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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

मौन का महत्व

         मौनी अमावस्या का पर्व मौन नहीं, बल्कि मुखर होने का पर्व है, क्योंकि जब मनुष्य की इंद्रियां मौन होती हैं तो आंतरिक शक्तियां स्वतः जागृत होने लगती हैं। मनुष्य पांच ज्ञानेंद्रियों आंख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा की क्रियात्मक शक्ति से संचालित होता है। इन्हीं इंद्रियों से मन प्रभावित होता है। इसलिए मन को एकाग्र और संतुलित बनाने के लिए तथा वाह्य जगत के प्रभावों से बचने के लिए मुखर नहीं मौन रहने का रास्ता सुझाया गया है। प्रायः लोग न बोलने को ही. मौन मान लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं। मुंह से नहीं बोल रहे हैं, लेकिन पांच तामसी प्रवृत्तियां मतलब काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार का भाव यदि जागृत है तो मौन अपना प्रभावी रूप नहीं दिखा सकेगा।


        मनुष्य जानवर के अति निकट का प्राणी है। इस अधम शरीर को कैसे ऊर्ध्व बनाएं, इसकी साधना का पर्व है मौनी अमावस्या। यह साधना जब सफल होती है तो यही अधम शरीर मानुष तन में बदल जाता है। मनोविज्ञानियों ने अध्ययन किया कि बच्चा जब मां के गर्भ में पलता और आकृति लेता है तब भी उस पर वाह्य प्रभावों का असर मां के माध्यम से पहुंचता है। इसीलिए ऋषियों-मुनियों से लेकर धर्मग्रंथों में गर्भवती महिलाओं को विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। उनके खानपान से लेकर पूरे परिवेश को अति उत्तम ढंग से बनाने के भी निर्देश दिए गए हैं। क्रोध, उत्तेजना जैसे विकारों से बचने की बात कही गई है। वाह्य प्रभावों से हटाकर मन को सहज, सरल और प्रसन्न रखने के लिए अनेक देवी-देवताओं से संबंधित रक्षा कवच स्रोत लिखे गए हैं। इसमें तन के साथ मन और उसकी प्रवृत्तियों की रक्षा की प्रार्थना शामिल है। उत्तम प्रवृत्तियों से कोई व्यक्ति मनुष्य बन पाता है।

        मौनी अमावस्या मनन का पर्व है। दो अक्षरों का • मन वजनदार हुआ तो ढाई अक्षरों का मौन हुआ। इस "मौन को समझने में तीन अक्षरों का 'मनन' सहायक होता है। यह मनन ही शिव की समाधि है। इस प्रकार यह मौन के माध्यम से मुखर होने का पर्व है।

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