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गुरुवार, 14 नवंबर 2019

प्रसन्नता का मंत्र

प्रसन्नता का मंत्र 


विश्व प्रसिद्ध उपन्यासकार कवि थॉमस हार्डी का जीवन संघर्षों में बीता था। उन्होंने मानव जीवन की परेशानियों को बड़े नजदीक से देखा और बड़ी संजीदगी से महसूस किया था। मानव के प्रसन्न रहने की लालसा के संबंध में उनका यह कथन की प्रेरणादाई है ,'दर्द के सामान्य नाटक में खुशी कभी कभार आने वाली घटना है । किन्तु दुर्भाग्यवश जीवन में खुशियों के बारे में इस कड़वी और कालातीत सच्चाई को हम जीवन पर्यंत समझ ही नहीं पाते और खुशियां प्राप्त करने की राह महज एक मृग मरीचिका बनकर रह जाती है । इस सच से कदाचित ही हम इंकार कर पाए कि इस दुनिया में खुश रहना चाहता है और मानव स्वभाव में कुछ भी नहीं है, क्योंकि किसी के प्रति चाहत सनातन है। खुशी प्राप्त करने की मानव स्वभाव के इस लिहाज से यहां पर एक प्रश्न उठना काफी लाजिमी हो जाता है कि आखिर एक इंसान क्या करें जो वह हमेशा खुश रहे और उदासी का साया कभी भी उसके जीवन में दुख का सौगात लेकर नहीं आ पाए । वैसे गौर से सोचे तो यह समझते देर ही नहीं लगती कि हमारा खुश होना और दुखी होना हमारी  मनोस्थिति पर निर्भर करता है । मन में उमंग और सब कुछ अच्छा चल रहा हो तो हमको खुशी से लबरेज महसूस करते हैं । किंतु जब से भरा हो दर्द हो , दर्द हो और कुछ भी आपकी सोच के अनुकूल नहीं हो रहा हो तो फिर मन उदासियों से भर जाता है । अर्थात इंसान का मन उसकी खुशियों की चाबी के रूप में काम करता है । इसका आशय यह है कि खुश रहने के लिए हमें अपने मन को समझना होगा । इसके लिए गौतम बुद्ध ने बहुत अच्छी बातें बताई हैं । उन्होंने कहा कि प्रसन्न रहना एक कला है और इसके लिए बीते हुए कल पर सोचना बंद करने और दूसरों की तुलना पर रोक लगाने की जरूरत है । जब हम भी घटनाओं पर पश्चाताप करने लगते हैं दूसरों के तथाकथित खूबसूरत शीशे में खुद का अक्स ढूंढने लगते हैं तो मन का भाव कसैला होता है। वर्तमान में रहते हुए और के जीवन को ईश्वर की संरचना समझकर जीवन जीने में प्रसन्न रहने का मूल मंत्र छुपा होता है ।

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