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शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

आत्मा



    हमारा आत्मा हमसे निरंतर कुछ ने कुछ कहतारहता है. पर हम उसकी आवाज को सुन नहीं पाते हैं, क्योंकि हमारा अधिकांश ध्यान मन की तरफ होता है। आत्मा हमें समर्थ बनाना चाहता है। हमें नरक में गिरने से बचाना चाहता है। हमें परमात्मा तक ले जाना चाहता है, क्योंकि हम अपने परमपिता से बिछड़े हुए हैं।

    जो आत्मा की आवाज को सुनता है, वही आध्यात्मिक उन्नति करता है। जबकि मन क्षणिक सुख के लिए बार-बार जीवन को कष्ट में डाल देता है। जो मन की इच्छा के अनुसार चलता है, वह भौतिक जीवन जीता है। अपनी आध्यात्मिक शक्ति को नष्ट करता है। मन हमें पतन के मार्ग पर ले जाना चाहता है। आत्मा हमें भवसागर से निकालकर मुक्ति का मार्ग दिखाता है। मन की इच्छा पूर्ति के लिए व्यक्ति कामना, वासना के क्षणिक सुख में जीवन की गरिमा को खो देता है। मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है। यह नश्वर है, पर इसके अंदर शाश्वत आत्मा है। अधिकांश लोग इस क्षणभंगुर शरीर को सजाने में ही जीवन बीता देते हैं, लेकिन जीवन प्राप्ति का असली उद्देश्य नहीं समझ पाते।

    ध्यान-अभ्यास के जरिये जब हम मन पर नियंत्रण करते हैं तो ही आत्मा आवाज सुन पाते हैं। मन सदा बाहरी संसार में हमें फंसाकर रखता है और आत्मा की तरफ झांकने नहीं देता। आत्मा की पुकार को सुनना मानव की दूरदर्शिता है। इस स्थिति में मन नियंत्रित होता है। आत्मा की पुकार सुनकर व्यक्ति मन का स्वामी बनता है। इससे उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। जबकि मन के फेर में फंसकर व्यक्ति ऋद्धि-सिद्ध का स्वामी होते हुए भी भिखारी की दशा में कभी लोभी, कभी कामी बना रहता है। मन स्थिर नहीं, चंचल है। वह इंद्रियों का दास है। इंद्रियों की इच्छा पूर्ति में वह सदा लीन रहता है। जब व्यक्ति आत्मा की आवाज को सुनता है तो वह इंद्रियों का भी स्वामी बन जाता है। फिर राम और कृष्ण की शक्ति उसके अंदर भर जाती है।

मुकेश ऋषि

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