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मंगलवार, 30 जून 2020

आध्यात्मिक प्रेम

आध्यात्मिक प्रेम

 जीवन में खुश रहने के लिए यह आवश्यक है कि हम स्थाई प्रेम से भरपूर रहे।  सदा- सदा का प्रेम केवल प्रभु और प्रकृति  का प्रेम है जो कि दिव्य एवं आध्यात्मिक है।  जब हम इस संसार में दूसरों से प्रेम करते हैं, तो हम इंसान के बाहरी रुप पर ही केंद्रित होते हैं।  और हमें जोड़ने वाले आंतरिक प्रेम को भूल जाते हैं। सच्चा प्रेम तो वह है जिसका अनुभव हम दिल से दिल तक, और आत्मा से आत्मा तक करते हैं। बाहरी रूप तो एक आवरण है, जो इंसान के अंदर में मौजूद सच्चे प्रेम को ढक देता है। मान लीजिए कि आपके पास खाने के लिए कुछ अनाज है।  अनाज प्लास्टिक की थैली में लपेटे जा सकते हैं, और डिब्बे में भी। हम उस थैली या डिब्बे को नहीं , बल्कि उसके अंदर मौजूद अनाज को खाना चाहते हैं। इसी तरह जब हम किसी इंसान से कहते हैं कि ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूं’ तो हम उस व्यक्ति के सार रूप से प्रेम प्रकट कर रहे होते हैं।  बाहरी आवरण या हमारा शारीरिक रूप वह नहीं जिसे हम वास्तव में प्रेम करते हैं। वास्तव में हम उस व्यक्ति के सार से प्रेम करते हैं, जो कि उसके भीतर मौजूद है। 

        हमारे जीवन का उद्देश्य ही यही है, कि हम अपने सच्चे आध्यात्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाए, और फिर अपनी आत्मा का स्वरूप अनुभव कर पाए और फिर अपनी आत्मा का मिलाप करके उसके स्रोत परमात्मा में करा दें। जब हमारी आत्मा अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति एवं श्रुति के साथ जुड़ने के लायक बन जाती है। तब हम अपने सच्चे आध्यात्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाते हैं। फिर गुरु के मार्गदर्शन में नियमित ध्यान, अभ्यास करते हुए हमारी आत्मा अध्यात्मिक मार्ग पर प्रगति करती जाती है, और अंततः परमात्मा में जाकर लीन हो जाती है। आइए हम सभी अपने बाहरी शारीरिक रूप की ओर से ध्यान हटाए और सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव करें, तभी इस मानव चोले में आने का हमारा लक्ष्य पूर्ण होगा, और हम सदा -सदा के लिए प्रभु में लीन होने के मार्ग पर अग्रसर हो पाएंगे. इसके लिए हमें एकांतवास का मार्ग अपनाना पड़ेगा, रोज समय निकालकर आधा घंटे के लिए ही सही एकांत वास में बैठने का प्रयास करें।  अपने को प्रकृति से जोड़ने का प्रयास करें।आप पाएंगे कि आपका मन विश्राम पाएगा और मन की सृजनात्मकता और बेहतर हो जाएगी,और आत्मिक प्रगति का मार्ग दिखने लगेगा ।  


रविवार, 28 जून 2020

अवसाद से मुक्ति

अवसाद से मुक्ति 

 अवसाद में व्यक्ति स्वयं की शक्तियों पर विश्वास करना छोड़ देता है।  वह अपने आप को पराजित सा महसूस करने लगता है।  यही पराजय का भाव उसके भीतर नकारात्मकता का ज्वार पैदा करने लगता है। उसे सब कुछ व्यर्थ लगने लगता है। 

 वह एकाकी  अनुभव करने लगता है। उसे अकेलापन अच्छा लगता है।  लेकिन यही एकाकीपन उसे भीतर से कमजोर करने लगता है,वह स्वयं पर नियंत्रण खोने लगता है।  ऐसी स्थिति उसके मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है। वह असफलताओं पर अधिक केंद्रित होने लगता है।  अवसादग्रस्त व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा होने क्षीण होने लगती है। 

आज के इस प्रतिस्पर्धी दौर में अधिकांश लोग कम समय में बहुत ज्यादा पाने की लालसा रखते हैं। यही लालसा ,लालच में बदलने लगती है जो कई दुस्प्रवृत्तियों  को जन्म देती है।  इससे हमारे भीतर के गुण शनै -शनै  छीण  होने लगते हैं।  परिणाम स्वरूप अवसाद के काले बादल हमें घेरने  लगते हैं।हम सदैव कुछ बुरा होने की आशंका से भयाक्रांत रहने लगते हैं। भय  का वह  आवरण हमारे व्यक्तित्व पर ग्रहण लगाने लगता है। 

वर्तमान समय में मनोचिकित्सक  अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक सलाह हेतु कुछ प्रश्नों या सुझाव को देने से मना करते हैं।  जैसे कि हम यह कहें कि आप बहुत मजबूत हैं ,और आप बहुत जल्दी अपने को ठीक कर लेंगे।  इससे अवसाद ग्रस्त व्यक्ति अपने को  मजबूत महसूस करके,और किसी को अपनी कठिनाइयां नहीं बताना चाहता तो, वह अपनी बीमारी को बढ़ा लेता है।  अगर हम उसे कमजोर कहेंगे तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप वह अपनी कठिनाइयां बयां करेगा, और कोई ना कोई उसका उपाय निकल आएगा। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को यह कहना कि आप बाहर निकलो सैर पर जाओ, लोगों से मिलो,क्योंकि वह बहुत कम ऊर्जा में है।  इसलिए उसके लिए ऐसा करना शायद असंभव हो। बेहतर होगा कि उसके पास जाएं, और किसी तरीके से उसको साथ लेकर निकले।  अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की नकारात्मक बातों को सुने। उसे ऐसा ना बोले कि तुम नकारात्मक  मत सोचो, नकारात्मक मत बनो।  इससे वह ज्यादा निराश बनेगा।  बल्कि उसकी नकारात्मक बातों को सुनकर उसे खाली करना चाहिए। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को यह कहना कि आप नींद लो,अच्छा भोजन खाओ, कुछ अच्छा पॉजिटिव सीरियल या फिल्म या टॉक देखो।  लेकिन वह तो पहले से ही अपनी  रुचि खो  चुका है।  किसी भी अच्छी चीज के लिए कहने से वह अपराध बोध से ग्रस्त हो सकता है।  इसलिए उसका व्यक्तिगत साथ देना, और उसके साथ फिल्म देखना,बोलना, बातचीत ,उसे बेहतर महसूस करा सकता है। 

अवसाद को मात देने के लिए हमें स्वयं से भी संवाद की आवश्यकता होती है।  हम जितना स्वयं से भागने को तत्पर होंगे उतना ही परेशानी के भंवर में फंसते चले जाएंगे।  हमें अपनी शक्तियों पर विश्वास करना ही पड़ेगा।  तभी हम इसे मात दे सकते हैं।  अपनों से अपनत्व, तो मित्रों से निरंतर संवाद ,छोटी-छोटी बातों में प्रसन्नता खोजना,खुलकर हंसना भी अवसाद के शत्रु हैं। अगर हम इन सभी से मित्रता कर ले तो अवसाद निष्प्रभावी हो जाएगा।  अपने भीतर की आध्यात्मिक चेतना को जागृत कर अवसाद के असुर का वध संभव है।  अगर हम थोड़ा सा समय स्वयं के लिए निकालें तो हर परिस्थिति से मुस्कुरा कर लड़ सकते हैं।  याद रखें कि तनाव जैसी स्थिति को पैदा कर मनोविकारों को जन्म देना उचित नहीं है। 


शनिवार, 27 जून 2020

अनंत आनंद

अनंत आनंद

 अनंत-आनंद की खोज में जब मनुष्य ने परम पुरुष की ओर चलना शुरू किया, तब वह अध्यात्म के संपर्क में आया। अध्यात्मिकता जब ससीम  के संपर्क में आती है, तब इसी के माध्यम से ससीम भी असीम के संपर्क में आता है।  ससीम और असीम का यह मिलन ही योग कहलाता है।  इस असीम को पाने के लिए और अपनी असीमित क्षुधा की तृप्ति के लिए, एक साधक जब उस अनंत की ओर चलना शुरू करता है तब उसी को योग कहा जाता है।   संस्कृत  में योग का अर्थ है जोड़ना जैसे 2 + 2 = 4 होता है, वैसे ही ब्रह्म प्राप्ति के लक्ष्य को पाने वाले साधक के लिए योग मात्र इस तरह का जोड़ नहीं होता है। 

 वहां योग का अर्थ है ‘एकीकरण’।  किस तरह का एकीकरण। चीनी और पानी के एकीकरण जैसा।  जोड़ में प्रत्येक वस्तु अपना अलग अस्तित्व और अपनी अलग पहचान रखती है।  जैसे दो चीजों को जोड़ने के बाद भी उसकी अलग पहचान और अस्तित्व बना रहता है। जोड़ने के पहले भी और जोड़ने के बाद भी, लेकिन एकीकरण के मामले में ऐसा नहीं होता।  चीनी के पानी में मिल जाने के बाद उसकी अपनी अलग पहचान नहीं रह पाती है, क्योंकि चीनी पानी में घुलकर वह पानी के साथ एकाकार हो गया। यही एकीकरण है।  योग का तात्पर्य भी इसी तरह का एकीकरण है। अर्थात चीनी और पानी मिलकर एक हो गए।   दो और दो जोड़  की तरह या जोड़ना नहीं हुआ। 


 योग के इसी आरंभिक बिंदु से शुरू होती है असीम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए महान यात्रा।  वृहद के आकर्षण को लक्ष्य कर चलने की गतिशीलता, मनुष्य को परम पुरुष के साथ एकाकार कर देती है।  जिनका आसन मानव अस्तित्व के उच्चतम बिंदु के भी ऊपर है।  परम तत्व के साथ एकात्म होने के लिए और उनकी यह जो गतिधारा है, बृहद के साथ क्षुद्र के मिलन का यह जो प्रयास है, यही है योग का योग के पथ। योग के पाथ  का अनुसरण करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। 


गुरुवार, 25 जून 2020

सृजनात्मकता

सृजनात्मकता 

 जिज्ञासु मन के विचारों को व्यवहारिक रूप प्रदान करना ही सृजन है।   वस्तुतः सृजनात्मकता  ईश्वर का उपहार है जो चिंतन को निखारता है।  यह एक प्रकार से नए रास्ते पर चलने के समान होता है।  यह ऐसी कला है जिसमें रंग- रूप,जाति , लिंग और आयु की सीमाएं नहीं होती हैं।   यह भावुक ह्रदय  की संवेदनाओं का दर्पण होता है।  इसमें किसी को नियमों या बंधनों में बाधा नहीं जा सकता।  लेखन, चित्रकारी, संगीत ,परिधान सज्जा , मूर्तिकला,पाककला  और न जाने कितनी ही विधाओं में आज सृजनात्मकता अपनी अभिव्यक्ति पा रही है।  

 आज कोरोना वायरस काल मे सृजनशील  विचारों की होड़ सी लग गई । है सृजनात्मकता किसी व्यक्ति की मनोदशा को भी दर्शाती है।  यह एक प्रकार से ध्यान, समाधि  से जुड़ जाने की ही प्रक्रिया है।  एक ही क्रिया को बारंबार एकाग्र होकर करते रहना ,आध्यात्मिक संतुष्टि देने के समान होता है।   हमें अपनी व्यस्त दिनचर्या में से तनिक समय निकालकर, किसी सृजनात्मक अभिरुचि को देना चाहिए।  इससे हमें असीम आनंद की प्राप्ति हो सकती है।  

 सृजन करने की क्षमता थोड़ी -बहुत हर किसी में विद्यमान होती है।  बस उसे खंगालने की आवश्यकता होती है।  सृजन के माध्यम से व्यक्ति सभी द्वेष दुविधाओं से मुक्त हो सकता है।  नूतनता , परिवर्तन और चिंतन एक विस्तृत फलक का निर्माण करने में सहयोगी हो सकते हैं, और तनाव कम करने में सक्षम भी।  दरअसल किसी सृजनात्मक कार्यक्रम के दौरान एक व्यक्ति अपना सभी कुछ उसी में झोंक देता है।  ऐसा लगता है कि वह अपने विचारों, भावनाओं को  कुरेदते हुए मानो  स्वयं की खोज में लगा हुआ हो।  

 हलाकि दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना सृजनात्मकता नहीं हो सकती है।  बरहाल सृजन किसी भी विधा से हो, हमारी जीवन शैली का अभिन्न अंग बन सभी को सौंदर्य से भरपूर आनंद का प्रतिभागी बना सके, हमें ऐसे प्रयास अवश्य करने चाहिए।   

सृजनात्मकता को दूसरे शब्दों में हॉबी भी कहते हैं। हॉबी  के अंतर्गत हम स्वांतः सुखाय किसी एक कला को पकड़ लेते हैं।  और उसमे अपने खाली समय को पूरी तरह देते हैं।  जिससे आनंद की प्राप्ति तो होती ही है, साथ साथ समाज को कुछ सृजनात्मक चीजें मिलती रहती हैं।  दुनिया में  कोहॉबी को विकसित करने वाले लाखों-करोड़ों लोग मिल जाएंगे।  और वह समाज को कुछ न कुछ नया और उत्तम जरूर दे रहे हैं । 


बुधवार, 24 जून 2020

मृत्यु का भय


 मृत्यु का भय 

 यह अटल सत्य है कि जीवन मरण धर्मा है। भारतीय दर्शन में मृत्यु के स्थान पर मुक्ति का उल्लेख खूब मिलता है।  वास्तव में मुक्ति, देह एवं जगजीवन से विश्राम की अवस्था का दूसरा नाम है। कोरोना के चलते इस वक्त आम से खास लोगों के जीवन में मौत का खौफ पूरी तरह घर कर गया है, जिसके कारण मनुष्य की सहज प्रवृत्तियों के लगभग लोप  के साथ मनुष्यता भी खतरे में पड़ गई है। इस विपत्ति में चाह कर भी लोग अपने स्वजन, परिजन और पुरजनों की मदद करने से घबरा रहे हैं।  

 यह जो मौत का खतरा,  सोते- जागते उसका भय  मानव मन के अवचेतन में बरकरार है, वह तो मौत से भी भयावह है। मनोविज्ञानी, भय जनित रोगों की अलग ही व्याख्या करते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक मनुष्य अपना बहुत कुछ खोने के दबाव में सहमा हुआ है, भीतर  से भयभीत है। हर आदमी इसी फितरत में जीता है कि जीवन थोड़ा और खींच जाए।  यह अभिलाषा बुरी नहीं। वस्तुतः जन्म के समान ही मृत्यु अकाट्य है ,परंतु उसकी पल- प्रतिपल चिंता करना मूर्खता ही नहीं आत्मघाती भी है। शव मृत्यु की  साकार उपस्थिति है। शवदाह हेतु श्मशान लेकर जाते वक्त व्यक्ति के मन में वैराग्य भाव जाग उठता है, परंतु यह क्षणिक है.श्मशान  से वापस लौटते ही माया, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और लोभ  अपना काम फिर शुरू कर देते हैं।  बारीकी से देखा जाए तो ए भाव एक तरह से मृत्यु के ही प्रछन्न  रूप हैं। जिसमे  उलझा रह कर व्यक्ति मृत्यु से खुद को दूर ले जाने का यत्न करता रहता है।  

 आज इस दौर में जरूरत आत्मसंयम, जागरूकता, जीवनशैली में बदलाव, एवं सकारात्मक चिंतन को अमल में लाने की है। हम सब की समझदारी और संयम से यह बुरा वक्त भी कट जाएगा। ध्यान रहे हमेशा मौत से डरने वाला जीवन का लक्ष्य, सुख एवं भोग भोगने  से वंचित रह जाता है। धरती पर बोझ बनकर जीना या धरती का प्रहरी बनकर रक्षा करना है,यह चुनाव आपके ही हाथ में है। 

 कहते हैं डर के आगे जीत है।  इसका मतलब यह है कि डर डर के जीना भी कोई जीना है। आदमी को जीवन में आने वाली कठिनाइयों का निडरता से मुकाबला करना चाहिए।जिन  कठिनाइयों को हल करना अपने हाथ में है, उनके लिए पूरा प्रयास स्वयं  करना चाहिए।  जिन कठिनाइयों को हल करने के लिए हमारे निकट संबंधी मददगार हो सकते हैं, जहां तक संभव हो उनकी मदद लेनी चाहिए।  कुछ ऐसी भी कठिनाइयां होंगी जिनमें कोई भी व्यक्ति कोई हल नहीं निकाल सकता । इसको स्वीकार कर लेना है।  वह धीरे-धीरे हमारी आदत का हिस्सा बन जाएगी।  और हम आसानी से जीना सीख जाएंगे।  जीवन के यही आयाम  हमें आगे ले जाएंगे।  मौत  तो हर पल, हर पल आगे आगे है।  लेकिन जीवन में सकारात्मकता रखना भी बहुत जरूरी है।  हमें यह मानकर चलना है कि जो सामान्य औसत आयु होती है, उसे प्राप्त करने का प्रयास करना है ,लेकिन यह हमारे हाथ में नहीं है। कभी-कभी इसे भाग्य और पुरुषार्थ कह दिया जाता है।


सोमवार, 22 जून 2020

आदमी

  आदमी 
प्रायः आदमी का तात्पर्य आम ‘आदमी’ से उद्घाटित होता है, जो इंसानियत एवं मानवता का प्रतिनिधि है।  यह  स्त्री  एवं पुरुष दोनों का संबोधन है।   यदि आदमी अपनी आदमियत से गिरेगा तो  हैवान  बनेगा, और वह आदमीयत  से ऊपर उठेगा, तो देवता अवश्य बन जाएगा। 
यह शक्तिमान आदमी अपना ही मित्र और  अपना ही शत्रु है। दुख की बात है कि प्रकृति की सबसे अनोखी यह रचना ‘आदमी’ आज उसके ही प्रतिकूल बन बैठा है।  यदि आदमी प्रकृति के अनुकूल बन सके, तो पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आएगा।  अन्यथा नर्क सर्वत्र  दृश्यमान हो रहा है। 
अब आदमी अपने को ‘आदमी’ नहीं भगवान मानने को आतुर है।  उसकी मति भ्रष्ट हो गई है।  उसने ज्ञान से दूरी बनाकर , विज्ञान से नाता जोड़ लिया है।  उसने  विज्ञान को ही ज्ञान समझने की भूल कर दी है।  आज तो उसने विकास की दिशाहीन दौड़  से विनाश को ही आमंत्रित कर लिया है।  सर्बनाश की ओर आदमी के कदम बढ़ते ही जा रहे हैं। आदमी का जन्म क्यों हुआ, उसे जीवन क्यों मिला? इसीलिए कि वह स्वयं को पहचान सके। वस्तुतः स्वयं को जान लेना ही उसका परम कर्तव्य है, और परम धर्म भी । आदमी को स्वयं अपने अंदर के रहस्य को खोजना चाहिए ,तब भीतर तो आदमी ही बैठा मिलेगा, भगवान  का भेजा हुआ आदमी। आदमी अपने को मंत्री, अधिकारी, व्यापारी और ना जाने क्या क्या समझता है, लेकिन अपने अंदर बैठे आदमी को नहीं मानता। और अनंत काल से उसकी यह भूल अभी तक सुधारी नहीं जा सकी है। 
आदमी को कई दुर्लभ शक्तियां प्राप्त है। उसे  कर्म का अधिकार मिला है जो देवताओं को भी सुलभ है नहीं है।  वर्तमान जन्म में आदमी को प्रेम, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य का अवसर उपलब्ध कराया गया है।  बुद्धि एवं विवेक की सर्वोत्तम कृति यह ‘आदमी’ का चोला बार-बार नहीं मिलता। इसीलिए धर्म को धारण करके मुक्ति का उपाय करना ही उसके लिए एकमात्र निसकंटक पथ है। 
 धर्म को धारण करने का मतलब है, प्रकृति के नियमों का अनुसरण करना।  प्रकृति के नियमों के अनुसार  हमें पेड़- पौधे और पशुओं से शिक्षा लेनी चाहिए कि  कैसे वह एक दूसरे के स्वावलंबन और विकास को आगे बढ़ाते हैं। प्रकृति बनी  रहे, उसी में लगे रहना है।  इसी तरह से हमारे यहां जो सफल लोग हैं ,उनको चाहिए कि प्रकृति के विकास एवं  उन्नयन हेतु पूरा प्रयास करें, बाकी लोग तो उसे नियम मानकर अवश्य पालन करेंगे। 

 धर्म का मतलब अतिशय शोषण नहीं है।  धर्म का मतलब प्रकृत विरोधी कर्तव्य करना नहीं  है। सबको साथ लेकर चलना, प्रकृति  का पूर्ण विकास करना, धर्म का मतलब   होना चाहिए , ना कि मंदिर में बैठकर पूजा-पाठ।  


रविवार, 21 जून 2020

मानसिक स्वास्थ्य

मानसिक स्वास्थ्य

 मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना महत्वपूर्ण है।  प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ब्रॉक चिसोलं  कहते हैं कि बगैर मानसिक स्वास्थ्य के, सच्चा शारीरिक स्वास्थ्य नहीं हो सकता है।   वर्तमान में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सजगता इसलिए और आवश्यक हो गई है, क्योंकि कोरोनावायरस ने तनाव और अवसाद को भी बढ़ा दिया है। 

  मनोविज्ञानियों  तथा मनोचिकित्सकों का मानना है कि हमारे अंतर्मन में बसी बातें, जब बाहर नहीं निकल पाती या जब मन मस्तिष्क को गंभीर आहत करने वाली बातों पर उचित संवाद नहीं होता है, या सही सलाह नहीं मिल पाती है, तो वे तनाव का रूप धारण कर लेती है, और अगला पड़ाव अवसाद का आकार ले लेता है।  हमारे दैनिक जीवन की घटनाओं पर मन में अंतहीन बातें चलती रहती हैं।  उन बातों को बाहर ना निकाला जाए तो तनाव की स्थिति अवसाद  में बदल जाती है। अवसाद एक गंभीर मनःस्थिति है, जो इस बात का संकेत है कि आपका शरीर और आपका जीवन असंतुलित हो गया है। इसीलिए सबसे जरूरी है कि तनाव को खुद पर हावी ना होने दें, और अपनी समस्या मन में ही ना रखें,  बल्कि उसे अपने करीबियों से साझा करें। किसी विशेषज्ञ की सलाह भी ले सकते हैं। 


 हमारे देश में पारिवारिक और सामाजिक ताना-बाना ही कुछ ऐसा है कि यहां तनाव-अवसाद को बीमारी नहीं माना जाता,जबकि अवसाद जैसी समस्या को स्वीकारना और उसका हल खोजना छुपाने वाली बात नहीं। विडंबना की बात यह है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में ऐसी विषयवस्तु एवं पाठ्यक्रम संरचना का सर्वत्र अभाव है, जिससे व्यक्ति में स्वयं ही निराशा-अवसाद जैसे मानसिक विकारों से लड़ने की सामर्थ्य  का विकास संभव हो सके। ऐसे में हमें किशोरों और नवयुवकों के बीच मानसिक स्वास्थ्य के प्रबंधन को शिक्षा  तंत्र का हिस्सा बनाकर,कम उम्र से ही सिखाने की कोशिश करनी होगी।  इसमें योग, प्राणायाम  भी सार्थक भूमिका निभा सकता है। 

 किशोरों और नव वयस्कों को सफल होने के लिए, नंबर एक पर बने रहने के लिए बहुत दबाव होता है परिवार और समाज का।  और युवा  सफल भी होते जाते हैं।  लेकिन जीवन तो एक बहती दरिया जैसा है,उसमें उछाल ,ऊंच-नीच आता रहता है।  और हमेशा सफल रहने वाला व्यक्ति यदि कभी असफल हो जाए या कोई ऐसी समस्या आ जाए, जिसका वह निराकरण नहीं कर पाता है, तो इसके बारे में उसका मन मस्तिष्क प्रशिक्षित नहीं होता, कि वह असफलता को कैसे ले अपने जीवन में।  और कैसे जिए, इसलिए वह अवसाद ग्रस्त हो जाता है।  और कई बार अपने प्राण भी अंत कर लेता है।  लेकिन यह स्थिति बिल्कुल वांछनीय नहीं है। बल्कि हमें अपने युवाओं के मानसिक प्रशिक्षण में असफल होने की स्थिति मे भी जीने का तरीका सिखाना होगा, ताकि बहुमूल्य जीवन का कोई तनाव-अवसाद की वजह से अंत न करें। 


चरित्र सृजन

चरित्र सृजन


 जिंदगी भर की छोटी-छोटी, अच्छी -बुरी आदतें हमारे चरित्र का सृजन करती है।  जिस प्रकार बूंद -बूंद से सागर तो बनता है, लेकिन कुछ बूंदों को सागर नहीं कह सकते हैं।  जिस प्रकार

बिंदु -बिंदु से चित्र बनता है, लेकिन सिर्फ कुछ बिंदुओं के संकलन को चित्र भी नहीं कह सकते, ठीक उसी प्रकार चरित्र सृजन  भी सिर्फ कुछ अच्छी आदतों से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए सतत प्रयत्न करते हुए, अच्छी आदतों और अच्छे कार्यों के अनंत बिंदुओं का अनवरत संकलन करना आवश्यक होता है। इन्हीं बिंदुओं को संयोजित करके, समायोजित करके, सुंदर तस्वीर बनाने की सफल प्रक्रिया ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है।  

 ध्यान रहे कि व्यक्तित्व अगर वट वृक्ष है,तो चरित्र उसे मजबूती और दीर्घ जीविता प्रदान करने वाली  जड़े।   हमारी सफलता और असफलता के निर्धारण में अदम्य एवं आकर्षक व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण योगदान होता है।  इसीलिए यह कहना तर्कसंगत है कि व्यक्ति की सफलता में चरित्र निर्माण नींव की ईंट  का काम करता है।  चरित्र निर्माण से ही भाग्य का निर्माण होता है।  कई बार हमारे जीवन भर के कार्य और हमारी आदतें हमारे भाग्य का सृजन कुछ इस प्रकार कर देती हैं, की चाह कर भी उसे बदल पाना हमारे वश में नहीं रह जाता, और फिर इस परिस्थिति में हम भगवान को यह कह कर कोसने लगते हैं कि मेरा तो भाग्य खराब है। 

  अगर हमें यह  एहसास हो जाए कि अपने अच्छे कर्मों और अपनी अच्छी आदतों के द्वारा सृजित हमारा चरित्र और व्यक्तित्व ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं, तो यह समझने में जरा भी देर नहीं लगेगी कि हमारे भाग्य के भाग्य विधाता तो हम खुद हैं, कोई और नहीं।  अपने संचित कर्मों की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए हमें अपने भाग्य के लिए भी खुद को जिम्मेदार मानना चाहिए और यह दृढ़ विश्वास रखना चाहिए कि अपने हाथ की रेखाओं के रचनाकार हम हैं ,कोई अदृश्य शक्ति नहीं। 

 हमें अपने जीवन को सफल और उत्तम बनाने के लिए खूब परिश्रम करना चाहिए, उत्तम साधनों का इस्तेमाल करना चाहिए , तभी आने वाला जीवन स्वर्णिम हो सकता है। 



शुक्रवार, 19 जून 2020

हार जीत

हार जीत

 अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित जब दो पक्ष आपस में भिड़ते हैं,तो जो मजबूत होता है वही जीतता है।  जो पक्ष कमजोर होता है, वह निश्चित ही हारता है।  जो पक्ष जीतता है, उसे खुशी का ठिकाना नहीं रहता है।  और जो हारता है, वह दुख-तनाव से ग्रस्त रहता है।  लेकिन जो असली योद्धा होते हैं, कभी भी हार-जीत से ना ही घबराते हैं और ना ही दुखी  होते हैं।  वे पराजित होने के पश्चात, अपनी कमजोरियों को खोज कर, उन्हें दूर करके, पुनः अपने अंदर मजबूती लाते हैं ,और युद्ध  का क्रम निरंतर चलाते ही रहते हैं।  जो युद्ध  करने से भाग जाता है, वह योद्धा नहीं है। 

  

इतिहास बताता है कि प्राचीन समय से ही धर्म-अधर्म की, पाप -पुण्य की, अच्छाई- बुराई  की, सत्य- असत्य की, राम- रावण की, कौरव- पांडव की, कृष्ण- कंस की लड़ाई होती आई है   जिसमें धर्म का पक्ष जीतता है।  और अधर्म का पक्ष हारता है।  सत्य की कभी भी हार नहीं होती है।  भले ही सत्य परेशान हो जाए, क्योंकि सत्य पर ही दुनिया टिकी है।  सर्वशक्तिमान प्रकृति, सत्य स्वरूप है।  वह कभी भी सत्य का पक्ष ही लेती  हैं।  सत्य का मार्ग कठिन है, पर कल्याण एवं सुख की प्राप्ति तो सत्य मार्ग पर चलने से ही संभव हो पाती है।  मनुष्य का जीवन भी एक संग्राम क्षेत्र की तरह है।  मनुष्य के अंतर्मन में पाप -पुण्य,अच्छाई -बुराई की, लड़ाई निरंतर चलती ही रहती है।  दुर्भाव - सद्भाव, दुर्गुण- सदगुण का आपसी टक्कर चलता ही रहता है। 

  अगर मन दुर्भाव  को त्यागकर सद्भाव ,दुर्गुण को त्यागकर सदगुण, पाप को त्यागकर पुण्य  असत्य को ,त्याग कर सत्य को ,अधर्म को त्याग कर धर्म को धारण कर लेता है, तो जीवन के महासंग्राम में मनुष्य की जीत अवश्य होती है।   

अगर  मन  दुर्गुण, दुर्भाव, असत्य, अधर्म को धारण किए रहता है, तो जीवन के महासंग्राम में उसकी हार होकर ही रहती है, और उसका जीवन दुखमय बना रहता  है। ऐसे व्यक्ति जीवित रहकर भी मृत ही होते हैं ,और धरती पर भार स्वरूप होते हैं।  

 किसी से वाद-विवाद में हम भले जीत जाएं, लेकिन अगले आदमी की भावना आहत होती है।  जहां तक संभव हो आदमी के दिल को प्यार की भाषा से जीतना चाहिए, ना कि वाद-विवाद की भाषा से। 


बुधवार, 17 जून 2020

जल संरक्षण

जल  संरक्षण 
उत्तर भारत के गंगा के मैदानों में मानसून का पदार्पण हो चुका है।  
मानसून असीमित जल राशि के साथ प्रकृति को नवजीवन देने आ रहा है।  इसी के साथ
पौधरोपण का काम शुरू हो जाएगा।  प्रदेश सरकार ने इस साल 30 करोड़ पौधे लगाने
की योजना बनाई है।  सरकार मौजूदा और भावी पीढ़ियों के लिए इससे बेहतर कोई अन्य
योगदान नहीं दे सकती।  इस एजेंडे में जल संचय, भूगर्भ जल रिचार्ज को भी शामिल कर
लिया जाए ,तो सोने पर सुहागा जैसी स्थिति पैदा की जा सकती है।  वैसे यह दोनों कार्य
दशकों से सरकार के सालाना कैलेंडर में शामिल हैं।  कुछ साल पहले तक यह सिर्फ
कागज़ों पर रस्मी तौर पर निपटाए जाते थे। 
 अब पौधरोपण को लेकर स्थिति बेहतर हुई है।  बहरहाल जल संचय और भूगर्भ
जल रिचार्ज को लेकर भी अपेक्षित  सजगता  नहीं  दिखती । राजधानी लखनऊ
समेत अधिकतर जिला मुख्यालयों के सरकारी कार्यालयों के भवनों में गूगल भूगर्भ जल 


रिचार्ज प्रणाली स्थापित नहीं की जा सकी है।  इसके लिए आर्थिक संसाधन और धन की
आवश्यकता होगी जिसे सामूहिक भागीदारी के द्वारा भी पूरा किया जा सकता है। 

प्रदेश के अधिकतर अंचलों में भूगर्भ जल स्तर में तीव्र गिरावट देखते हुए सरकारी तंत्र
से लेकर आम आदमी तक कि बेपरवाही  हैरतअंगेज़ है।  ऐसे ही राज्य सरकार  पहल
करके आम लोगों को जल संचय और  भूगर्भ जल  रिचार्ज के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।  
ग्रामीण इलाकों में तो लाखों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराए जाने की नीति
के कारण, तालाब
 खोदवाकर जल संचय करने का अवसर मिल गया है। उत्तर प्रदेश के पठारी भागों में जहां
गर्मियों में पानी की अधिक समस्या हो जाती है वहां बड़े तालाब खोद वाकर मानसून के
जल को भंडारित करके कई कामों में लाया जा सकता है।  वैसे तो गंगा के बेसिन में

भूगर्भ जल की कमी नहीं है लेकिन जहां जहां औद्योगिक बस्तियां बस रही हैं वे भूगर्भ जल
का अत्यधिक दोहन कर रही हैं जिससे भूगर्भ जल का स्तर भी कई जिलों में नीचे जा रहा है। 
जिलाधिकारी चाहे तो इस स्थिति को यादगार में तब्दील कर सकते हैं।  इसके लिए ग्राम प्रधानों
के साथ रणनीति बनाई जानी चाहिए।  शहरी क्षेत्र में नागरिकों को उनकी छत पर  भूगर्भ जल 
रिचार्ज प्रणाली स्थापित करवाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।  इसमें स्थानीय निकाय
  अहम भूमिका निभा सकते हैं।  यद्यपि  टेक्नोलॉजी और अन्य सुविधाओं से संबंधित 
पक्ष की जिम्मेदारी  भूगर्भ जल विभाग  या जल निगम को सौंपी जानी चाहिए।  लॉक डाउन 
काल में पर्यावरण का पुनरुद्धार हुआ है।  अब और  पौधरोपण तथा जल संरक्षण के जरिए
इसे बल दिया जा सकता है। जल की मौजूदगी प्रकृत के जीवंत होने का संकेत है । 
इसीलिए प्रचुर मात्रा में जल संचय करके प्रकृति गोद को जीवन रस से लबालब  रखा जा सकता है। 
 रेलवे में (ट्रैक) रेल पथ की मरम्मत के लिए ब्लॉक लेने का प्रचलन है।  जिसमें कुछ घंटों के लिए
गाड़ियाँ रोक दी जाती हैं, और ट्रैक  या  विद्युत मार्ग की मरम्मत की जाती है। 
अब ऐसा लगने लगा है, कि हमारी सरकारों को भी साल में एकाध महीने का
ब्लॉक अपनी प्रकृति को देना पड़ेगा ,ताकि प्रकृति स्वयं अपनी मरम्मत कर सके।  
लोग अपने-अपने घरों में कैद रहे।  सड़क पर  गाड़ियां ना चलें, औद्योगिक संस्थान
अपने न्यूनतम स्तर पर परिचालित हो।  व्यापारिक गतिविधियाँ भी बहुत न्यूनतम स्तर पर   हो ।
ताकि  जीवन  यापन आसानी से हो सके।  यह कहना बहुत आसान है, लेकिन
इसे लागू करना बहुत कठिन है।  लेकिन हमें प्रकृति को बचाना है या प्रकृति का 
का उद्धार करना है, तो साल में कम से कम 15 दिन से 1 महीने का मेंटेनेंस ब्लॉक
प्रकृति को देना ही पड़ेगा।  यह हमारेनीतिनियंताओं को अपने
चिंतन में शामिल करना पड़ेगा। 

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सरलता By Bijay Kumar CFTM NER

सरलता 

 जो व्यक्ति सरलता को अपने जीवन में लंबे समय तक कायम रखने में सफल हो जाता है, वह निश्चित ही जीवन का
वास्तविक आनंद उठाता रहता है. ऐसे लोगों के मस्तिष्क में शांति स्थापित रहने के कारण ,प्राकृतिक रूप से अधिक
मात्रा में आध्यात्मिक ऊर्जा का भंडार बना रहता है।  कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी सरलता को बहुत ही जल्दी
खो देते हैं, और एक दम कठोर हो जाते हैं, जिसके कारण जीवन की गहराइयों के बारे में कुछ भी जानना और अनुभव
करना ऐसे लोगों के लिए अत्यंत कठिन हो जाता है।  बचपन कितना अधिक आनंद पूर्ण था, यह अनुभव सभी ने किया होगा ,
लेकिन वैसा आनंद वर्तमान में नहीं रह गया, जबकि उम्र बढ़ने के साथ जो अनुभव और ज्ञान बढ़ता है उसके आधार पर
बचपन के सापेक्ष व्यक्ति को वर्तमान जीवन में अधिक आनंद अनुभव होना चाहिए, किंतु होता  इसके एकदम विपरीत है।
अहंकार  एक ऐसी छाया है,जो व्यक्ति को अपने घेरे में बहुत ही आसानी से ले लेती है।  इसी से हृदय कठोर हो जाता है। 
  वास्तव में झूठ इसलिए पनपता है ,क्योंकि हम उसे अच्छी अच्छी बातों के अंदर छुपाते रहते हैं, किंतु यदि हम ऐसा
करना छोड़ दें, तो फिर झूठ का टिक पाना संभव नहीं है। इस प्रकार की सोच एक बार व्यक्ति के भीतर प्रवेश कर
जाती है, तो फिर बुराइयां ज्यादा दिन तक उसके साथ नहीं रह सकती हैं।  इसी से जीवन में सरलता आने लगती है। 
  
सरलता जीवन में जैसे-जैसे गहराई से प्रवेश करने लगती है वैसे-वैसे व्यक्ति ईश्वर के करीब होने लगता
 है ,प्रकृति के करीब होने लगता है।  हर व्यक्ति को जीवन के भीतर की सच्चाई को जानने की चेष्टा करते हुए,
इसे देखने का साहस जुटाना चाहिए।  हम झूठी बात को जितना अधिक छिपाते जाएंगे ,वह उतनी ही अधिक
हमें पीड़ा महसूस कराती रहेगी। यदि हम इसी प्रकार की पीड़ा महसूस करते रहेंगे, तो फिर जीवन में परिवर्तन
ला पाना असंभव ही है। 

शुक्रवार, 12 जून 2020

Covid 19-आवश्यक एहतियात

COVID 19
आवश्यक एहतियात---
लॉकडाउन में जैसे-जैसे रियायत मिल रही है, लोग अपने कार्यक्षेत्र पर जाने के लिए घर से निकलने लगे हैं। ऐसे में यह जान लेना जरूरी है कि कार्यक्षेत्र तक पहुंचने के लिए आप जब पैदल चले तो आपके शरीर की गति क्या होनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन बता चुका है कि जब हम ज्यादा तेज सांस लेने वाले काम करते हैं तो कोरोना वायरस के शरीर में प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है।
तेज सांस लेने से मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी-
दो मिनट की तेज सांस से मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा 40% तक घट जाती है। वैज्ञानिक शोध यह साबित कर चुके हैं कि तेज सांस लेने से शरीरिक कोशिकाओं में ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का संतुलन बिगड़ता है। ऑक्सीजन की मात्रा घटते ही कोशिकाएं कम ऊर्जा का निर्माण करती हैं जिससे थकावट होने लगती है और ध्यान भटकता है।
तनाव घटाती है गहरी सांस-
गहरी श्वास भरना और तेज-तेज श्वास लेने को अक्सर लोग एक ही बात समझ लेते हैं जबकि गहरी सांस लेना एक सधी हुई शारीरिक क्रिया है। इससे शरीर के इम्यून फंक्शन में सुधार होता है, ब्लड प्रेशर का स्तर घटता है जिससे तनाव पैदा करने वाले हार्मोन घटते हैं और बेहतर नींद आती है।
कोविड-19 का बढ़ता खतरा-
विश्व स्वास्थ्य संगठन बता चुका है कि ज्यादा तेज श्वास लेने के दौरान शरीर में कोरोना वायरस के प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा होने का कारण यह है कि तेज-तेज सांस लेते समय किसी संक्रमित व्यक्ति के मुंह से निकले या किसी वस्तु पर मौजूद संक्रमित ड्रॉपलेट हमारे शरीर में तेजी से प्रवेश करते हैं।
सामान्य गति से सामाजिक दूरी बनाकर चलें-
-मास्क लगाकर ही घर से बाहर निकलें और पैदल चलते समय दूसरों से छह कदम(दो फिट) की दूरी बनाए रखें।
-शारीरिक दूरी बनाए रखते हुए चलने से स्वभाविक रूप से आप सामान्य गति से चलेंगे, तेज सांस नहीं लेनी पड़ेगी।
-आप जितने बजे दफ्तर जाने के लिए घर से निकलते हैं, उससे 10-15 मिनट पहले निकल जाएं, इससे हड़बड़ी नहीं होगी।
-दफ्तर के रास्ते में ईयरफोन लगाकर न जाए, ऐसा करने से आप स्वच्छता के नियमों के प्रति लापरवाह हो जाएंगे।
-अगर आपके इलाके में बस या कैब चलने लगी हैं तो परिवहन संबंधी सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए ही चलें।
-बाइक या कार से दफ्तर जा रहे हैं तो मास्क लगाकर ही जाएं, चेकिंग प्वाइंट पर जांच में सहायता करें।
-दफ्तर में थर्मल जांच कराएं, आईकार्ड पहनें ताकि पहचान की समस्या न आए।
-लिफ्ट के इस्तेमाल से बचें, अगर उसमें कोई मौजूद है तो प्रवेश न करें। उंगली की बजाय कोहनी से बटन दबाएं।
-दफ्तर में काम के दौरान भी मास्क लगाए रखना जरूरी है, अपने कुलीग से बात करते समय चेहरे को बिल्कुल सामने रखने से बचें।
मेहनत वाले काम करते समय इन बातों का ख्याल रखें-
शारीरिक मेहनत वाले काम के अलावा खेलने व व्यायाम करने के दौरान हम तेज-तेज सांस लेने लगते हैं। ऐसे काम करते समय आपके श्वसन तंत्र में कोरोना वायरस न प्रवेश कर जाए, इसके लिए जरूरी है कि ये काम करने के लिए आप स्वच्छ व न्यूनतम लोगों वाला वातावरण चुनें। इनडोर एक्सरसाइज बेहतर विकल्प रहेगा।

The Ultimate Working From Home


The Ultimate Working From Home Guide

The work-from-home job force just got a big push from the current global corona virus pandemic. But even before COVID-19 became a factor, increasing numbers of people have been saying goodbye to their onerous commute to work. Thanks to ever-evolving technologies like Skype, Face time, Slack, Zoom, Google Meet, authenticator apps, and cloud computing—not to mention texting and email—it's no longer necessary to be in an office full-time to be a productive member of the team. In fact, many kinds of work can be done just as effectively, if not more so, from a home office.
As appealing as remote work is to employees, it wouldn’t be such a strong trend if employers didn’t also recognize benefits from their side of the desk. Companies with work-from-anywhere policies can boost employee productivity, reduce turnover, and lower organizational costs, according to recent research at Harvard Business School telecommuting workers with very complex jobs who don't require a lot of collaboration or social support can perform better than their office-based counterparts, according to another study. Also, in the event of a natural or manmade disaster, a distributed workforce is in a better position to keep operations running, even if some of the group goes offline.


KEY TAKEAWAYS

  • For employers, working from home can boost productivity; reduce turnout, and lower organizational costs, while employees enjoy perks like flexibility and the lack of a commute.
  • To work effectively from home, you'll need to make sure you have the technology you require, a separate workspace, Internet service that meets your need, a workable schedule you can stick to, and ways to connect with others.
  • Top fields for remote work include computers and IT, education and training, and healthcare; positions include customer service reps, virtual assistants, data entry and transcription, teachers, and more.
  • A variety of top firms, including Amazon, Dell, Humana, Kaplan, and Sales force, offer remote work opportunities, but it's also important to be aware of scams.

How to Work Effectively From Home

 

Whether you’re working remotely one day per week (or more) or full-time—by choice or because of a health situation or weather event—it’s important to ensure that you are set up to be productive. This includes having a designated workspace with the right technology; ways of dealing with kids, pets, and other potential disruptions; and a schedule that allows for the social contact and stimulation that ordinarily comes from being in a workplace with others. Here are strategies and tips to be successful as a remote worker.

Know the ground rules

Does your employer require a nine-to-five schedule, or is there flexibility? Are you allowed to work on public Wi-Fi? Which tech tools might you need, such as Zoom for video conferencing, Slack or Microsoft Teams for group chats, or Trello for project management?
 If you work for someone else, it's important that your employer spells out the ground rules and ensures you have the appropriate equipment, such as a laptop, as well as network access, pass codes, and instructions for remote login, including two-factor authentication. Be sure to do trial runs and work out any problems that might impede your work. If you work for yourself, you may need many of the same tools.

Set up a functional workspace

Not everyone has a designated home office, but it's critical to have a private, quiet space for your work. If you can, separate your work area from your personal spaces and use it just for work, not for other activities.

Get the internet speed you need

If you have kids, their FaceTiming and Xbox habits may slow your connection and download speeds. Moving as close as you can to your Wi-Fi router can help (devices that are distant tend to draw on bandwidth), or you can consider switching to Ethernet. You'll likely need a dongle since laptops don't have Ethernet ports these days, plus an Ethernet cable to connect your computer to your router. Wondering if your most-used website is down?

Use phone apps

If your job involves making long distance and/or international calls, Google Hangouts, WhatsApp, and Skype all let you call over the Internet across the globe on the cheap. And if you and the person you're calling are on the same service, the call will be free.

Minimize distractions

If you have a barking dog or a jack-hammering worker outside your windows, consider investing in noise-cancelling headphones, such as Apple's Air Pod Pros. And if the kids are home and you're without childcare (say, during the summer or a natural emergency), see if you and your spouse (or a neighbour in a similar situation) can take turns with care—which may mean you have to talk to your manager about working evening hours.

Plan extra social interactions

Some folks love the thought of working in solitude, but even the most introverted among us can start feeling a little claustrophobic after a few weeks at home, alone, staring at the same project for long hours. It can get lonely. Be ready for that, and try to schedule some connect-with-the-outside-world time, like a lunch date (even if you take it at 3 PM), a video chat with a friend, or an exercise class.

Pros

You are truly independent. It’s much more than just the benefit of getting to work in your pyjamas. Working from home means you’ll learn to rely on self-motivation, self-discipline, focus, and concentration.
“As you work through your career, those are really critical components for success,” says Fay. “It sounds simple and obvious but the time management and scheduling you have to do is an important skill to have.”
You can get more work done. As long as you’re not sneaking off binge Netflix, you can actually be more productive when working from home.
“For starters, the remote worker isn’t spending hours commuting,” says J.P. Giugliano, partner at talent acquisition firm Winter Wyman. In fact, when Giugliano works remotely, he says it adds three hours of stress-free productivity to his day. Plus, you won’t have the occasional annoyances of office life: interruptions, loud co-workers, chatter, et cetera.
You’ll become a communications expert. When having a quick meeting in the break room isn’t possible, you have to get up to speed on what communication tools are available, says Fay. “From texting, Skyping, emailing, web meetings—out of necessity, you become very savvy in all of those.” 

Cons

You may forget to clock out. While people might think working from home means doing less, the opposite might be true for diligent employees. “When you don’t have that separation of going to and from the office, your workday kind of blurs together into your home life,” says Fay. Feeling like you’re always “at work” could even lead to burnout.
You can feel out of the loop. You might not realize it until you’re not there, but there is a lot of casual collaboration that happens in an office, says Fay. Whether it’s picking up on the best practices of your colleagues or having an impromptu brainstorming session over lunch, it’s hard to replicate that from home.
You might not have full access to technology platforms. For the most part, cloud technology has made it easier than ever for remote workers to work from anywhere. However, Fay notes that there are situations in which data security or consumer protection concerns might prevent telecommuters from having full access.
Co-workers might accuse you of slacking. When you work from home and can’t get to a call or email right away, your co-workers may not give you as much leeway as they might if you were in the office. People might wonder if you’re taking it easy rather than pulling your weight. “Remember,” says Fay, “the onus is on the work-from-home individual to be over communicating what they’re doing and what they’re accomplishing.”

Tips for working from home

Don’t underestimate face time. Be more communicative than usual, if only to boost camaraderie. “There are fewer such opportunities for spontaneous team building when working remotely,” says Giugliano, “so it is important to be proactive in finding ways to engage your co-workers.” 
The next best thing? Pick up the phone to congratulate someone after a job well done, or the completion of a project rather than sending an impersonal email or IM, he adds.
Keep it professional. Even if you don’t have a dedicated office, try to set up a workspace and make it off limits to the rest of your household while you’re working. There’s nothing worse than being on an important work call only to have the doorbell ringing, the dog barking, and the kids screaming in the background, says Fay.
Be responsive. Get in the habit of sending a prompt reply whenever you get an email, even if it’s just to say, “Got it,” or, “I’ll get back to you by noon,” says Giugliano. And, do your best to be available for conference calls or other collaborations, even if you don’t have strict work hours.
Set specific touch points with your team. It’s smart to set a time each day/week for regular check-ins with your manager and/or your colleagues, says Fay. That will not only help you stay accountable, but it will also remind your office counterparts that you’re still an important part of the team.

 Always strive to be a better worker

To reduce the spread of COVID-19, first schools and malls shut down across the country and then businesses started asking employees to Work From Home (WFH) where possible. If you are an office worker, in tech, in tele-calling or customer service or if your entire work is on a computer, then sooner or later, your employer will move you to a WFH status. For those used to working remotely, this is not new. But if you are dealing with the situation for the first time, here’s how to master it.

1. Work area
Your first task is to create a workspace in your house that is conducive for WFH. Ideally you will work in a room by yourself behind a closed door. No roommates, no fridge and no bed to tempt you away. Invest in the right furniture to make it comfortable. A proper desk and ergonomic work chair are better than a backache triggered by working on the sofa with your laptop. Keep your desk clean and tidy. Make sure you have a wall or background that suits a Skype or v ..
2. Get organised
Get your laptop, diary, pen, cell phone and chargers in place. If you are in noisy house, invest in a noise cancellation headphone. Use a mouse for better efficiency. Figure out who will take care of the children and keep them from disturbing you with schools closed. If your spouse is on WFH too, share time slots and children related chores. Organise routines and rules for other disturbances like the maid and doorbell.



3. Block people
The biggest challenge in a WFH routine is the presence of other people at home or from your life. Block out distractions from people by agreeing on ground rules with them. Pretend you are not at home while following rigid work hours. Do not get involved in conversations, personal calls or housework. Use headphones, a hoodie or even tinted glasses to create boundaries.

4 . Calendar control
Remember you are earning a salary in your WFH situation. Stay committed to your timings and deliverables. Avoid home chores or personal appointments during working hours except during scheduled breaks. Don’t abuse WFH by being unavailable or else you will compromise your professional respect and may lose your job when your company cuts costs to deal with Corona-triggered challenges.


5. Reschedule distractions
What were harmless social media distractions at office become deadly productivity killers in a WFH where there is no team to pull you back to work. Remove social media extensions and switch off all notifications both in your laptop browser as well as on your cell phone. Switch off your mobile data and use it only for calls. Keep your coffee flask and snacks available on your desk so that you don’t get up too often.


Balance your life

 Physical boundaries
Establish rules and boundaries to protect your personal life from work that may creep into it. Do not carry work away from your desk and do not interrupt family time or social time to complete pending work. Increase your social interactions with friends to stave off loneliness and to compensate for lack of human contact.


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Work in your PJs, avoid the commute, answer emails from a hammock while sipping a pineapple daiquiri—you’ve heard the common benefits of working remotely (and yes, they’re true!). But there are some things that might surprise you about what it’s like when you don’t have to go into the office every day.
1. Your Office Can Be Any Kind
You’ll probably work from home if you work remotely. But that doesn’t mean you have to have fill a corner of your living room with a clunky desk, a huge monitor, and an ugly rolling chair. You can fit your office wherever it fits in your life. I’ve heard about a remote worker who uses her kitchen breakfast bar as a standing desk (all those health benefits with no investment!) and one who converted part of her bedroom closet into a “hidden” office so she can just shut her work away at the end of the day.
2. Your Office Can Be Anywhere—and I Mean Anywhere!
And you’re not tied to your home, either. That doesn’t mean your only other location will be the coffee shop around the corner: You can take care of your job while travelling (passengers only if you’re in the car, please!), enjoying the great outdoors (thanks to long laptop battery life and tethering to your phone), or even listening to your favourite band at a live concert (a tested and true location of a remote customer service manager I know who’s a die-hard country music fan).
3. You’ll save Money
Of course you’ll see an immediate difference in your bank account when you don’t need to bear the costs of commuting. But you’ll also find savings in other areas. You won’t have to force yourself into a suit and polished shoes anymore if that’s not your style—no more separate wardrobes for work and for the rest of your life! And you can also save on food costs since you’ll easily be able to whip up your own lunch and coffee if you work from home.
4. Your Schedule Can Be Your Own
A lot of the work that can be done remotely nowadays can also be done on a flexible schedule. For example, if you’re a web developer or a content creator, you can most likely do your coding or writing whenever it suits you as long as you meet your deadlines. So, night owls, rejoice! You can still put in your eight hours without starting at 8 AM.
If you do need to work specific hours, you’re sure to still have some break time—time you can use however you’d like! Even if you have just 10 minutes, you can do something that just wouldn’t be possible in a traditional office: bust those samba moves, play a few tunes on your guitar, or take a refreshing power nap. You’re guaranteed to come back feeling more refreshed than you would after 10 minutes at your desk surfing Facebook.

5. You Can Learn More and Become More Independent
Because you don’t have colleagues just a few feet away or a tech team one floor down, you’ll find yourself developing the skill of looking for your own answers and becoming more proactive to find what you need on your own. Of course you can still ask questions and get help if you need to. But, a lot of the time, you can do a Google search, download a free guide, or check out your company’s wiki to find the answer yourself just as quickly.
And you’ll also end up with some skills simply because you need them to work well remotely. For example, you’ll probably notice that you’re writing more clear and concise emails and being more sensitive to your team’s different schedules out of necessity once you’ve worked remotely for a while. Not bad things to be good at!

6. You Can Actually Have Enjoyable and Effective Meetings
I bet you don’t know anyone who enjoys meetings. (No amount of free coffee and donuts can make up for having to sit in a stuffy conference room next to the pen-clicking guy from sales!) When you work remotely, you’ll not only be able to choose your breakfast and your seat, but you can also be much more effective. With just a few clicks, you can have 10 people on a video call that’ll probably last just 15 minutes instead of 45. And you can use the chat function in the video call to quickly share docs (forget making copies or having everyone search their emails) or to add important comments without interrupting anyone.
7. You Can Keep in Touch More Easily—and Maybe Have Some Fun Doing It!
Most people are afraid that they’ll be lonely or left out when they work remotely. But the opposite is usually true, as there’s a huge range of communication tools for remote workers available now. Some will even let you have a little fun together with features like emojis, chat room “bots,” or silly effects in video chats. With them, you can celebrate a colleague’s birthday by putting on a virtual top hat and monocle in your Google Hangout instead of suffering through an out-of-tune round of “Happy Birthday” and a grocery store cake!

8. You Can Keep in Touch More Effectively
Because you don’t have everyone physically around you all the time, you become much more aware of the importance of keeping in touch. Instead of just knowing that you can pop around the corner to chat with Rena about the site redesign whenever you like, you know that you need to write her or at least have a video chat. So, either in the process of composing your message or planning the meeting, you’ll refine your thoughts and questions and end up saving time for both of you when you do have that discussion.
9. You Can Stay More Focused
With some willpower and a steady routine, you’ll soon learn to avoid being distracted by the TV or your next load of laundry. And, in fact, you should find yourself getting more done when you work remotely. That’s because you can control your working situation much more—you don’t have to worry about co-workers stopping by to “just ask a quick question” (and 20 minutes later...), obligatory socializing when you grab more coffee, or offending someone by shutting the door to your office. When you’re remote and need to really concentrate, you can just change your status in the group chat to “do not disturb” and buckle down.
10. You Can Avoid Office Politics
There’s the old saying about relatives that “You can’t choose your family,” and the same goes for your co-workers. You might not be best friends with everyone when you work remotely. But, because idle chatting and time just hanging around the break room isn’t possible, remote workers tend to skip the gossiping and posturing that happens in traditional work settings. And that’s a huge bonus for everyone involved, isn’t it?
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