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मंगलवार, 21 सितंबर 2021

भरोसे की शक्ति

 

भरोसे की शक्ति

 

       मानव जीवन में भरोसे का विशिष्‍ट महत्‍व है। भरोसा मानवीय रिश्‍तों को जोड्कर रखता है। उन्‍हें प्रगाढ़ बनाता है। परस्‍पर विश्‍वास का संचार करता है। मानवीय रिश्‍तों की बुनियाद ही भरोसे पर टिकी होती है, परंतु व्‍यक्ति लिए स्‍वयं पर भरोसा सबसे महत्‍वपूर्ण होता है। आदर्श व्‍यक्तित्‍व का निर्माण मनुष्‍य की अपनी क्षमताओं पर भरोसे से ही होता है। स्‍वयं पर भरोसा करके ही प्राणी जगत सफलता के उच्‍च प्रतिमान स्‍थापित कर सकता है। जीवन की प्रत्‍येक परीक्षा में हम भरोसे की इसी पूंजी से सफलता का परचम लहरा पाते हैं। यदि हमें स्‍वयं पर भरोसा नहीं होगा तो जीवन में किसी भी कार्य को करने में सदैव संदेह बना रहेगा। ऐसे में भला दूसरे कैसे हम पर विश्‍वास कर पाएंगे।

 

       वस्‍तुत भरोसे से उपजा विश्‍वास ही मानवीय रिश्‍तों की चमक बढ़ाता है। इस भरोसे के दरकने के बाद ही मानवीय रिश्‍तों में अलगाव होता है। यह भी उतना ही सच है कि भरोसे का भाव बनाना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक कठिन है उसे बनाए रखना। इसका कारण है अपने हितों के अनुरूप मनुष्‍य की प्रकृति एवं प्रवृति में परिवर्तन। यह बहुत नैसर्गिक है। इन्‍हीं हितों के वशीभूत होकर मनुष्‍य कुछ ऐसा कर बैठता है जिसके कारण उससे जुड़ी भरोसे की दीवार भरभराकर गिर उठती है। इससे सामने वाले का हताश होना भी स्‍वाभाविक है, क्‍योंकि वह दूसरे व्‍यक्ति से ऐसी कोई अपेक्षा नहीं करता। नि:संदेह परिवर्तन प्रकृति का शाश्‍वत नियम है, परंतु इसमें हमें यह सुनिश्‍चित करना चाहिए कि हममें ऐसा कोई नकारात्‍मक परिवर्तन न हो जो हमारे इर्दगिर्द भरोसे के उर्जा चक्र को क्षीण करें।

 

       जैसे धागा टूटने के बाद पुन: जोड़ने पर उसमें गांठ बनी रहती है यही बात भरोसे की कमी से बिगड़े रिश्‍तों पर भी सटीक बैठती है। एक बार भरोसा टूटता है तो फिर अपने भी पराये लगने लगते हैं। वास्‍तव में भरोसा ही एक ऐसा चुंबक है जो परिवार, समाज और समग्र राष्‍ट्र को एकजुट रखने में सक्षम है।

 

 

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