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बुधवार, 27 नवंबर 2019

दोषपूर्ण दान

दोषपूर्ण दान

हर मनुष्य सुखमय जीवन जीना चाहता। तमाम लोग अपने आचरण 
एवं कर्मठता से सांसारिक आवश्यकताओं की प्राप्ति कर ऐसा जीवन 
जीते हैं तो बहुत से लोग भाग्य के सहारे सब कुछ पाने का आसरा 
लगाए रहते हैं। ऐसे लोग भाग में लिखा होगा तो सब कुछ मिलेगा
,सोच कर बैठे रहते हैं तो कुछ लोग भगवान भरोसे ही सुखद जीवन 
की कल्पना करते रहते हैं। जबकि यह सत्य है कि बिना बीज के 
जैसे वृक्ष नहीं होता,उसी प्रकार बिना कर्मबीज के आकांक्षाओं का वृक्ष 
और उस पर फल नहीं लग सकते।धर्म ग्रंथों की व्याख्या यह नहीं है कि 
भगवान भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर देंगे। धर्म ग्रंथों के बताए 
रास्ते पर सूझ-बूझ के साथ चलने पर आत्मबल मजबूत होता है।
 महाभारत के अनुशासनपर्व में इस बात का उल्लेख किया गया है। 
एक बार युधिष्ठिर ने इसी तरह का प्रश्न भीष्म पितामह से पूछा कि 
भाग्य के सहारे जीना चाहिए या प्रसाद के सहारे जिस पर पितामह भीष्म 
ने कहा कि धर्म अपनाने एवं उसके अनुसार जीवन पथ पर चलने से व्यक्ति 
की सोच एवं दृष्टि सुस्पष्ट होती है। वह चमत्कार थे भौतिक उपलब्धि में 
नहीं पड़ता। वह सदैव सदाचरण करता है जिससे उसके जीवन में 
नकारात्मकता नहीं आती, जबकि भाग्य के सहारे जीने वाला पहले आलसी
 होता है और उसके बाद नकारात्मक हो जाता है, जिससे उसके इर्द-गिर्द 
तनाव डेरा डाल देता है। फिर उसकी इस कमजोरी का दूसरे फायदा उठाने 
लगते हैं। धर्म के नाम पर ऐसे लोग खूब ठगे भी जाते हैं। भीष्म ने कहा कि 
भगवान प्रकट होकर सब कुछ दे देंगे, इस ख्वाहिश में पाखंडी लोग दान -दक्षिणा
 के नाम पर उसके पास जो कुछ दिन है उसे हड़प लेते हैं। भीष्म ने ऐसे दान 
जिससे घर के आश्रितों के जीवन -यापन में व्यवधान आता हो, उसे भी दोषपूर्ण 
कहा है। दान देने एवं लेने के अवसर और पात्रता पर भी खूब चिंतन मनन के 
बाद सुस्पष्ट व्यवस्था दी है। ऐसा नहीं है कि खूब दान करने से भगवान भागते चले 
आएंगे। महात्माओं ने मां लक्ष्मी की प्रसन्नता से जिस धन -दौलत मिलने की बात 
कही है वह अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा से लगे रहना ही बताया है। लक्ष्मी का दुरुपयोग 
भी मना किया गया है। कुपात्र को दान आदि देने से दोषी बताया गया है। अतः व्यक्ति
 को अपने पुरुषार्थ पर ही भरोसा करना चाहिए।

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