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रविवार, 21 जून 2020

चरित्र सृजन

चरित्र सृजन


 जिंदगी भर की छोटी-छोटी, अच्छी -बुरी आदतें हमारे चरित्र का सृजन करती है।  जिस प्रकार बूंद -बूंद से सागर तो बनता है, लेकिन कुछ बूंदों को सागर नहीं कह सकते हैं।  जिस प्रकार

बिंदु -बिंदु से चित्र बनता है, लेकिन सिर्फ कुछ बिंदुओं के संकलन को चित्र भी नहीं कह सकते, ठीक उसी प्रकार चरित्र सृजन  भी सिर्फ कुछ अच्छी आदतों से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए सतत प्रयत्न करते हुए, अच्छी आदतों और अच्छे कार्यों के अनंत बिंदुओं का अनवरत संकलन करना आवश्यक होता है। इन्हीं बिंदुओं को संयोजित करके, समायोजित करके, सुंदर तस्वीर बनाने की सफल प्रक्रिया ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है।  

 ध्यान रहे कि व्यक्तित्व अगर वट वृक्ष है,तो चरित्र उसे मजबूती और दीर्घ जीविता प्रदान करने वाली  जड़े।   हमारी सफलता और असफलता के निर्धारण में अदम्य एवं आकर्षक व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण योगदान होता है।  इसीलिए यह कहना तर्कसंगत है कि व्यक्ति की सफलता में चरित्र निर्माण नींव की ईंट  का काम करता है।  चरित्र निर्माण से ही भाग्य का निर्माण होता है।  कई बार हमारे जीवन भर के कार्य और हमारी आदतें हमारे भाग्य का सृजन कुछ इस प्रकार कर देती हैं, की चाह कर भी उसे बदल पाना हमारे वश में नहीं रह जाता, और फिर इस परिस्थिति में हम भगवान को यह कह कर कोसने लगते हैं कि मेरा तो भाग्य खराब है। 

  अगर हमें यह  एहसास हो जाए कि अपने अच्छे कर्मों और अपनी अच्छी आदतों के द्वारा सृजित हमारा चरित्र और व्यक्तित्व ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं, तो यह समझने में जरा भी देर नहीं लगेगी कि हमारे भाग्य के भाग्य विधाता तो हम खुद हैं, कोई और नहीं।  अपने संचित कर्मों की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए हमें अपने भाग्य के लिए भी खुद को जिम्मेदार मानना चाहिए और यह दृढ़ विश्वास रखना चाहिए कि अपने हाथ की रेखाओं के रचनाकार हम हैं ,कोई अदृश्य शक्ति नहीं। 

 हमें अपने जीवन को सफल और उत्तम बनाने के लिए खूब परिश्रम करना चाहिए, उत्तम साधनों का इस्तेमाल करना चाहिए , तभी आने वाला जीवन स्वर्णिम हो सकता है। 



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