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रविवार, 18 दिसंबर 2022

कर्म की महत्ता

 कर्म की महत्ता


हनुमान जी जब माता सीता का पता लगाने लंका में गए तब रावण के पुत्र मेघनाद ने उन्हें पकड़ लिया। रावण हनुमान जी को मार डालना चाहता था, लेकिन विभीषण के कहने पर उसने उनकी पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। हालांकि हनुमान जी की पूंछ नहीं जली, बल्कि उनकी जलती पूंछ से भौतिकता की लंका खुद ही जल गई। इस दृष्टि से हनुमान जी की पूंछ का मतलब मनुष्य का अतीत में किया गया कार्य दृष्टिगोचर होता है। किसी व्यक्ति ने अपने अतीत में किस तरह का जीवन व्यतीत किया है, यह हमेशा उसके पृष्ठभाग (पीठ) पर अंकित रहता है। व्यक्ति का अतीत सदैव उसके साथ रहता है। मनुष्य यदि सात्विक और धर्मानुचरण जीवन जीता है तब उसके जीवन में लंका जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियां जलकर स्वतः खाक हो जाती हैं। सकारात्मक प्रवृत्तियां लुभावनी नकारात्मक प्रवृत्तियों के तेल और घी की चिकनाई में फिसलती नहीं। इसी तरह अहंकार की आग से व्यक्ति के अतीत में किए गए सकारात्मक प्रभावों को जलाया नहीं जा सकता।


हनुमान जी की इस कथा के निहितार्थ को समझ कर कोई व्यक्ति जीवन जीए तो उसे बड़े से बड़े लोग भी न भयभीत कर सकेंगे और न डिगा सकेंगे तथा शांति स्वरूपा सीता का आशीर्वाद उसे निरंतर मिलता रहेगा।, वह हनुमान जी की तरह अनंत आकाश में उड़ने लगेगा। तमाम महापुरुषों का जीवन उदाहरण के रूप में हमारे सामने है। आदि शंकराचार्य की ख्याति लगभग डेढ़ हजार वर्ष से छाई हुई है। गोस्वामी तुलसीदास छह सौ वर्ष से जीवित ही प्रतीत होते हैं। ऐसे तमाम महापुरुषों को काल मार नहीं सकता, बल्कि उनके आगे दंडवत करता ही दिखाई पड़ता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जिस आत्मा के लिए कहा है कि उसे अस्त्र-शस्त्र से मारा नहीं जा सकता तथा अग्नि जला नहीं सकती, वह जीवन में किए गए कर्म ही होते हैं।

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