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शुक्रवार, 19 जून 2020

हार जीत

हार जीत

 अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित जब दो पक्ष आपस में भिड़ते हैं,तो जो मजबूत होता है वही जीतता है।  जो पक्ष कमजोर होता है, वह निश्चित ही हारता है।  जो पक्ष जीतता है, उसे खुशी का ठिकाना नहीं रहता है।  और जो हारता है, वह दुख-तनाव से ग्रस्त रहता है।  लेकिन जो असली योद्धा होते हैं, कभी भी हार-जीत से ना ही घबराते हैं और ना ही दुखी  होते हैं।  वे पराजित होने के पश्चात, अपनी कमजोरियों को खोज कर, उन्हें दूर करके, पुनः अपने अंदर मजबूती लाते हैं ,और युद्ध  का क्रम निरंतर चलाते ही रहते हैं।  जो युद्ध  करने से भाग जाता है, वह योद्धा नहीं है। 

  

इतिहास बताता है कि प्राचीन समय से ही धर्म-अधर्म की, पाप -पुण्य की, अच्छाई- बुराई  की, सत्य- असत्य की, राम- रावण की, कौरव- पांडव की, कृष्ण- कंस की लड़ाई होती आई है   जिसमें धर्म का पक्ष जीतता है।  और अधर्म का पक्ष हारता है।  सत्य की कभी भी हार नहीं होती है।  भले ही सत्य परेशान हो जाए, क्योंकि सत्य पर ही दुनिया टिकी है।  सर्वशक्तिमान प्रकृति, सत्य स्वरूप है।  वह कभी भी सत्य का पक्ष ही लेती  हैं।  सत्य का मार्ग कठिन है, पर कल्याण एवं सुख की प्राप्ति तो सत्य मार्ग पर चलने से ही संभव हो पाती है।  मनुष्य का जीवन भी एक संग्राम क्षेत्र की तरह है।  मनुष्य के अंतर्मन में पाप -पुण्य,अच्छाई -बुराई की, लड़ाई निरंतर चलती ही रहती है।  दुर्भाव - सद्भाव, दुर्गुण- सदगुण का आपसी टक्कर चलता ही रहता है। 

  अगर मन दुर्भाव  को त्यागकर सद्भाव ,दुर्गुण को त्यागकर सदगुण, पाप को त्यागकर पुण्य  असत्य को ,त्याग कर सत्य को ,अधर्म को त्याग कर धर्म को धारण कर लेता है, तो जीवन के महासंग्राम में मनुष्य की जीत अवश्य होती है।   

अगर  मन  दुर्गुण, दुर्भाव, असत्य, अधर्म को धारण किए रहता है, तो जीवन के महासंग्राम में उसकी हार होकर ही रहती है, और उसका जीवन दुखमय बना रहता  है। ऐसे व्यक्ति जीवित रहकर भी मृत ही होते हैं ,और धरती पर भार स्वरूप होते हैं।  

 किसी से वाद-विवाद में हम भले जीत जाएं, लेकिन अगले आदमी की भावना आहत होती है।  जहां तक संभव हो आदमी के दिल को प्यार की भाषा से जीतना चाहिए, ना कि वाद-विवाद की भाषा से। 


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