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बुधवार, 29 सितंबर 2021

अनुशासन

                     अनुशासन

      हर किसी के जीवन में अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण है। अनुशासन के बिना कोई सुखी जीवन नहीं जी सकता। अनुशासन वह सब कुछ है जो हम सही समय में सही तरीके से करते हैं। यह हमें सही रास्ते पर ले जाता है। जीवन के सभी कार्यों में अनुशासन अत्यधिक मूल्यवान है। हमें हर समय इसका पालन करना है चाहे वो स्कूल, घर, कार्यालय, संस्थान, फैक्टरी, खेल का मैदान, युद्ध का मैदान या दूसरी जगह हों

ये खुशहाल और शांतिपूर्णं जीवन जीने की सबसे बड़ी जरुरत है। आज के आधुनिक समय में अनुशासन बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इस व्यस्तता भरे समय में यदि हम अनुशासन भरे दिनचर्या का पालन ना करें तो हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो जायेगा

        मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो कि समाज में रहता है और उसमें रहने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है।अनुशासन हमारी सफलता की सीढ़ी है,

जिसके सहारे हम कोई भी मंजिल हासिल कर सकते है। अनुशासन दो प्रकार का होता है – एक वो जो हमें बाहरी समाज से मिलता है और दूसरा वो जो हमारे अंदर खुद से उत्पन्न होता है। हालाँकि कई बार, हमें किसी प्रभावशाली व्यक्ति से अपने स्व-अनुशासन की आदतों में सुधार करने के लिये प्रेरणा की जरुरत होती है

अनुशासन हमें बहुत सारे शानदार अवसर देता है, आगे बढ़ने का सही तरीका, जीवन में नई चीजें सीखने, कम समय के भीतर अधिक अनुभव करने, आदि। जबकि, अनुशासन की कमी से बहुत भ्रम और विकार पैदा होते हैं। अनुशासनहीनता के कारण जीवन में कोई शांति और प्रगति नहीं होती है, इसके बजाय बहुत सारी समस्याएँ पैदा हो जाती है।

हमें नियमों का पालन करने, आदेशों का पालन करने और व्यवस्थित तरीके से व्यवहार करने की आवश्यकता है। हमें अपने दैनिक जीवन में अनुशासन को महत्व देना चाहिए। वे लोग जो अपने जीवन में अनुशासित नहीं हैं, उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उन्हें जीवन में निराशा ही मिलती है।

दैनिक जीवन में अनुशासन

अनुशासन का महत्त्व समझने के बाद हमें चाहिए कि हम हमेशा अनुशासन में रहें और अपने जीवन में सफल होने के लिए अपने माता-पिता और शिक्षकों के आदेश का पालन करें। होने के लिए अपने माता-पिता और शिक्षकों के आदेश का पालन करें।

बुधवार, 22 सितंबर 2021

लेखकों और कवियों के उपनाम

 लेखकों और कवियों के उपनाम

बहुत से लेखकों और कवियों को हम उनके प्रचलित  उपनाम से जानते हैं तो उनमें से कुछ को उनके वास्तविक नाम के साथ-साथ प्रचलित उपनाम  से भी। हालांकि ऐसे कवियों एवं लेखकों की सूची काफी लंबी है, फिर भी - चलिये देखते हैं कि हम सबों को किन- किन कवियों और लेखकों के वास्तविक नाम और उपनाम मालूम हैं --

01. जयशंकर साहू - 'प्रसाद'

2. सूर्यकांत त्रिपाठी - 'निराला'

3. गुसाईं दत्त - सुमित्रानन्दन पन्त

4. धनपत राय – प्रेमचन्द

5. रामधारी सिंह - 'दिनकर’

6. मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान – मिर्ज़ा ग़ालिब

7. मुन्नन द्विवेदी - शांतिप्रिय द्विवेदी

8. हरिप्रसाद द्विवेदी - वियोगि हरि

9. वैद्यनाथ मिश्र – नागार्जुन

10. हरिवंश राय श्रीवास्तव - 'बच्चन'

11. रघुपति सहाय - फिराक गोरखपुरी

12. सम्पूर्ण सिंह कालरा – गुलज़ार

13. धर्मवीर सक्सेना - धर्मवीर भारती

14. पुष्पलता शर्मा – पुष्पा भारती

15. शिवमंगल सिंह - 'सुमन'

16. मदन मोहन गुगलानी - मोहन राकेश

17. कैलाश सक्सेना – कमलेश्वर

18. उपेन्द्रनाथ शर्मा - 'अश्क'

19. फणीश्वर नाथ - 'रेणु'

20. गोपालदास सक्सेना - 'नीरज'

21. श्रीराम वर्मा – अमरकान्त

22. रमेश चन्द्र - शैलेष मटियानी

23. सुदामा पाण्डेय - 'धूमिल'

24. बालस्वरूप भटनागर - 'राही'

25. गंगाप्रसाद उनियाल - 'विमल'

26. रामेश्वर शुक्ल - 'अंचल'

27. वासुदेव सिंह - त्रिलोचन शास्त्री

28. (सच्चिदानंद) हीरानन्द वात्स्यायन - 'अज्ञेय'

29. (तिरूमल्लै) नम्बाकम (वीर) राघव (आचार्य) - रांगेय

राघव

30. (पाण्डेय) बेचन शर्मा - 'उग्र'

31. (राय) देवीप्रसाद - 'पूर्ण'

32. (पण्डित) चन्द्रधर शर्मा - 'गुलेरी'

33. बालकृष्ण शर्मा - 'नवीन'

34. गजानन माधव - 'मुक्तिबोध'

35. गोपाल शरण सिंह - 'नेपाली'

36. जनार्दन प्रसाद झा - 'द्विज'

37. सत्यनारायण - 'कविरत्न'

38. भगवान वर्मा - लाला भगवानदीन

39. बालमुकुन्द गुप्त – शिवशम्भु

40. गया प्रसाद शुक्ल - 'सनेही'

41. अयोध्यासिंह उपाध्याय - 'हरिऔध'

42. नाथूराम शर्मा - 'शंकर'

43. बदरीनारायण चौधरी - 'प्रेमघन'

44. जगन्नाथ दास - 'रत्नाकर'

45. सदासुख लाल - 'नियाज'

46. सैयद गुलाम नबी – रसलीन

47. सैयद इब्राहिम – रसखान

48. मलिक मोहम्मद - 'जायसी'

49. विश्वम्भर नाथ शर्मा - 'कौशिक'

50. चण्डीप्रसाद - 'हृदयेश'

51. हरिकृष्ण शर्मा - 'प्रेमी'

52. गणेशबिहारी मिश्र, श्यामबिहारी मिश्र,

शुकदेवबिहारी मिश्र - 'मिश्रबन्धु'

53. गुलशेर अहमद खान - 'शानी'

54. रामरिख बंसल - ‘मनहर ’

55. काशीनाथ उपाध्याय - बेधडक बनारसी

56. कृष्णदेव प्रसाद गौड - बेढब बनारसी

57. प्रभुलाल गर्ग - काका हाथरसी

58. चन्द्रभूषण त्रिवेदी - रमई काका

59. राजेन्द्र बाला घोष - बंग महिला

60. महेन्द्र कुमारी - मन्नू भण्डारी

61. प्रेम कुमार कुन्द्रा – प्रेम जनमेजय

62. अनिल कुमार जैन – अनिल जनविजय

63. सरोजिनी मलिक - 'प्रीतम'

64. उषा सक्सेना - 'प्रियंवदा'

65. गौरा पन्त - 'शिवानी'

66. सुशील कुमार चड्ढा – हुल्लड़ मुरादाबादी

67. पंडित आनन्द मोहन जुत्शी - गुलज़ार देहल्वी

68. भारतेंदु हरिश्चंद्र -  गिरधर दास व रसा 

(संकलन)





मंगलवार, 21 सितंबर 2021

भरोसे की शक्ति

 

भरोसे की शक्ति

 

       मानव जीवन में भरोसे का विशिष्‍ट महत्‍व है। भरोसा मानवीय रिश्‍तों को जोड्कर रखता है। उन्‍हें प्रगाढ़ बनाता है। परस्‍पर विश्‍वास का संचार करता है। मानवीय रिश्‍तों की बुनियाद ही भरोसे पर टिकी होती है, परंतु व्‍यक्ति लिए स्‍वयं पर भरोसा सबसे महत्‍वपूर्ण होता है। आदर्श व्‍यक्तित्‍व का निर्माण मनुष्‍य की अपनी क्षमताओं पर भरोसे से ही होता है। स्‍वयं पर भरोसा करके ही प्राणी जगत सफलता के उच्‍च प्रतिमान स्‍थापित कर सकता है। जीवन की प्रत्‍येक परीक्षा में हम भरोसे की इसी पूंजी से सफलता का परचम लहरा पाते हैं। यदि हमें स्‍वयं पर भरोसा नहीं होगा तो जीवन में किसी भी कार्य को करने में सदैव संदेह बना रहेगा। ऐसे में भला दूसरे कैसे हम पर विश्‍वास कर पाएंगे।

 

       वस्‍तुत भरोसे से उपजा विश्‍वास ही मानवीय रिश्‍तों की चमक बढ़ाता है। इस भरोसे के दरकने के बाद ही मानवीय रिश्‍तों में अलगाव होता है। यह भी उतना ही सच है कि भरोसे का भाव बनाना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक कठिन है उसे बनाए रखना। इसका कारण है अपने हितों के अनुरूप मनुष्‍य की प्रकृति एवं प्रवृति में परिवर्तन। यह बहुत नैसर्गिक है। इन्‍हीं हितों के वशीभूत होकर मनुष्‍य कुछ ऐसा कर बैठता है जिसके कारण उससे जुड़ी भरोसे की दीवार भरभराकर गिर उठती है। इससे सामने वाले का हताश होना भी स्‍वाभाविक है, क्‍योंकि वह दूसरे व्‍यक्ति से ऐसी कोई अपेक्षा नहीं करता। नि:संदेह परिवर्तन प्रकृति का शाश्‍वत नियम है, परंतु इसमें हमें यह सुनिश्‍चित करना चाहिए कि हममें ऐसा कोई नकारात्‍मक परिवर्तन न हो जो हमारे इर्दगिर्द भरोसे के उर्जा चक्र को क्षीण करें।

 

       जैसे धागा टूटने के बाद पुन: जोड़ने पर उसमें गांठ बनी रहती है यही बात भरोसे की कमी से बिगड़े रिश्‍तों पर भी सटीक बैठती है। एक बार भरोसा टूटता है तो फिर अपने भी पराये लगने लगते हैं। वास्‍तव में भरोसा ही एक ऐसा चुंबक है जो परिवार, समाज और समग्र राष्‍ट्र को एकजुट रखने में सक्षम है।

 

 

सोमवार, 13 सितंबर 2021

परिवार का महत्‍व

 

    परिवार हमारी शक्ति और आंतरिक उर्जा का केन्‍द्र है। इसके बल पर ही हम सामाजिक जीवन का सर्वोच्‍च प्राप्‍त कर सकते हैं। यह संस्‍क़ति एवं जीवन मूल्‍यों की प्राथमिक पाठशाला भी है। परिवार से ही हमारे भीतर सद्गुणों का विकास होता है। किसी भी व्‍यक्ति के विकास में उसके परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है। बच्‍चे पर प्रथम प्रभाव परिवार के माहौल का ही पड़ता है। यदि परिवारिक माहौल अच्‍छा है तो वह तेजी के साथ मानसिक रूप से सबल होने लगता है। उसकी बौधिक एवं आध्‍यात्‍मिक क्षमता में सकारात्‍मक परिवर्तन देखा जा सकता है। इसके विपरित यदि परिवार का माहौल ठीक न हो तो बच्‍चा टूटने लगता है। उसका विकास अवरूद्ध होने लगता है। वह मानसिक एवं बौधिक रूप से कमजोर होने  लगता है। उसके स्‍वभाव में नकारात्‍मकता आने लगती है। वह उद्वि‍ग्‍न रहने लगता है। कभी-कभी वह हिंसक भी हो जाता है। वात्‍सल्‍य, ममत्‍व, स्‍नेह, त्‍याग,  विश्‍वास ये सभी परिवार के अधिष्‍ठान गुण है। इस परिवार के सदस्‍यों के भीतर ये सब नी‍हित है निश्चित रूप से वह परिवार एक आदर्श परिवार का उदाहरण है। भारतीय संस्‍कृति एवं जीवन पद्धति में परिवार का विशेष महत्‍व है। परिवार रूपी संस्‍था से ही राष्‍ट्र के उन्‍नयन का मार्ग प्रशस्‍त होता है।

    संयुक्‍त परिवार हमारे समाज की रीढ़ है। वर्तमान में परिवारों का विघटन हमारी पारिवारिक शक्ति को क्षीण कर रहा है। यह हमारी संस्‍कृति के मूल्‍यों से मेल नहीं खाता। इसी कारण आज पारिवारिक तनाव की स्थितियां बढ़ रही है। लोग स्‍वयं को एकाकी महसूस कर रहे हैं। अपनी परेशानी साझा करने की लिए उन्‍हें कोई मिल नहीं पा रहा। उन्‍हें दादा-दादी का प्‍यार उचित संस्‍कार नहीं मिल पा  रहे हैंजिससे उनके भीतर अपेक्षित मूल्‍यों का संचार नहीं हो रहा। इससे उनकी बौधिक व नैतिक विकास की गति धीमी पड़ रही है। इस स्थिति को बदलना समय की आवश्‍यकता है।

     

बुधवार, 1 सितंबर 2021

नौकरी

 नौकरी

                  भानु प्रकाश नारायण

                मुख्य यातायात निरीक्षक



(PCOM कार्यालय, गोरखपुर के आदेशपाल श्री शिव के अवकाश ग्रहण दिनांक 31.08.21 के उपलक्ष्य में प्रस्तुत उद्गार)

 नौकरी की बात और निराली थी,

जब तलक नौकरी का साथ था,

हर खुशियां लगती अपनी ही थी,

सारे सपने अपने मन के ही थे।

जिंदा-सा दिखता हूं,सबको

होंठों पर मुस्कान भी है,

पर दिल को कैसे समझाऊं,

नौकरी से जाने के बाद......

कितने अकेले रह जायेंगे,

अपनों से यूं बिछुड़ जायेंगे,

आती रहेंगी पल पल  यादें

तड़पाती रहेंगी यूं ही मन को।

मौन हो गई, संवेदनाएं

मुखर हो गई, वेदनाएं

हम बिखर के रह गए,

नौकरी से जाने के बाद....

वो भी क्या दिन थे,

जब सपने सब अपने थे,

टूट गए सब सपने अपने,

नौकरी से जाने के बाद...

कभी गुफ्तगू, कभी सरगोशियां

कभी रूठना, कभी मनाना

सारे किस्से हवा हो गए,

नौकरी से जाने के बाद....

वही चांदनी, वही सितारे

वही महफिलें,वही नजारे

क्यूं लगता है,बदला -बदला

नौकरी से जाने के बाद....

सबका कहना, सबको भूलना ,

बीती को बिसराना होगा,

पर मन की उड़ान को कैसे रोकूं,

नौकरी से विदा हो जाने के बाद....


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