इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

चेतना में बड़ी शक्ति है

 यह शरीर चेतना द्वारा बनाया गया है। यह देह इसलिए है, क्योंकि उसमें जीवन है। जीवन शरीर को विकसित करता है, लेकिन जीवन अदृश्य है। परोक्ष रूप से आप उसके सभी कार्यों को देख सकते हैं। जिस चेतना ने इस शरीर को विकसित किया है, इस शरीर को ठीक जाएगा। भी कर सकती है। लेकिन हम पदार्थ में जितना विश्वास करते हैं, उतना अमूर्त में नहीं। चेतना अमूर्त है। ईश्वर भी अमूर्त है। हम जो देखते हैं, उस पर अधिक विश्वास करते हैं। लेकिन यदि हम जीवन व चेतना में विश्वास करें तो दुनिया एक भिन्न रूप में दिखाई देती है।


जब भय लगे तो उस अनुभूति को देखें और इसकी गहराई में उतरें। मन की हर भावना शरीर में अनुभूति पैदा करती है। जब आप भावनाओं को देखते हैं, तो भावनाएं शरीर में संवेदनाओं के रूप में बदल जाती हैं और फिर गायब हो जाती हैं। जब संवेदनाएं मुक्त हो जाती हैं, तो मन निर्मल हो जाता है। यही ध्यान है।

इसलिए अपनेपन की भावना रखें। आप ईश्वर के हैं, ब्रह्मांड के हैं या किसी शक्ति के हैं। भगवान मेरी देखभाल कर रहे हैं, मेरे गुरु मेरा ध्यान रख रहे हैं, ईश्वर मेरी देखभाल कर रहे हैं, यह भावना भय से निपटने का एक सरल और सामान्य उपाय

है। यदि यह संभव नहीं है, तो हर वस्तु व की नश्वरता को देखें। आपके आसपास सब कुछ बदल रहा है। आप किसी भी चीज को पकड़ कर नहीं रख सकते। भावना बदल जाती है, व्यवहार बदल जाता है। इससे आपको ताकत मिलेगी और भय भी दूर हो

लेकिन भय को आप थामे रहते हैं और उसे जाने नहीं देते। सच तो यह है कि एक दिन आपको हर चीज को अलविदा कहना होगा, जिसमें आपका अपना शरीर भी शामिल है। यह जागरूकता भीतर से एक बहुत बड़ी शक्ति को जन्म देती है।

जब मन भय से मुक्त हो, अपराधबोध से मुक्त हो, क्रोध से मुक्त हो और अधिक केंद्रित हो, तो यह शरीर के किसी भी रोग को ठीक कर सकता है। चेतना में बड़ी शक्ति है! जब आप वास्तव में केंद्रित होते हैं, तो कुछ भी आपको परेशान नहीं कर सकता है। यदि आप पानी के तालाब में एक छोटा पत्थर फेंकते हैं, तो बड़ी हलचल होगी, जबकि झील में हलचल पैदा करने के लिए बड़े पत्थर की आवश्यकता होती है। हालांकि, समुद्र को कुछ भी उद्वेलित नहीं कर सकता है। उसमें पर्वत भी गिर जाए, तो सागर पूर्ववत रहता है। शुद्ध चेतना प्रेम है और प्रेम सर्वोच्च उपचारक है। यही आपका सहज स्वभाव है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें