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मंगलवार, 26 नवंबर 2019

झगड़ा

झगड़ा
 झगड़ा करना विनाश को न्योता देना होता है .और मूर्ख ही झगड़ा करते हैं.
भक्त अगर झगड़ा करें तो वह भक्त नहीं कहे जा सकते हैं. वे ढोंगी होते हैं.
वे नहीं जानते कि भगवान की भक्ति किस लिए की जाती है. और भक्तों का स्वभाव
कैसा होना चाहिए ? भक्ति का उद्देश्य और भगवान का निर्देश समझ लेना
भक्तों का सबसे पहला कार्य है. भक्ति करके ही ज्ञान को पाया जा सकता है
. जो भक्त ज्ञानी होता है वह समस्त जीव जंतुओं में अपने आराध्य की सत्ता
को विद्यमान देखता है. फिर वह कैसे अपने आराध्य से  द्वेष द्वंद कर
सकता है. भक्त के लिए तो प्रत्येक प्राणी ,जीव जंतु, वृक्ष, वनस्पति,
पत्थर, पहाड़, सब पूज्य होते हैं भला वह पूज्य वस्तु को कैसे
अनादर कर सकता है.
 मानव जीवन की परिपूर्णता सार्थकता तो प्रत्येक जीव- प्राणी से प्रेम
विकसित करने पर ही सफल मानी जाती है . इसके अभाव में तो भगवान
भी स्वयं अपनी पूजा स्वीकार नहीं करते हैं. क्योंकि उसके अंदर श्रद्धा विश्वास
समर्पण की भावना ही नहीं होती है. तुच्छता का भाव ही झगड़ा झंझट की
स्थिति-  परिस्थिति की रचना का सूत्रधार बनता है. ईश्वर ने सृष्टि रचना
प्रत्येक प्राणी को सुख आनंद देने के उद्देश्य से की है .और यह संभवत
प्रेम को ह्रदय में विकसित करने से ही संभव हो पाता है. प्रेम पवित्रता को
अपनाने से होता है. पवित्रता श्रद्धा से आती है. श्रद्धा ईश्वर की कृपा से प्राप्त
होती है. ईश्वर की कृपा   पुण्य की प्रबलता से प्राप्त होती है. पुण्य की
प्राप्ति से सत्कर्म और शब्द ज्ञान ,सत्य ज्ञान की वृद्धि होती है. और ज्ञान
की वृद्धि से मनुष्य देवता की श्रेणी में पहुंच जाता है. और जो देवता होते हैं
उन्हें ईश्वर अपने गले का हार बना कर रखता है. क्योंकि सुरक्षा देवता के द्वारा होती है.
 जहां की  सभ्यता संस्कृति  देवत्व संपन्न होती है वहीं सुख शांति की वर्षा होती है .
अमन चैन आता है/ इसीलिए हमारी देव संस्कृति महान है .हमारी वसुंधरा
को भूदेव कहा जाता है. झगड़ा झंझट तो  असुर संस्कृति की पहचान है.
वह विनाश की जड़ है. प्रत्येक मनुष्य को इन दुर्गुणों से बचना ही विवेकशील
होने की पहचान है. झगड़ा करने से संस्कृत दूषित हो जाती है. घरों में समाज
में देश में लोग एक दूसरे से लड़ते झगड़ते देखे जाते हैं.

अज्ञानता है इससे बचने की जरूरत है.

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