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मंगलवार, 17 अगस्त 2021

सफलता- असफलता

 

सफलता- असफलता

     सफलता सामान्‍यत: एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे प्राय: प्रत्‍येक व्‍यक्ति प्राप्‍त करना चाहता है। कुछ लोग तो इसे थोड़े ही समय में प्राप्‍त कर लेते हैं, जबकि कई लोगों को इसे प्राप्‍त करने में बहुत लंबा समय लगाना पड्ता है। वहीं समुचित प्रयासों के अभाव में अनेक लोग लगातार असफल ही होते जाते हैं। यह एक ऐसा विषय है, जो प्राय: प्रत्‍येक व्‍यक्ति को सोचने पर मजबूर करता है। इस संदर्भ में उपनिषद का एक प्रसंग हमारा मार्गदर्शन करने में सक्षम है। जब व्‍यक्ति अपनी पीड़ा पर ध्‍यान केंद्रित करता है तो उसकी पीड़ा लगातार बढती जाती है। एक समय ऐसा आता है, जब उसे पीडि़त कहलाना अच्‍छा लगने लगता है। वहीं यदि व्‍यक्ति अपनी पीड़ा के बजाय उससे होने वाले अनुभवों पर ध्‍यान केंद्रित करता है तो उस संदर्भ में व्‍यक्ति के मन और मस्तिष्‍क विकसित होते हैं, जिसके परिणामस्‍वरूप पीड़ा लगातार गौण होती जाती है।

     ठीक इसी प्रकार व्‍यक्ति सफलता के बजाय असफलता पर अपना ध्‍यान केंद्रित करने लगता है, तब उसे चारों तरफ सिर्फ असफलताएं ही दिखाई पड़ती है। इस प्रकार धीरे धीरे उसके जीवन से खुशियां समाप्‍त होने लगती है। वह प्राय: उदास, निराश और हताश रहने लगता है। तत्‍पश्‍चात उसके जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब वह असफलताओं के लिए व्‍यक्तियों एवं परिस्थितियों को ही दोषी ठहराने लगता है।

     इसका तात्‍पर्य यह है कि उसने ध्‍येय यानी सफलता को प्राप्‍त करने के प्रयास या तो कम कर दिया है अथवा छोड़ दिए हैं । ऐसा इसलिए होता है, क्‍योंकि व्‍यक्ति मान चुका होता है कि सफलता जैसी चीज उसके लिए बनी ही नहीं है। फिर वह असफलता का ही महिमामंडन करने लगता है। ऐसा वस्‍तुत: गलाकाट प्रतिस्‍पर्धा के कारण व्‍यक्ति के मन में सफलता को लेकर उत्‍पन्‍न शंका, भय और उससे उपजी असुरक्षा की भावना के कारण होता है, जो कि सफलता की राह में सबसे बड़ा अवरोध है।

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