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बुधवार, 26 जुलाई 2023

अपर महाप्रबंधक

*पूर्वोत्तर रेलवे के अपर महाप्रबंधक*



           पूर्वोत्तर रेलवे के अपर महाप्रबन्धक के रूप में श्री दिनेश कुमार सिंह ने मंगलवार को पदभार ग्रहण किया. इससे पहले वह पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय, गोरखपुर में वरिष्ठ उप महाप्रबन्धक के पद पर कार्यरत थे. श्री सिंह ने मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज, गोरखपुर से 1986 में सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली से वर्ष 1988 में स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने भारतीय रेल इंजीनियरिंग सेवा (आईआरएसई) के बैच 1987 के माध्यम से रेल सेवा में पदार्पण किया. उनकी पहली नियुक्ति पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर मण्डल पर सहायक मण्डल इंजीनियर, काशीपुर के पद पर हुई. 



बुधवार, 12 जुलाई 2023

*वाराणसी मंडल द्वारा पारिवारिक संरक्षा गोष्ठी*

 * *पारिवारिक संरक्षा गोष्ठी

               पूर्वोत्तर रेलवे के लहरतारा स्थित अधिकारी क्लब में क्रू लाबी वाराणसी द्वारा दिनांक 08 जुलाई 2023 को पारिवारिक संरक्षा संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें *संरक्षित ट्रेन संचालन मेंपरिवार   की भूमिका एवं भागीदारी* पर चर्चा की गई। 

          संरक्षा संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि मंडल रेल प्रबंधक(वाराणसी) श्री रामाश्रय पाण्डेय द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर  पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में स्काउट एवं गाइड सदस्य ज्योति मिश्रा एवं शिवांगी यादव द्वारा गायन एवं नृत्य प्रस्तुत किया गया।इस अवसर पर मंडल पर कार्यरत लोको पायलट/सहायक लोको पायलट के परिवार के सदस्यों द्वारा   काम के घंटो,विश्राम एवं छुट्टी जैसी विभिन्न समस्याओं को मंडल के अधिकारीयों के समक्ष  रखा जिसे अधिकारियों द्वारा शीघ्र निस्तारित करने का आश्वासन दिया  गया । इस कार्यक्रम में मंडल रेल प्रबंधक ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि लोको पायलट द्वारा ट्रेन संचालन में उनके परिवार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लोको पायलट ट्रेन संचालन की महत्वपूर्ण कड़ी है जिसे फिट रखने की जिम्मेदारी उनके परिवार की है। प्रायः ड्यूटी में व्यस्तता के कारण लोको पायलट्स अपने परिवार को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। इसके निवारण हेतु यह व्यवस्था की जा रही है कि   यदि पायलटों को किसी प्रकार की पारिवारिक समस्या हो तो प्रशासन उसे दूर करने की कोशिश करेगा। 

इस अवसर पर वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजीनियर (आपरेशन) श्री अनिल कुमार श्रीवास्तव , वरिष्ठ मंडल यांत्रिक इंजीनियर (enhm) श्री आलोक केसरवानी , वरिष्ठ मंडल कार्मिक अधिकारी श्री समीर पॉल ,वरिष्ठ मंडल संरक्षा अधिकारी श्री आशुतोष शुक्ला,मंडल चिकित्सा अधिकारी, मंडल विद्युत अभियंता, मुख्य क्रू नियंत्रक(वाराणसी) बसंत कुमार ,मुख्य लोको निरीक्षक, लोको पायलट एवं उनके परिवार उपस्थित रहे। अंत में मंडल रेल प्रबंधक द्वारा उपस्थित लोको पायलट के परिवारों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्री अजित कुमार श्रीवास्तव द्वारा एवं धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजीनियर(ऑपरेशन) श्री अनिल श्रीवास्तव द्वारा किया गया।






सोमवार, 3 जुलाई 2023

गुरु पूर्णिमा

 गुरु पूर्णिमा

"वन्दे बोधमयं नित्यं गुरूं शंकररूपिणम्" |

      आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।

शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है।

"अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः "

गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

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