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शुक्रवार, 26 जून 2020

एकांतवास

एकांतवास 
हमारी आध्यात्मिक विरासत में एकांतवास का विशेष महत्व है। एकांतवास शब्द का साधारण अर्थ है, अकेले रहना। हमारे जीवन में कुछ समय भौतिक  जंजाल एवं दुनियादारी से पृथक होकर रहना ही एकांतवास है। इस संसार में रहते हुए कई बार मनुष्य के जीवन में ऐसा समय भी आता है, जब वह शारीरिक व्याधि या मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाता है।  इस मानसिक अवसाद एवं शांति का समाधान एकांतवास है। 
 एकांत मनुष्य की प्रतिभा एवं सृजन शक्ति को जागृत करता है।  अनेकों साहित्यकारों एवं वैज्ञानिकों ने एकांत में रहकर ही  संसार को महान रचनाएं एवं सिद्धांत प्रदान किए। आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से एकांतवास बहुत लाभकारी है। एकांत में ही स्वयं का सूक्ष्मता के साथ आकलन एवं निरीक्षण किया जा सकता है।  जो मनुष्य को भौतिकता  के दल-दल में धकेलती है, एकांत इन इंद्रियों की तृष्णा को समाप्त कर देता है, जिससे मनुष्य की अंतर्मुखी वृत्ति  बन जाती है।  यही अंतर्मुखी वृत्ति साधना के मार्ग को प्रशस्त करती है। संसार की भीड़ में रहते हुए मनुष्य चाह कर भी अपनी मानसिक पीड़ा एवं तनाव को कम नहीं कर सकता।  संसार के भौतिक विषयों का आकर्षण बड़ा प्रबल होता है। विषयों का यह आकर्षण मनुष्य की मानसिक शक्तियों की एकाग्रता में सबसे बड़ी बाधा है। 
चिंतक ओशो कहते हैं कि आप शाम के समय अंधेरा  करके कमरे में अकेले आँखें बंद करके कुछ  समय के लिए बैठ जाओ।  आपका मन बहुत तेजी से आगे का भागेगा . लेकिन आप उसके पीछे मत दौड़ो , मत भागो ।  आप सिनेमा हॉल में बैठे हुए दर्शक की तरह मन को  भागते हुए  देखो।  और आपके विचारों की प्रबलता धीरे-धीरे कम होने लगेगी । और आपका मन शांत होने लगेगा। उसके  बाद आप अंतःकरण की गहराइयों में उतरने लगेंगे।  फिर आपकी पुरानी यादें एक-एक करके निकलने लगेंगी ।  यह प्रक्रिया कई दिनों तक लगातार और महीनों तक जारी रखा जाए, तो पुरानी यादें एक-एक करके उभरती  हैं, और मन के परिदृश्य से ग़ायब होने लगती हैं।  और एक समय ऐसा आता है, आपका मन   विचार शून्यता  की तरफ बढ़ने लगता है।  और यह विचारशून्यता , जितनी लंबी होती जाती है।  आपका मन उतना ही शांत होता जाता है।  और एक ऐसा समय आएगा जब आप सहज समाधि में चले जाते हैं।  और जब  आप निकलते हैं  इस सहज समाधि से ,तो आपको पता नहीं होता कि कितना वक्त बीत चुका है आपके बैठे हुए।  साधक को यह प्रयास अवश्य करना चाहिए। 
एकांत में ही स्वयं की स्वयं से मुलाकात होती है। एकांतवास मनुष्य की बिखरी  हुई अंतःकरण की शक्तियों को नई ऊर्जा प्रदान करके, एकाग्रता प्रदान करता है।  मन में उठने वाली तामसिक विचारों की लहरों को एकांतवास शांत कर देता है।  चिंतन ,प्रतिभा एवं नव सृजन का मार्ग एकांतवास से ही खुलता है।  हमारे चिंतकों का भी यही संदेश था, कि सर्वप्रथम स्वयं को एकांत में साथ हो साधो । आत्म निरीक्षण करते हुए शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम बनो।  मानसिक और आत्मिक रूप से सक्षम मनुष्य ही इस संसार रूपी सागर को सफलतापूर्वक पार कर सकता है। 

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