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रविवार, 21 जून 2020

मानसिक स्वास्थ्य

मानसिक स्वास्थ्य

 मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना महत्वपूर्ण है।  प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ब्रॉक चिसोलं  कहते हैं कि बगैर मानसिक स्वास्थ्य के, सच्चा शारीरिक स्वास्थ्य नहीं हो सकता है।   वर्तमान में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सजगता इसलिए और आवश्यक हो गई है, क्योंकि कोरोनावायरस ने तनाव और अवसाद को भी बढ़ा दिया है। 

  मनोविज्ञानियों  तथा मनोचिकित्सकों का मानना है कि हमारे अंतर्मन में बसी बातें, जब बाहर नहीं निकल पाती या जब मन मस्तिष्क को गंभीर आहत करने वाली बातों पर उचित संवाद नहीं होता है, या सही सलाह नहीं मिल पाती है, तो वे तनाव का रूप धारण कर लेती है, और अगला पड़ाव अवसाद का आकार ले लेता है।  हमारे दैनिक जीवन की घटनाओं पर मन में अंतहीन बातें चलती रहती हैं।  उन बातों को बाहर ना निकाला जाए तो तनाव की स्थिति अवसाद  में बदल जाती है। अवसाद एक गंभीर मनःस्थिति है, जो इस बात का संकेत है कि आपका शरीर और आपका जीवन असंतुलित हो गया है। इसीलिए सबसे जरूरी है कि तनाव को खुद पर हावी ना होने दें, और अपनी समस्या मन में ही ना रखें,  बल्कि उसे अपने करीबियों से साझा करें। किसी विशेषज्ञ की सलाह भी ले सकते हैं। 


 हमारे देश में पारिवारिक और सामाजिक ताना-बाना ही कुछ ऐसा है कि यहां तनाव-अवसाद को बीमारी नहीं माना जाता,जबकि अवसाद जैसी समस्या को स्वीकारना और उसका हल खोजना छुपाने वाली बात नहीं। विडंबना की बात यह है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में ऐसी विषयवस्तु एवं पाठ्यक्रम संरचना का सर्वत्र अभाव है, जिससे व्यक्ति में स्वयं ही निराशा-अवसाद जैसे मानसिक विकारों से लड़ने की सामर्थ्य  का विकास संभव हो सके। ऐसे में हमें किशोरों और नवयुवकों के बीच मानसिक स्वास्थ्य के प्रबंधन को शिक्षा  तंत्र का हिस्सा बनाकर,कम उम्र से ही सिखाने की कोशिश करनी होगी।  इसमें योग, प्राणायाम  भी सार्थक भूमिका निभा सकता है। 

 किशोरों और नव वयस्कों को सफल होने के लिए, नंबर एक पर बने रहने के लिए बहुत दबाव होता है परिवार और समाज का।  और युवा  सफल भी होते जाते हैं।  लेकिन जीवन तो एक बहती दरिया जैसा है,उसमें उछाल ,ऊंच-नीच आता रहता है।  और हमेशा सफल रहने वाला व्यक्ति यदि कभी असफल हो जाए या कोई ऐसी समस्या आ जाए, जिसका वह निराकरण नहीं कर पाता है, तो इसके बारे में उसका मन मस्तिष्क प्रशिक्षित नहीं होता, कि वह असफलता को कैसे ले अपने जीवन में।  और कैसे जिए, इसलिए वह अवसाद ग्रस्त हो जाता है।  और कई बार अपने प्राण भी अंत कर लेता है।  लेकिन यह स्थिति बिल्कुल वांछनीय नहीं है। बल्कि हमें अपने युवाओं के मानसिक प्रशिक्षण में असफल होने की स्थिति मे भी जीने का तरीका सिखाना होगा, ताकि बहुमूल्य जीवन का कोई तनाव-अवसाद की वजह से अंत न करें। 


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