मनुष्य के चारित्रिक उत्थान, जीवन की सफलता एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अनुशासन की महत्वपूर्ण क भूमिका रहती है। अनुशासन की डोर से बंधे होने पर हम निरंतर सफलता की ओर अग्रसर होते रहते हैं। वहीं इसके अभाव में हम प्रतिदिन अव्यवस्था से क घिरता चले जाते हैं।
यद्यपि जीवन में अनुशासन का समावेश करना एक कठिन कार्य है, किंतु यदि एक बार व्यक्ति जीवन को नियमों के अधीन होकर जीना सीख जाए तो फिर जीवन का आनंद भी किसी उत्सव से, कम नहीं होता है। भारत के महापुरुषों का उदाहरण लिया जाए अथवा सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, नदी, वृक्ष आदि प्राकृतिक शक्तियों का, सब के सब पूर्णतया अनुशासित होकर प्रकृति के प्रति अपना दायित्व का निर्वहन करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं। भय से निर्मित अनुशासन रेत से बने घर के सदृश होता है, जिसे बिखरने में तनिक भी देर नहीं लगती। वहीं स्वेच्छा एवं आत्मप्रेरणा से जिस अनुशासन का आविर्भाव होता है, वह सदा-सदा के लिए जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाता है। यह हमें न सिर्फ बुराइयों से बचाता है, बल्कि सफल भी बनाता है।
अनुशासित जीवन में जिम्मेदारियां कभी भी बोझ जैसी महसूस नहीं होतीं। नियमों एवं सिद्धांतों का समूह सभी जिम्मेदारियों को अत्यंत सरलतापूर्वकार पूर्ण कर देता है। अनुशासन की उपस्थिति में तनावक एवं रोग जैसे शत्रु मानव जीवन में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाते। अनुशासन का पालन करते हुए कभी-कभी ऐसा प्रतीत हो सकता है कि हम किसी ऐसी जंजीर से जकड़े हुए हैं जिसने हमें कहीं न कहीं सीमाओं में बांधकर रख दिया है। परंतु यदि हम इस विषय पर गहन चिंतन करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि वे दायरे जिनके अंदर रहने को हम बायको हो चुके हैं, उनके पार पतन और अवनति की एक बहुत बड़ी खाई विद्यमान है। निःसंदेह अनुशासन एक कठिन साधना है, किंतु इसका प्रतिफल भी किसी अमूल्य वरदान से कम नहीं।
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