर की दूरी पर स्थित सीटी बोर्ड के अतिरिक्त समपार फाटक से 250 मीटर पूर्व रिपीटर सीटी बोर्ड का प्रावधान करने के साथ ही साथ इंजन के सीटी संकेत में भी परिवर्तन किये गये हैं। शुद्धि पर्ची संख्या 15 (हिन्दी) द्वारा जारी संशोधित निर्देशों के अनुसार अब लोको पायलट द्वारा समपार फाटक से 600 मीटर पूर्व स्थित सीटी बोर्ड से रिपीटर सीटी बोर्ड तक रूक-रूक कर सीटी बजाना होगा तथा रिपीटर सीटी बोर्ड से समपार फाटक तक एक लगातार सीटी बजाना होगा।


इन निर्देशों को पूर्व तट रेलवे पर अत्यन्त लाभकारी पाया गया है। पूर्वोत्तर रेलवे पर भी ये निर्देश निःसन्देह समपार फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने में मील का पत्थर सिद्ध होंगे।


यातायात निरीक्षक/नियम
पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर

संरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता

- राजेश कुमार श्रीवास्तव

पूर्वोत्तर रेलवे यात्रियों की संरक्षा एवं गाड़ियों के संरक्षित संचलन हेतु कृतसंकल्प है।

संरक्षा के प्रति अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता को दर्शाते हुए विगत दिनों दो यात्री गाड़ियों के मध्य हुई साइड कॉलीजन की घटना के दृष्टिगत गोरखपुर छावनी स्टेशन पर गाड़ी संचलन के सम्बन्ध मे निम्नलिखित निर्णय लिये गये-

  1. जब रिवर्स स्थिति मे क्रासओवर कॉटा संख्या 213 से डाउन गाड़ी को कुसम्ही स्टेशन साइड चलाना हो तो ऐसी गाड़ी का लाइन क्लियर तब तक नही दिया जायेगा, जब तक कि क्रासओवर कॉटा संख्या 213 साफ न हो जाये।
  2. कुसम्ही साइड से सही लाइन से अप गाड़ी का लाइन क्लियर तभी दिया जायेगा, जब रिवर्स स्थिति मे क्रासओवर कॉटा संख्या 213 से किसी गाड़ी का संचलन नही किया जाना हो, ताकि अप गाड़ी को आन स्थिति में अप होम सिगनल पर रोकने की स्थिति न उत्पन्न हो।


उक्त निर्देश गोरखपुर छावनी स्टेशन के स्टेशन संचालन नियमावली मे समाहित कर दिये गये हैं।

इस प्रकार की व्यवस्था कर देने से संरक्षा और अधिक सुदृढ़ हो गई है।

यातायात निरीक्षक/नियम
पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर