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सोमवार, 28 जून 2021

स्वच्छता

स्वच्छता का अर्थ है हमारे शरीर , मन और चारो तरफ विद्मान   वस्तुओं एवं स्थानों की यथोचित सफाई सुनिश्चित रखना।

स्वच्छता का महत्व 
स्वच्छता मानव का एक विशिष्ट गुण है जोकि धरती पर विद्मान अन्य जीवों से उसे पृथक करती है। यह जीवन की आधारशिला है, इसमें मानव समाज की गरिमा तथा शालीनता के दर्शन होते हैं। व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक  विकास एवं सामाजिक स्तर की उन्नति के लिए स्वच्छता महत्वपूर्ण है। आचरण की शुद्धता   के लिए भी स्वच्छता आवश्यक  है। शुद्ध  आचरण से मनुष्य का व्यक्तित्व निखरता है। स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता अनिवार्य है। स्वस्थ  मनुष्य में स्फूर्ति एवं प्रसन्नता का संचरण होता है तथा उसकी  कार्य क्षमता में वृद्धि  होती  है।

स्वच्छता (सफाई) का उत्तरदायित्व 
यह एक सामान्य जनमान्यता है कि सफाई करवाने का कार्य सरकारी संस्थाओं का है। इसी विचारधारा के कारण हम सफाई के प्रति उदासीन दृष्टिकोण रखते हैं। जिस प्रकार से घर की सफाई में घर के सदस्यों की भूमिका होती है। उसी प्रकार बाहर एवं सार्वजनिक स्थलों की सफाई में समाज का सहयोग आवश्यक है। सफाई के परिप्रेक्ष्य में हमारा सामूहिक उत्तरदायित्व है कि इसके लिए कार्यरत सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं एवं विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों को उचित सहयोग दें। सार्वजिनक स्थलों जैसे विद्यालय, चिकित्सालय, कार्यालय एवं स्टेशन इत्यादि का प्रयोग करते समय हमें सदैव स्मरण रहना चाहिए ये स्थल समाज की संपत्ति हैं। यहॉ के वातावरण को हम अपने उचित व्यवहार एवं आचरण से स्वच्छ रखें।

शुक्रवार, 18 जून 2021

अंत: शक्ति

     किसी समय इस सृष्टि का परम हेतु परमात्मा अकेला होने पर विचार करने लगा कि मैं अब एक से अनेक हो जाऊं। उसने जैसे ही यह विचार किया, उसकी वही इच्छा तत्काल एक युवती का रूप धारण करके उसके सामने खड़ी हो गई। परमात्मा स्वयं पुरुष बन गया और उस युवती के साथ मिलकर सृष्टि-सृजन करने लगा, यहां यह अवश्य जाना चाहिए कि परमात्मा अव्यक्त और अकर्ता है इसीलिए सृष्टि का संपूर्ण कार्य शक्ति स्वरूपा उस युक्ति से ही हुआ पुरुष केवल दृष्टा मात्र ही रहा।


    शक्ति इस सृष्टि के मूल में है और यही मनुष्य के जीवन -संचालन की एकमात्र हेतु भी है। विचारकों ने आगे चलकर यह कहा है कि मनुष्य में यह शक्ति भाई शक्ति तथा अंतः शक्ति के रूप में दो प्रकार से होती है। बाहर शक्ति में तन,जन और धन होते हैं, जिनसे यह अपना जीवन व्यवहार चलाता है। यदि व्यक्ति का तन पुष्ट है और इसके पास पर्याप्त जन बल है तो वह समाज में अपना दबदबा बनाकर चलता है। आवश्यकता होने पर धन का प्रयोग करके और अधिक बलवान हो जाता है।


    इसकी दूसरी शक्ति है अंत: र्शक्ति। यह शक्ति नीति-नियम, सत्य, दया-दान तथा सभी के प्रति अपनापन का भाव रखने से प्राप्त होती है। यह शक्ति प्रत्यक्ष में तो दिखाई नहीं देती, किंतु इसके प्रभाव से बड़े से बड़ा शक्तिमान भी अभिभूत होकर अंतर्शक्ति रखने वाले के सामने प्रणत हो जाता है। इसी शक्ति के प्रभाव से हमारे पूर्व   ऋषियों ने बड़े से बड़े प्रभावी और समर्थ राजाओं को भी अपने सामने प्रणत करा कर सदा उन पर न केवल अनुशासन किया, अपितु उन्हें प्रजा के हित में कार्य करने के लिए विवश भी किया। इसीलिए विचार वन पुरुष सदा यही कहते हैं कि व्यक्ति के पास यदि बाहृय शक्ति है तो वह उसका प्रयोग विवेक और विचार से करे। इसी के साथ वह अधिक से अधिक अंत:र्शक्ति को बढ़ाकर अपनी और समाज के कल्याण में सहयोगी हो।


सोमवार, 7 जून 2021

सेवा भाव

    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से इतर वह या तो दानव है या फिर देवता ! समाज में बने रहने, उसकी समृद्धि और समुचित विकास के लिए हर मनुष्य के लिए सामाजिक दायित्व निर्धारित होता है। इस दायित्व के केंद्र में जो भावना केंद्रित होती है वह है-' सेवा भाव'।  ईश्वर ने सजीव प्राणियों में मात्र मानव को ही इस भाव से परिपूर्ण बनाया है। इसलिए मनुष्य की जवाबदेही और जिम्मेदारी दोनों बढ़ जाती हैं।    


    गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई भी धर्म नहीं है। वैसे भी मानव जीवन की सार्थकता इसी बात पर निर्धारित होती है कि उसने अपने जीवन को कैसे उपयोगी बनाया है? मानव जीवन की उपयोगिता परहित में ही निहित है, जिसका आधार सेवा भाव है। समाज सेवा के बारे में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है कि 'यही पशु- प्रवृत्ति है कि आप ही चले, वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।' मतलब एकाकी होकर निज स्वार्थ में जीवन जी लेना वास्तव में अर्थहीन जीवन है। बदले में कुछ पाने की लालसा में मदद या सेवा भी व्यर्थ है। सेवा का प्रतिफल असीम संतुष्टि है जिससे हमें आनंद की प्राप्ति होती है।


    एक कहावत है ,'सेवा स्वयं में पुरस्कार है'। खुशी और आनंद की प्राप्ति हमें दूसरों की सेवा से मिलती है उसे लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं पाया जा सकता है। आज जब मानव जाति आपदा से जूझ रही है तो मानवता की पुकार यही सेवा भाव है। अनेक प्रकार से आज हम एक दूसरे के साथ खड़े होकर साथ निभाकर इस  करोना काल को मात दे सकते हैं। आज जब लोग अपनों को खो रहे हैं ऐसे में संवेदना के दो बोल और साथ का भरोसा ही सच्ची सेवा का दर्शन है। निस्वार्थ भाव से योग्य द्वारा प्लाज्मा दान आज कई जीवन को बचाने का आधार बना रहा है। सच में हम सब मिलकर समस्त मानव समाज के लिए सेवा और मदद का भाव रखकर संकटकाल को काट सकते हैं।