आध्यात्मिक प्रेम
जीवन में खुश रहने के लिए यह आवश्यक है कि हम स्थाई प्रेम से भरपूर रहे। सदा- सदा का प्रेम केवल प्रभु और प्रकृति का प्रेम है जो कि दिव्य एवं आध्यात्मिक है। जब हम इस संसार में दूसरों से प्रेम करते हैं, तो हम इंसान के बाहरी रुप पर ही केंद्रित होते हैं। और हमें जोड़ने वाले आंतरिक प्रेम को भूल जाते हैं। सच्चा प्रेम तो वह है जिसका अनुभव हम दिल से दिल तक, और आत्मा से आत्मा तक करते हैं। बाहरी रूप तो एक आवरण है, जो इंसान के अंदर में मौजूद सच्चे प्रेम को ढक देता है। मान लीजिए कि आपके पास खाने के लिए कुछ अनाज है। अनाज प्लास्टिक की थैली में लपेटे जा सकते हैं, और डिब्बे में भी। हम उस थैली या डिब्बे को नहीं , बल्कि उसके अंदर मौजूद अनाज को खाना चाहते हैं। इसी तरह जब हम किसी इंसान से कहते हैं कि ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूं’ तो हम उस व्यक्ति के सार रूप से प्रेम प्रकट कर रहे होते हैं। बाहरी आवरण या हमारा शारीरिक रूप वह नहीं जिसे हम वास्तव में प्रेम करते हैं। वास्तव में हम उस व्यक्ति के सार से प्रेम करते हैं, जो कि उसके भीतर मौजूद है।
हमारे जीवन का उद्देश्य ही यही है, कि हम अपने सच्चे आध्यात्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाए, और फिर अपनी आत्मा का स्वरूप अनुभव कर पाए और फिर अपनी आत्मा का मिलाप करके उसके स्रोत परमात्मा में करा दें। जब हमारी आत्मा अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति एवं श्रुति के साथ जुड़ने के लायक बन जाती है। तब हम अपने सच्चे आध्यात्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाते हैं। फिर गुरु के मार्गदर्शन में नियमित ध्यान, अभ्यास करते हुए हमारी आत्मा अध्यात्मिक मार्ग पर प्रगति करती जाती है, और अंततः परमात्मा में जाकर लीन हो जाती है। आइए हम सभी अपने बाहरी शारीरिक रूप की ओर से ध्यान हटाए और सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव करें, तभी इस मानव चोले में आने का हमारा लक्ष्य पूर्ण होगा, और हम सदा -सदा के लिए प्रभु में लीन होने के मार्ग पर अग्रसर हो पाएंगे. इसके लिए हमें एकांतवास का मार्ग अपनाना पड़ेगा, रोज समय निकालकर आधा घंटे के लिए ही सही एकांत वास में बैठने का प्रयास करें। अपने को प्रकृति से जोड़ने का प्रयास करें।आप पाएंगे कि आपका मन विश्राम पाएगा और मन की सृजनात्मकता और बेहतर हो जाएगी,और आत्मिक प्रगति का मार्ग दिखने लगेगा ।
मंगलवार, 30 जून 2020
आध्यात्मिक प्रेम
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