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गुरुवार, 25 जून 2020

सृजनात्मकता

सृजनात्मकता 

 जिज्ञासु मन के विचारों को व्यवहारिक रूप प्रदान करना ही सृजन है।   वस्तुतः सृजनात्मकता  ईश्वर का उपहार है जो चिंतन को निखारता है।  यह एक प्रकार से नए रास्ते पर चलने के समान होता है।  यह ऐसी कला है जिसमें रंग- रूप,जाति , लिंग और आयु की सीमाएं नहीं होती हैं।   यह भावुक ह्रदय  की संवेदनाओं का दर्पण होता है।  इसमें किसी को नियमों या बंधनों में बाधा नहीं जा सकता।  लेखन, चित्रकारी, संगीत ,परिधान सज्जा , मूर्तिकला,पाककला  और न जाने कितनी ही विधाओं में आज सृजनात्मकता अपनी अभिव्यक्ति पा रही है।  

 आज कोरोना वायरस काल मे सृजनशील  विचारों की होड़ सी लग गई । है सृजनात्मकता किसी व्यक्ति की मनोदशा को भी दर्शाती है।  यह एक प्रकार से ध्यान, समाधि  से जुड़ जाने की ही प्रक्रिया है।  एक ही क्रिया को बारंबार एकाग्र होकर करते रहना ,आध्यात्मिक संतुष्टि देने के समान होता है।   हमें अपनी व्यस्त दिनचर्या में से तनिक समय निकालकर, किसी सृजनात्मक अभिरुचि को देना चाहिए।  इससे हमें असीम आनंद की प्राप्ति हो सकती है।  

 सृजन करने की क्षमता थोड़ी -बहुत हर किसी में विद्यमान होती है।  बस उसे खंगालने की आवश्यकता होती है।  सृजन के माध्यम से व्यक्ति सभी द्वेष दुविधाओं से मुक्त हो सकता है।  नूतनता , परिवर्तन और चिंतन एक विस्तृत फलक का निर्माण करने में सहयोगी हो सकते हैं, और तनाव कम करने में सक्षम भी।  दरअसल किसी सृजनात्मक कार्यक्रम के दौरान एक व्यक्ति अपना सभी कुछ उसी में झोंक देता है।  ऐसा लगता है कि वह अपने विचारों, भावनाओं को  कुरेदते हुए मानो  स्वयं की खोज में लगा हुआ हो।  

 हलाकि दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना सृजनात्मकता नहीं हो सकती है।  बरहाल सृजन किसी भी विधा से हो, हमारी जीवन शैली का अभिन्न अंग बन सभी को सौंदर्य से भरपूर आनंद का प्रतिभागी बना सके, हमें ऐसे प्रयास अवश्य करने चाहिए।   

सृजनात्मकता को दूसरे शब्दों में हॉबी भी कहते हैं। हॉबी  के अंतर्गत हम स्वांतः सुखाय किसी एक कला को पकड़ लेते हैं।  और उसमे अपने खाली समय को पूरी तरह देते हैं।  जिससे आनंद की प्राप्ति तो होती ही है, साथ साथ समाज को कुछ सृजनात्मक चीजें मिलती रहती हैं।  दुनिया में  कोहॉबी को विकसित करने वाले लाखों-करोड़ों लोग मिल जाएंगे।  और वह समाज को कुछ न कुछ नया और उत्तम जरूर दे रहे हैं । 


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