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बुधवार, 19 जनवरी 2022

सुख-दुख का रहस्य

 सुख-दुख का रहस्य


सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार मनुष्य जीवन में सुख और दुख वास्तव में काल, कर्म, स्वभाव एवं गुणों के कारण होते हैं। यहां काल से तात्पर्य है परिवर्तनशील समय । इसी प्रकार प्रकृति के गुणों-तमो, रजो तथा सतोगुण में से जिस भी गुण की प्रधानता मनुष्य के भीतर होती है उसी के अनुसार वह अपने कर्म करता है। जैसे तमोगुण के प्रभाव में मनुष्य पशु की तरह व्यवहार करता है। जैसे केवल स्वयं के खाने-पीने तथा निद्रा के अलावा वह कुछ नहीं सोचता और पशु की तरह उनकी पूर्ति के लिए कोई भी अनैतिक कार्य करता है। इसके फलस्वरूप उसे दुख की प्राप्ति भी होती है। इसी प्रकार रजोगुण के प्रभाव में मनुष्य की कामनाएं बढ़ जाती हैं। इन कामनाओं की पूर्ति के लिए वह पूरे जीवन संघर्षरत रहता है। इन कामनाओं की पूर्ति में भी उसे कर्मफल के परिणामस्वरूप दुख को भोगना पड़ता है। सतोगुण के प्रभाव में मनुष्य मानवता के कल्याण तथा स्वयं के उत्थान के लिए कर्म करता हुआ परमसुख को प्राप्त करता है। यह जीवन का प्रमुख उद्देश्य भी है।


वहीं काल या समय मनुष्य के नियंत्रण में नहीं होता है। काल के अनुसार बहुत से दुख भी उसे मिलते हैं, परंतु मनुष्य इस प्रकार के दुखों को अपने कर्म तथा स्वभाव द्वारा नियंत्रण में ला सकता है। इसके लिए उसे अपने अंदर प्रकृति के द्वारा दिए हुए गुणों में परिवर्तन करने का प्रयास करना पड़ता है, परंतु अक्सर देखने में आता है कि मनुष्य परिस्थितियों का बहाना बनाकर स्वयं का समर्पण कर देता है। जबकि मनुष्य विवेक के द्वारा अपने अंदर प्रकृति के गुणों में परिवर्तन कर सकता है और तमोगुण से उठकर सतोगुण में जा सकता है। वह शुभकर्म करता हुआ आनंद की प्राप्ति कर सकता है। इसलिए मनुष्य को प्रत्येक काल में अपने आत्म उत्थान को ध्यान में रखते हुए अपने भीतर विद्यमान प्रकृति के गुणों का अवलोकन करके सतोगुण की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। इससे स्वतः ही उसके सारे दुखों का निवारण हो जाएगा.

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