वास्तविक प्रकाश
दीपावली एक लौकिक पर्व है। फिर भी यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह के अंधकार को दूर कर सकते हैं। दीपावली पर हम साफ-सफाई कर घर को संवारने - निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार यदि चेतना के आंगन पर जमे कर्म के कचरे को साफ किया जाए, उसे संयम से सजाया-संवारा जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित किया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त कर सकता है।
जहां धर्म का सूर्य उदित हो गया, वहां का अंधकार टिक नहीं सकता। एक बार अंधकार ने ब्रह्माजी से शिकायत की कि सूरज मेरा पीछा करता है। वह मुझे मिटा देना चाहता है। ब्रह्माजी ने इस बारे में सूरज को बोला तो सूरज ने कहा- मैं अंधकार को जानता तक नहीं, मिटाने की बात तो दूर, आप पहले उसे मेरे सामने उपस्थित करें। मैं उसकी शक्ल-सूरत देखना चाहता हूं। ब्रह्माजी ने उसे सूरज के समक्ष आने के लिए कहा तो अंधकार बोला-मैं उसके पास कैसे आ सकता हूं? यदि आ गया तो मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
वस्तुतः, जीवन का वास्तविक प्रकाश परिधान, भोजन, भाषा और सांसारिक साधन-सुविधाएं नहीं हैं। वास्तविक उजाला तो मनुष्य में व्याप्त उसके आत्मिक गुणों के माध्यम से ही प्रकट हो सकता है। जीवन की सार्थकता और उसके उजालों का मूल आधार व्यक्ति के वे गुण हैं जो उसे मानवीय बनाते हैं, जिन्हें संवेदना और करुणा के रूप में, दया, सेवा-भावना और परोपकार के रूप में - हम देखते हैं। इन्हीं गुणों के आधार पर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाता है। जिनमें इन गुणों की उपस्थिति होती है, उनकी गरिमा चिरंजीवी रहती है। स्मरण रहे कि जिस तरह दीप से दीप जलता है, वैसे ही प्रेम देने से प्रेम बढ़ता है और यही वास्तविक प्रकाश का निमित्त बनता है।