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बुधवार, 24 जून 2020

मृत्यु का भय


 मृत्यु का भय 

 यह अटल सत्य है कि जीवन मरण धर्मा है। भारतीय दर्शन में मृत्यु के स्थान पर मुक्ति का उल्लेख खूब मिलता है।  वास्तव में मुक्ति, देह एवं जगजीवन से विश्राम की अवस्था का दूसरा नाम है। कोरोना के चलते इस वक्त आम से खास लोगों के जीवन में मौत का खौफ पूरी तरह घर कर गया है, जिसके कारण मनुष्य की सहज प्रवृत्तियों के लगभग लोप  के साथ मनुष्यता भी खतरे में पड़ गई है। इस विपत्ति में चाह कर भी लोग अपने स्वजन, परिजन और पुरजनों की मदद करने से घबरा रहे हैं।  

 यह जो मौत का खतरा,  सोते- जागते उसका भय  मानव मन के अवचेतन में बरकरार है, वह तो मौत से भी भयावह है। मनोविज्ञानी, भय जनित रोगों की अलग ही व्याख्या करते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक मनुष्य अपना बहुत कुछ खोने के दबाव में सहमा हुआ है, भीतर  से भयभीत है। हर आदमी इसी फितरत में जीता है कि जीवन थोड़ा और खींच जाए।  यह अभिलाषा बुरी नहीं। वस्तुतः जन्म के समान ही मृत्यु अकाट्य है ,परंतु उसकी पल- प्रतिपल चिंता करना मूर्खता ही नहीं आत्मघाती भी है। शव मृत्यु की  साकार उपस्थिति है। शवदाह हेतु श्मशान लेकर जाते वक्त व्यक्ति के मन में वैराग्य भाव जाग उठता है, परंतु यह क्षणिक है.श्मशान  से वापस लौटते ही माया, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और लोभ  अपना काम फिर शुरू कर देते हैं।  बारीकी से देखा जाए तो ए भाव एक तरह से मृत्यु के ही प्रछन्न  रूप हैं। जिसमे  उलझा रह कर व्यक्ति मृत्यु से खुद को दूर ले जाने का यत्न करता रहता है।  

 आज इस दौर में जरूरत आत्मसंयम, जागरूकता, जीवनशैली में बदलाव, एवं सकारात्मक चिंतन को अमल में लाने की है। हम सब की समझदारी और संयम से यह बुरा वक्त भी कट जाएगा। ध्यान रहे हमेशा मौत से डरने वाला जीवन का लक्ष्य, सुख एवं भोग भोगने  से वंचित रह जाता है। धरती पर बोझ बनकर जीना या धरती का प्रहरी बनकर रक्षा करना है,यह चुनाव आपके ही हाथ में है। 

 कहते हैं डर के आगे जीत है।  इसका मतलब यह है कि डर डर के जीना भी कोई जीना है। आदमी को जीवन में आने वाली कठिनाइयों का निडरता से मुकाबला करना चाहिए।जिन  कठिनाइयों को हल करना अपने हाथ में है, उनके लिए पूरा प्रयास स्वयं  करना चाहिए।  जिन कठिनाइयों को हल करने के लिए हमारे निकट संबंधी मददगार हो सकते हैं, जहां तक संभव हो उनकी मदद लेनी चाहिए।  कुछ ऐसी भी कठिनाइयां होंगी जिनमें कोई भी व्यक्ति कोई हल नहीं निकाल सकता । इसको स्वीकार कर लेना है।  वह धीरे-धीरे हमारी आदत का हिस्सा बन जाएगी।  और हम आसानी से जीना सीख जाएंगे।  जीवन के यही आयाम  हमें आगे ले जाएंगे।  मौत  तो हर पल, हर पल आगे आगे है।  लेकिन जीवन में सकारात्मकता रखना भी बहुत जरूरी है।  हमें यह मानकर चलना है कि जो सामान्य औसत आयु होती है, उसे प्राप्त करने का प्रयास करना है ,लेकिन यह हमारे हाथ में नहीं है। कभी-कभी इसे भाग्य और पुरुषार्थ कह दिया जाता है।


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