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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

सार्थक जीवन का सूत्र

जिंदगी भर हम कुछ न कुछ खरीदते रहते हैं। हम सोचते हैं कि ये चीजें हमें शारीरिक और मानसिक सुख प्रदान करेंगी। असलियत में हमें क्या खरीदना चाहिए? यह हमें मालूम नहीं होता है। दुनिया में बहुत कुछ मिल रहा है। हमें समझ नहीं कि हम क्या खरीदें और उसका हम पर क्या असर होगा? जैसे कि जो चीज हमारी सेहत के लिए अच्छी है तो हम उसे खाएंगे और अगर खराब हो तो हम उसे नहीं खाएंगे। यही बातें हमारी जिंदगी के आध्यात्मिक पहलू पर भी लागू होती हैं।

हमें अपना समय सही चीजों को पाने में लगाना चाहिए। हर एक के लिए दिन में सिर्फ चौबीस घंटे हैं। उसका इस्तेमाल अगर सही तरीके से करेंगे तो हम अपनी मंजिल की ओर तेजी से बढ़ेंगे। महापुरुषों के चरण-कमलों में लोग दूर-दूर से इसलिए आते हैं, क्योंकि वे उन्हें आध्यात्मिक जागृति देते हैं। यदि महापुरुषों के चरणों में पहुंचकर भी हमने उनसे पैसे और दुनिया की अन्य चीजें मांग लीं तो फिर तो हमने अपने असली रूप के लिए कुछ मांगा ही नहीं और न ही अपनी आध्यात्मिक उन्नति की ओर कदम बढ़ाए। हमारी जिंदगी बड़ी अनमोल है, लेकिन अगर हमने इसको बाहरी दुनिया के सुखों में ही व्यतीत कर दिया तो हम असलियत से बहुत दूर हो जाएंगे।

सत्गुरु एक शिक्षक की तरह हमें आत्म-ज्ञान देकर ध्यान की विधि सिखाते हैं। जैसे-जैसे हम ध्यान-अभ्यास करते हैं तो हम अपने अंतस में प्रभु की दिव्य ज्योति से जुड़कर सदा-सदा की खुशी को प्राप्त करते हैं। इसीलिए हम अपना अधिक से अधिक समय ध्यान-अभ्यास में लगाएं। साथ ही साथ हम अपने जीवन में सद्गुणों को भी धारण करें। हम औरों के मददगार हों, सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें, किसी का दिल न दुखाएं और नम्रतापूर्वक जीते हुए अपने जीवन के असली उद्देश्य को इसी जीवन में पूरा करें, जो कि अपने आपको जानना और पिता-परमेश्वर को पाना है। तभी इस जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।


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