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सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

सुख का आधार

वर्तमान समय में प्रत्येक परिवार और संपूर्ण समाज का परिवेश बदला-बदला नजर आ रहा है। लोगों में. धन-संपदा के अतिरिक्त आवश्यक एवं अनावश्यक वस्तुओं के संग्रह की होड़ लगी है। यह होड़ प्रत्येक वर्ग में प्रत्यक्ष हो रही है। जिस पर अपार धन है वह भी, जिस पर कम है वह भी, सभी संग्रह में लगे हैं। इसके बावजूद लोग दुखी और परेशान हैं। दिखावे और घोर सुविधाभोगिता की प्रवृत्ति ने इच्छाएं और बढ़ा दी हैं। एक कार पहले से है तो उससे और बेहतर कार की अभिलाषा मन को अशांत किए रहती है।

आखिर पूरे समाज को यह क्या हो गया है? यह चिंतन-मनन का विषय है। ऐसे में महर्षि पतंजलि के सूत्रों का स्मरण उपयोगी लगता है। उन्होंने लोक व परलोक को अच्छा करने के कुछ तथ्यों को बताया है। इनमें से एक है-यम। यदि हम 'यम' के बिंदुओं यथा-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को ही अपने जीवन में अपना लें तो हम जीवन को आनंद से परिपूर्ण कर सकते हैं। अहिंसा का अर्थ स्पष्ट है कि किसी के प्रति भी हिंसा न करना। दूसरा है सत्य अर्थात जैसा देखा, सुना, प्रामाणिक शास्त्रों में पढ़ा व अनुमान किया गया ज्ञान मन में है, वैसा ही वचन एवं शरीर से आचरण में लाना सत्य है।

तीसरा है अस्तेय अर्थात् किसी वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना न तो शरीर से लेना एवं मन में भी इच्छा न करना ही अस्तेय है। दूसरों शब्दों में कह सकते हैं चोरी न करना। चौथा है ब्रह्मचर्य अर्थात् मन व सभी इंद्रियों पर संयम करना, ईश्वर स्मरण करना और ग्रंथों का पठन-पाठन करना। पांचवां है अपरिग्रह अर्थात् हानिकारक एवं अनावश्यक वस्तओं का एवं नकारात्मक विचारों का मन मस्तिष्क में संग्रह न करना ही अपरिग्रह है। ये सभी बातें सर्वज्ञात हैं, किंतु हम इन्हें जीवन में आदर्श रूप में आत्मसात नहीं कर पाते। जबकि इन पांचों बिंदुओं पर तन, मन, इंद्रियों, वाणी एवं व्यवहार आदि से पूर्णतः अमल कर लिया जाए तो ये हमारे जीवन में सुख के आधार बनने की क्षमता रखते हैं।


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