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बुधवार, 27 नवंबर 2019

जीवन आनंद

जीवन आनंद
 यदि आसपास के लोगों के व्यवहार और आचरण को गंभीरता से पढ़ने की
कोशिश करें तो यह समझने में देर नहीं लगती है कि  हममें से बहुतेरे लोग ऐसे हैं
जो अपना संपूर्ण जीवन बिल्कुल नहीं जीते हैं, बल्कि जीवन के जीने को स्थगित करते रहते हैं. ऐसे लोग प्राया यही सोचते रहते हैं कि अभी तो जीवन में काफी परेशानियां हैं, और जब इससे निजात पा लूंगा तो खूब खिलखिला कर हंस लूंगा, और सुकून से जीवन जी लूंगा. अधिकांश तो ऐसा भी सोचते हैं कि अभी तो अमुक कार्य काफी जरूरी है ,जब वह कार्य आने वाले कल में संपादित हो जाएगा ,तो फिर वह खूब मौज मस्ती करेंगे और जीवन जीने  को शिद्दत से आनंद लेंगे. आशय यह है कि ऐसे लोग वर्तमान में जीवन को उसके सच्चे स्वरूप में जीते ही नहीं, बल्कि जीवन जी ने को स्थगित करते रहते हैं. सच पूछिए तो जीवन जीने को स्थगित करने के बारे में मानव मन की यही घातक प्रवृत्ति उसके दुखों का सबब होती है. क्योंकि हकीकत तो यही है कि कल कभी नहीं आता है. हर आने वाला कल अगले दिन के लिए आज होता है. इस सत्य से इंकार करना कदाचित आसान नहीं होगा कि ,मानव जीवन क्षणभंगुर और अनिश्चित है. पल में प्रलय होता है और इंसान के सुनियोजित और खूबसूरत सपने पलक झपकते ही टूट कर बिखर जाते हैं. अमेरिकी कूटनीतिक  एलेनोर रुजवेल्ट ने कहा था ‘“भविष्य उसी व्यक्ति का साथ देता है जो अपने अपने सपनों की खूबसूरती में विश्वास रखता है’  सपने हैं तो जीवन है, जीवन की दिशाएं हैं, जीवन का उद्देश्य है,जीवन का साध्य है. सपनों से मरहूम जीवन की कोई सार्थकता नहीं होती है. वर्तमान में जीना एक सार्थक जीवन जीने की सबसे खूबसूरत कला है. हर सुबह यदि यह मानकर  जिए कि आज जीवन का आखरी दिन है, तो जीवन अपने सबसे सुंदर और सार्थक स्वरूप में ढलता  है .जीवन को मुकम्मल तौर पर जीने वाले उम्र दराज लोगों का भी यही मानना है, कि जीवन के सभी लम्हे बेशकीमती मोतियों सरीखे होते हैं ,जिन्हें या तो जीवन  जीकर कर हासिल करें, या फिर जीवन जीना स्थगित करके व्यर्थ कर दें. इसी निर्णय पर हमारा भविष्य और जीवन के वर्षों से संजोए सपनों का साकार होना निर्भर करता है.

दोषपूर्ण दान

दोषपूर्ण दान

हर मनुष्य सुखमय जीवन जीना चाहता। तमाम लोग अपने आचरण 
एवं कर्मठता से सांसारिक आवश्यकताओं की प्राप्ति कर ऐसा जीवन 
जीते हैं तो बहुत से लोग भाग्य के सहारे सब कुछ पाने का आसरा 
लगाए रहते हैं। ऐसे लोग भाग में लिखा होगा तो सब कुछ मिलेगा
,सोच कर बैठे रहते हैं तो कुछ लोग भगवान भरोसे ही सुखद जीवन 
की कल्पना करते रहते हैं। जबकि यह सत्य है कि बिना बीज के 
जैसे वृक्ष नहीं होता,उसी प्रकार बिना कर्मबीज के आकांक्षाओं का वृक्ष 
और उस पर फल नहीं लग सकते।धर्म ग्रंथों की व्याख्या यह नहीं है कि 
भगवान भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर देंगे। धर्म ग्रंथों के बताए 
रास्ते पर सूझ-बूझ के साथ चलने पर आत्मबल मजबूत होता है।
 महाभारत के अनुशासनपर्व में इस बात का उल्लेख किया गया है। 
एक बार युधिष्ठिर ने इसी तरह का प्रश्न भीष्म पितामह से पूछा कि 
भाग्य के सहारे जीना चाहिए या प्रसाद के सहारे जिस पर पितामह भीष्म 
ने कहा कि धर्म अपनाने एवं उसके अनुसार जीवन पथ पर चलने से व्यक्ति 
की सोच एवं दृष्टि सुस्पष्ट होती है। वह चमत्कार थे भौतिक उपलब्धि में 
नहीं पड़ता। वह सदैव सदाचरण करता है जिससे उसके जीवन में 
नकारात्मकता नहीं आती, जबकि भाग्य के सहारे जीने वाला पहले आलसी
 होता है और उसके बाद नकारात्मक हो जाता है, जिससे उसके इर्द-गिर्द 
तनाव डेरा डाल देता है। फिर उसकी इस कमजोरी का दूसरे फायदा उठाने 
लगते हैं। धर्म के नाम पर ऐसे लोग खूब ठगे भी जाते हैं। भीष्म ने कहा कि 
भगवान प्रकट होकर सब कुछ दे देंगे, इस ख्वाहिश में पाखंडी लोग दान -दक्षिणा
 के नाम पर उसके पास जो कुछ दिन है उसे हड़प लेते हैं। भीष्म ने ऐसे दान 
जिससे घर के आश्रितों के जीवन -यापन में व्यवधान आता हो, उसे भी दोषपूर्ण 
कहा है। दान देने एवं लेने के अवसर और पात्रता पर भी खूब चिंतन मनन के 
बाद सुस्पष्ट व्यवस्था दी है। ऐसा नहीं है कि खूब दान करने से भगवान भागते चले 
आएंगे। महात्माओं ने मां लक्ष्मी की प्रसन्नता से जिस धन -दौलत मिलने की बात 
कही है वह अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा से लगे रहना ही बताया है। लक्ष्मी का दुरुपयोग 
भी मना किया गया है। कुपात्र को दान आदि देने से दोषी बताया गया है। अतः व्यक्ति
 को अपने पुरुषार्थ पर ही भरोसा करना चाहिए।

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

समाधान

समाधान


प्रत्येक मनुष्य के जीवन में समस्याएं वैसे ही आती हैं जैसे दिन और रात का आना तय है। मगर जो मनुष्य समस्या या किसी उलझन के समय शांत तथा समभाव में रहकर समस्या को सुलझा लेता है, उसके लिए समस्या एक अनुभव मात्र होती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जीवन में समस्या होती ही नहीं, लेकिन कुछ मनुष्य मान रहे होते हैं कि उनके जीवन में समस्या है । ऐसे मनुष्य मानने भर से सोचते हैं कि वह समस्या में फंस गए हैं इसलिए सर्वप्रथम तथ्यों के आधार पर यह विचार करना चाहिए कि समस्या है भी या नहीं और यदि समस्या है तो उसका वास्तविक स्वरूप क्या है। ऐसा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि समस्या को सुलझाने के लिए स्वरूप जानना जरूरी होता है। अक्सर देखने में आता है कि समस्या का उचित विश्लेषण ना करने के कारण समस्या से ग्रस्त मनुष्य मानसिक अवसाद का शिकार हो जाता है। समस्या को स्वयं सुलझाने के लिए मनुष्य का सबसे बड़ा सहायक उसका स्वयं का मन होता है। मन जितना शांत होगा, समस्या उतनी ही आसानी से सुलझाई भी जा सकती है। यह स्पष्ट है कि बेचैन तथा परेशान मन कुछ भी सार्थक सोच-समझ नहीं सकता। इस प्रकार का मन केवल पहेलियां बनाता है, उन्हें सुलझाता नहीं। अक्सर समाधान समस्या की तह में ही छुपा होता है, उसकी ऊपरी सतह पर नहीं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि मन को शांत अवस्था में कैसे लाया जाए। उसके लिए ध्यान एक रामबाण उपाय है। ध्यान के द्वारा मनुष्य का मन ध्यान की अवधि में भटकना बंद हो जाता है। इस कारण मस्तिष्क को भी मन के ठहराव के कारण विश्राम मिल जाता है और मस्तिष्क तरोताजा होकर समस्या के बारे में अच्छी प्रकार तथ्यों के आधार पर विचार करके उत्तर निकालता है। इसलिए जब समस्या आए, मनुष्य को ध्यान जरूर करना चाहिए। ध्यान के समय समस्या ईश्वर को सौंपकर शरीर में ईश्वरीय अंश यानी आत्मा से उसके उत्तर की प्रतीक्षा करनी चाहिए। यह अटल सत्य है कि आत्मा हर समस्या का उचित उत्तर जरूर देती है। समस्याओं के स्थाई समाधान के लिए ध्यान को अपने दिनचर्या में शामिल करके समस्याओं का उचित समाधान करने में जुट जाएं।

झगड़ा

झगड़ा
 झगड़ा करना विनाश को न्योता देना होता है .और मूर्ख ही झगड़ा करते हैं.
भक्त अगर झगड़ा करें तो वह भक्त नहीं कहे जा सकते हैं. वे ढोंगी होते हैं.
वे नहीं जानते कि भगवान की भक्ति किस लिए की जाती है. और भक्तों का स्वभाव
कैसा होना चाहिए ? भक्ति का उद्देश्य और भगवान का निर्देश समझ लेना
भक्तों का सबसे पहला कार्य है. भक्ति करके ही ज्ञान को पाया जा सकता है
. जो भक्त ज्ञानी होता है वह समस्त जीव जंतुओं में अपने आराध्य की सत्ता
को विद्यमान देखता है. फिर वह कैसे अपने आराध्य से  द्वेष द्वंद कर
सकता है. भक्त के लिए तो प्रत्येक प्राणी ,जीव जंतु, वृक्ष, वनस्पति,
पत्थर, पहाड़, सब पूज्य होते हैं भला वह पूज्य वस्तु को कैसे
अनादर कर सकता है.
 मानव जीवन की परिपूर्णता सार्थकता तो प्रत्येक जीव- प्राणी से प्रेम
विकसित करने पर ही सफल मानी जाती है . इसके अभाव में तो भगवान
भी स्वयं अपनी पूजा स्वीकार नहीं करते हैं. क्योंकि उसके अंदर श्रद्धा विश्वास
समर्पण की भावना ही नहीं होती है. तुच्छता का भाव ही झगड़ा झंझट की
स्थिति-  परिस्थिति की रचना का सूत्रधार बनता है. ईश्वर ने सृष्टि रचना
प्रत्येक प्राणी को सुख आनंद देने के उद्देश्य से की है .और यह संभवत
प्रेम को ह्रदय में विकसित करने से ही संभव हो पाता है. प्रेम पवित्रता को
अपनाने से होता है. पवित्रता श्रद्धा से आती है. श्रद्धा ईश्वर की कृपा से प्राप्त
होती है. ईश्वर की कृपा   पुण्य की प्रबलता से प्राप्त होती है. पुण्य की
प्राप्ति से सत्कर्म और शब्द ज्ञान ,सत्य ज्ञान की वृद्धि होती है. और ज्ञान
की वृद्धि से मनुष्य देवता की श्रेणी में पहुंच जाता है. और जो देवता होते हैं
उन्हें ईश्वर अपने गले का हार बना कर रखता है. क्योंकि सुरक्षा देवता के द्वारा होती है.
 जहां की  सभ्यता संस्कृति  देवत्व संपन्न होती है वहीं सुख शांति की वर्षा होती है .
अमन चैन आता है/ इसीलिए हमारी देव संस्कृति महान है .हमारी वसुंधरा
को भूदेव कहा जाता है. झगड़ा झंझट तो  असुर संस्कृति की पहचान है.
वह विनाश की जड़ है. प्रत्येक मनुष्य को इन दुर्गुणों से बचना ही विवेकशील
होने की पहचान है. झगड़ा करने से संस्कृत दूषित हो जाती है. घरों में समाज
में देश में लोग एक दूसरे से लड़ते झगड़ते देखे जाते हैं.

अज्ञानता है इससे बचने की जरूरत है.

मंगलवार, 19 नवंबर 2019

आशा का अंकुर

आशा का अंकुर
 एक छोटा लड़का हर रोज शाम को अपने पिता के साथ अपने
घर के पास के एक पार्क में आया
करता था| उसके दाएं पैर का एक अंगूठा अंदर की तरफ मुड़ा हुआ था|
और इसकी वजह से
सीधा नहीं चल पाता था, पिता उसे हर रोज इस उम्मीद के साथ
पार्क में लाते थे, कि कहीं
वह दूसरे लोगों को दौड़ते देखकर खुद दौड़ने का प्रयास करेगा,
और वह भी एक दिन
सामान्य रूप से चलना शुरू कर देगा | लेकिन वह बालक केवल
अपने पिता के साथ
बैठकर पार्क में स्थापित उस मूर्ति को गौर से देखता रहता था ,
जो एक धाविका की थी
जो दौड़ने के लिए तैयारी की मुद्रा में सामने नजर गड़ाई बैठी
हुई थी /पुत्र को इस प्रकार
उस धाविका की मूर्ति को देखने पर पिता की उत्सुकता ब
लवती हो उठी,  बेटे तुम उस
प्रतिमा में हर दिन इतने ध्यान से क्या देखते हो ?आखिर
उसमें विशेष क्या है?
 पापा मैं उस प्रतिमा को देखकर जीवन में  उठ खड़ा होने
और तेजी से दौड़ने के लिए
अंदर से प्रेरित होता हूं. उस प्रतिमा में मुझे खुद का अक्स
दिखाई देता है. और यही
कारण है कि जब मैं उस प्रतिमा को देखता हूं, तो अंदर से
सिहर जाता हूं. और पता
नहीं मुझे क्यों यह प्रतीत होता है, कि उस प्रतिमा की जगह
मैं खुद बैठा हूं. समय गुजरता गया
और वह भी एक दिन सामान्य रूप से चलने और दौड़ने लगा.
यह  देखकर पिता अभिभूत हो
उठे उसकी आंखों में आंसू बह निकले .

सच पूछिए तो हम सबके अंदर एक वैसा ही बालक बैठा हुआ है ,
जो किसी ना किसी
मानसिक बाधा का शिकार है जरूरत है अपने जीवन के उस  
अवरोध को पहचानने की,
र पूर्ण आशा और विश्वास के साथ उसको दूर करने की .
जीवन उम्मीदों के भरोसे चलता है .
आशा के बिना जिंदगी अर्थहीन है. हर  सुरंग के अंत में रोशनी
की दुनिया का उदय होता है.
यही अगाध विश्वास अंधेरों और मुसीबतों से लड़ने के लिए
शक्ति देता है. और मानव की
निराशा और आशा का मूल कारण मानव का मन है.
मन की लगान को सख्ती  से
नियंत्रित करने और जीवन के झंझावात और संघर्षों
का सामना करने में ही आशा का
अंकुर छुपा हुआ है. जो इंद्रधनुषी सपनों को मूर्त रूप प्रदान करता है
और सार्थक जीवन
का निर्माण करता है| 

सफलता की चाह

सफलता की चाह

आजकल हर कोई सफलता के पीछे भाग रहा है, लेकिन सफलता उससे भी तेज गति से पलायन कर रही है। कुछ लोग शीघ्र से शीघ्र सफलता अर्जित करने के लिए शॉर्टकट की राह भी चुनने में देर नहीं कर रहे हैं। परिणाम स्वरूप उनके हाथों नाकामयाबी ही आ रही है, आखिर सफलता का रहस्य क्या है? इस प्रश्न का उत्तर जाने बिना और सफलता को भलीभांति समझे बिना उसे पाने की हर कोशिश व्यर्थ ही है। कुछ लोग सफलता का सही अर्थ समझे बिना ही व्यर्थ की होड़ में लगे रहते हैं। वे समझते हैं कि सफलता कोई पड़ाव है असल में सफलता कोई  पड़ाव ना होकर निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है।
      सफलता को पाने के लिए अथक परिश्रम की आवश्यकता होती है। मेहनत और सफलता का रिश्ता चोली दामन का कहे तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी । सफलता का सुनहरा सपना देखने वालों को अपनी योग्यता पर भरोसा होना चाहिए । जब योग्यता आ जाती है तो सफलता की राह बेहद ही आसान हो जाती है सफलता जैसे शब्द के हर व्यक्ति की नजर में अलग-अलग मायने हो सकते हैं। एक छात्र के लिए नौकरी और अधिक धन की प्राप्ति सफलता का एक पहलू हो सकता है। भले ही मायने ढेरों हो पर सभी के लिए सफलता तक पहुंचने का एक ही विकल्प है - धैर्य और परिश्रम, लेकिन आज के युग में सबसे बड़ी कमी है तो धैर्य की। नाम की चाह में हम अक्सर बेकाबू होकर गलत राह की ओर अग्रसर हो कर सफलता के सन्निकट होने के बावजूद दूर हो जाते हैं। एक समय ऐसा भी आने लगता है जब हम किंकर्तव्यविमूढ़ की दशा में पहुंच जाते हैं। फिर जिंदगी तनाव में और आक्रोश का  आनायास ही प्रवेश होने लगता है।
      अतः कहा भी गया है कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले, ना किसी को मिला है और ना मिलेगा जीवन में कर्म ही व्यक्ति की समस्त इच्छाओं की पूर्ति का एकमेव माध्यम है हमें भी अपने लक्ष्य को निर्मित कर उसे पाने की दिशा में एकटक होकर रात दिन प्रयासरत रहना चाहिए। कुछेक असफलताओं की ठोकरों से भयभीत होकर अपनी राह बदल देना उचित नहीं है। असफलता के बाद भी कोशिश जारी रखना चाहिए, क्योंकि "लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती"


सोमवार, 18 नवंबर 2019

भारतीय भाषाओं के लिए ऑनलाइन शब्दकोश

हम सरकारी जीव... सरकारी काम करते समय अक्सर किसी शब्द पर अटक जाते हैं। दिमाग पर जोर डालते हैं कि इसका उत्तर क्या होगा। ढ़ूंढते हैं टेबल पर पड़ी डिक्शनरी। पन्ना दर पन्ना उलटते-पलटते। फिर मिलता है वह इच्छित शब्द और उसका अर्थ।

आज हम सूचना-प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर-इंटरनेट के जमाने में जीने वाले जीव... क्या हम अपना समय अब डिक्शनरी का पन्ना उलटने-पलटने में बिता सकते हैं?  क्या इतना पेशेंस है हममें...

नहीं न...

चलिए! आज हम बताते हैं एक ऐसी साइट जो आपको मिनटों में भारतीय भाषाओं से अंग्रेजी में और अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में शब्दों का अर्थ उदाहरण के साथ प्रस्तुत कर सकती है। इसके लिए कृपया इस ब्लॉग को जरूर देंखे। इसमें और भी सूचनाप्रद और आपके काम की जानकारी मिलेगी...



शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

शब्द बीज

शब्द  बीज


वाणी -विभूषित शब्द सृष्टि से मानव को मिले
अनुपम उपहार हैं । फिर भी प्रत्येक शब्द ना
मंत्र होने की भविष्यवाणी  कर सकता है, ना
ही उच्चरितध्वनि शब्द वाणी होने का उद्घोष ही।
जीवन के आहार-व्यवहार में तप-तप कर जिस
प्रकार गोमुख से निकली जलधारा असंख्य मिलों
की यात्रा कर गंगाजल होने के महत्व को प्राप्त
करती है, उसी प्रकार शब्द भी उच्चारण से आचरण
तक की निष्ठा एवं पवित्रता की भट्टी में तप-तप कर
मंत्र-सृष्टि की स्वच्छता को प्राप्त होने का अपना सफर
तय करने में फल होते हैं।मंत्र जीवन-साधनारूपी
यज्ञशाला की कल्याणकारी अग्नि में आचरण एवं
पवित्रता से पगे ,तपे शब्दों का ही परिष्कृत रूप 
है । शब्दों के सदुपयोग की सकारात्मकता का
मार्ग इसके प्रयो्क्ताओं को आनंद, उत्साह ,
लक्ष्य ,शांती एवं सफलता के चिरंतन सुखों
अथवा सुखों से लाभान्वित करता है तथा
मानवता को देवत्व में परिवर्तित करने का एहसास
कराता है।  वही शब्दों का दुरुपयोग मानव को सुपथ
से भटकाकर नकारात्मक के मार्ग पर चलकर निराशा,
विध्वंस, पीड़ा, पश्चाताप के अंधकार में धकेल यह
दुर्लभ जीवन नष्ट करने के लिए प्रेरित करता रहता है ।
शब्द की उर्वरता एवं सोच की सकारात्मकता मानव
जीवन को ऐतिहासिक एवं स्मरणीय बनाकर विश्व में
चर्चित कर देती है । शब्द के प्रति उदासीनता एवं
सोच की नकारात्मकता दुर्लभ जीवन को ईर्ष्या ,द्वेष
कुविचारों के घुनों से खिलवाकर इसे दानवी कृत्यों
का स्वामी बनाकर युग-युगों तक के लिए कलंकित
कर देती है । एक मंत्र शब्द हमारी अज्ञानतारूपी
अंगुली थाम हमें सदुद्देश्य की ओर प्रेरित कर जीवन
का कल्याण कर सकता है ,जबकि एक दुष्प्रेरक
ब्द हमें हमारे सद्‌मार्ग से भटकाकर किन्ही गलत
उद्देश्यों की ओर प्रेरित कर हमें इस दुर्लभ जीवन को
सदा- सदा के लिए बर्बाद कर मानवता को कलंकित
कर सकता है।ईश्वर ने विवेकरूपी मस्तिष्क मानव को
इसी सद्‌प्रयोजन  के लिए उपहार में प्रस्तुत किया है ,
ताकि वह इसका प्रयोग सही दिशा में कर पशुता में
परिवर्तित होते अपने जीवन को नष्ट होने से बचा ले ।
आइए , प्रभु से उपहार में मिले इस शब्दबीज का
उपयोग कर मानवता के कल्याण और ज्ञान के
अनंत क्षितिज को नए आयाम दें।



श्रद्धा

श्रद्धा

शास्त्रों में वर्णित है - श्रद्धावान लभते ज्ञानं। श्रद्धा वान को ही ज्ञान का लाभ
प्राप्त होता है और ज्ञान ही पाशविक जीवन से ऊंचा उठकर देवत्व धारण
करने का प्रमुख आधार है। संसार के किसी भी मार्ग एवं क्षेत्र में लक्ष्य की
प्राप्ति एवं महारत हासिल करने के लिए श्रद्धा को संभल बनाया जाता है।
भगवत प्राप्ति के लिए श्रद्धा ही अनिवार्य है। श्रद्धा से असंभव को संभव
बनाना सरल है। जहां श्रद्धा है वहां कुछ भी प्राप्त होना कठिन नहींंहै।
श्रद्धा की  भूख जब व्यक्ति के हृदय में जागती है तो लक्ष्य प्राप्ति हर सपना
साकार करने की व्यग्रता मन में छा जाती है ,और मन में एक जुनून की
तरह दृष्टिगोचर होती है । जब तक उसकी प्राप्ति नहीं हो जाती , तब तक
मन-हृदय में शांति नहीं मिलती है। मन ह्रदय जब श्रद्धा की भूख प्रबल
होती है तो वह भक्त प्रार्थना ईश्वरीय रूप बन जाती है और आकुल-
व्याकुल भाव से भी की गई पु प्रार्थना अवश्य की पूर्णता को प्राप्त होती है। ईश्वर किसी की प्रार्थना को न ठुकराते हैं और न नजरअंदाज ना नजरअंदाज  करते हैं । भगवान तो भक्तों की श्रद्धा भाव के भूखे होते हैं । बशर्ते कि भक्तों की श्रद्धा कमजोर नहीं मजबूत होनी चाहिए , क्योंकि भगवत प्राप्ति के मार्ग में भक्तों की श्रद्धा की परीक्षा होती है। जिनकी श्रद्धा मजबूत होती हैं, वे भगवान की प्राप्ति के लक्ष्य में सफल होते हैं। श्रद्धा ही प्रेम,भक्ति,विश्वास
का सर्वप्रमुख आधार है। श्रद्धा के कारण ही यज्ञ, तप,पूजा,दान किए जाते हैं। प्राय: सभी देखते हैं बरसात में पानी वही एकत्रित होते हैं, जहां गड्ढा होता है। चट्टानों पर एक बूंद भी पानी नहीं टिकता है और जिस घरों का मुंह पर की ओर होता है, उसमें लबालब पानी भर जाता है और टेढ़े- मेढ़े ,उल्टे घड़े में पानी का अंश के रूप भी प्राप्त नहीं होता है । श्रद्धा से प्राप्ति संभव है, अन्यथा श्रद्धा के अभाव में सभी बादल मिलकर भी घनघोर वर्षा करें तो चट्टान पर पानी नहीं टिकेगा। भगवान की कृपा श्रद्धालु ही पाते हैं । निष्ठुर लाभ प्राप्ति के लिए अयोग्य है। श्रद्धा ही प्राप्ति की पात्रता है I एकलव्य श्रद्धा के बल पर गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर अर्जुन से भी ज्यादा घनघोर धनुर्धर बना था । श्रद्धा हो तो गगन से तारे तोड़े जा सकते हैं और पर्वतों में भी पथ निर्माण हो जाता है । इसके लिए यही करना होता है कि अपने शब्द को से असंभव शब्द को बाहर निकाल दिया जाए।

गुरुवार, 14 नवंबर 2019

दिवा-स्वप्न

दिवा-स्वप्न

जागना और सोना नैसर्गिक क्रिया है । रात में सोने पर स्वप्न आते हैं ,लेकिन सुबह उठते ही स्वप्न पानी के बुलबुले की तरह खत्म भी हो जाते हैं । इसीलिए रात के स्वप्न के मायने नहीं है। एक स्वप्न दिन में भी जागने पर आए तो वह तक सफलीभूत होता है जब उसके लिए बुद्धि विवेक जागृत रहे । दिवास्वप्न हास्यास्पद अर्थों में तब ले लिया जाता है जब व्यक्ति सिर्फ कल्पना ही करता रहता है और उस पर कोई योजना बनाकर लगता नहीं ।  चूँकि मनुष्य देवता का अंश है , इसीलिए वह चाले तो असंभव को संभव कर सकता है । ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपनी ऊर्जा पहचान कर अपने सपने साकार करने के लिए जुट जाना चाहिए इसके लिए व्यक्ति को योग यत्न करना चाहिए।
धर्मनिष्ठ लोग  भगवान की पूजा करते हैं l पूजा र्सिफ चित्रों और मूर्तियों में ही नहीं की जानी चाहिए , बल्कि जिस भगवान की पूजा की जा रही है उन्होंने कौन कौन सा ऐसा कार्य किया है कि वह पूजनीय हुए । केवल चित्र या मूर्ति पूजन से काम नहीं चलेगा । हां , पूजा पाठ करना अच्छा कार्य है।  इससे जीवन में नियमितता आती है,  लेकिन अभी की प्राप्ति के लिए उद्यम करना बहुत जरूरी है । उद्यम से ही कार्यों की सिद्धि होती है , सिर्फ सोचते रहने से नहीं । प्रायः लोग किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं , यज्ञ अनुष्ठान भी करते कराते हैं , उपवास भी करते हैं और जब उनकी मनोकामना की पूर्ति नहीं होती तो भगवान को दोष देते हैं । जबकि मनुष्य के पास भगवान जैसी  शक्ति और सामर्थ्य  है बहुत कुछ कर सकता है। जो लोग सफल हुए हैं , वह केवल पूजा-पाठ के ही सहारे नहीं हुए। उन्होंने निश्चित रूप से किया होगा तब उन्हें सफलता मिली होगी। बिना उद्यम के मिली सफलता स्थाई भी नहीं होती । कमजोर आत्मबल के लोग ही अपने काम को भगवान के सहारे छोड़ देते हैं । कोई विद्यार्थी केवल पूजा -पाठ से ही उत्तीर्ण नहीं होगा । अनुचित तरीकों से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी । अतः हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए अपने ऊपर विश्वास करना चाहिए। कहा भी गया है कि खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले,  खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ?