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सोमवार, 23 अगस्त 2021

 

मेघा रे मेघा

                        


                                  भानु प्रकाश नारायण

                            मुख्य यातायात निरीक्षक

       कालिदास संस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार थे। कालिदास ने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की कालिदास अपनी अलंकार युक्त सुंदर सरल और मधुर भाषा के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं कालिदास ने मेघदूत  में बादलों का जितना खूबसूरत वर्णन किया है वैसा शायद ही किसी ने किया हो ।

मेघदूत खण्डकाव्य

कालिदास का मेघदूत हालांकि छोटा.सा काव्य.ग्रन्थ (खण्डकाव्य) है किन्तु इसके माध्यम से प्रेमी के विरह का जो वर्णन उन्होंने किया है उसका अन्य उदाहरण मिलना असंभव है।

 कालिदास ने जब आषाढ़ माह के पहले दिन आकाश पर मेघ उमड़ते देखे तो उनकी कल्पना ने उड़ान भरकर उनसे यक्ष और मेघ के माध्यम से विरह.व्यथा का वर्णन करने के लिए मेघदूत की रचना करवा डाली।

 मेघदूत के दो भाग हैं-.पूर्वमेघ और उत्तरमेघ।

 

साहित्य और वर्षा

        आसमान पर इठलाते काले बादल बारिश की आस वाली आंखों को उम्मीद देते है तो रिमझिम फुहारों का एहसास मन को सुकून। इनसे किसानों के चेहरों से चिंता वाली लकीरें धुलकर खुशियां खिल जाती हैं। तो खेतों की तपती दोपहरी में लहलहाती फसलों की हरियाली वाली तस्वीर उभरने लगती है। अपने अंदर बारिश की बूंदों को समेटे ये मंडराते हुए मेघ कुछ के लिए राहत तो कुछ के लिए मोहब्बत का पैगाम लाते हैं। कुछ के लिए बचपन की तो कुछ के लिए जवानी की अल्हड़ यादें लाते हैं। प्रेमी से दूर प्रेयसी के विरह की तपिश और बढ़ाते हैं तो कभी दोस्त . सखा बनकर सन्देश पहुंचाते हैं।

    ज़िन्दगी के हर कोने को छूने वाले इस मेघ और बारिश की बूंदो से साहित्य भी खूब सराबोर हुआ है।

       आइये मेघों वाले इस मौसम का स्वागत एक अलग अंदाज में करते हैं-

  बादलों की महिमा मेघ बरसाने से पहले और बरसाने के बाद क्या होती है। इसका जिक्र अलग.अलग भाषाओं के साहित्यकारों ने किया है। आज हम आपको महाकवि कालिदास द्वारा रचित खण्डकाव्य मेघदूत  के बारे में बताने जा रहे हैं।  पहले के जमाने में संचार के साधनों में पशु.पक्षी समेत कई चीजें आती थी इसलिए विरही यक्ष का संदेश.वाहक कवि कालिदास ने मेघ को बनाया जिसमें विरह.व्यथा के मार्मिक वर्णन का प्राकृतिक चित्रण भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। मेघदूत में कालिदास ने मेघ (बादल) का जितना खूबसूरत वर्णन किया है उतना शायद ही कोई और कर पाया हो।

जाने इसकी कहानी

   अलका नगरी के राजा धनराज कुबेर अपने सेवक यक्ष को कर्तव्यहीनता के कारण एक साल के लिए नगर. निष्कासन का शाप दे देते हैं।  दरअसल कुबेर शिवभक्त होते हैं और वह रोज शिव की पूजा करते वक्त 100 कमल का फूल उन्हें चढाते हैं।  एक दिन वह 99 फूल चढ़ाने के बाद जैसे ही 100वें श्लोक का उच्चारण करते हुए फूल के लिए हाथ बढाते हैं तो उन्हें 100वां कमल का फूल नहीं मिला।  इस कारण वह क्रोधित हो गए।  उनकी पूजा अधूरी रह गई।  यक्ष से पूछने पर उसने बताया कि एक फूल उसने अपनी पत्नी के जूड़े में लगा दिया था।  बस इसी के बाद कुबेर ने यक्ष को एक साल अपनी पत्नी से अलग रहने का शाप दिया।

         इसके बाद यक्ष अलका नगरी से सुदूर दक्षिण दिशा में रामगिरि के आश्रमों में जाकर रहने लगता है । यक्ष ने जैसे.तैसे 8 महीने का समय तो निकाल लिया लेकिन अपनी पत्नी से विरह का दुख उसे आषाढ़ मास के पहले दिन रामगिरि पर एक मेघखण्ड को देखते ही होने लगा।  यक्ष अपनी पत्नी यक्षी की याद से व्याकुल हो उठता है।  विरही यक्ष अपनी प्रियतमा के लिए छटपटाने लगता है और फिर उसने सोचा कि शाप के कारण तत्काल अल्कापुरी लौटना तो उसके लिए संभव नहीं है।  इसलिए क्यों न संदेश भेज दिया जाए।  कहीं ऐसा न हो कि बादलों को देखकर उनकी पत्नी विरह में प्राण दे दे और फिर उसने बादलों द्वारा अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजने का निर्णय किया।

      इसके बाद रामगिरि से विदा लेने का अनुरोध करने पर यक्ष मेघ को रामगिरि से अलका तक का रास्ता सविस्तार बताता है।  मार्ग में कौन.कौन से पर्वत पड़ेंगे जिन पर कुछ क्षण के लिए मेघ को विश्राम करना है । कौन.कौन सी नदियां जिनमें मेघ को थोड़ा जल ग्रहण करना है और कौन.कौन से ग्राम अथवा नगर पड़ेंगे जहां बरसा कर उसे शीतलता प्रदान करना है या नगरों का अवलोकन करना है।  इन सबका उल्लेख करता है।  इसी उल्लेख में कालिदास ने यक्ष के माध्यम से बादलों का सबसे खूबसूरत चित्र खिंचा है।

मेघ का और बरसात के बाद के दृश्य का बेहतरीन चित्रण

कालीदास ने मेघ का यक्ष के शब्दों में बखूबी वर्णन किया है । यक्ष बादलों से कहता है - हे मेघ जब तुम आकाश में उमड़ते हुए उठोगे तो प्रवासी पथिकों की स्त्रियां मुंह पर लटकते हुए घुंघराले बालों को ऊपर फेंककर इस आशा से तुम्हारी ओर टकटकी लगाएंगी कि अब प्रियतम अवश्य आते होंगे। तुम्हारे घुमड़ने पर कौन.सा जन विरह में व्याकुल अपनी पत्नी के प्रति उदासीन रह सकता है। यदि उसका जीवन मेरी तरह पराधीन नहीं है।

वही बारिश होने के बाद क्या.क्या होगा इसका बहुत खूबसूरत वर्णन किया गया है। बरसात होने पर क्या होगा इसके बारे में यक्ष बताता है। पुष्पित कदम्ब को भ्रमर मस्त होकर देख रहे होंगे। पहला जल पाकर मुकुलित कन्दली को हरिण खा रहे होंगे और गज प्रथम वर्षाजल के कारण पृथिवी से निकलने वाली गन्ध सूंघ रहे होंगे.। इस प्रकार भिन्न.भिन्न क्रियाओं को देखकर मेघ के गमन मार्ग का स्वत.अनुमान हो जाता है। प्रकृति से मनुष्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है। यही कारण है कि वह मनुष्य के अंतकरण को प्रभावित करती है।

यक्ष पहाड़ों से निकलने वाले बादल का बहुत खूबसूरत वर्णन करता है और कहता है जब काले बादल उन पहाड़ों में दिखते हैं तो कृष्ण की छवी बन जाती है। यक्ष कहता है- हे मेघ जब तुम उन पहाड़ों से निकलोगे तो तुम्हारा सांवला शरीर और भी अधिक खिल उठेगा। जैसे झलकती हुई मोरशिखा से गोपाल वेशधारी कृष्ण का शरीर सज गया था।

वर्षा ऋतु का इतंजार सबसे ज्यादा किसानों को होता है और इसको बखूबी कालीदास ने यक्ष के जरिए बताया है। यक्ष बादलों से माल क्षेत्र के पठारी ;बुन्देलखंड के इलाकों पर बरसने को कहता है जहां किसान ने फसल बोने के लिए जोती हुई खेत में बरसात का पानी गिरने का इंतजार कर रहा हो। यक्ष कहते हैं-हे मेघ खेती का फल तुम्हारे अधीन है . इस उमंग से ग्राम.बधूटियां भौंहें चलाने में भोले पर प्रेम से गीले अपने नेत्रों में तुम्हें भर लेंगी। माल क्षेत्र के ऊपर इस प्रकार उमड़.घुमड़कर बरसना कि हल से तत्काल खुरची हुई भूमि गन्धवती हो उठे।

यक्ष मेघ को उत्तर दिशा उज्जैन के महलो में ठहरने को कहते हैं और साथ ही कहते हैं कि बरसात में उस नगर की स्त्रियों के नेत्रों की चंचलता को न देखा तो ठगा हुआ महसूस करोगे। वह कहते हैं- उज्जयिनी के महलों की ऊंची अटारियों की गोद में बिलसने से विमुख न होना बिजली चमकने से चकाचौंध हुई वहां की नागरी स्त्रियों के नेत्रों की चंचल चितवनों का सुख तुमने न लूटा तो समझना कि ठगे गए। वहां घरों के पालतू मोर भाईचारे के प्रेम से तुम्हें नृत्य का उपहार भेंट करेंगे। वहां फूलों से सुरभित महलों में सुन्दर स्त्रियों के महावर लगे चरणों की छाप देखते हुए तुम मार्ग की थकान मिटाना.

बड़ा आदमी


    यह एक ऐसा शब्द है जिसे हम सभी अपने बचपन से सुनते आए हैं। बड़ा आदमी बनो का आशीर्वाद बचपन में प्रिय माना जाता है। कुछ बड़े होने पर भी यह माता-पिता का सपना बन जाता है। उस आशीर्वाद और सपने को मनुष्य जीवन भर बिहारी बोस की तरह अपने कंधों पर ढोता रहता है। उसे लगता है कि इस दौड़ में शामिल रहना चाहिए, भले ही कितना पीछे क्यों ना हो। जिसके पास धन है वह बड़ा आदमी है। जिसके पास बल और अधिकार है वह बड़ा आदमी है। प्रश्न पैदा होता है कि क्या बड़ा हो जाना ही मानव जीवन की सार्थकता है? यदि किसी के पास धन शक्ति और अन्य संबंध नहीं है तो क्या उसे छोटा मान लिया जाना चाहिए? या छोटा होना अयोग्यता है? दरअसल बड़ा होना नहीं, खरा होना मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए। बड़ा बनने के लिए बाहृय आधार चाहिए। खरा बनने के लिए अंतर का उन्नयन चाहिए। भीतर की अशुद्धियां जितनी निकलती जाती है, सोना उतना ही खरा होता जाता है । शुद्धता ही सोने का मूल्य है। मनुष्य के अवगुण छूटते जाएं, गुण समाते जाएं उनसे ही उसकी श्रेष्ठा तय होती है। मोंगरे के फूल बहुत छोटे होते हैं, किंतु सिंगार उन्हीं से किया जाता है। चमेली के फूल स्वयं ही नहीं महकते, अपने आस-पास को भी सुगंध से भर देते हैं। कोई महल बहुत बड़ा और सुंदर होने से ही आदरणीय नहीं हो जाता। एक छोटे से मंदिर में यदि आराध्य की मूर्ति स्थापित हो तो शीश झुकाने वालों की कतार लग जाती है। वह मंदिर विशाल महल से भी अधिक विशालता पा जाता है।

    जो बड़ा माना जाता है, वह गर्व का अनुभव करता है। यह गर्व कब अहंकार में बदल जाता है उसे पता ही नहीं चलता। अहंकार आते ही बड़ा होना एक रोग बन जाता है, जो मानव जीवन को पतन की ढलान पर ढाल देता है। जाहिर है बड़ा बन जाना सरल है, किंतु बड़ा बने रहना एक बड़ा संघर्ष है। स्पष्ट है कि बड़ा होना पल भर का छलावा है। आंतरिक शुद्धता पाना ही जीवन में ऊंचा उठना है।


मंगलवार, 17 अगस्त 2021

सफलता- असफलता

 

सफलता- असफलता

     सफलता सामान्‍यत: एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे प्राय: प्रत्‍येक व्‍यक्ति प्राप्‍त करना चाहता है। कुछ लोग तो इसे थोड़े ही समय में प्राप्‍त कर लेते हैं, जबकि कई लोगों को इसे प्राप्‍त करने में बहुत लंबा समय लगाना पड्ता है। वहीं समुचित प्रयासों के अभाव में अनेक लोग लगातार असफल ही होते जाते हैं। यह एक ऐसा विषय है, जो प्राय: प्रत्‍येक व्‍यक्ति को सोचने पर मजबूर करता है। इस संदर्भ में उपनिषद का एक प्रसंग हमारा मार्गदर्शन करने में सक्षम है। जब व्‍यक्ति अपनी पीड़ा पर ध्‍यान केंद्रित करता है तो उसकी पीड़ा लगातार बढती जाती है। एक समय ऐसा आता है, जब उसे पीडि़त कहलाना अच्‍छा लगने लगता है। वहीं यदि व्‍यक्ति अपनी पीड़ा के बजाय उससे होने वाले अनुभवों पर ध्‍यान केंद्रित करता है तो उस संदर्भ में व्‍यक्ति के मन और मस्तिष्‍क विकसित होते हैं, जिसके परिणामस्‍वरूप पीड़ा लगातार गौण होती जाती है।

     ठीक इसी प्रकार व्‍यक्ति सफलता के बजाय असफलता पर अपना ध्‍यान केंद्रित करने लगता है, तब उसे चारों तरफ सिर्फ असफलताएं ही दिखाई पड़ती है। इस प्रकार धीरे धीरे उसके जीवन से खुशियां समाप्‍त होने लगती है। वह प्राय: उदास, निराश और हताश रहने लगता है। तत्‍पश्‍चात उसके जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब वह असफलताओं के लिए व्‍यक्तियों एवं परिस्थितियों को ही दोषी ठहराने लगता है।

     इसका तात्‍पर्य यह है कि उसने ध्‍येय यानी सफलता को प्राप्‍त करने के प्रयास या तो कम कर दिया है अथवा छोड़ दिए हैं । ऐसा इसलिए होता है, क्‍योंकि व्‍यक्ति मान चुका होता है कि सफलता जैसी चीज उसके लिए बनी ही नहीं है। फिर वह असफलता का ही महिमामंडन करने लगता है। ऐसा वस्‍तुत: गलाकाट प्रतिस्‍पर्धा के कारण व्‍यक्ति के मन में सफलता को लेकर उत्‍पन्‍न शंका, भय और उससे उपजी असुरक्षा की भावना के कारण होता है, जो कि सफलता की राह में सबसे बड़ा अवरोध है।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

क्षमा

    जब हम कभी छुट्टियों का आनंद ले रहे होते हैं तब हम ज्यादा से ज्यादा समय अपने परिवार,  प्रियजनों के साथ बिताते हैं। उस समय हमारा पूरा ध्यान खुशी, प्रेम और उनकी देखभाल पर केंद्रित होता है। इस प्रेम और खुशी के माहौल को हमें अपने परिवार और मित्रों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि समस्त संसार को प्रभु का एक फोटो मानते हुए सभी में इसे बांटना चाहिए।

     संसार में उथल-पुथल मची हुई है अशांति और हिंसा घटनाएं तेजी से बढ़ रही है कई बार लोगों को दुख में गिरा देकर हम भीतर से भर जाते हैं। ऐसे समय में हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि यह सब झगड़े फसाद संघर्ष इंटरव्यू दादी खत्म हो दरअसल इन सभी समस्याओं का समाधान कहीं बाहर नहीं बल्कि हम सबके भीतर मौजूद है। अगर हम में से प्रत्येक अपने अंतर में ध्यान अभ्यास द्वारा शांति को प्राप्त कर ले तब हम इन और उम्र में भी फैला सकेंगे। इससे हम में से प्रत्येक व्यक्ति शादी का एक प्रकाश तक बन जाएगा और फिर धीरे-धीरे संपूर्ण इसने सुख शांति फैल जाएगी।


    संसार में शांति फैलाने के तरीकों में से एक है क्षमा। इसके लिए हमें बदले की भावना से ऊपर उठना होगा दूसरों की गलतियों को माफ करना सीखना होगा। संसार की की बहुत समस्याएं बदले की भावना से शुरू होती हैं। इसमें एक व्यक्ति दूसरे को दुख पहुंचाता है और दूसरा व्यक्ति उससे बदला लेना चाहता है। यह चक्र लगातार चलता रहता है। जब तक प्रतिशोध की भावना खत्म नहीं होगी और हम दूसरों को माफ करना नहीं सकेंगे, तब तक विश्व में शांति की कामना नहीं कर सकते। प्रतिशोध की भावना को केवल क्षमा द्वारा ही खत्म किया जा सकता है। ऐसा होने पर संसार में प्रेम और शांति का जीवन फिर से लौट सकता है। आइए शमा के संग उनको हम अपने भीतर धारण करें, ताकि यह संसार शांति और प्रेम से भर जाए।



गुरुवार, 5 अगस्त 2021

अहंकार और संस्कार

 


अहंकार स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानने के कारण उत्पन्न हुआ एक व्यवहार है। यह एक ऐसा मनोविकार है जिसमें मनुष्य को ना तो अपनी त्रुटियां दिखाई देती हैं और ना ही दूसरों की अच्छी बातें। शांति का शत्रु है अहंकार। जब अहंकार बलवान हो जाता है तब वह मनुष्य की चेतना को अंधेरे की परत की तरह घेरने लगता है। भगवान कृष्ण ने गीता में अहंकार को आसुरी प्रवृत्ति माना है, जो मनुष्य को निष्पक्ष एवं पाप कर्म करने की ओर अग्रसर करता है। जिस प्रकार नींबू की एक बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है उसी प्रकार मनुष्य का अहंकार अच्छे से अच्छे संबंधों को भी बर्बाद कर देता है। हमारे मनीषियों ने अधिकार को मनुष्य के जीवन में उन्नति की सबसे बड़ी बाधा माना है। अहंकारी मनुष्य परिवार और समाज को अधोगति की ओर ले जाता है।


इसके विपरीत संस्कार मनुष्य को पुनीत बनाने की प्रक्रिया है। श्रेष्ठ संस्कार हमें मन, वचन, कर्म से पवित्रता की ओर ले जाते हैं। यह हमारे मानसिक धरातल को दिव्य प्रवृत्तियों से अलंकृत करते हैं। इससे मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व में उत्कृष्टता आती है। श्रेष्ठ संस्कारों से ही मनुष्य परिवार और समाज में यश एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। हमारे शास्त्रों में श्रेष्ठ संस्कार को मनुष्य की सर्वोपरि धरोहर कहा गया है। इस धरोहर को सहेजना आवश्यक होता है।


अहंकार मनुष्य की मानसिक एकाग्रता एवं संतुलन को भंग कर देता है। अहंकारी व्यक्ति सदैव अशांत ही रहता है। वही संस्कार हमारे अंतः करण को दिव्य गुणों से विभूषित करते हैं। संस्कार हमें ईश्वरीय मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं। रावण, कंस, सिकंदर इन सब के आकार की परिणति दयनीय मृत्यु के रूप में हुई। संस्कार हमारी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का आधार स्तंभ है। ये मनुष्य को सदा ही पुण्य कर्मों की ओर प्रवृत्त करते हैं। हमारी स्वर्णिम वैदिक संस्कृति संस्कारों पर ही अवलंबित है।