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सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

जीवन में वसंत



    जिस प्रकार बाहर के वातावरण में वसंत, ग्रीष्म एवं पतझड़ इत्यादि ऋतुओं का आगमन होता रहता है, वैसे ही हमारे भीतर भी इन ऋतुओं का अवतरण होता रहता है। भीतर में प्रकट होने वाली ये ऋतुएं वस्तुतः हमारी मानसिक दशाएं होती हैं। दरअसल वसंत एवं पतझड़ क्रमशः सुख-दुख तथा खुशी उदासी रूपी हमारी मानसिक दशाओं के ही प्रतीक हैं। यही कारण है कि मनुष्य को ये दोनों ही ऋतुएं अन्य 'ऋतुओं की तुलना में अधिक आकर्षित करती हैं। यह बहुत ही स्वाभाविक भी है।

    जब हम खुश होते हैं तो हमारे भीतर खुशियों वाले रसायन प्रवाहित होते हैं। ऐसे में हमारे भीतर दुख की भावना पैदा करने वाले रसायन प्रायः दमित अवस्था में चले जाते हैं। दूसरी ओर जब हम दुखी होते हैं तो हमारे भीतर दुख एवं उदासी वाला रसायन प्रभावशाली होता है, जिसके फलस्वरूप हम दुखी एवं उदास महसूस करने लगते हैं। आध्यात्मिक गुरु ओशो ने भी कहा है, 'जैसे बाहर में वसंत है, वैसे ही भीतर भी वसंत घटता है। और जैसे बाहर पतझड़ है, वैसे ही भीतर भी पतझड़ आता है। फर्क इतना ही है कि बाहर के वसंत और पतझड़ नियति से चलते हैं। वर्तुलाकार घूमते हैं। वहीं भीतर के वसंत और पतझड़ नियतिबद्ध नहीं हैं। आप स्वतंत्र हो, चाहे पतझड़ हो जाओ, चाहे वसंत हो जाओ। इतनी स्वतंत्रता चेतना की है।'

    तात्पर्य यह कि अपने भीतर प्रकट होने वाले मौसम के लिए सर्वथा हम ही जिम्मेदार होते हैं। यदि हम चाहें तो अपने भीतर वसंत को प्रकट कर सकते हैं और यदि चाहें तो पतझड़ को बुला सकते हैं। अर्थात हम अपने भीतर प्रकट होने वाली ऋतुओं को अपनी चेतना से नियंत्रित कर सकते हैं, क्योंकि हमारे भीतर प्रकट होने वाली ऋतुएं वस्तुतः हमारे ही सोच, चिंतन एवं कर्मों के कारण प्रकट होती हैं। • इसलिए यदि हम अच्छे एवं सकारात्मक विचारों को ही अपने मस्तिष्क में प्रधानता दें तो हमारे जीवन में प्रधानतः वसंत का मौसम बना रहेगा। 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

अनुशासन


    मनुष्य के चारित्रिक उत्थान, जीवन की सफलता एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अनुशासन की महत्वपूर्ण क भूमिका रहती है। अनुशासन की डोर से बंधे होने पर हम निरंतर सफलता की ओर अग्रसर होते रहते हैं। वहीं इसके अभाव में हम प्रतिदिन अव्यवस्था से क घिरता चले जाते हैं।

    यद्यपि जीवन में अनुशासन का समावेश करना एक कठिन कार्य है, किंतु यदि एक बार व्यक्ति जीवन को नियमों के अधीन होकर जीना सीख जाए तो फिर जीवन का आनंद भी किसी उत्सव से, कम नहीं होता है। भारत के महापुरुषों का उदाहरण लिया जाए अथवा सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, नदी, वृक्ष आदि प्राकृतिक शक्तियों का, सब के सब पूर्णतया अनुशासित होकर प्रकृति के प्रति अपना दायित्व का निर्वहन करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं। भय से निर्मित अनुशासन रेत से बने घर के सदृश होता है, जिसे बिखरने में तनिक भी देर नहीं लगती। वहीं स्वेच्छा एवं आत्मप्रेरणा से जिस अनुशासन का आविर्भाव होता है, वह सदा-सदा के लिए जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाता है। यह हमें न सिर्फ बुराइयों से बचाता है, बल्कि सफल भी बनाता है।

    अनुशासित जीवन में जिम्मेदारियां कभी भी बोझ जैसी महसूस नहीं होतीं। नियमों एवं सिद्धांतों का समूह सभी जिम्मेदारियों को अत्यंत सरलतापूर्वकार पूर्ण कर देता है। अनुशासन की उपस्थिति में तनावक एवं रोग जैसे शत्रु मानव जीवन में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाते। अनुशासन का पालन करते हुए कभी-कभी ऐसा प्रतीत हो सकता है कि हम किसी ऐसी जंजीर से जकड़े हुए हैं जिसने हमें कहीं न कहीं सीमाओं में बांधकर रख दिया है। परंतु यदि हम इस विषय पर गहन चिंतन करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि वे दायरे जिनके अंदर रहने को हम बायको हो चुके हैं, उनके पार पतन और अवनति की एक बहुत बड़ी खाई विद्यमान है। निःसंदेह अनुशासन एक कठिन साधना है, किंतु इसका प्रतिफल भी किसी अमूल्य वरदान से कम नहीं।

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

पुरस्कार

पुरस्कार दिनांक 28 दिसंबर 2021 को विमोचित पूर्वोत्तर रेलवे सामान्य सहायक नियम की पुस्तिका (G & SR Book ) संस्करण 2021 द्विभाषी ( हिंदी और अंग्रेजी ) , जिसकी परिकल्पना मुख्य माल भाड़ा परिवहन प्रबंधक श्री बिजय कुमार जी द्वारा की गई थी, के कंपोजीशन एवं प्रकाशन में मुख्य यातायात निरीक्षक (नियम) श्री राजेश कुमार श्रीवास्तव जी का सराहनीय योगदान रहा था। आज दिनांक 24 फरवरी 2022 को सामान्य एवं सहायक नियम पुस्तिका को द्विभाषी रूप में तैयार एवं प्रकाशित कराने में उल्लेखनीय योगदान हेतु प्रमुख मुख्य संरक्षा अधिकारी श्री चन्दन अधिकारी जी द्वारा मुख्य यातायात निरीक्षक (नियम) श्री राजेश कुमार श्रीवास्तव जी को सम्मानित एवं पुरुस्कृत किया गया।

आदतें

 प्रातः कालीन आदतें

      रोज सुबह नींद से जागते ही हम कई ऐसी गलतियां करते हैं, जो सीधा हमारी सेहत पर असर डालती हैं. ये तमाम बुरी आदतें हमें स्लो, नेगेटिव और चिड़चिड़ा बना देती हैं, जिससे घर और ऑफिस में भी हमारे रिश्ते लोगों के साथ खराब होने लगते हैं. ऐसे में आपको इन 5 आदतों के बारे में जानना और उन्हें बदलना बेहद जरूरी है. 

1. फोन देखने की आदत-

हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि नींद खुलते ही मोबाइल की स्कीन नहीं देखनी चाहिए. इस खराब आदत से हमारी आंखे खराब हो सकती हैं. इसकी बजाय सुबह उठकर थोड़ा गर्म पानी पिएं. हाथ धोएं. बालकनी में थोड़ी देर टहलें या खिड़की के पास जाकर ताजी हवा में सांस लें. इसके बाद मोबाइल के पास जाएं.

2. ब्रेकफास्ट छोड़ने की आदत-

सुबह उठकर ब्रेकफास्ट छोड़ने की ये बुरी आदत बहुत से लोगों मे होती हैं. ऐसे लोग पहले देरी से उठते हैं और बाद में बिना कुछ खाए सिर्फ चाय या कॉफी के साथ दिन की शुरुआत करते हैं, जो सेहत के साथ एक तरह का खिलवाड़ है. दिन की अच्छी शुरुआत के लिए हेल्दी ब्रेकफास्ट करना बहुत जरूरी है. आप अपनी मॉर्निंग डाइट में अंडा, टोस्ट, ओटमील या ताजे फलों का सेवन कर सकते हैं.

3. एक प्लान के अनुसार ना चलना-

माना जाता है कि सुबह उठकर अपने दिन की प्लानिंग करें और उसी के अनुसार चलें.  अपने प्लान को कभी ना टालें. अगर कहीं बाहर जाने से पहले आपके पास खाली समय है तो इसमें घर या फ्रिज की सफाई या पौधों को पानी देने जैसे काम निपटाए जा सकते हैं. इस मानसिक स्वास्थ बेहतर रहता है. 

4. नकारात्मक विचार लाना-

जब आप सुबह उठते हैं तो अपनी जिंदगी में चल रही नकारात्मक चीजों या मुश्किलों के बारे में बिल्कुल ना सोचें. इसकी जगह आप मेडिटेशन करें और अपना उत्साह बढ़ाएं. इसके साथ ही निजी जिंदगी में चल रही अच्छी चीजों को याद करें और खुश रहें. याद रखें कि सवेरे-सवेरे मन में आने वाला एक नकारात्मक विचार आपको हमेशा डीमोटिवेट करेगा.

5. नहाने से भागने की आदत-

कुछ लोग बिना नहाए घर से निकल जाते हैं और लेट लौटते हैं. ये आदत सेहत के लिहाज से बिल्कुल ठीक नहीं मानी जाती है. हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि रोज सुबह नहाकर किसी काम के लिए निकलना इसलिए जरूरी है, क्योंकि लोग पूरे दिन फ्रेश फील करते हैं और उनमें ऊर्जा समाई रहती है. नहाने से हमारी बॉडी को अच्छे हार्मोन रिलीज होने का एहसास होता है. 

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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

सार्थक जीवन का सूत्र

जिंदगी भर हम कुछ न कुछ खरीदते रहते हैं। हम सोचते हैं कि ये चीजें हमें शारीरिक और मानसिक सुख प्रदान करेंगी। असलियत में हमें क्या खरीदना चाहिए? यह हमें मालूम नहीं होता है। दुनिया में बहुत कुछ मिल रहा है। हमें समझ नहीं कि हम क्या खरीदें और उसका हम पर क्या असर होगा? जैसे कि जो चीज हमारी सेहत के लिए अच्छी है तो हम उसे खाएंगे और अगर खराब हो तो हम उसे नहीं खाएंगे। यही बातें हमारी जिंदगी के आध्यात्मिक पहलू पर भी लागू होती हैं।

हमें अपना समय सही चीजों को पाने में लगाना चाहिए। हर एक के लिए दिन में सिर्फ चौबीस घंटे हैं। उसका इस्तेमाल अगर सही तरीके से करेंगे तो हम अपनी मंजिल की ओर तेजी से बढ़ेंगे। महापुरुषों के चरण-कमलों में लोग दूर-दूर से इसलिए आते हैं, क्योंकि वे उन्हें आध्यात्मिक जागृति देते हैं। यदि महापुरुषों के चरणों में पहुंचकर भी हमने उनसे पैसे और दुनिया की अन्य चीजें मांग लीं तो फिर तो हमने अपने असली रूप के लिए कुछ मांगा ही नहीं और न ही अपनी आध्यात्मिक उन्नति की ओर कदम बढ़ाए। हमारी जिंदगी बड़ी अनमोल है, लेकिन अगर हमने इसको बाहरी दुनिया के सुखों में ही व्यतीत कर दिया तो हम असलियत से बहुत दूर हो जाएंगे।

सत्गुरु एक शिक्षक की तरह हमें आत्म-ज्ञान देकर ध्यान की विधि सिखाते हैं। जैसे-जैसे हम ध्यान-अभ्यास करते हैं तो हम अपने अंतस में प्रभु की दिव्य ज्योति से जुड़कर सदा-सदा की खुशी को प्राप्त करते हैं। इसीलिए हम अपना अधिक से अधिक समय ध्यान-अभ्यास में लगाएं। साथ ही साथ हम अपने जीवन में सद्गुणों को भी धारण करें। हम औरों के मददगार हों, सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें, किसी का दिल न दुखाएं और नम्रतापूर्वक जीते हुए अपने जीवन के असली उद्देश्य को इसी जीवन में पूरा करें, जो कि अपने आपको जानना और पिता-परमेश्वर को पाना है। तभी इस जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।


सुपात्रता

धार्मिक कार्यक्रमों में पूजा शुरू करने के पहले कलश स्थापना की जाती है। कलश मिट्टी से लेकर धातु तक का होता है। कलश स्थापित करते समय प्रथमदृष्ट्या देख लिया जाता है कि कलश अंदर से टूटा या गंदा तो नहीं है। कलश यदि चटका हुआ या छिद्रयुक्त होगा तो उसमें रखा हुआ जल स्थिर न रहकर वह जाएगा। यदि अंदर का हिस्सा गंदा होगा तो कलश में जो जल भरा जाएगा, वह भी गंदा होकर रहेगा। इससे अपेक्षित प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकेगा। मनुष्य को भी पंच भौतिक तत्वों से निर्मित शरीर रूपी कलश को पवित्र और स्वच्छ रखना चाहिए। जिस प्रकार टूटे-फूटे कलश में जल स्थिर नहीं रह सकता, वैसे ही मनुष्य का शरीर यदि मानसिक विकारों के चलते स्वच्छ नहीं है तो प्रकृति से निरंतर निकलती कृपा से वह पूरी तरह वंचित हो जाएगा। सूर्य, चंद्रमा, आकाश, तारों सितारों हवा, झरनों, पर्वतों से निरंतर ऊर्जा निकल रही है। इसीलिए प्रकृति को 'मां' और 'देवी' की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार मां संतान को अपनी दृष्टि, चिंतन और स्पर्श से निरंतर शक्तिमान बनाती है, वही काम प्रकृति रूपी मां भी करती रहती है।

निरंतर प्रवाहित होती प्राकृतिक कृपा, आशीर्वाद के लिए सुपात्र होना आवश्यक है। स्वर्ण या रजत का ही कलश क्यों न हो, यदि वह वर्षा ऋतु में पलट कर रखा जाएगा तो घनघोर वर्षा के बावजूद भर नहीं सकेगा। प्रकृति जब ब्रह्म मुहूर्त में कृपा का खजाना लेकर आती है और जो व्यक्ति उस समय सोता रहता है, वह उससे वंचित हो जाता है। काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या आदि विकारों से मनुष्य को अपने शरीर रूपी कलश को बचाना चाहिए। फिर तो मनुष्य का शरीर पूजनीय हो जाएगा। वह सदैव स्वस्थ रहेगा। यह तो स्पष्ट है कि कोई एक कीमती खजाना वाह्य नहीं, अंतर्जगत में ही है। बस उस खजाने का पता होना और खजाने के बंद ताले को खोलने की विधि जानना जरूरी है। श्रेष्ठ संगति और सत्साहित्य के अध्ययन से इसका पता मिल जाएगा।



सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

सुपर कम्प्यूटर

आधुनिक परिभाषा के अनुसार वे कम्प्यूटर जिनकी मेमोरी स्टोरेज (स्मृति भंडार) 52 मेगाबाइट से अधिक हो एवं जिनके कार्य करने की क्षमता 500 मेगा फ्लॉफ्स (Floating Point operations per second - Flops) हो, उन्हें सुपर कम्प्यूटर कहा जाता है। सुपर कम्प्यूटर में सामान्यतया समांतर प्रोसेसिंग (Parallel Processing) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। 

सुपर कम्प्यूटिंग शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1920 में न्यूयॉर्क वल्र्ड न्यूज़पेपर ने आई बी एम द्वारा निर्मित टेबुलेटर्स के लिए किया था। 1960 के दशक में प्रारंभिक सुपरकम्प्यूटरों को कंट्रोल डेटा कॉर्पोरेशन, सं. रा. अमेरिका के सेमूर क्रे ने डिजाइन किया था।

भारत में प्रथम सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स MP/16 1987 में अमेरिका से आयात किया गया था। इसे नई दिल्ली के मौसम केंद्र में स्थापित किया गया था। भारत में सुपर कम्प्यूटर का युग 1980 के दशक में उस समय"सुपर कम्प्यूटर"

आधुनिक परिभाषा के अनुसार वे कम्प्यूटर जिनकी मेमोरी स्टोरेज (स्मृति भंडार) 52 मेगाबाइट से अधिक हो एवं जिनके कार्य करने की क्षमता 500 मेगा फ्लॉफ्स (Floating Point operations per second - Flops) हो, उन्हें सुपर कम्प्यूटर कहा जाता है। सुपर कम्प्यूटर में सामान्यतया समांतर प्रोसेसिंग (Parallel Processing) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। 

सुपर कम्प्यूटिंग शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1920 में न्यूयॉर्क वल्र्ड न्यूज़पेपर ने आई बी एम द्वारा निर्मित टेबुलेटर्स के लिए किया था। 1960 के दशक में प्रारंभिक सुपरकम्प्यूटरों को कंट्रोल डेटा कॉर्पोरेशन, सं. रा. अमेरिका के सेमूर क्रे ने डिजाइन किया था।

भारत में प्रथम सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स MP/16 1987 में अमेरिका से आयात किया गया था। इसे नई दिल्ली के मौसम केंद्र में स्थापित किया गया "सुपर कम्प्यूटर"

आधुनिक परिभाषा के अनुसार वे कम्प्यूटर जिनकी मेमोरी स्टोरेज (स्मृति भंडार) 52 मेगाबाइट से अधिक हो एवं जिनके कार्य करने की क्षमता 500 मेगा फ्लॉफ्स (Floating Point operations per second - Flops) हो, उन्हें सुपर कम्प्यूटर कहा जाता है। सुपर कम्प्यूटर में सामान्यतया समांतर प्रोसेसिंग (Parallel Processing) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। 

सुपर कम्प्यूटिंग शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1920 में न्यूयॉर्क वल्र्ड न्यूज़पेपर ने आई बी एम द्वारा निर्मित टेबुलेटर्स के लिए किया था। 1960 के दशक में प्रारंभिक सुपरकम्प्यूटरों को कंट्रोल डेटा कॉर्पोरेशन, सं. रा. अमेरिका के सेमूर क्रे ने डिजाइन किया था।

भारत में प्रथम सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स MP/16 1987 में अमेरिका से आयात किया गया था। इसे नई दिल्ली के मौसम केंद्र में स्थापित किया गया था। भारत में सुपर कम्प्यूटर का युग 1980 के दशक में उस समय शुरू हुआ जब सं. रा. अमेरिका ने भारत को दूसरा सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स रूक्क देने से इंकार कर दिया। भारत में पूणे में 1988 में सी-डैक (C-DAC) की स्थापना की गई जो कि भारत में सुपर कम्प्यूटर की तकनीक के प्रतिरक्षा अनुसंधान तथा विकास के लिए कार्य करता है। नेशनल एयरोनॉटिक्स लि. (NAL) बंगलौर में भारत का प्रथम सुपर कम्प्यूटर 'फ्लोसॉल्वरÓ विकसित किया गया था। भारत का प्रथम स्वदेशी बहुउद्देश्यीय सुपर कम्प्यूटर 'परमÓ सी-डैक पूणे में 1990 में विकसित किया गया। भारत का अत्याधुनिक कम्प्यूटर 'परम 10000Ó है, जिसे सी-डैक ने विकसित किया है। इसकी गति 100 गीगा फ्लॉफ्स है। अर्थात् यह एक सेकेण्ड में 1 खरब गणनाएँ कर सकता है। इस सुपर कम्प्यूटर में ओपेन फ्रेम (Open frame) डिजाइन का तरीका अपनाया गया है। परम सुपर कम्प्यूटर का भारत में व्यापक उपयोग होता है और इसका निर्यात भी किया जाता है। सी-डैक में ही टेराफ्लॉफ्स क्षमता वाले सुपर कम्प्यूटर का विकास कार्य चल रहा है। यह परम-10000 से 10 गुना ज्यादा तेज होगा।

अप्रैल 2003 में भारत विश्व के उन पाँच देशों में शामिल हो गया जिनके पास एक टेरॉफ्लॉफ गणना की क्षमता वाले सुपरकम्प्यूटर हैं। परम पद्म नाम का यह कम्प्यूटर देश का सबसे शक्तिशाली कम्प्यूटर है।

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भारत में सुपर कम्प्यूटर का युग 1980 के दशक में उस समय शुरू हुआ जब सं. रा. अमेरिका ने भारत को दूसरा सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स रूक्क देने से इंकार कर दिया। भारत में पूणे में 1988 में सी-डैक (C-DAC) की स्थापना की गई जो कि भारत में सुपर कम्प्यूटर की तकनीक के प्रतिरक्षा अनुसंधान तथा विकास के लिए कार्य करता है। नेशनल एयरोनॉटिक्स लि. (NAL) बंगलौर में भारत का प्रथम सुपर कम्प्यूटर 'फ्लोसॉल्वरÓ विकसित किया गया था। भारत का प्रथम स्वदेशी बहुउद्देश्यीय सुपर कम्प्यूटर 'परमÓ सी-डैक पूणे में 1990 में विकसित किया गया। भारत का अत्याधुनिक कम्प्यूटर 'परम 10000Ó है, जिसे सी-डैक ने विकसित किया है। इसकी गति 100 गीगा फ्लॉफ्स है। अर्थात् यह एक सेकेण्ड में 1 खरब गणनाएँ कर सकता है। इस सुपर कम्प्यूटर में ओपेन फ्रेम (Open frame) डिजाइन का तरीका अपनाया गया है। परम सुपर कम्प्यूटर का भारत में व्यापक उपयोग होता है और इसका निर्यात भी किया जाता है। सी-डैक में ही टेराफ्लॉफ्स क्षमता वाले सुपर कम्प्यूटर का विकास कार्य चल रहा है। यह परम-10000 से 10 गुना ज्यादा तेज होगा।

अप्रैल 2003 में भारत विश्व के उन पाँच देशों में शामिल हो गया जिनके पास एक टेरॉफ्लॉफ गणना की क्षमता वाले सुपरकम्प्यूटर हैं। परम पद्म नाम का यह कम्प्यूटर देश का सबसे शक्तिशाली कम्प्यूटर है।

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शुरू हुआ जब सं. रा. अमेरिका ने भारत को दूसरा सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स रूक्क देने से इंकार कर दिया। भारत में पूणे में 1988 में सी-डैक (C-DAC) की स्थापना की गई जो कि भारत में सुपर कम्प्यूटर की तकनीक के प्रतिरक्षा अनुसंधान तथा विकास के लिए कार्य करता है। नेशनल एयरोनॉटिक्स लि. (NAL) बंगलौर में भारत का प्रथम सुपर कम्प्यूटर 'फ्लोसॉल्वरÓ विकसित किया गया था। भारत का प्रथम स्वदेशी बहुउद्देश्यीय सुपर कम्प्यूटर 'परमÓ सी-डैक पूणे में 1990 में विकसित किया गया। भारत का अत्याधुनिक कम्प्यूटर 'परम 10000Ó है, जिसे सी-डैक ने विकसित किया है। इसकी गति 100 गीगा फ्लॉफ्स है। अर्थात् यह एक सेकेण्ड में 1 खरब गणनाएँ कर सकता है। इस सुपर कम्प्यूटर में ओपेन फ्रेम (Open frame) डिजाइन का तरीका अपनाया गया है। परम सुपर कम्प्यूटर का भारत में व्यापक उपयोग होता है और इसका निर्यात भी किया जाता है। सी-डैक में ही टेराफ्लॉफ्स क्षमता वाले सुपर कम्प्यूटर का विकास कार्य चल रहा है। यह परम-10000 से 10 गुना ज्यादा तेज होगा।

अप्रैल 2003 में भारत विश्व के उन पाँच देशों में शामिल हो गया जिनके पास एक टेरॉफ्लॉफ गणना की क्षमता वाले सुपरकम्प्यूटर हैं। परम पद्म नाम का यह कम्प्यूटर देश का सबसे शक्तिशाली कम्प्यूटर है।

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बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

संगति का महत्व

किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास और जीवन में संगति बहुत महत्व रखती है। कहा भी जाता है कि इंसान की जैसी संगति होती है, वैसी ही उसकी प्रकृति, प्रवृत्ति और नियति होती है। यानी मानवीय गुणों को संगति व्यापक तौर पर प्रभावित करती है। मनुष्य योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। विशेषकर बाल्यावस्था और किशोरावस्था में व्यक्ति जिसके साथ रहता है, उसके जीवन पर उनका व्यापक असर दिखता है।

ऐसे में अभिभावकों को यह ख्याल रखना चाहिए कि उनकी संतान की संगत कैसी है। बच्चों का जीवन गीली मिट्टी की तरह होता है। उन्हें संगति रूपी जैसा सांचा मिलता है, वैसा ही उनके जीवन का निर्माण हो जाता है। अतएव माता-पिता को सत्संगति का, अच्छे विचारों का बीज बच्चे के मन में बचपन में ही बो देना चाहिए। जीवन में उन्नति की सीढ़ी सत्संगति है। अच्छी संगति ऐसी प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से व्यक्ति सदाचरण का पालक बन जाता है। विनम्र, परोपकारी, ज्ञानवान एवं दयावान बन जाता है। सत्संगति में इतना ओज होता है कि वह बुराइयों का नाश करने की क्षमता रखता है। वस्तुतः सच्चरित्र व्यक्तियों का सान्निध्य ही सत्संगति है।

संगति से ही व्यक्ति को संस्कार प्राप्त होते हैं। स्पष्ट है कि यदि संगति सज्जन लोगों की होगी तो व्यक्ति के विचार शुभ होंगे और आत्मा स्वयं शुद्धि के मार्ग की ओर उन्मुख होगा। गलत आचरण वाले का साथ मिल गया तो मानव व्यसन, व्यभिचार की ओर चल पड़ेगा। इसलिए हमें सज्जनों की संगति करनी चाहिए और दुर्जनों की संगति से बचना चाहिए। हम सभी को ऐसे मित्र रखने चाहिए, जो हमारी उन्नति में सहायक बनें। बुरी संगति कितने भी प्रतिभावान व्यक्ति को बर्बाद कर देती है। इसीलिए हमें अपने मित्र और साथी सोच-समझकर चुनने चाहिए। कुसंग ने बड़े-बड़ों का जीवन व्यर्थ किया है। इसीलिए 'कुसंग के ज्वर' को अत्यंत घातक माना गया है, जो जीवन को निरर्थक बना देता है।


सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

सुख का आधार

वर्तमान समय में प्रत्येक परिवार और संपूर्ण समाज का परिवेश बदला-बदला नजर आ रहा है। लोगों में. धन-संपदा के अतिरिक्त आवश्यक एवं अनावश्यक वस्तुओं के संग्रह की होड़ लगी है। यह होड़ प्रत्येक वर्ग में प्रत्यक्ष हो रही है। जिस पर अपार धन है वह भी, जिस पर कम है वह भी, सभी संग्रह में लगे हैं। इसके बावजूद लोग दुखी और परेशान हैं। दिखावे और घोर सुविधाभोगिता की प्रवृत्ति ने इच्छाएं और बढ़ा दी हैं। एक कार पहले से है तो उससे और बेहतर कार की अभिलाषा मन को अशांत किए रहती है।

आखिर पूरे समाज को यह क्या हो गया है? यह चिंतन-मनन का विषय है। ऐसे में महर्षि पतंजलि के सूत्रों का स्मरण उपयोगी लगता है। उन्होंने लोक व परलोक को अच्छा करने के कुछ तथ्यों को बताया है। इनमें से एक है-यम। यदि हम 'यम' के बिंदुओं यथा-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को ही अपने जीवन में अपना लें तो हम जीवन को आनंद से परिपूर्ण कर सकते हैं। अहिंसा का अर्थ स्पष्ट है कि किसी के प्रति भी हिंसा न करना। दूसरा है सत्य अर्थात जैसा देखा, सुना, प्रामाणिक शास्त्रों में पढ़ा व अनुमान किया गया ज्ञान मन में है, वैसा ही वचन एवं शरीर से आचरण में लाना सत्य है।

तीसरा है अस्तेय अर्थात् किसी वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना न तो शरीर से लेना एवं मन में भी इच्छा न करना ही अस्तेय है। दूसरों शब्दों में कह सकते हैं चोरी न करना। चौथा है ब्रह्मचर्य अर्थात् मन व सभी इंद्रियों पर संयम करना, ईश्वर स्मरण करना और ग्रंथों का पठन-पाठन करना। पांचवां है अपरिग्रह अर्थात् हानिकारक एवं अनावश्यक वस्तओं का एवं नकारात्मक विचारों का मन मस्तिष्क में संग्रह न करना ही अपरिग्रह है। ये सभी बातें सर्वज्ञात हैं, किंतु हम इन्हें जीवन में आदर्श रूप में आत्मसात नहीं कर पाते। जबकि इन पांचों बिंदुओं पर तन, मन, इंद्रियों, वाणी एवं व्यवहार आदि से पूर्णतः अमल कर लिया जाए तो ये हमारे जीवन में सुख के आधार बनने की क्षमता रखते हैं।


शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

लोभ और प्रीति

हम प्रायः लोभ और प्रेम को एक ही समझ लेते हैं, परंतु वास्तव में उनकी प्रकृति ही पूर्णतया अलग होती है। इनमें अंतर को समझें तो किसी प्रकार का सुख देने वाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति, जिसमें उस वस्तु के अभाव की भावना होते ही प्राप्ति, सान्निध्य या रक्षा की प्रबल इच्छा जगे तो उसे लोभ कहते हैं। वहीं किसी विशिष्ट वस्तु या व्यक्ति के प्रति जो मोह सात्विक रूप प्राप्त करता है, उसे प्रीति या प्रेम कहते है। एक और भी अंतर है कि जब हम अभीष्ट की किसी भी प्रकार से पूर्ति करना चाहें तो वह भी लोभ ही माना जाता है। प्रेम और प्रीति में धैर्य और दोनों पक्षों के स्तर पर स्वीकार्यता का भी उतना ही महत्व माना गया है। लोभ का मूल भौतिकता से जुड़ा होता है, किंतु प्रेम का आधार मुख्य रूप से आध्यात्मिक है।
 
लोभ जहां व्यक्ति और समाज के लिए नकारात्मक होता है वहीं प्रेम सकारात्मक माना जाता है। लोभवश जीवन के समस्त कार्य और प्रयास केवल स्वहित साधन की पूर्ति का माध्यम बनकर ही रह जाते हैं। लोभ मनुष्य के धैर्य को लील जाता है और चरित्र का अवमूल्यन करता है। लोभ वास्तव में ईमान का शत्रु है और व्यक्ति को नैतिक नहीं बने रहने देता। लोभ अमूमन मनुष्य को सभी बुरे कार्यों में प्रवृत्त रखता है। इसलिए लोभ को नियंत्रण में रखना प्रत्येक मनुष्य के सफल जीवन के लिए आवश्यक नीति मानी गई है। 

वहीं प्रेम से हम अपने जीवन को प्रसन्नचित और सफल बना सकते है। प्रेम एक सुमधुर सुखद अहसास है। प्रेम की की खुशबू को केवल महसूस किया जा सकता है। प्रेम की अनुभूति अवर्णनीय है। प्रेम मनुष्य की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है। इसके द्वारा हृदय में तरंगित भावनाओं को हम बखूबी व्यक्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक दिशा दे सकते है। ईश्वर से की जाने वाली प्रार्थना और मनुहार भी प्रेम भाव के साथ ही स्वीकार हो पाती है। वास्तव में प्रेम की शक्ति से किसी भी असंभव को संभव बनाया जा सकता है।



अर्थव्यवस्था को गति देता रेलवे

हालिया आम बजट में तमाम खास घोषणाएं हुई, जिनका व्यापक विश्लेषण भी हुआ है। फिर भी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर उतनी चर्चा नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए थी। जैसे मोदी सरकार ने अगले तीन वर्षों के दौरान देश में सौ गति-शक्ति कार्गो टर्मिनल विकसित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इसके माध्यम से एक स्टेशन - एक उत्पाद की संकल्पना को सिरे चढ़ाने की सरकारी योजना यदि आदर्श रूप में फलीभूत हुई तो यह बाजी पलटने वाली साबित हो सकती है। मोदी सरकार ने रेल ढुलाई क्षमताओं से जुड़ी संभावनाओं को बखूबी भुनाकर न केवल भारतीय रेलवे को मुनाफे की पटरी पर आगे बढ़ाया है, बल्कि इससे आपूर्ति की दुश्वारियां दूर होकर समग्र अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिला है। सरकार अब इस मुहिम को और रफ्तार देना चाहती है। यह किसी से छिपा नहीं कि कृषि उपज को देसी-विदेशी बाजारों तक पहुंचाने में व्यवस्थित नेटवर्क का अभाव भारतीय खेती की बदहाली की बड़ी वजह है। रही-सही कसर सड़क मार्ग की महंगी ढुलाई ने पूरी कर दी। वृद्धि की राह में इसी अवरोध को भांपते हुए सरकार ने कृषि उपजों की बिक्री के व्यवस्थित नेटवर्क बनाने के साथ-साथ दुलाई लागत कम करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इसमें पहला काम है रेलवे से माल ढुलाई को बढ़ावा देना।

भारत में लाजिस्टिक लागत सकल घरेलू उत्पाद के 13 से 15 प्रतिशत के दायरे में है, जबकि इसका वैश्विक औसत आठ प्रतिशत है। एक किमी लंबाई की मालगाड़ी औसतन 72 ट्रकों जितना माल ढोती है। इससे न केवल ढुलाई लागत कम होगी, बल्कि व्यस्त राजमार्गों पर ट्रकों की भीड़ कम होने से माल समय से पहुंचेगा। सड़कें भी सुरक्षित बनेंगी। दुनिया भर में रेलवे से माल ढुलाई सड़क मार्ग की तुलना में सस्ती, पर्यावरण अनुकूल और शीघ्र डिलीवरी वाली होती है। वहीं भारत में रेल ढुलाई न केवल धीमी, बल्कि अनिश्चित भी है। यही कारण है कि आजादी के बाद से ही माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी घटती जा रही है। अधिकांश माल ढुलाई सड़क मार्ग से होने से उसकी लागत बढ़ती है, जिसका बोझ अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ता है। उत्पाद के दाम बढ़ने के चलते बिक्री प्रभावित होने से व्यापारियों को भी घाटा उठाना पड़ता है। बतौर उदाहरण सेब का उत्पादन देश के उत्तरी राज्यों में होता है, लेकिन पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों तक उस सेब को पहुंचाना महंगा पड़ता है। जबकि उन राज्यों में विदेशी सेब सस्ता पड़ता है। ऐसी स्थिति तमाम अन्य उत्पादों के साथ है।

मोदी सरकार में रेलवे की योजना माल ढुलाई में अपनी हिस्सेदारी 28 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 44 प्रतिशत करने की है। नेशनल रेल प्लान के अनुसार माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी 2026 तक 33 प्रतिशत, 2031 तक 39 प्रतिशत, 2041 तक 43 प्रतिशत और 2051 तक  44 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए रेलवे विभाग लीक से हटकर प्रयास कर रहा है। अब तक मालगाड़ियों को बीच रास्ते में रोककर यात्री गाड़ियां पास कराई जाती थी, लेकिन अब मालगाड़ियां समय से चल रही हैं। पहले मालगाड़ियों की औसत रफ्तार 22 किमी प्रति घंटा थी, वहीं अब 50 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से मालगाड़ियां दौड़ रही हैं।

सड़कों पर बढ़ती भीड़, महंगे डीजल और लेटलतीफी जैसे कारणों से दिग्गज कंपनियां रेलवे से ढुलाई को प्राथमिकता देने लगी हैं, जो रेलवे के लिए शुभ संकेत है। 2014 से 2020 तक मारुति सुजुकी ने 6,70,000 कारों की ढुलाई रेलवे के माध्यम से की। इससे न केवल 10 करोड़ लीटर डीजल की बचत हुई, बल्कि वायुमंडल में 3000 टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन भी नहीं हुआ। इसी तरह टाटा मोटर्स, ह्युंडई और होंडा जैसी कंपनियां भी अपनी गाड़ियां रेलवे के जरिये भेज रही हैं। 2014 में जहां 429 रैक कारों की ढुलाई में लगे थे, वहीं 2020 में यह संख्या बढ़कर 1,595 हो गई।

डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर (डीएफसी) बनने से मौजूदा रेलवे ट्रैकों पर दबाव कम होगा और व्यस्त मार्गों में माल ढुलाई में तेजी आएगी। मेक इन इंडिया पहल के तहत अब शक्तिशाली लोको देश में ही बनने लगे हैं, जो 6000 टन की मालगाड़ी को 75 से 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से खींच सकते हैं। पूर्वी डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर के 351 किमी लंबे भाऊपुर-खुर्जा के बीच परिचालन शुरू होने से मालगाड़ियों की रफ्तार 25 किमी प्रति घंटे से बढ़कर 60 किमी प्रतिघंटा हो गई है। इससे अलीगढ़, खुर्जा, फिरोजाबाद और आगरा की कृषि उपज आसानी से देश के प्रमुख बाजारों तक पहुंच रही है। इतना ही नहीं यह सेक्शन 2022 से 2052 के बीच 42 लाख टन कार्बन उत्सर्जन घटाएगा।

अब पुरानी रेल लाइनों की जगह ऊर्जा दक्ष कारिडोर ले रहे हैं। इससे पेट्रोलियम पदार्थों की खपत कम होगी और कार्बन उत्सर्जन भी घटेगा। डीएफसी पर कम लागत में और जल्दी ढुलाई के लिए रेलवे अनाकोंडा, सुपर अनाकोंडा, शेषनाग और वासुकी जैसी लंबी मालगाड़ियों का परीक्षण कर रहा है। इनमें डिस्ट्रिब्यूटेड पावर कंट्रोल सिस्टम यानी डीपीसीएस जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग गया है। इसी तरह पश्चिम रेलवे ने विद्युतीकृत क्षेत्र में ओवर हेड इक्विपमेंट क्षेत्र में पहली बार डबल स्टैक कंटेनर ट्रेन सफलतापूर्वक चलाकर विश्व में नया कीर्तिमान बनाया। डेढ़ किमी लंबी दुनिया की पहली डबल स्टैक इलेक्ट्रिक कंटनेर ट्रेन सड़कों पर 270 ट्रकों के दबाव को कम करती है। साथ ही ढुलाई लागत कम होने से भारतीय उत्पाद देसी-विदेशी बाजार की प्रतिस्पर्धा में टिकेंगे, जिससे व्यापार बढ़ेगा। फिर पेट्रोलियम आयात कम होने से दुर्लभ विदेशी मुद्रा भी बचेगी और पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।



गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

खुशी की चाबी

 

खुशी हमारे रवैये पर निर्भर करती है हम क्या देख रहे हैं वह जो हमारे पास है या वह जो हमारे पास नहीं है? आपके पास अपार भौतिक संपदा हो, लेकिन अगर आप उन दो-एक चोजों पर ही ध्यान देते हैं जो आपके पास नहीं है, तो आप दुखी होंगे.. भारतीय मिथक कथाओं में सुदामा के पास कुछ नहीं था. फिर भी वे ऐसे रहते थे जैसे उनके पास सब कुछ है

 

जिंदगी की कुछ सबसे बेशकीमती चीजे हमें मुफ्त मिलती है-ऑक्सीजन जिससे हम सांस लेते हैं, शानदार पारिवारिक रिश्ते या अच्‍छी सेहत।

 

जिस क्षण आपको एहसास होता है कि आपके पास इतना कुछ है, आप उस अज्ञात शक्ति के प्रति कृतता से भर जाते हैं जिसने ये सब चीजें आप पर न्‍योछावर की है और फिर खुशी अपने आप चली आती है. हमें यह याद रखना चाहिए कि जिंदगी में हमें वही मिलता है, जिसके हम हकदार होते है, नहीं जो हम चाहते हैं हकदार हम उसी के होते हैं जो अतीत में हमने अपने कर्मों से कमाया है

 

कैसे खोजें खुशी....

 

आपके पास जो है उस पर ध्यान दें. यह एहसास आपको कृतज्ञता की तरफ ले जाता है और आपके मन को शांति और संतोष की अवस्था में लाता है जब आपका मनसंतुष्ट और शांत होता है आपकी बुद्धि तीक्ष्‍ण हो जाती है और आप साफ-साफ सोच पाते है इससे आप अपना सर्वश्रेष्ठ बाहर ला पाते हैं। और इस तरह जिंदगी में कहीं ज्यादा हासिल करते हैं. संतुष्ट होने का मतलब यह नहीं कि आप कोई आकांक्षा हो न करें।

 

दें. देने का वास्तविक कृत्य ही नहीं उससे पहले देने का विचार मात्र आपको खुशी से भर सकता है आप भावनाएं प्रेम, सरोकार, जान और अनुकंपा दे सकते हैं. जब आप देते हैं, तो हासिल करते हैं. जब आप झपटते हैं, तो गंवा देते हैं. यही हमने समझा नहीं. इसीलिए हम लेने वाले हैं. देने वाले नहीं.

 

·      खुद को नवाजी गई पांच चीजें खुद का लिखकर दिन शुरू करें ईश्वर में आपका भरोसा हो या न हो उस शक्ति को जरूर महसूस करें जिसने आपको इतनी सारी चीजों से नवाजा है

 

बच्चों को देने का आनंद सिखाएं ये बड़े होकर सफल संतुष्ट और सानंद वयस्क बनेंगे। यह कहने के बजाए कि खूब अच्छा करो ताकि खूब धन कमा सको बच्चों को सिखाएं कि लोगों की सेवा कैसे करें इससे उन्हें सच्ची खुशी मिलेगी।

 

 

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

चेतना में बड़ी शक्ति है

 यह शरीर चेतना द्वारा बनाया गया है। यह देह इसलिए है, क्योंकि उसमें जीवन है। जीवन शरीर को विकसित करता है, लेकिन जीवन अदृश्य है। परोक्ष रूप से आप उसके सभी कार्यों को देख सकते हैं। जिस चेतना ने इस शरीर को विकसित किया है, इस शरीर को ठीक जाएगा। भी कर सकती है। लेकिन हम पदार्थ में जितना विश्वास करते हैं, उतना अमूर्त में नहीं। चेतना अमूर्त है। ईश्वर भी अमूर्त है। हम जो देखते हैं, उस पर अधिक विश्वास करते हैं। लेकिन यदि हम जीवन व चेतना में विश्वास करें तो दुनिया एक भिन्न रूप में दिखाई देती है।


जब भय लगे तो उस अनुभूति को देखें और इसकी गहराई में उतरें। मन की हर भावना शरीर में अनुभूति पैदा करती है। जब आप भावनाओं को देखते हैं, तो भावनाएं शरीर में संवेदनाओं के रूप में बदल जाती हैं और फिर गायब हो जाती हैं। जब संवेदनाएं मुक्त हो जाती हैं, तो मन निर्मल हो जाता है। यही ध्यान है।

इसलिए अपनेपन की भावना रखें। आप ईश्वर के हैं, ब्रह्मांड के हैं या किसी शक्ति के हैं। भगवान मेरी देखभाल कर रहे हैं, मेरे गुरु मेरा ध्यान रख रहे हैं, ईश्वर मेरी देखभाल कर रहे हैं, यह भावना भय से निपटने का एक सरल और सामान्य उपाय

है। यदि यह संभव नहीं है, तो हर वस्तु व की नश्वरता को देखें। आपके आसपास सब कुछ बदल रहा है। आप किसी भी चीज को पकड़ कर नहीं रख सकते। भावना बदल जाती है, व्यवहार बदल जाता है। इससे आपको ताकत मिलेगी और भय भी दूर हो

लेकिन भय को आप थामे रहते हैं और उसे जाने नहीं देते। सच तो यह है कि एक दिन आपको हर चीज को अलविदा कहना होगा, जिसमें आपका अपना शरीर भी शामिल है। यह जागरूकता भीतर से एक बहुत बड़ी शक्ति को जन्म देती है।

जब मन भय से मुक्त हो, अपराधबोध से मुक्त हो, क्रोध से मुक्त हो और अधिक केंद्रित हो, तो यह शरीर के किसी भी रोग को ठीक कर सकता है। चेतना में बड़ी शक्ति है! जब आप वास्तव में केंद्रित होते हैं, तो कुछ भी आपको परेशान नहीं कर सकता है। यदि आप पानी के तालाब में एक छोटा पत्थर फेंकते हैं, तो बड़ी हलचल होगी, जबकि झील में हलचल पैदा करने के लिए बड़े पत्थर की आवश्यकता होती है। हालांकि, समुद्र को कुछ भी उद्वेलित नहीं कर सकता है। उसमें पर्वत भी गिर जाए, तो सागर पूर्ववत रहता है। शुद्ध चेतना प्रेम है और प्रेम सर्वोच्च उपचारक है। यही आपका सहज स्वभाव है।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

सकारात्मकता का प्रवाह


        जीवन में सकारात्मकता अद्भुत चमत्कार करती है। यह किसी औषधि की तरह होती है जो मन में उत्पन्न हुए विकारों को नष्ट कर देती है। इसका प्रभाव जीवन में उत्तम प्रवाह को गति देता है। यह हमारे व्यक्तित्व को प्रभावी बनाता है। जीवन की जटिलताओं को न्यून कर देता है। हमारे भीतर के भय को समाप्त कर देता है। इसके प्रभाव से मानस में नूतन युक्तियां उत्पन्न होने लगती हैं, जो हमें उन्नति की ओर ले चलती हैं। हमारे समक्ष आने वाली चुनौतियां, हमारे सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण पराजित हो जाती हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण हमें क्षमतावान बनाता है। क्षमतावान व्यक्ति सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जाता है। सकारात्मकता का भाव सूर्य के समान होता है। जो सदैव ओज से परिपूर्ण होता है। ऐसा ओज जो समस्त विश्व को आलोकित करता है, जिसके समक्ष नकारात्मकता का अंधकार नतमस्तक होता है। जो जीवन के प्रवाह को गतिमान बनाता है। जो रचयिता बनकर नवीनता प्रकट करता है। नव लय और गति का सृजन करता है। यह सब कुछ हमारे भीतर स्वतःस्फूर्त घटित होने लगता है।

        हमारे भीतर व्याधियां नहीं उत्पन्न होने देती। हमें मानसिक विकार नहीं घेरते। हम इसके सान्निध्य में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। हमारे दृष्टिकोण की सकारात्मकता हमें प्रभावी बनाती है। इससे हमारे कार्य सरल होने लगते हैं। जिस कारण हम जीवन में नए आयाम स्थापित करने में सक्षम हो पाते हैं। सकारात्मकता की मिठास हमें आनंदित कर देती है। यह आनंद ही हमें जीवन के वास्तविक अर्थ से परिचित कराता है, जिससे हम अपने अस्तित्व का कारण जान पाते हैं। उसका हेतु समझने लगते हैं। जब हम जीवन का हेतु समझ जाते हैं तो मोक्ष के मार्ग पर होते हैं। जीवन का हेतु सृष्टि के मंगल में निहित है। जब हमारे कार्य सृष्टि मंगल की ओर उन्मुख होते हैं तो हम जीवन के यथार्थ का अनुभव करने लगते हैं। सकारात्मकता के प्रवाह से ही लोकमंगल की सरिता बहती है

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

संघर्ष

जीवन में परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। अगर एक जैसी विपरीत परिस्थितियां बार-बार आ रही हो तो कभी यह नहीं समझना चाहिए कि अब जीवन में सब कुछ खत्म हो गया है, मेरे लिए कुछ नहीं बचा है। संघर्षशील व्यक्ति को एक बार पुनः उसी उत्साह के साथ नए सिरे से प्रयत्न में जुट जाना चाहिए। प्रयत्नों में ही सफलता की कुंजी निहित होती हैं।

संघर्ष काल में यह बात हमेशा ध्यान में रहनी चाहिए कि व्यक्ति के स्वयं के हाथ में कुछ नहीं है। व्यक्ति पुरुषार्थ कर सकता है, मगर परमार्थ का फल समय से पूर्व प्राप्त नहीं कर सकता। कहते है-समय से पहले और भाग्य से अधिक न किसी को मिला है और न किसी को मिलेगा। उसके लिए प्रतीक्षा ही सबसे बड़ा सहयोग है। इस सोच से ही व्यक्ति प्रतिकूलताओं में भी अनुकूलता की सौरभ भर सकता है। अनिश्चितताएं हमारी शत्रु नहीं है। कुछ स्थायी नहीं होना बताता है कि मैं और आप कोई भी जीवन की असीमित संभावनाओं को जान नहीं सकते। जरूरत है तो बस विश्वास की कभी आप अनिश्चितताओं की तरफ बढ़ते हैं तो कभी वे आपको ढूंढ लेती हैं। यही जीवन है। सफलता और संघर्ष साथ-साथ चलते हैं। कठिन रास्ते भी हमें ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। हर रात के बाद सबेरा आता ही है और यह भी सत्य है कि रात जितनी काली और भयावह होगी, सुबह उतनी ही प्रकाशमान तथा सुहानी होगी। गर्म हवाओं के चलने से ही जल वाष्प बनकर मेघ बनता है और फिर जीवनदायिनी वर्षा के रूप में बरसता है। जीवन में आए दुख, चिंता, तनाव तथा समस्या ही मनुष्य को निरंतर कर्मशील रखती हैं। अतः अपना दृष्टिकोण तथा चिंतन बदलकर समस्याओं को देखा जाए तो हर संकट सफलता की ओर ले जाने वाला रास्ता बन जाएगा। वस्तुतः विपत्ति एक कसौटी है, जिस पर कसकर मनुष्य का व्यक्तित्व और चरित्र जांचा-परखा जाता है। आपका हर दिन बीते दिन से अलग है। इसे स्वीकारना ही जीवन को गले लगाना है।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

मौन का महत्व

         मौनी अमावस्या का पर्व मौन नहीं, बल्कि मुखर होने का पर्व है, क्योंकि जब मनुष्य की इंद्रियां मौन होती हैं तो आंतरिक शक्तियां स्वतः जागृत होने लगती हैं। मनुष्य पांच ज्ञानेंद्रियों आंख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा की क्रियात्मक शक्ति से संचालित होता है। इन्हीं इंद्रियों से मन प्रभावित होता है। इसलिए मन को एकाग्र और संतुलित बनाने के लिए तथा वाह्य जगत के प्रभावों से बचने के लिए मुखर नहीं मौन रहने का रास्ता सुझाया गया है। प्रायः लोग न बोलने को ही. मौन मान लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं। मुंह से नहीं बोल रहे हैं, लेकिन पांच तामसी प्रवृत्तियां मतलब काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार का भाव यदि जागृत है तो मौन अपना प्रभावी रूप नहीं दिखा सकेगा।


        मनुष्य जानवर के अति निकट का प्राणी है। इस अधम शरीर को कैसे ऊर्ध्व बनाएं, इसकी साधना का पर्व है मौनी अमावस्या। यह साधना जब सफल होती है तो यही अधम शरीर मानुष तन में बदल जाता है। मनोविज्ञानियों ने अध्ययन किया कि बच्चा जब मां के गर्भ में पलता और आकृति लेता है तब भी उस पर वाह्य प्रभावों का असर मां के माध्यम से पहुंचता है। इसीलिए ऋषियों-मुनियों से लेकर धर्मग्रंथों में गर्भवती महिलाओं को विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। उनके खानपान से लेकर पूरे परिवेश को अति उत्तम ढंग से बनाने के भी निर्देश दिए गए हैं। क्रोध, उत्तेजना जैसे विकारों से बचने की बात कही गई है। वाह्य प्रभावों से हटाकर मन को सहज, सरल और प्रसन्न रखने के लिए अनेक देवी-देवताओं से संबंधित रक्षा कवच स्रोत लिखे गए हैं। इसमें तन के साथ मन और उसकी प्रवृत्तियों की रक्षा की प्रार्थना शामिल है। उत्तम प्रवृत्तियों से कोई व्यक्ति मनुष्य बन पाता है।

        मौनी अमावस्या मनन का पर्व है। दो अक्षरों का • मन वजनदार हुआ तो ढाई अक्षरों का मौन हुआ। इस "मौन को समझने में तीन अक्षरों का 'मनन' सहायक होता है। यह मनन ही शिव की समाधि है। इस प्रकार यह मौन के माध्यम से मुखर होने का पर्व है।