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गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

हमारी मातृभाषा हिंदी

 हमारी मातृभाषा हिंदी

एक हिंदीभाषी होने के नाते मुझे इस बात पर गर्व होता है कि हिंदी भारत की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है, यह भाषा 52 करोड़ व्यक्तियों की प्रथम भाषा है ।  हिंदी साहित्य को जन-जन की भाषा बनाने में सभी साहित्यकारों का अमूल्य योगदान रहा है । भारतेन्दु  हरिश्चंद्र जी ,रविंद्र नाथ टैगोर जी ,मुंशी प्रेमचंद  जी ,राष्ट्रकवि दिनकर जी, सेठ गोविन्ददास ,हरिवंश राय बच्चन जी, नीरज जी ,कवि प्रदीप और दुष्यन्त कुमार जी और अन्य बहुत ही साहित्यकार है ।भारत शुरू से एक बहुसंख्यक सभ्यता  वाला राष्ट्र रहा है। भारत की उत्पत्ति जितनी पुरानी है उतनी ही पुरानी है। भारत की सभ्यता, संस्कृति और यहाँ  का साहित्य भी !       अगर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण को हिंदी में नहीं लिखा होता तो क्या रामायण जन- जन के द्वारा इतनी पढ़ी जाती और खासकर उन राज्यों में जहां की मुख्य भाषा हिंदी है, अवधी है ,भोजपुरी है ।कुछ प्रमुख नाम जिनकी वजह से हिंदी जन-जन के दिलों में उतर पायी है :-

सेठ गोविन्ददास : हिंदी के प्रसार के साथ इसे राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर सुशोभित करवाने में सेठ गोविन्ददास की अविस्मरणीय भूमिका रही है। ये उच्चकोटि के साहित्यकार थे ,आपकी नाट्यकृतियों से हिंदी साहित्य मोहक रूप में समृद्ध हुआ है। उन्होंने जबलपुर से शारदा, लोकमत तथा जयहिन्द पत्रों की शुरूआत कर जन-मन में हिंदी के प्रति प्रेम जगाने और साहित्यिक परिवेश बनाने का अनुप्रेरक प्रयास किया है।

मुंशी प्रेमचंद्र जी ने जिस तरीके से ग्रामीण सभ्यता को भारतीय समाज को हिंदी की कहानियों में गढ़ा  उसे परिभाषित किया ,उनके इस प्रयास से हिंदी अपने दायरे को और फैला पायी  और ज्यादा लोगों तक पहुँच पायी है।

रवीन्द्र नाथ  टैगोर जी ने राष्ट्रीय गान को हिंदी में लिखकर हिंदी को लोगों की जुबां पर लाकर ठहरा दिया। दुनियाँ  में जहां भी भारत का राष्ट्रीय  गान गाया जाता है वहाँ  हिंदी का प्रचार- प्रसार होता है। वहाँ  पर सभी का हिंदी से अथाह प्रेम बढ़ जाता है।

 राष्ट्रकवि  दिनकर जी की लिखी रश्मिरथी और आपातकाल के दौर में लिखी उनकी कविताएं और खासकर सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, इस कविता ने भारत में क्रांति ला दी और मोरारजी देसाई जी ने महाराष्ट्र की एक सभा में उनकी कविताओं की जब कुछ चंद लाइनें पढ़ी  थी तो जनता ने हिंदी की इस कविता का जोरदार स्वागत किया था। दिनकर जी की इस कविता ने उस वक्त की इंदिरा गांधी और कांग्रेस की सरकार गिराने में एक अहम भूमिका निभाई थी ।

हरिवंश राय बच्चन जी ने जिस तरीके से एक आम भाषा में एक जन भाषा में कविताओं को लिखा उससे हिंदी की कविता की लोकप्रियता और बढी  हिंदी और अधिक लोगों तक पहुँची।

 नीरज जी के लिखे हुए गीत आज भी हिंदी प्रचार प्रसार में अपनी एक अहम भूमिका निभा रहे हैं हिंदी को जन - जन तक पहुँचा रहे हैं।

दुष्यंत कुमार जी की लिखी हुई कविताएं जो सत्ता और समाज की हकीकत बयां करती हैं वह कविताएं आज भी युवा दिलों में अपनी एक खास जगह बनाए हुए हैं। 

 कवि प्रदीप जी की कविताओं और गीतों को कौन भुला सकता है।

"मेरे वतन के लोगों से लेकर देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान।"

 जैसे गीतों ने जहाँ एक तरफ समाज की हकीकत को लिखा बताया वहीं दूसरी तरफ हिंदी के प्रचार -प्रसार में अपनी एक अलग भूमिका निभाई ,आज भी जब स्वतंत्रता दिवस आता है आज भी  जब गणतंत्र दिवस आता है  तब लोगों को ए मेरे वतन के गीत गुनगुनाते सुनते हुए देखा जा सकता है ।उनके लिखे यह गीत आज भी जन- जन के दिल में हिंदी की अलख  जगाते  हैं।

 हिंदी के लिए अटूट काम महात्मा गांधी जी ने भी किया हिंदी  भारत की मातृभाषा बने यह महात्मा गांधी भी चाहते थे ।एक बार सन् 1917 में गुजरात प्रदेश के भड़ौच गुजरात शिक्षा परिषद् के अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाने का  विरोध किया, और हिन्दी के महत्त्व पर मुक्तकंठ से चर्चा की थी-

राष्ट्र की भाषा अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाना देश में ‘एैसपेरेण्टों’ को दाखिल करना है। अंग्रेजी को राष्ट्रीय भाषा बनाने की कल्पना हमारी निर्बलता की निशानी है।“

एक हिंदीभाषी होने के नाते मैं चाहता हूं कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा  बने लेकिन यह  भाषा भारत की मातृभाषा संवैधानिक रूप से नहीं जन-जन की स्वीकृति से बने जन-जन  के मुख से बने सभी दिलों में जगह पाकर बने जिसके लिए हमें अभी बहुत मेहनत करनी है क्योंकि भारत -भारत से बहुत जुदा है और हमारी एकता ही हमारी सबसे बड़ी एकता है जो हमें दुनियाँ में सबसे अलग बताती है जो दुनियाँ  में हमें सबसे खास बनाती है।


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