नफरत
भानु प्रकाश नारायण
लो आ गया मैं तुमको मनाने चला हूं,
तेरे दिल की दुनिया बसाने चला हूं
हवाओं से कह दो पैग़ाम दिल का
उमर धड़कनों की बढ़ाने चला हूं।।
याद संग होगी बीते दिनों की
सुबह का सूरज उगाने चला हूं।।
अंधेरों का क्या बस पल भर के मेहमां
किरणें अब नयी खिलाने चला हूं।।
कोई मुझसे रूठे क्यूं गुलशन में
ख़ुदा को ही अब मैं मनाने चला हूं।।
बग़ावत नहीं है मुहब्बत है ये तो
नफ़रत दिलों से मिटाने चला हूं।।
अल्फ़ाज़ों को अब नया अर्थ दे कर
हर ग़म में भी मुस्कुराने चला हूं।।
सरगोशियां जग में होती रहेंगी
इंसानियत का दीपक जलाने चला हूं।।
लौ ज़िंदगी की बुझने से पहले
नया कोई श्रृंगार करने से पहले
जीवन की मधुशाला बेरंग न हो
नया गीत अब गुनगुनाने चला हूं।।