दिवा-स्वप्न
जागना और सोना नैसर्गिक क्रिया है । रात में सोने पर स्वप्न आते हैं ,लेकिन सुबह उठते ही स्वप्न पानी के बुलबुले की तरह खत्म भी हो जाते हैं । इसीलिए रात के स्वप्न के मायने नहीं है। एक स्वप्न दिन में भी जागने पर आए तो वह तक सफलीभूत होता है जब उसके लिए बुद्धि विवेक जागृत रहे । दिवास्वप्न हास्यास्पद अर्थों में तब ले लिया जाता है जब व्यक्ति सिर्फ कल्पना ही करता रहता है और उस पर कोई योजना बनाकर लगता नहीं । चूँकि मनुष्य देवता का अंश है , इसीलिए वह चाले तो असंभव को संभव कर सकता है । ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपनी ऊर्जा पहचान कर अपने सपने साकार करने के लिए जुट जाना चाहिए इसके लिए व्यक्ति को योग यत्न करना चाहिए।
धर्मनिष्ठ लोग भगवान की पूजा करते हैं l पूजा र्सिफ चित्रों और मूर्तियों में ही नहीं की जानी चाहिए , बल्कि जिस भगवान की पूजा की जा रही है उन्होंने कौन कौन सा ऐसा कार्य किया है कि वह पूजनीय हुए । केवल चित्र या मूर्ति पूजन से काम नहीं चलेगा । हां , पूजा पाठ करना अच्छा कार्य है। इससे जीवन में नियमितता आती है, लेकिन अभी की प्राप्ति के लिए उद्यम करना बहुत जरूरी है । उद्यम से ही कार्यों की सिद्धि होती है , सिर्फ सोचते रहने से नहीं । प्रायः लोग किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं , यज्ञ अनुष्ठान भी करते कराते हैं , उपवास भी करते हैं और जब उनकी मनोकामना की पूर्ति नहीं होती तो भगवान को दोष देते हैं । जबकि मनुष्य के पास भगवान जैसी शक्ति और सामर्थ्य है बहुत कुछ कर सकता है। जो लोग सफल हुए हैं , वह केवल पूजा-पाठ के ही सहारे नहीं हुए। उन्होंने निश्चित रूप से किया होगा तब उन्हें सफलता मिली होगी। बिना उद्यम के मिली सफलता स्थाई भी नहीं होती । कमजोर आत्मबल के लोग ही अपने काम को भगवान के सहारे छोड़ देते हैं । कोई विद्यार्थी केवल पूजा -पाठ से ही उत्तीर्ण नहीं होगा । अनुचित तरीकों से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी । अतः हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए अपने ऊपर विश्वास करना चाहिए। कहा भी गया है कि खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ?
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