इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

राष्ट्र की आराधना




    गणतंत्र दिवस राष्ट्र की आराधना का पर्व है। भूखंड, उस पर रहने वाले लोग वहां की सभ्यता और संस्कृति मिलकर किसी राष्ट्र का निर्माण करती है, परंतु राष्ट्र की वास्तविक पहचान देश के नागरिकों से होती है। जिस देश के नागरिक जागृत होकर देश के योगक्षेम का ज्ञान रखते हैं, उस देश की एकता और अखंडता को कभी खतरा नहीं हो सकता। अतः गणतंत्र की सफलता के लिए राष्ट्र में विवेकपूर्ण जन भागीदारी आवश्यक है। जिनमें सच्ची राष्ट्रभक्ति हो और जिनका चिंतन तुच्छ स्वार्थों के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रमंगल के लिए हो। इसीलिए राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा का भार केवल सैनिकों पर नहीं, बल्कि सभी नागरिकों पर होता है। जब देश का हर नागरिक सजग प्रहरी होगा, तभी सच्चे अर्थ में राष्ट्र की आराधना हो सकेगी। यजुर्वेद में कहा गया है, 'वयं राष्ट्रे जागृयाम।' अर्थात हम राष्ट्र के लिए सदा जागृत रहें।

    संत स्वामी रामतीर्थ कहते हैं, 'कन्याकुमारी मेरे चरण, हिमालय मेरा मस्तक हैं। मेरे केशों से गंगा यमुना निकलती हैं। विंध्याचल मेरी मेखला है। पूर्वोत्तर और पश्चिमोत्तर मेरी भुजाएं तथा कोरोमंडल एवं मालाबार मेरे पांव हैं। मैं संपूर्ण भारत हूं।" वस्तुतः राष्ट्रधर्म सबसे बड़ा धर्म है और ईश्वर की सबसे बड़ी उपासना। जब मनसा वाचा कर्मणा हमारा कोई भी कार्य राष्ट्र विरुद्ध नहीं होगा, तभी हम राष्ट्र के सच्चे उपासक हो सकते हैं।

    किसी ने श्री अरविंदो से पूछा, 'देशभक्त कैसे बना जा सकता है?' तब उन्होंने भारत के मानचित्र की ओर इशारा करते हुए उत्तर दिया, 'यह मानचित्र नहीं साक्षात भारत माता हैं। यदि गांव-नगर, नदी पर्वत, वन-उपवन इनका शरीर हैं तो यहां रहने वाले लोग इनकी जीवंत आत्मा। इसकी आराधना नवधा भक्ति से होती है।' इसीलिए राष्ट्र के अभिवर्धन और इसकी अस्मिता को चिरस्थायी रखने के लिए अपने विवेक को जागृत रखकर भ्रातृत्व भाव से चलने की आवश्यकता है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें