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बुधवार, 28 जनवरी 2015

आपदा प्रबंधन

- एन. के. सिन्हा

आपदा क्या है?
आपदा अचानक आने वाली ऐसी विपदाजनक परिस्थिति है जो रेल उपयोगकर्ताओं, यात्रियों, कर्मचारियों एवं उनके परिजनों के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है।

आपदाओं का वर्गीकरण
रेलवे के संदर्भ में आपदाओं का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है -
- प्राकृतिक आपदाएं जैसे कि बाढ़, भूकम्प, चक्रवात, भूस्खलन इत्यादि।
- गाड़ी दुर्घटनाओं से संबंधित आपदाएं जैसे कि टक्कर, अवपथन, गाड़ियों में आग लगना, समपार पर दुर्घटनाएं इत्यादि।
- तोड़फोड़ एवं आतंकवादी घटनाओं से संबंधित आपदाएं जैसे कि बम विस्फोट, रेलवे के संचालन तंत्र को विफल करना इत्यादि।

आपदा प्रबंध
इसमें निम्नलिखित चरण हैं-
1. आधारभूत ढांचे को मजबूत करना –
आपदा से निपटने के लिए जरूरी है कि हमारा आधारभूत ढांचा मजबूत हो। रेलपथ, पुल, चल स्टॉक, सिगनलिंग उपस्कर इत्यादि तथा संपूर्ण प्रणाली आपदाओं का सामना करने के लिए सक्षम होनी चाहिए।

2. आपदा प्रबंधन के लिए योजनाएं एवं पूर्व तैयारी –
गाड़ी संचालन में होने वाली आपदाएं सदैव अप्रत्याशित होती हैं। अप्रत्याशित घटनाओं के लिए हमें सदैव तैयार रहना चाहिये तथा आपदा के प्रभाव को न्यूनतम रखने, यातायात को दुबारा जल्दी से जल्दी चालू करने एवं शीघ्र पुनस्र्थापन के लिए उचित योजना होनी चाहिये। प्रभावी आपदा योजना के लिए प्रत्येक संभावित कमजोरियों की पहचान करना और उनसे निपटने के लिए उचित कार्यवाही प्रभावी ढंग से करना जरूरी है। इसके लिए उपलब्ध साधनों के उपयोग की जानकारी तथा विभिन्न पदाधिकारियों को उनके द्वारा की जाने वाली ड्यूटी एवं रणनीति के बारे में पहले से जानकारी होनी चाहिए। संभावित आपदाओं से निपटने के लिए पूरी कार्य योजना पहले से तैयार होनी चाहिए।

3. आपदा के बाद बचाव एवं राहत कार्य -
- दुर्घटना स्थल का भयावह दृश्य - आपदा के बाढ़ प्रभावित स्थल की स्थिति सबसे अधिक भयावह एवं मुश्किल होती है। चारों ओर फैले शव, घायलों की चीखें और करूण क्रंदन दुर्घटना स्थल की स्थिति को भयावह बनाते हैं।

- रात्रि का समय एवं खराब मौसम - अधिकांश दुर्घटनाएं रात्रि में होती हैं एवं कई बार खराब मौसम की परिस्थितियां जैसे कि बरसात, सर्दी, कोहरे आदि के कारण कार्य करने में कठिनाईं होती है।

- पहुंचने में कठिनाई - दुर्घटना अधिकांशतः ब्लॉक सेक्शन में होती है जहां कई बार सड़क सुविधा दूर होने से पहुंचने में कठिनाई होती है।

- संचार सुविधाओं का अभाव - दुर्घटना स्थल मोबाइल कवरेज एरिया से दूर होने एवं आसपास संचार सुविधा न होने से संचार में बाधा उत्पन्न होती है।

रेलकर्मियों का दायित्व - स्वर्णिम प्रहर (Golden Hour)
दुर्घटना के बाद रेलकर्मियों का सबसे पहला दायित्व यह है कि घायलों की जान बचाई जाये। दुर्घटना के बाद अधिकांड मृत्यु अधिक खून बहने, सदमें एवं चिकित्सा सहायता में देरी की वजह से होती हैं। ऐसा देखा गया है कि यदि घायलों को एक घण्टे के अंदर चिकित्सा सहायता मिल जाये तो अधिकांश घायलों की जान बचाई जा सकती है। अतः दुर्घटना स्थल पर उपस्थित रेलकर्मियों एवं सहायता दलों को स्वर्णिम प्रहर (Golden Hour) अर्थात दुर्घटना के बाद पहले घण्टे का उपयोग लोगों की जान बचाने के लिए करना चाहिए।

दुर्घटना राहत उपाय
इसके अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया जा सकता है:-

- दुर्घटना प्रबंध - इसके अंतर्गत दुर्घटना स्थल पर उपस्थित वरिष्ठतम अधिकारी दुर्घटना प्रबंधक के रूप में वहां का कार्यभार संभालेंगे और वहां उपस्थित रेल कर्मचारियों को  से एच तक आठ समूहों में बांटकर उन्हें विशिष्ट कार्य सौंपे जायेंगे।

- सहायता गाड़ियां - दुर्घटना स्थल पर सहायता के लिए दुर्घटना राहत गाड़ी एवं चिकित्सा राहत गाड़ी का संचालन तत्परता से किया जाना चाहिए।

- यातायात को दुबारा चालू करना - दुर्घटना के बाद रेलपथ की मरम्मत, ओ.एच.ई., प्वाइंट और सिगनल आदि की खराबियों को ठीक करना, लाईन पर गिरे हुए डिब्बों को उठाना, संचार सुविधाओं को चालू करना इत्यादि कार्य शीघ्रतापूर्वक करके यातायात को दुबारा जल्दी से जल्दी चालू किया जाना चाहिए। इसके लिए पर्याप्त संसाधनों को दुर्घटना स्थल पर शीघ्र पहुंचाना चाहिए।

दुर्घटना राहत के लिए उपलब्ध संसाधन

1. संसाधन यूनिट-। - प्रभावित गाड़ी में एवं दुर्घटना स्थल के आसपास उपलब्ध रेलवे एवं गैर रेलवे संसाधन -

- रेलवे संसाधन - गाड़ी में उपलब्ध प्राथमिक चिकित्सा उपकरण, पोर्टेबल कंट्रोल टेलीफोन, अग्निशमन यंत्र, वॉकी-टॉकी, रेल कर्मचारी इत्यादि।

- गैर रेलवे संसाधन - गाड़ी में यात्रा कर रहे डॉक्टर, आसपास के गांव, कस्बे आदि से आने वाले स्वयंसेवक, वाहन एवं उनके द्वारा दी जाने वाली सहायता।

- आसपास उपलब्ध रेलवे संसाधन - दुर्घटना स्थल के पास कार्य कर रहे गैंगमेन, ओ.एच.ई स्टॉफ, सिगनल एवं दूर संचार स्टॉफ इत्यादि।

2. संसाधन यूनिट-II - मंडल में एआरएमई/एआरटी डिपो या अन्य स्थानों पर उपलब्ध रेलवे संसाधन।

3. संसाधन यूनिट-III - नजदीकी क्षेत्रीय रेलवे/डिविजन पर एआरएमई/एआरटी डिपो या अन्य स्थानों पर उपलब्ध रेलवे संसाधन।

4. संसाधन यूनिट-IV - डिविजन में या उसके बाहर उपलब्ध गैर रेलवे संसाधन

दुर्घटना स्थल पर UCC एवं CARE की स्थापना

- Unified Command Centre (UCC) - दुर्घटना स्थल पर सहायता, राहत एवं पुनस्र्थापना कार्यों पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए एक यूनिफाइड कमान्ड सेंटर की स्थापना की जाती है।

- Combined Assistance and Relief Enclosure (CARE) - दुर्घटना में प्रभावित यात्रियों के पुनस्र्थापना एवं सहायता, शवों की देखभाल, यात्रियों के सगे संबंधियों को जानकारी एवं सहायता आदि कार्यों के लिए CARE की स्थापना की जाती है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंध अधिनियम
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंध अधिनियम पारित किया गया है, जिसके अंतर्गत किसी भी आपदा के संबंध में सहायता करना एक वैधानिक दायित्व घोषित किया गया है। कोई भी अस्पताल या अन्य एजेंसी ऐसे समय पर सहायता के लिए मना नहीं कर सकते हैं। इसके अंतर्गत एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंध ऑथोरिटी का गठन किया गया है, जिसके चेयरमैन स्वयं प्रधानमंत्री हैं। इसी प्रकार राज्य आपदा प्रबंध ऑथोरिटी एवं जिला आपदा प्रबंध ऑथोरिटी का भी गठन किया गया है। आपदा के समय सहायता के लिए आठ विशेष बटालियनों का गठन किया गया है, जिसमें सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएफ एवं इण्डो तिब्बत बार्डर पुलिस की दो-दो बटालियन शामिल हैं।


रेल कर्मचारियों की गलती से जो दुर्घटनाएं होती हैं, उससे रेलवे की छवि धूमिल होती है। लेकिन दुर्घटना के बाद रेलवे द्वारा यात्रियों को दी जाने वाली सहायता एवं यातायात को दुबारा चालू करने का कार्य जितनी शीघ्रता एवं प्रभावशाली ढंग से किया जायेगा, उतनी ही रेलवे की छवि जनता की नजरों में सुधरेगी। यह हमारा नैतिक दायित्व भी है।

वरिष्ठ परिचालन प्रबंधक/संरक्षा
पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर

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