इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

शनिवार, 27 जून 2020

अनंत आनंद

अनंत आनंद

 अनंत-आनंद की खोज में जब मनुष्य ने परम पुरुष की ओर चलना शुरू किया, तब वह अध्यात्म के संपर्क में आया। अध्यात्मिकता जब ससीम  के संपर्क में आती है, तब इसी के माध्यम से ससीम भी असीम के संपर्क में आता है।  ससीम और असीम का यह मिलन ही योग कहलाता है।  इस असीम को पाने के लिए और अपनी असीमित क्षुधा की तृप्ति के लिए, एक साधक जब उस अनंत की ओर चलना शुरू करता है तब उसी को योग कहा जाता है।   संस्कृत  में योग का अर्थ है जोड़ना जैसे 2 + 2 = 4 होता है, वैसे ही ब्रह्म प्राप्ति के लक्ष्य को पाने वाले साधक के लिए योग मात्र इस तरह का जोड़ नहीं होता है। 

 वहां योग का अर्थ है ‘एकीकरण’।  किस तरह का एकीकरण। चीनी और पानी के एकीकरण जैसा।  जोड़ में प्रत्येक वस्तु अपना अलग अस्तित्व और अपनी अलग पहचान रखती है।  जैसे दो चीजों को जोड़ने के बाद भी उसकी अलग पहचान और अस्तित्व बना रहता है। जोड़ने के पहले भी और जोड़ने के बाद भी, लेकिन एकीकरण के मामले में ऐसा नहीं होता।  चीनी के पानी में मिल जाने के बाद उसकी अपनी अलग पहचान नहीं रह पाती है, क्योंकि चीनी पानी में घुलकर वह पानी के साथ एकाकार हो गया। यही एकीकरण है।  योग का तात्पर्य भी इसी तरह का एकीकरण है। अर्थात चीनी और पानी मिलकर एक हो गए।   दो और दो जोड़  की तरह या जोड़ना नहीं हुआ। 


 योग के इसी आरंभिक बिंदु से शुरू होती है असीम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए महान यात्रा।  वृहद के आकर्षण को लक्ष्य कर चलने की गतिशीलता, मनुष्य को परम पुरुष के साथ एकाकार कर देती है।  जिनका आसन मानव अस्तित्व के उच्चतम बिंदु के भी ऊपर है।  परम तत्व के साथ एकात्म होने के लिए और उनकी यह जो गतिधारा है, बृहद के साथ क्षुद्र के मिलन का यह जो प्रयास है, यही है योग का योग के पथ। योग के पाथ  का अनुसरण करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें