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रविवार, 28 जून 2020

अवसाद से मुक्ति

अवसाद से मुक्ति 

 अवसाद में व्यक्ति स्वयं की शक्तियों पर विश्वास करना छोड़ देता है।  वह अपने आप को पराजित सा महसूस करने लगता है।  यही पराजय का भाव उसके भीतर नकारात्मकता का ज्वार पैदा करने लगता है। उसे सब कुछ व्यर्थ लगने लगता है। 

 वह एकाकी  अनुभव करने लगता है। उसे अकेलापन अच्छा लगता है।  लेकिन यही एकाकीपन उसे भीतर से कमजोर करने लगता है,वह स्वयं पर नियंत्रण खोने लगता है।  ऐसी स्थिति उसके मानसिक संतुलन को प्रभावित करती है। वह असफलताओं पर अधिक केंद्रित होने लगता है।  अवसादग्रस्त व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा होने क्षीण होने लगती है। 

आज के इस प्रतिस्पर्धी दौर में अधिकांश लोग कम समय में बहुत ज्यादा पाने की लालसा रखते हैं। यही लालसा ,लालच में बदलने लगती है जो कई दुस्प्रवृत्तियों  को जन्म देती है।  इससे हमारे भीतर के गुण शनै -शनै  छीण  होने लगते हैं।  परिणाम स्वरूप अवसाद के काले बादल हमें घेरने  लगते हैं।हम सदैव कुछ बुरा होने की आशंका से भयाक्रांत रहने लगते हैं। भय  का वह  आवरण हमारे व्यक्तित्व पर ग्रहण लगाने लगता है। 

वर्तमान समय में मनोचिकित्सक  अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक सलाह हेतु कुछ प्रश्नों या सुझाव को देने से मना करते हैं।  जैसे कि हम यह कहें कि आप बहुत मजबूत हैं ,और आप बहुत जल्दी अपने को ठीक कर लेंगे।  इससे अवसाद ग्रस्त व्यक्ति अपने को  मजबूत महसूस करके,और किसी को अपनी कठिनाइयां नहीं बताना चाहता तो, वह अपनी बीमारी को बढ़ा लेता है।  अगर हम उसे कमजोर कहेंगे तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप वह अपनी कठिनाइयां बयां करेगा, और कोई ना कोई उसका उपाय निकल आएगा। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को यह कहना कि आप बाहर निकलो सैर पर जाओ, लोगों से मिलो,क्योंकि वह बहुत कम ऊर्जा में है।  इसलिए उसके लिए ऐसा करना शायद असंभव हो। बेहतर होगा कि उसके पास जाएं, और किसी तरीके से उसको साथ लेकर निकले।  अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की नकारात्मक बातों को सुने। उसे ऐसा ना बोले कि तुम नकारात्मक  मत सोचो, नकारात्मक मत बनो।  इससे वह ज्यादा निराश बनेगा।  बल्कि उसकी नकारात्मक बातों को सुनकर उसे खाली करना चाहिए। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को यह कहना कि आप नींद लो,अच्छा भोजन खाओ, कुछ अच्छा पॉजिटिव सीरियल या फिल्म या टॉक देखो।  लेकिन वह तो पहले से ही अपनी  रुचि खो  चुका है।  किसी भी अच्छी चीज के लिए कहने से वह अपराध बोध से ग्रस्त हो सकता है।  इसलिए उसका व्यक्तिगत साथ देना, और उसके साथ फिल्म देखना,बोलना, बातचीत ,उसे बेहतर महसूस करा सकता है। 

अवसाद को मात देने के लिए हमें स्वयं से भी संवाद की आवश्यकता होती है।  हम जितना स्वयं से भागने को तत्पर होंगे उतना ही परेशानी के भंवर में फंसते चले जाएंगे।  हमें अपनी शक्तियों पर विश्वास करना ही पड़ेगा।  तभी हम इसे मात दे सकते हैं।  अपनों से अपनत्व, तो मित्रों से निरंतर संवाद ,छोटी-छोटी बातों में प्रसन्नता खोजना,खुलकर हंसना भी अवसाद के शत्रु हैं। अगर हम इन सभी से मित्रता कर ले तो अवसाद निष्प्रभावी हो जाएगा।  अपने भीतर की आध्यात्मिक चेतना को जागृत कर अवसाद के असुर का वध संभव है।  अगर हम थोड़ा सा समय स्वयं के लिए निकालें तो हर परिस्थिति से मुस्कुरा कर लड़ सकते हैं।  याद रखें कि तनाव जैसी स्थिति को पैदा कर मनोविकारों को जन्म देना उचित नहीं है। 


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