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सोमवार, 19 दिसंबर 2022

खुद को शांत करें

खुद को शांत करें


आज की भागमभाग दुनिया में कुछ लोग ठहर कर जीवन के बारे में विचार करने लगे हैं, आखिर हम भाग कहां रहे हैं? क्यों भाग रहे हैं? क्या भागना ही जीवन है? आज की गति देखकर भविष्य में गति की कल्पना करें तो डर सा लगता है। हालांकि अपनी गति को संतुलित करते हुए हम कठिन समय को भी खुशनुमा बना सकते हैं। हम वास्तव में जो चाहते हैं, उसे प्राप्त कर सकते हैं।

स्व-आलोचक पूछता है, 'क्या मैं बिल्कुल सही हूं?' पर खुद के प्रति करुणा रखने वाला पूछेगा, 'मेरे लिए क्या सही है?' स्वयं के प्रति उदार, करुणामय एवं प्रेम से ओतप्रोत होना जरूरी है। इस तरह स्वयं द्वारा स्वयं का साक्षात्कार ही अनेक उलझनों एवं समस्याओं से मुक्ति का प्रभावी मार्ग है। भगवान महावीर ने भी यही सिखाया - आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो। स्वयं सत्य को खोजो ।


गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, 'आदमी जब दुखी होता है, तब मेरी भक्ति करता है। जब तक उसे कोई पीड़ा नहीं सताती, वह मुझे कभी याद नहीं करता।' आप आज जहां हैं, जाहिर है कि अपने काम करने एवं सोच के तरीकों के कारण हैं। आपका स्वास्थ्य, संपत्ति, रिश्ते और करियर वगैरह सब आपकी कार्यप्रणाली और निर्णयों का नतीजा हैं। ऐसे में प्रश्न यह है कि आप जहां हैं, क्या उस पड़ाव पर खुश हैं? अगर आप यूं ही अपना जीवन बिताते रहते हैं तो क्या नतीजों से आप खुद को संतुष्ट महसूस करेंगे? अगर उत्तर में किंतु, परंतु आता है तो कुछ बदलाव करने का वक्त आ गया है। इसमें कोई खराब बात भी नहीं है। हमें 'और' 'ज्यादा' की और आगे जाने की इच्छा बनी ही रहती है। इसलिए अपने जीवन को एक दिशा देने में अभी देर नहीं हुई है। अपनी इच्छाओं को संतुलित करें। जरूरत खुद को काबू में रखने की होती है, लेकिन हम दूसरों को काबू में करने में जुटे रहते हैं। तूफान को शांत करने की कोशिश छोड़ दें। खुद को शांत होने दें। तूफान तो गुजर ही जाता है।

रविवार, 18 दिसंबर 2022

कर्म की महत्ता

 कर्म की महत्ता


हनुमान जी जब माता सीता का पता लगाने लंका में गए तब रावण के पुत्र मेघनाद ने उन्हें पकड़ लिया। रावण हनुमान जी को मार डालना चाहता था, लेकिन विभीषण के कहने पर उसने उनकी पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। हालांकि हनुमान जी की पूंछ नहीं जली, बल्कि उनकी जलती पूंछ से भौतिकता की लंका खुद ही जल गई। इस दृष्टि से हनुमान जी की पूंछ का मतलब मनुष्य का अतीत में किया गया कार्य दृष्टिगोचर होता है। किसी व्यक्ति ने अपने अतीत में किस तरह का जीवन व्यतीत किया है, यह हमेशा उसके पृष्ठभाग (पीठ) पर अंकित रहता है। व्यक्ति का अतीत सदैव उसके साथ रहता है। मनुष्य यदि सात्विक और धर्मानुचरण जीवन जीता है तब उसके जीवन में लंका जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियां जलकर स्वतः खाक हो जाती हैं। सकारात्मक प्रवृत्तियां लुभावनी नकारात्मक प्रवृत्तियों के तेल और घी की चिकनाई में फिसलती नहीं। इसी तरह अहंकार की आग से व्यक्ति के अतीत में किए गए सकारात्मक प्रभावों को जलाया नहीं जा सकता।


हनुमान जी की इस कथा के निहितार्थ को समझ कर कोई व्यक्ति जीवन जीए तो उसे बड़े से बड़े लोग भी न भयभीत कर सकेंगे और न डिगा सकेंगे तथा शांति स्वरूपा सीता का आशीर्वाद उसे निरंतर मिलता रहेगा।, वह हनुमान जी की तरह अनंत आकाश में उड़ने लगेगा। तमाम महापुरुषों का जीवन उदाहरण के रूप में हमारे सामने है। आदि शंकराचार्य की ख्याति लगभग डेढ़ हजार वर्ष से छाई हुई है। गोस्वामी तुलसीदास छह सौ वर्ष से जीवित ही प्रतीत होते हैं। ऐसे तमाम महापुरुषों को काल मार नहीं सकता, बल्कि उनके आगे दंडवत करता ही दिखाई पड़ता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जिस आत्मा के लिए कहा है कि उसे अस्त्र-शस्त्र से मारा नहीं जा सकता तथा अग्नि जला नहीं सकती, वह जीवन में किए गए कर्म ही होते हैं।

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

समय की महत्ता

 समय की महत्ता

समय एक अमूल्य धन है। समय की कीमत किसी भी संपदा से कहीं अधिक होती है। धन आज है, लेकिन कल नष्ट भी हो सकता है। बाद में वापस भी आ सकता है, किंतु जो समय व्यतीत हो गया, वह कभी वापस नहीं आता। समय जब बीत जाता है, तब हमें उसके महत्व का अहसास होता है। जब समय का दुरुपयोग किया जाता है, तब दुख और दरिद्रता के अलावां कुछ प्राप्त नहीं होता है। जो व्यक्ति समय का सदुपयोग कर लेता है, वह . धनवान, बुद्धिमान और बलवान बन सकता है। जो व्यक्ति अपने जीवन को समय के अनुरूप अनुशासन में बांध देता है तथा समय का महत्व सीख जाता है, वह जीवन में सफलता अवश्य • प्राप्त करता है।

कहते हैं कि 'समय बड़ा बलवान' अर्थात समय के आगे किसी की नहीं चलती। समय जो चाहता है, वैसा करा लेता है। समय व्यक्ति को राजा से रंक तथा रंक से राजा बना सकता है। इसीलिए कभी किसी को अपनी सफलता पर घमंड नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति के जीवन में अच्छा और बुरा समय अवश्य आता है। इसलिए व्यक्ति को अच्छे समय में कभी इतराना नहीं चाहिए। इससे बुरे समय में लोग आपका उपहास उड़ा सकते हैं। वहीं, अपने बुरे समय में कभी विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि बुरे वक्त की भी एक अच्छी बात यही है कि वह भी व्यतीत हो जाता है।

वास्तव में, समय ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है। इस उपहार का हमें सदुपयोग करना चाहिए। हमें चाहिए कि जिन कार्यों की हम समय सीमा. निर्धारित कर सकते हैं, वह अवश्य करें, क्योंकि ऐसा करने से हम अपने कार्यों पर नियंत्रण रख सकते हैं। यदि आप समय को व्यर्थ करते हैं तो समय आपको बर्बाद कर देगा। समय पर किया गया कार्य सदैव सार्थक होता है। अतः जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम और समय की महत्ता को सदैव समझना चाहिए।

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

Madhur vaani. मधुर वाणी

 मधुर वाणी

जीवन में संयमित और मधुर वाणी का बड़ा महत्व है। हमारी वाणी ही हमारे व्यक्तित्व और आचरण का परिचय कराती है। वाणी में कड़वापन है तो सुनते ही सामने वाला आग-बबूला हो जाए और यदि वाणी में शालीनता है, तो सुनने वाला प्रशंसक बन जाए। दुनिया को मुट्ठी में करने का सूत्र है वाणी में माधुर्य और मिठास । अगर वाणी है. मधुर है तो सारी दुनिया हमें मित्र दृष्टि से देखेगी। मधुर बोलने वाला समाज में आदरणीय होता है। उसका है।


एक-एक शब्द सुनने वाले के मन को लुभाता संसार में वाणी से बढ़कर कोई प्रभावी शक्ति नहीं है। ऐसी शक्ति का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को सोच-समझकर करना चाहिए। अक्सर मधुर वाणी से ऐसा काम भी बन जाता है, जिसके बनने के कोई आसार न दिख रहे हों। वहीं, जो व्यक्ति वाणी . में कड़वापन रखता है, उसके बनते काम भी बिगड़ जाते हैं। इसलिए यदि कार्य सिद्ध करने हैं और रिश्ते निभाने हैं तो वाणी में मधुरता का अभ्यास करना चाहिए। जो भाषा कठोर एंव किसी व्यक्ति को गहन पीड़ा पहुंचाने वाली हो, यदि वह सत्य भी है तब भी नहीं बोलनी चाहिए। अगर जीवन को सुखी बनाना है तो संयमित वाणी बोलना आवश्यक है। एक कहावत भी है-एक चुप सौ सुख ।'


वस्तुतः, मनुष्य की वाणी एक अमूल्य आभूषण है। इसके अनर्गल प्रयोग से व्यक्ति के व्यक्तित्व की आभा फीकी पड़ती जाती है। इसलिए जीवन में वाणी के संयम का बहुत महत्व है। वाणी की शक्ति मानव को ईश्वर का दिया अनुपम उपहार है, परंतु मनुष्य की देह की अन्य क्षमताओं की भांति इस पर ' भी संयम रखना आवश्यक है। वाणी संयम के अभाव में इसका उपयोग अनियंत्रित हो जाता है और यह कई मुश्किलों का कारण बन जाता है। यह द्रौपदी के कटुवचन ही थे, जो दुर्योधन के अंतःकरण में शूल से जा गड़े, जिसकी परिणति महाभारत के रूप में सामने आई। यह एक बड़ा सबक है कि हमें वाणी पर संयम रखना चाहिए।

बुधवार, 7 दिसंबर 2022

राजभाषा समीक्षा बैठक , परिचालन विभाग , पूर्वोत्‍तर रेलवे

 राजभाषा समीक्षा बैठक , परिचालन विभाग , पूर्वोत्‍तर रेलवे 


गोरखपुर दि0 06.12.2022 को पूर्वोत्‍तर रेलवे के मुख्‍य राजभाषा अधिकारी एवं प्रमुख मुख्‍य  परिचालन प्रबन्‍धक श्री संजय त्रिपाठी की अध्‍यक्षता में परिचालन विभाग की कैलेण्‍डर वर्ष 2021-22 की दूसरी राजभाषा समीक्षा बैठक आपदा प्रबंधन कक्ष में 13.00 बजे आयोजित हुई। बैठक में अध्‍यक्षीय सम्‍बोधन में उन्‍होने कहा कि नियमित रूप से राजभाषा समीक्षा बैठक आयोजित की जाय। उन्‍होने आगे कहा कि हिन्‍दी में कार्य करने हेतु आत्‍मबल की आवश्‍यकता है यह हमारे लिए गर्व की बात है कि जो हमारी मातृ भाषा है वही हमारी राजभाषा है,  हमें हिन्‍दी में कार्य करने में किसी बात की परेशानी नही महसूस करनी चाहिए। परिचालन विभाग की  ई-पत्रिका में नियमित रूप से पोस्‍ट अपलोड की जाय। विभाग के सभी कार्य ई-आफिस पर यूनिकोड में काम करने का प्रावधान है। अब प्रयोक्‍ता हिन्‍दी टाइपिंग सीखे बिना भी फोनेटिक की बोर्ड से हिन्दी में काम कर सकता है। बैठक में उपस्थित मुख्‍य यात्री परिवहन प्रबन्‍धक श्री आलोक कुमार सिंह ने बताया कि कुछ कार्य जो अंग्रेजी भाषा में प्रयोग करना व्‍यवहारिक लगता है वह भी एक निश्चित समय के बाद हिन्‍दी में करना व्‍यवहारिक लगने लगेगा साथ ही एक रजिस्‍टर बनाकर हिन्‍दी में आने जाने वाले पत्रों का विवरण रखने का सुझाव भी दिये। 

इसके पूर्व बैठक मे शामिल सभी अधिकारियों एवं पर्यवेक्षकीय कर्मचारियों का स्‍वागत करते हुए परिचालन विभाग के राजभाषा संपर्क अधिकारी एवं उप मुख्‍य परिचालन प्रबन्‍धक/माल श्री सुमित कुमार ने कहा कि अधिकांश कार्य हिन्‍दी में किये जा रहे है। हम राजभाषा विषयक वार्षिक कार्यक्रम 2022-23 में दिये गये निर्धारित लक्ष्‍य का अनुपालन कर रहे है। इन्‍होने निरीक्षण के दौरान राजभाषा सम्‍बन्‍धी निरीक्षण से सम्‍बन्धित चेकलिस्‍ट को भी अनिवार्य रूप से भरने का सुझाव भी दिये।

इस समीक्षा बैठक का संचालन करते हुए वरिष्‍ठ राजभाषा अनुवादक श्री श्‍याम बाबू शर्मा ने पिछली बैठक के निर्णय और निर्धारित मदो के अनुपालन स्थिति पर विस्‍तृत जानकारी दी। साथ ही ई-आफिस पर नोटिंग हिन्‍दी में प्रस्‍तुत करने पर प्रस्‍तुति दी। नोटिंग यूनिकोड में भेजने को कहा ताकि वह आगे किसी अधिकारी के ई-आफिस पर उसका फान्‍ट बदल न जाय। बैठक में राजभाषा अधिकारी श्री मु0 अरशद मिर्जा ने परिचालन विभाग की राजभाषा प्रयोग की स्थिति पर संतोष भी प्रकट किया। इस बैठक में धन्‍यवाद ज्ञापन सचिव/प्रमुख मुख्‍य परिचालन प्रबन्‍धक  श्री मनोज आनन्‍द सिंह ने किया। इस अवसर पर परिचालन विभाग के सभी अधिकारी एवं सभी अनुभाग के कार्यालय अधीक्षक उपस्थित रहे।







 

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

अन्तर्विभागीय फुटबाल प्रतियोगिता - 2022 /पूर्वोत्तर रेलवे ,लखनऊ मंडल


 अन्तर्विभागीय फुटबाल  प्रतियोगिता - 2022 /पूर्वोत्तर रेलवे ,लखनऊ मंडल - (विजेता - यांत्रिक विभाग , उप विजेता - परिचालन विभाग )

रविवार, 4 दिसंबर 2022

साइबरठगी।

 साइबर ठगी


        प्राचीन ग्रंथों में तीन प्रकार की एष्णाएं (इच्छाएं) मानव स्वभाव में अंतर्निहित बताई गई हैं- पुत्रेष्णा, वित्तेष्णा और लोकेष्णा लोकेष्णा यानी लोक में मान सम्मान, प्रशंसा पाने की इच्छा। इन एष्णाओं की पूर्ति जब पुरुषार्थ के माध्यम से हो तो जीवन संवर जाता है, किंतु जब एष्णा लोभ का स्वरूप ग्रहण कर ले तो वही होता है जो शिक्षक व धार्मिक विषयों के यू-ट्यूबर लखनऊ के सैमुअल सिंह के साथ हुआ। सैमुअल साइबर संसार में ठगी का शिकार हो गए। जब वह डेढ़ करोड़ रुपये ठगों के हाथ गंवा बैठे तब पुलिस की सहायता ली। सैमुअल ईसाई समुदाय से संबंधित धार्मिक आयोजनों व धर्मोपदेश • संबंधी वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करते हैं। अगस्त में एक व्यक्ति ने फोन कर बताया कि वह बिल्टन से जान स्पेंसर बोल रहे हैं। उनके वीडियो से प्रभावित होकर पोलैंड के एक सज्जन ने उन्हें पार्सल भेजा है जिसमें हीरेजड़ित घड़ी, स्वर्णाभूषण और कुछ हजार पौंड हैं। सैमुअल यहीं एक साथ लोकेष्णा और वित्तेष्णा के शिकार हो गए। विभिन्न टैक्स और ड्यूटी के नाम पर कई बार में जब उनसे डेढ़ करोड़ रुपये खाते में ट्रांसफर करा लिए गए तब पुलिस की शरण ली। • सैमुअल अकेले व्यक्ति नहीं हैं। हाल के ही दिनों में अनेक उदाहरण सामने आए जिनमें ऐसे ही लोग लोभवश साइबर ठगों के जाल में फंसते चले गए। कुछ दिन पहले एक सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी भी करीब सवा करोड़ गंवा बैठे थे। पुलिस की सतर्कता से उनका करीब 80 लाख रुपया तो वापस मिल गया, लेकिन भविष्य के लिए सुरक्षित शेष धनराशि ठग पार कर चुके थे। साइबर ठगी का जाल इतना विस्तृत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचालित है कि समय पर न चेते तो रकम वापसी मुश्किल हो जाती है। 

        इतिहास का कोई भी कालखंड ऐसा नहीं रहा जिसमें ठगी प्रथा अलग-अलग रूपों में अस्तित्व में न रही हो । विधिक सख्ती से कमी जरूर आती है, लेकिन साइबर ठगी से बचाव का उपाय मात्र एक ही है - लालच पर अंकुश। यह लालच चाहे प्रशंसा का हो या प्रभाव के झूठे महिमागान का। जागरूकता और मानवीय कमजोरियों पर संस्कारों का पहरा ही लालच में फंसने से रोक सकता है।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

हमारी मातृभाषा हिंदी

 हमारी मातृभाषा हिंदी

एक हिंदीभाषी होने के नाते मुझे इस बात पर गर्व होता है कि हिंदी भारत की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है, यह भाषा 52 करोड़ व्यक्तियों की प्रथम भाषा है ।  हिंदी साहित्य को जन-जन की भाषा बनाने में सभी साहित्यकारों का अमूल्य योगदान रहा है । भारतेन्दु  हरिश्चंद्र जी ,रविंद्र नाथ टैगोर जी ,मुंशी प्रेमचंद  जी ,राष्ट्रकवि दिनकर जी, सेठ गोविन्ददास ,हरिवंश राय बच्चन जी, नीरज जी ,कवि प्रदीप और दुष्यन्त कुमार जी और अन्य बहुत ही साहित्यकार है ।भारत शुरू से एक बहुसंख्यक सभ्यता  वाला राष्ट्र रहा है। भारत की उत्पत्ति जितनी पुरानी है उतनी ही पुरानी है। भारत की सभ्यता, संस्कृति और यहाँ  का साहित्य भी !       अगर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण को हिंदी में नहीं लिखा होता तो क्या रामायण जन- जन के द्वारा इतनी पढ़ी जाती और खासकर उन राज्यों में जहां की मुख्य भाषा हिंदी है, अवधी है ,भोजपुरी है ।कुछ प्रमुख नाम जिनकी वजह से हिंदी जन-जन के दिलों में उतर पायी है :-

सेठ गोविन्ददास : हिंदी के प्रसार के साथ इसे राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर सुशोभित करवाने में सेठ गोविन्ददास की अविस्मरणीय भूमिका रही है। ये उच्चकोटि के साहित्यकार थे ,आपकी नाट्यकृतियों से हिंदी साहित्य मोहक रूप में समृद्ध हुआ है। उन्होंने जबलपुर से शारदा, लोकमत तथा जयहिन्द पत्रों की शुरूआत कर जन-मन में हिंदी के प्रति प्रेम जगाने और साहित्यिक परिवेश बनाने का अनुप्रेरक प्रयास किया है।

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने जिस तरीके से ग्रामीण सभ्यता को भारतीय समाज को हिंदी की कहानियों में गढ़ा  उसे परिभाषित किया ,उनके इस प्रयास से हिंदी अपने दायरे को और फैला पायी  और ज्यादा लोगों तक पहुँच पायी है।

रवीन्द्र नाथ  टैगोर जी ने राष्ट्रीय गान को हिंदी में लिखकर हिंदी को लोगों की जुबां पर लाकर ठहरा दिया। दुनियाँ  में जहां भी भारत का राष्ट्रीय  गान गाया जाता है वहाँ  हिंदी का प्रचार- प्रसार होता है। वहाँ  पर सभी का हिंदी से अथाह प्रेम बढ़ जाता है।

 राष्ट्रकवि  दिनकर जी की लिखी रश्मिरथी और आपातकाल के दौर में लिखी उनकी कविताएं और खासकर सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, इस कविता ने भारत में क्रांति ला दी और मोरारजी देसाई जी ने महाराष्ट्र की एक सभा में उनकी कविताओं की जब कुछ चंद लाइनें पढ़ी  थी तो जनता ने हिंदी की इस कविता का जोरदार स्वागत किया था। दिनकर जी की इस कविता ने उस वक्त की इंदिरा गांधी और कांग्रेस की सरकार गिराने में एक अहम भूमिका निभाई थी ।

हरिवंश राय बच्चन जी ने जिस तरीके से एक आम भाषा में एक जन भाषा में कविताओं को लिखा उससे हिंदी की कविता की लोकप्रियता और बढी  हिंदी और अधिक लोगों तक पहुँची।

 नीरज जी के लिखे हुए गीत आज भी हिंदी प्रचार प्रसार में अपनी एक अहम भूमिका निभा रहे हैं हिंदी को जन - जन तक पहुँचा रहे हैं।

दुष्यंत कुमार जी की लिखी हुई कविताएं जो सत्ता और समाज की हकीकत बयां करती हैं वह कविताएं आज भी युवा दिलों में अपनी एक खास जगह बनाए हुए हैं। 

 कवि प्रदीप जी की कविताओं और गीतों को कौन भुला सकता है।

"मेरे वतन के लोगों से लेकर देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान।"

 जैसे गीतों ने जहाँ एक तरफ समाज की हकीकत को लिखा बताया वहीं दूसरी तरफ हिंदी के प्रचार -प्रसार में अपनी एक अलग भूमिका निभाई ,आज भी जब स्वतंत्रता दिवस आता है आज भी  जब गणतंत्र दिवस आता है  तब लोगों को ए मेरे वतन के गीत गुनगुनाते सुनते हुए देखा जा सकता है ।उनके लिखे यह गीत आज भी जन- जन के दिल में हिंदी की अलख  जगाते  हैं।

 हिंदी के लिए अटूट काम महात्मा गांधी जी ने भी किया हिंदी  भारत की मातृभाषा बने यह महात्मा गांधी भी चाहते थे ।एक बार सन् 1917 में गुजरात प्रदेश के भड़ौच गुजरात शिक्षा परिषद् के अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाने का  विरोध किया, और हिन्दी के महत्त्व पर मुक्तकंठ से चर्चा की थी-

राष्ट्र की भाषा अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाना देश में ‘एैसपेरेण्टों’ को दाखिल करना है। अंग्रेजी को राष्ट्रीय भाषा बनाने की कल्पना हमारी निर्बलता की निशानी है।“

एक हिंदीभाषी होने के नाते मैं चाहता हूं कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा  बने लेकिन यह  भाषा भारत की मातृभाषा संवैधानिक रूप से नहीं जन-जन की स्वीकृति से बने जन-जन  के मुख से बने सभी दिलों में जगह पाकर बने जिसके लिए हमें अभी बहुत मेहनत करनी है क्योंकि भारत -भारत से बहुत जुदा है और हमारी एकता ही हमारी सबसे बड़ी एकता है जो हमें दुनियाँ में सबसे अलग बताती है जो दुनियाँ  में हमें सबसे खास बनाती है।


 क्षेत्रीय रेल प्रशिक्षण संस्‍थान, पूर्वोत्‍तर रेलवे, गाजीपुर


दिनांक 29.11.2022 को संस्‍थान में संरक्षा क्विज़़ का आयोजन किया गया।सफल प्रशिक्षणार्थियों को प्रधानाचार्य प्रभारी श्री एस.के.राय द्वारा पुरस्‍कृत किया गया।