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शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

अंतर्मन की शांति


अंतर्मन की शांति

प्रत्येक मनुष्य जीवन में शांति की कामना करता है, किंतु उसकी प्राप्ति सरल नहीं। शांति को यदि - सुख का पर्याय माना जाए तो सर्वथा उचित होगा। शांति का अर्थ है कि हम बाहर से शांत दिखने के अतिरिक्त अंतर्मन को भी शांत रखें। बाहर से शांत दिखना अपेक्षाकृत सरल है, किंतु अंतर्मन की शांति अर्थात वास्तविक शांति को प्राप्त करना उतना ही कठिन। किसी प्रकट शांति के भीतर प्रायः एक अप्रकट कोलाहल विद्यमान होता है। इस कोलाहल की तीव्रता अत्यंत उच्च, किंतु प्रभावक्षेत्र अति सीमित होता है। भौतिकशात्र की दृष्टि से देखें तो इस कोलाहल का घनत्व अत्यधिक होता है।


चूंकि कोलाहल कहीं न कहीं ऊर्जा का ही एक अव्यवस्थित रूप है तो कहा जा सकता है कि उस सीमित क्षेत्र में उच्च ऊर्जा घनत्व विद्यमान होता है। ऊर्जा के इस अव्यवस्थित रूप का किसी अन्य व्यवस्थित रूप में परिवर्तन यद्यपि मुश्किल है, किंतु यदि संभव हो जाए तो आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। अंतर्मन की शांति हेतु यह अनिवार्य है कि आपके भीतर वैचारिक उथल-पुथल अथवा चिंता, तनाव एवं दुख जैसे मनोभाव उत्पन्न न हो रहे हों। वस्तुतः किसी भी मनोभाव की अति अथवा असंतुलन ही अंतर्मन 'में अशांति को जन्म देता है। मन में उत्पन्न कोई विचार ठहरे हुए जल में उत्पन्न एक तरंग के समान है। जिस प्रकार तरंग के उत्पन्न होते ही जल की शांति भंग हो जाती है, ठीक उसी प्रकार मन में किसी विचार के उत्पन्न होने पर मन की शांति का स्तर गिर जाता है।


हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान को मानसिक शांति हेतु एक अमोघ अस्त्रं बताया है। ध्यान  के नियमित अभ्यास द्वारा अंतर्मन की शांति का अपेक्षित स्तर प्राप्त किया जा सकता है।

आप जीवन जीने की कला के प्रणेता श्री श्री रविशंकर जी की सुदर्शन क्रिया सीख सकते हैं। आप जग्गी वासुदेव की इनर इंजीनियरिंग क्रिया ,जिसे ईशा योग कहते हैं उसे भी सीख सकते हैं।  लेकिन आंतरिक सफ़ाई के लिए जब तक आप कुछ नहीं करेंगे, जब तक आप अपने मन में झाड़ू नहीं लगाएंगे ,तब तक आपको आंतरिक शांति नहीं मिलेगी। मन में झाड़ू लगाने हेतु ये क्रियाएँ बहुत प्रभावशाली है। 

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