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गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

हिंदी

                       हिंदी

                            भानु प्रकाश नारायण

                        मुख्य यातायात निरीक्षक

आज तुम पर कोई ग़जल लिखूँ

 या लिखूँ कोई भी गीत रे,

बनकर तुम जन-जन की भाषा,

 बन जाती हो नयी प्रीत रे।

 गढ़ देती हो मन की  अभिलाषा

प्रेम पथिक की जिज्ञासा रे।  

लगती हो कोमल सी एक कली ,

अधरों पर मंद-मंद मुस्कान लिये  । 

पलकों से है शर्म झलकाती जैसे 

आँचल ओढ़े सुनहरी धूप वैसे।

नवल चाँदनी बिखरे पल पल 

कँवल खिले नित नव यौवन-सा।

मधु सी मनभावन मिठास हो तुम ,

 जन-जन की मधुर आस हो तुम।

मैं अंधकार का अंधियारा हिंदी

तुम बना देती दीपक बाती सा।

तेरी भाषा जलकर  नित

 नवल रोशनी फैलाती,

तुम अंतर्मन की अनुभूति हो,

तुम ही परिलक्षित झंकृति हो

तुम ही स्वप्निल नयनों वाली   

  तुम मेरी पूर्ण स्वीकृति हो। 

मैं रचने निकला पथ पर तुम 

प्रति छाया बन जाती हो।

मेरे मन के करुण  रस को हिंदी 

तुम अविरल श्रृंगार बना जाती हो

मेरी कविता के शब्द हो तुम ही ,

तुम ही हो लय और ताल हो,

तुम सावन की  फुहार हो ,

वसंत की खुशमय बहार हो।

पथ की स्मृति को बना सौंदर्यमय, 

अविरल छलकती निर्माण हो।

निकलूँ जब भी कविता रचने,  

मेरा पथ प्रशस्त करती हो हिन्दी।

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