स्कूलों में छात्रों के कई समूह होते हैं। वे सभी अपनी रुचि के अनुसार आपस में जुड़ते हैं। वहां कई ऐसे समूह होते हैं, जो आपस में मिलकर किसी की आलोचना करने या किसी के जीवन में मुश्किलें पैदा करने पर ध्यान देते हैं। एक छात्र के रूप में हमें पढ़ाई के अलावा यह भी जानना चाहिए कि हम सब उस परमात्मा की संतान हैं। हममें से प्रत्येक में बुराइयों से ज्यादा अच्छाइयां हैं, इसलिए हमें सिर्फ अच्छे पक्ष पर ही ध्यान देना है। अगर हम यह समझ जाएं तो हमारा व्यवहार लोगों के साथ बेहतर होता चला जाएगा। यदि हमारे समूह में ऐसे लोग हैं, जो दूसरों की आलोचना करते हैं तो हमें उसका हिस्सा नहीं बनना चाहिए। यदि हम ऐसा करेंगे तो सकारात्मक सोच वाले कई बच्चे हमसे मित्रता करना चाहेंगे। ऐसा करने से हमारी जिंदगी शांति से भरी होगी।
बुधवार, 29 दिसंबर 2021
व्यवहार
मंगलवार, 28 दिसंबर 2021
विमोचन
सामान्य एवं सहायक नियम पुस्तिका का विमोचन
आज दिनांक 28 दिसंबर 2021 को पूर्वोत्तर रेलवे सामान्य एवं सहायक नियम की पुस्तिका (G & SR Book)संस्करण 2021 द्विभाषी ( हिंदी एवं अंग्रेजी) का विमोचन प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक श्री अनिल कुमार सिंह सहित प्रमुख विभागाध्यक्षों एवं अपर महाप्रबंधक की उपस्थिति में महाप्रबंधक महोदय श्री विनय कुमार त्रिपाठी जी ने किया।
शनिवार, 25 दिसंबर 2021
बनारस स्टेशन का निरीक्षण
दिनांक 24.12.21 को महाप्रबंधक पूर्वोत्तर रेलवे श्री विनय कुमार त्रिपाठी ने आज मंडल रेल प्रबंधक/वाराणसी श्री रामाश्रय पांडेय एवं प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक श्री अनिल कुमार सिंह सहित प्रमुख विभागाध्यक्षों के साथ बनारस रेलवे स्टेशन का गहन निरीक्षण किया।
शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021
प्रमुख मुख्य संरक्षा अधिकारी द्वारा संरक्षा आडिट निरीक्षण
दिनांक 10.12.2021 को प्रमुख मुख्य संरक्षा अधिकारी द्वारा इज्जतनगर मण्डल के कासगंज - फर्रूखाबाद खण्ड का संरक्षा आडिट निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान मुख्यालय के अन्य विभागाध्यक्ष एवं मण्डल के शाखा अधिकारी उपस्थित रहे।
गार्ड लाइन बाक्स के स्थान पर ट्रा्ली बैग का विमोचन
गार्ड लाइन बाक्स के स्थान पर ट्रा्ली बैग का विमोचन वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक/इज्जतनगर की उपस्थिति में मण्डल रेल प्रबन्धक/इज्जतनगर द्वारा अपने कक्ष में किया गया।
गुरुवार, 23 दिसंबर 2021
हिंदी
हिंदी
भानु प्रकाश नारायण
मुख्य यातायात निरीक्षक
आज तुम पर कोई ग़जल लिखूँ
या लिखूँ कोई भी गीत रे,
बनकर तुम जन-जन की भाषा,
बन जाती हो नयी प्रीत रे।
गढ़ देती हो मन की अभिलाषा
प्रेम पथिक की जिज्ञासा रे।
लगती हो कोमल सी एक कली ,
अधरों पर मंद-मंद मुस्कान लिये ।
पलकों से है शर्म झलकाती जैसे
आँचल ओढ़े सुनहरी धूप वैसे।
नवल चाँदनी बिखरे पल पल
कँवल खिले नित नव यौवन-सा।
मधु सी मनभावन मिठास हो तुम ,
जन-जन की मधुर आस हो तुम।
मैं अंधकार का अंधियारा हिंदी
तुम बना देती दीपक बाती सा।
तेरी भाषा जलकर नित
नवल रोशनी फैलाती,
तुम अंतर्मन की अनुभूति हो,
तुम ही परिलक्षित झंकृति हो
तुम ही स्वप्निल नयनों वाली
तुम मेरी पूर्ण स्वीकृति हो।
मैं रचने निकला पथ पर तुम
प्रति छाया बन जाती हो।
मेरे मन के करुण रस को हिंदी
तुम अविरल श्रृंगार बना जाती हो
मेरी कविता के शब्द हो तुम ही ,
तुम ही हो लय और ताल हो,
तुम सावन की फुहार हो ,
वसंत की खुशमय बहार हो।
पथ की स्मृति को बना सौंदर्यमय,
अविरल छलकती निर्माण हो।
निकलूँ जब भी कविता रचने,
मेरा पथ प्रशस्त करती हो हिन्दी।
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बुधवार, 22 दिसंबर 2021
स्वभाव
मनुष्य के स्वभाव से ही उसके व्यक्तित्व का निर्धारण होता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव अच्छा होता है वह लगभग सभी का प्रिय बन जाता है। माना "" जाता है कि अच्छे कर्म करने की आदत होने पर स्वभाव में सरलता स्वयं आ आती है। मनुष्य को प्रकृति द्वारा यह शरीर प्राप्त हुआ है और इसी शरीर में मन वास करता है। यही मन मनुष्य के स्वभाव को संचालित करता है। सोचना और भावुक होना इत्यादि मन की विशेषताएं है। कहते हैं कि मन जितना सुंदर होगा, मनुष्य का स्वभाव भी उतना ही आकर्षक होगा। यही मन यदि नियंत्रण में न हो तो स्वभाव में कई प्रकार की विकृतियां आ जाती हैं।
मंगलवार, 21 दिसंबर 2021
ऊर्जा
कुटुंब अर्थात परिवार सामाजिक संरचना की लघुतम इकाई है तथा समाज की एक महत्वपूर्ण कोशिका है, जो पुष्ट होकर समाज को सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृढ़ता प्रदान करती है। सामाजिक जीवन में निरंतरता बनाए रखने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जीवन में माधुर्य का संचार और सौंदर्य का निखार परिवार से ही आता है। अतः परिवार दीर्घ और सुखमय जीवन का आधार है। विद्वानों ने इसे विविध रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ रक्त संबंध को परिवार मानते हैं तो कुछ माता-पिता, पत्नी और बच्चों को, पर स्वार्थमय संकुचित दृष्टिकोण के कारण आज केवल पत्नी और बच्चों को ही परिवार माना जाने लगा है। यह मनुष्य के गिरते हुए चिंतन का परिणाम है। वास्तव में परिवार पुष्ट तने और गहरी नींव वाले वृक्ष की उन बलिष्ठ शाखाओं के समान होता है, जो चतुर्दिक फैलकर स्वयं को और समाज को आत्मीयता की शीतल छाया प्रदान कर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
परिवार के संबंध में भारत का चिंतन हमेशा से बहुत उदार और व्यापक
रहा है। ऋषियों ने विश्व कल्याण की कामना से जो 'वसुधैव कुटुंबकम्'. का उद्घोष किया था, वह आज का वैश्विक चिंतन ही था। जो न केवल सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि
से वरन आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी समस्त भूमंडल के लिए लोक मंगलकारी था।
स्वार्थमय चिंतन होने से परिवार की परिभाषाएं बदलती गईं। फलस्वरूप घर से लेकर बाहर
तक संपूर्ण वैश्विक परिदृश्य में अशांति का अनुभव किया जा रहा है। सामाजिक एवं
वैश्विक शांति के लिए संकीर्णतावादी सोच को छोड़कर परिवार को पुनः परिभाषित करने
की आवश्यकता है। वसुधैव कुटुंबकम् के पवित्र भाव को आत्मसात करने से ही
विश्वबंधुत्व का भाव प्रबल होगा। सर्वत्र सुख-शांति स्थापित होगी तथा स्वस्थ
वैश्विक पर्यावरण को भी मजबूत आधार मिलेगा।
क्रोध
मनुष्य में पांच भावनाएं
प्रमुख रूप से पाई जाती हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या। इनमें क्रोध की भावना बहुत ही प्रबल होती है। क्रोध पूरे जीवन
मनुष्य को घेर कर रखता है। न उम्र की मर्यादा करता है, न ज्ञान की। कब, कहां और किस पर उत्पन्न हो
जाए, कहा नहीं जा सकता। क्रोध के जन्म लेते ही बुद्धि और विवेक का लोप हो जाता है।
बुद्धि पर अंधकार छा जाता है। उचित-अनुचित का बोध नहीं रहता। क्रोध समाप्त होने पर
व्यक्ति पश्चाताप करता है, परंतु परिस्थितियों को पूर्व की भांति नहीं कर पाता है। किसी भी कारागार में
जाकर देख लीजिए। अधिकांश अपराधी अपने क्षणिक आवेश या क्रोध का परिणाम भुगत रहे
हैं।
यादें
संस्मरण
अतित की सुनहरी यादें
बचपन में स्कूल के दिनों में क्लास के दौरान टीचर द्वारा पेन माँगते ही हम बच्चों के बीच राकेट गति से गिरते पड़ते *सबसे पहले उनकी टेबल तक पहुँच कर पेन देने की अघोषित प्रतियोगिता* होती थी।
जब कभी मैम किसी बच्चे को क्लास में कापी वितरण में अपनी मदद करने पास बुला ले, तो *मैडम की सहायता करने वाला बच्चा अकड़ के साथ "अजीमो शाह शहंशाह" बना क्लास में घूम-घूम* कर कापियाँ बाँटता और *बाकी के बच्चें मुँह उतारे गरीब प्रजा की तरह* अपनी चेयर से न हिलने की बाध्यता लिए बैठे रहते। *टीचर की उपस्थिति* में क्लास के भीतर *चहल कदमी की अनुमति कामयाबी की तरफ पहला कदम* माना जाता था।
उस मासूम सी उम्र में उपलब्धियों के मायने कितने अलग होते थे
क) टीचर ने क्लास में सभी बच्चो के बीच गर हमें हमारे नाम से पुकार लिया .....
ख) टीचर ने अपना रजिस्टर स्टाफ रूम में रखकर आने बोल दिया तो समझो कैबिनेट मिनिस्टरी में चयन का गर्व होता था।
आज भी याद है जब बहुत छोटे थे, तब बाज़ार या किसी समारोह में हमारी टीचर दिख जाए तो भीड़ की आड़ ले छिप जाते थे। जाने क्यों, किसी भी सार्वजनिक जगह पर टीचर को देख हम छिप जाते है?
कैसे भूल सकते है, अपने उन गणित के टीचर को जिनके खौफ से 17 और 19 का पहाड़ा याद कर पाए थे।
कैसे भूल सकते है उन हिंदी शिक्षक को जिनके आवेदन पत्रों से ये गूढ़ ज्ञान मिला कि बुखार नही *ज्वर पीड़ित होने के साथ सनम्र निवेदन कहने के बाद ही तीन दिन का अवकाश* मिल सकता है।
अपने उस कक्षा शिक्षक को कैसे भूले जो शोर मचाते बच्चों से भी ज्यादा ऊँची आवाज़ में गरजते:- *"मछली बाज़ार है क्या?”*....
मैंने तो मछली बाज़ार में मछलियों के ऊपर कपड़ा हिलाकर मक्खी उड़ाते खामोश दुकानदार ही देखे है।
वो टीचर तो आपको भी बहुत अच्छे से याद होंगे जिन्होंने *आपकी क्लास को स्कूल की सबसे शैतान क्लास की उपाधि* से नवाज़ा था।
उन टीचर को तो कतई नही भुलाया जा सकता जो होमवर्क कापी भूलने पर ये कहकर कि ... *“कभी खाना खाना भूलते हो?”* ... बेइज़्ज़त करने वाले तकियाकलाम से हमें शर्मिंदा करते थे।
टीचर के महज़ इतना कहते ही कि *"एक कोरा पेज़ देना"* पूरी क्लास में फड़फड़ाते 50 पन्ने फट जाते थे।
क्या आप भूल सकते है गिद्ध सी पैनी नज़र वाले अपने उस टीचर को जो बच्चों की टेबल के नीचे छिपाकर कापी के आखरी पन्नों पर चलती दोस्तों के मध्य लिखित गुप्त वार्ता को ताड़ कर अचानक खड़ा कर पूछते *"तुम बताओ मैंने अभी अभी क्या पढ़ाया?"*
टीचर के टेबल के *पास खड़े रहकर कॉपी चेक कराने* के बदले यदि मुझे *सौ दफा सूली पर लटकना पड़े तो वो ज्यादा आसान* था।
क्लास में टीचर के प्रश्न पूछने पर उत्तर याद न आने पर कुछ लड़कों के हाव भाव ऐसे होते थे कि *उत्तर तो जुबान पर रखा है बस जरा सा छोर हाथ नही आ रहा*। ये ड्रामेबाज छात्र उत्तर की तलाश में कभी छत ताकते, कभी आँखे तरेरते, कभी हाथ झटकते। देर तक आडम्बर झेलते झेलते आखिर टीचर के सब्र का बांध टूट जाता -- you, yes you, get out from my class ....।
सुबह की प्रार्थना में जब हम दौड़ते भागते देर से पहुँचते तो हमारे शिक्षकों को रत्तीभर भी अंदाजा न होता था कि हम शातिर छात्रों का ध्यान *प्रार्थना में कम, और आज के सौभाग्य से कौन कौन सी टीचर अनुपस्थित है, के मुआयने में ज्यादा* रहता था।
आपको भी वो टीचर याद है न, जिन्होंने ज्यादा *बात करने वाले दोस्तों की सीट्स बदल उनकी दोस्ती कमजोर करने की साजिश* की थी।
मैं आज भी दावा कर सकता हूँ, कि एक या दो टीचर्स शर्तिया ऐसे होते है *जिनके सर के पीछे की तरफ़ अदृश्य नेत्र का वरदान मिलता* है, ये टीचर ब्लैक बोर्ड में लिखने में व्यस्त रहकर भी चीते की फुर्ती से पलटकर कौन बात कर रहा है का सटीक अंदाज़ लगाते थे।
वो टीचर याद आये या नही जो *चाक का उपयोग लिखने में कम और बात करते बच्चों पर भाला फेक शैली* में ज्यादा लाते थे?
जब टीचर एग्जाम हाल में प्रश्न पत्र पकड़कर घूमते और पूछते "एनी डाउट्" तब मुझे तो फिजिक्स पेपर में हमेशा एक ही डाउट रहता है कि हमें ये ग्राफ पेपर क्यो मिला है जबकि प्रश्रपत्र में ग्राफ किसमें बनाना है मुझे तो यही नही समझ आ रहा। मैं अपनी मूर्खता जग जाहिर ना करके चारों ओर सर घुमाकर देखते चुप बैठा रहता।
हर क्लास में एक ना एक बच्चा होता ही था, जिसे अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करने में विशेष महारत होती थी, और ये प्रश्नपत्र थामे एक अदा से खड़े होते है... *मैम आई हैव आ डाउट इन कोश्च्यन नम्बर 11* ....हमें डेफिनेशन के साथ एग्जाम्पल भी देना है क्या? *उस इंटेलिजेंट की शक्ल देख खून खौलता*।
परीक्षा के बाद जाँची हुई कापियों का बंडल थामे कॉपी बाँटने क्लास की तरफ आते शिक्षक साक्षात सुनामी लगते थे।
ये वो दिन थे, जब कागज़ के एक पन्ने को छूकर खाई *'विद्या कसम' के साथ बोली गयी बात, संसार का अकाट्य सत्य*, हुआ करता थी।
मेरे लिए आज तक एक रहस्य अनसुलझा ही है की *खेल के पीरियड का 40 मिनिट छोटा और इतिहास का पीरियड वही 40 मिनिट लम्बा कैसे* हो जाता था ??
सामने की सीट पर बैठने के नुकसान थे तो कुछ फायदे भी थे। मसलन चाक खत्म हुई तो मैम के इतना कहते ही कि *"कोई भी जाओ बाजू वाली क्लास से चाक ले आना"* सामने की सीट में बैठा बच्चा लपक कर क्लास के बाहर, दूसरी क्लास में *"मे आई कम इन" कह सिंघम एंट्री करते।*
"सरप्राइज़ चेकिंग" पर हम पर कापियाँ जमा करने की बिजली भी गिरती थी, सभी बच्चों को चेकिंग के लिए कापी टेबल पर ले जाकर रखना अनिवार्य होता था। टेबल पर रखे जा रहे कापियों के ऊँचे ढेर में *अपनी कापी सबसे नीचे दबा आने पर तूफ़ान को जरा देर के लिए टाल आने की तसल्ली मिलती थी*
हर समय एक ही डायलाग सुनते “तुम लोगो का शोर प्रिंसिपल रूम तक सुनाई दे रहा है।“ अमा हद है यार ! *अब प्रिंसिपल रूम बाज़ू में है इस बात पे हम बच्चों की लिप्स सर्जरी कर सिलवा दोगे या जीभ कटवा दोगे क्या*?
हमें भी तो प्रिंसिपल रूम की सारी बातें सुनाई देती है | हमने तो कभी शिकायत नही की।
वो निर्दयी टीचर जो पीरियड खत्म होने के बाद का भी पाँच मिनिट पढ़ाकर हमारे लंच ब्रेक को छोटा कर देते थे।
चंद होशियार बच्चे हर क्लास में होते है जो मैम के क्लास में घुसते ही याद दिलाने का सेक्रेटरी वाला काम करते थे
*"मैम कल आपने होमवर्क दिया था।"* जी में आता था इस आइंस्टीन की औलाद को डंडों से धुन के धर दो।
तमाम शरारतों के बावजूद ये बात सौ आने सही हैं कि बरसों बाद उन टीचर्स के प्रति स्नेह और सम्मान बढ़ जाता है, अब वो किसी मोड़ पर अचानक वो मिल जाए तो बचपन की तरह अब हम छिपेंगे नही।
आज भी जब मैं स्कूल या कालेज की बिल्डिंग के सामने से गुजरता हूँ, तो लगता है कि एक दिन था जब ये बिल्डिंग मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। अब उस बिल्डिंग में न मेरे दोस्त है, न हमकों पढ़ाने वाले वो टीचर्स। बच्चो को लेट एंट्री से रोकने गेट बंद करते स्टाफ भी नही जिन्हें देखते ही हम दूर से चिल्लाते थे “गेट बंद मत करो भैय्या प्लीज़” वो बूढी से बाबा भी नही है जो मैम से सिग्नेचर लेने जब जब लाल रजिस्टर के साथ हमारी क्लास में घुसते, तो बच्चों में ख़ुशी की लहर छा जाती *“कल छुट्टी है”*
अब *स्कूल के सामने से निकलने से एक टिस सी उठती* है जैसे मेरी कोई बहुत अजीज चीज़ छीन गयी हो। आज भी जब उस ईमारत के सामने से निकलता हूँ, तो पुरानी यादो में खो जाता हूं।
स्कूल/कालेज की शिक्षा पूरी होते ही व्यवहारिकता के कठोर धरातल में, अपने उत्तरदायित्वों को निभाते , दूसरे शहरो में रोजगार का पीछा करते, दुनियादारी से दो चार होते, जिम्मेदारियों को ढोते हमारा संपर्क उन सबसे टूट जाता है, जिनसे मिले मार्गदर्शन, स्नेह, अनुशासन, ज्ञान, ईमानदारी, परिश्रम की सीख और लगाव की असंख्य कोहिनूरी यादें किताब में दबे मोरपंख सी साथ होती है, जब चाहा खोल कर उस मखमली अहसास को छू लिया।
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रविवार, 19 दिसंबर 2021
19 दिसम्बर
19 दिसंबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ –
किंग हेनरी द्वितीय 1154 में इंग्लैंड के सम्राट बने।
अमेरिका में मौसम विज्ञान सोसायटी की 1919 में स्थापना हुयी।
जर्मन सीरियल किलर फ्रिट्ज हार्मैन को हत्या की एक श्रृंखला के लिए 1924 में मौत की सजा सुनाई गई।
उत्तर प्रदेश ऑटोमोबाइल संघ की 1927 में स्थापना हुई।
महान् स्वतन्त्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला ख़ां और रोशन सिंह को 1927 में अंग्रेजों ने फाँसी दे दी।
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने 1941 में सेना की पूरी कमान अपने हाथ में ले ली।
सन 1961 में गोवा स्वतंत्र हुआ।
ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय सैनिकों ने 1961 में गोवा के बॉर्ड में प्रवेश किया।
ब्राजील के शहर रियो दी जेनेरियो से 1983 में फुटबॉल के फीफा विश्व कप की चोरी हो गई।
चीन एवं ब्रिटेन के मध्य 1984 में 1997 तक हांगकांग चीन के वापस करने संबंघी समझौते पर हस्ताक्षर।
अमर्त्य सेन को 1998 में बांग्लादेश ने मानद नागरिकता से नवाजा, डेनवर (अमेरिका) में
आयोजित विश्व विकलांग स्कीइंग में शील कुमार (भारत) सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित।
443 वर्षों तक पुर्तग़ाली उपनिवेश में रहने के बाद 1999 में मकाऊ का चीन को हस्तांतरण।
ऑस्ट्रेलिया ने 2000 में वेस्टइंडीज को हराकर लगातार 13वां टेस्ट मैच जीता।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2003 में कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के तहत हल करने की पाकिस्तान की मांग छोड़ने का स्वागत किया।
अफ़ग़ानिस्तान में तीन दशक बाद 2005 में लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गयी देश की पहली संसद की पहली बैठक आयोजित।
शैलजा आचार्य को 2006 में नेपाल ने अपना भारत में नया राजदूत नियुक्त किया।
टाइम पत्रिका ने 2007 में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को पर्सन आफ़ द ईयर के ख़िताब से नवाजा।
केनरा बैंक, एचडीएफसी व बैंक ऑफ़ राजस्थान ने 2008 में आवास ऋण सस्ता करने की घोषणा की।
पार्क ग्युन हे 2012 में दक्षिण कोरिया की पहली महिला राष्ट्रपति बनी।
19 दिसंबर को जन्मे व्यक्ति –
मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले अमेरिकी नेता मार्टिन लूथर किंग सीनियर का जन्म 1897 में हुआ।
भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता ओम प्रकाश का जन्म 1919 में हुआ।
भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का जन्म 1934 में हुआ।
पूर्व क्रिकेटर नयन मुंगया का जन्म 1969 में हुआ।
ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट खिलाड़ी एवं कप्तान रिकी पोंटिंग का जन्म 1974 में हुआ।
अमरीकन फुटबॉल के खिलाड़ी जेक प्लमर का जन्म 1974 में हुआ।
अमरीकन अभिनेता जेक गाइलनहाल का जन्म 1980 में हुआ।
19 दिसंबर को हुए निधन –
1848 से 1856 तक भारत के गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी का निधन 1860 में हुआ।
महान् स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद् व साहित्यकार राम प्रसाद बिस्मिल का निधन 1927 में हुआ।
भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का निधन 1927 में हुआ।
भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों में से एक ठाकुर रोशन सिंह का निधन 1927 में हुआ।
ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मानित और प्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार उमाशंकर जोशी का निधन 1988 में हुआ।
लेखक और गाँधीवादी पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का निधन 2016 में हुआ।
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शनिवार, 18 दिसंबर 2021
लोक कलाकार भिखारी ठाकुर
लोक कलाकार भिखारी ठाकुर
(18 दिसम्बर 1887 - 10 जुलाई सन 1971)
भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक के रूप में भिखारी ठाकुर को जाना जाता है । वे बहु आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने सामाजिक कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वे एक महान लोक कलाकार थे जिन्हें 'भोजपुरी का शेक्शपीयर' कहा जाता है।
विख्यात काव्य नाटक "बिदेसिया" के लेखक भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे।
वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने इसी भाषा में अपने काव्य रचे जो भोजपुरी समाज में लोगों की जुबान पर चढ़े।
भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। जीविको पार्जन के लिए खड़कपुर गये और खूब पैसे कमाए लेकिन मन नहीं भरा तो गांव की तरफ रवाना हो गये।
भिखारी ठाकुर ने अपने 'नाच' के माध्यम से न सिर्फ़ लोक रंगमंच को मज़बूती प्रदान की बल्कि समाज को भी दिशा देने का काम किया है.
, भिखारी ठाकुर का कलाकार मन आखिर जागा कैसे? वाक्या कुछ यूं है- किशोरावस्था में ही उनका विवाह मतुरना के साथ हो गया था। लुक-छिपकर वह नाच देखने चले जाते थे। नृत्य-मंडलियों में छोटी-मोटी भूमिकाएं भी अदा करने लगे थे। लेकिन मां-बाप को यह कतई पसंद न था। एक रोज गांव से भागकर वह खड़गपुर जा पहुंचे। इधर-उधर का काम करने लगे। मेदिनीपुर जिले की रामलीला और जगन्नाथपुरी की रथयात्रा देख-देखकर उनके भीतर का सोया कलाकार फिर से जाग उठा।
भिखारी ठाकुर जब गांव लौटे तो कलात्मक प्रतिभा और धार्मिक भावनाओं से पूरी तरह लैस थे। परिवार के विरोध के बावजूद नृत्य मंडली का गठन कर वह शोहरत की बुलंदियों को छूने लगे। तीस वर्ष की उम्र में उन्होंने विदेसिया की रचना की। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। जन-जन की जुबान पर बस एक ही नाम गूंजने लगा- भिखारी ठाकुर!
बिहार के छपरा शहर से लगभग दस किलोमीटर पूर्व में चिरान नामक स्थान के पास कुतुबपुर गांव में भिखारी ठाकुर का जन्म पौष मास शुक्ल पंचमी संवत् 1944 तद्नुसार 18 दिसंबर, 1887 (सोमवार) को दोपहर बारह बजे शिवकली देवी और दलसिंगार ठाकुर के घर हुआ था। यह गांव कभी भोजपुर (शाहाबाद) जिले में था, पर गंगा की कटान को झेलता सारण (छपरा) जिले में आ गया है। इसी गांव के पूर्वी छोर पर स्थित है भिखारी ठाकुर का पुश्तैनी घर।
मां-बाप की ज्येष्ठ संतान भिखारी ठाकुर ने नौ वर्ष की अवस्था में पढ़ाई शुरू की। एक वर्ष तक तो कुछ भी न सीख सके। साथ में छोटे भाई थे बहोर ठाकुर। बाद में गुरु भगवान से उन्होंने ककहरा सीखा और स्कूली शिक्षा अक्षर-ज्ञान तक ही सीमित रही। बस, किसी तरह रामचरित मानस पढ़ लेते थे। कैथी लिपि में लिखते थे। लेखन की मौलिक प्रतिभा उनमें जन्मजात थी। एक तरह से वह शिक्षा के मामले में कबीर दास की तरह ही थे।
वर्ष 1938 से 1962 के बीच भिखारी ठाकुर की लगभग तीन दर्जन पुस्तिकाएं छपीं। इन किताबों को लोग फुटपाथों से खरीदकर खूब पढ़ते थे। अधिकतर किताबें दूधनाथ प्रेस, सलकिया (हावड़ा) और कचौड़ी गली (वाराणसी) से प्रकाशित हुई थीं। नाटकों व रूपकों में बहरा बहार (विदेसिया), कलियुग प्रेम (पियवा नसइल), गंगा-स्नान, बेटी वियोग (बेटी बेचवा), भाई विरोध, पुत्र-वधू, विधवा-विलाप, राधेश्याम बहार, ननद-भौजाई, गबरघिचोर उनकी मुख्य किताबें हैं।
समालोचक महेश्वराचार्य ने उन्हें 1964 में जनकवि कह कर संबोधित किया था। इसी तरह कथाकार संजीव ने भिखारी ठाकुर की जीवन यात्रा पर 'सूत्रधार' उपन्यास की रचना की है। यह उपन्यास पढ़कर कोई भी भिखारी ठाकुर की पूरी जिंंदगी को समझ सकता है। इसमें कई ऐसे प्रसंग की चर्चा है जिन्हें पढ़कर आप रो पड़ेंगे।
राहुल सांस्कृत्यायन ने कहा था भोजपुरी का शेक्सपियर।
धोती, कुर्ता, मिरजई, सिर पर साफा और पैर में जूता पहनने के शौकीन भिखारी ठाकुर गुड़ खाने के बहुत शौकीन थे। 10 जुलाई, 1971 (शनिवार) को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने भिखारी को भोजपुरी का शेक्सपियर और अनगढ़ हीरा कहा था। जगदीशचंद्र माथुर ने उन्हें भरतमुनि की परंपरा का (प्रथम) लोक नाटककार कहा था।
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सोमवार, 6 दिसंबर 2021
सितम्बर -2021 , माह के सर्वोत्तम कर्मचारी
पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल, परिचालन विभाग
(श्री विनय कुमार त्रिपाठी /महाप्रबंधक पूर्वोत्तर रेलवे, श्री प्रशांत कुमार तिवारी स्टेशन मास्टर /जहाँगीराबाद राज , लखनऊ मंडल को कार्य कुशलता प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए l )